चार सालों में दिखने लगा है सुधारों का फायदा

मोदी सरकार ने अपने चार सालों के कार्यकाल में बैंकिंग और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए अनेक काम किए हैं, जिसके सकारात्मक परिणाम परिलक्षित भी होने लगे हैं। विश्व बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने अपनी रिपोर्टों में इसे स्वीकार भी किया है।

देखा जाए तो मोदी सरकार द्वारा किए गए सुधारात्मक कार्यों की एक लंबी फेहरिस्त है, लेकिन सभी को एक लेख में समाहित करना संभव नहीं है। लिहाजा, पिछले चार सालों में मोदी सरकार द्वारा किए गए कुछ महत्वपूर्ण कार्यों पर चर्चा करना चाहूंगा।

मौजूदा समय में अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकारी बैंकों में आमूलचूल परिवर्तन लाने की दरकार है। समस्या की गंभीरता को देखते हुए बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए सरकार उन्हें 2.11 लाख करोड़ रुपये देने के संबंध में अग्रतर कार्रवाई कर रही है। माना जा रहा है इससे वित्त वर्ष 2019 में जीडीपी वृद्धि दर में बेहतरी आएगी और फंसे हुए कर्ज और अनुत्पादक परिसंपत्तियों की समस्या से निपटने में बैंकों को आसानी होगी और बैंक बासेल तृतीय के विविध मानकों को भी पूरा करने में भी समर्थ हो सकेंगे।

पुनर्पूंजीकरण की व्यवस्था को तीन हिस्सों में बांटा गया है। कुल राशि में से 18,000 करोड़ रुपये बजट से दिए जाएंगे, 58,000 करोड़ रुपये बाजार से इक्विटी के रूप में जुटाए जाएंगे और 1.35 लाख करोड़ रुपये सरकार द्वारा पुनर्पूंजीकरण बाँड के रूप में उपलब्ध कराए जाएंगे। इस प्रक्रिया को दो सालों में पूरा किया जाएगा, लेकिन अधिकांश पूंजी अगली चार तिमाहियों में बैंकों को दी जाएगी। जानकारों के मुताबिक वृहद आर्थिक स्थिति पर सरकार के इस कदम का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार श्री अरविंद सुब्रमण्यन के अनुसार, पुनर्पूंजीकरण बांड से सरकारी खजाने पर 9,000 करोड़ रुपये ब्याज का बोझ पड़ेगा, जिससे मुद्रास्फीति पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना लगभग न्यून है।

एनपीए की समस्या से निपटने के लिए सरकार ने दिवालिया कानून को अमली जामा पहनाया है। इसका मकसद छोटे निवेशक, बैंक और जमाकर्ताओं को राहत देना है। इसकी मदद से कंपनी को दिवालिया होने से बचाया जा सकता है। लेनदार और देनदार के बीच की समस्याओं का समाधान भी इस कानून के द्वारा किया जा सकता है। आमतौर पर छोटे निवेशक, छोटे आपूर्तिकर्ता, छोटे जमाकर्ता एवं इस तरह के अन्य लोगों के अधिकारों की रक्षा नहीं हो पाती है। बड़ी कंपनियों से इन्हें न्याय नहीं मिल पाता है। दिवालिया कानून के आने से लोग न्याय पाने के प्रति आशान्वित हुए हैं। किसी कंपनी को दिवालिया घोषित करने के लिए निर्णायक प्राधिकरण एक दिवालिया आदेश पारित करता है। चूककर्ता कॉर्पोरेट या कोई वित्तीय लेनदार, जो कर्ज लौटाने में असमर्थ है, वह इसके तहत आवेदन कर सकता है। दिवालिया घोषित होने की प्रक्रिया की अवधि आवेदन की तिथि से 180 दिनों तक की होती है, जिसके तहत दिवालिया और दिवालिया हो चुकी कंपनियों की संपत्ति को बेचा जाता है।

नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या आदि आर्थिक अपराधियों पर नकेल कसने के लिए ‘भगोड़ा आर्थिक अपराध बिल 2018’ बेहद ही प्रभावशाली हो सकता है। इस विधेयक में आर्थिक अपराध को अंजाम देकर विदेश भागने वालों को अदालत द्वारा उन्हें दोषी साबित किए जाने से पहले उनकी संपत्तियों को जब्त करने का प्रावधान है। माना जा रहा है कि इस बिल से बैंकिंग क्षेत्र को लाभ होगा।

भारतीय स्टेट बैंक के पाँच सहयोगी बैंकों यथा स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एवं जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद और देश की एकमात्र महिला बैंक का भारतीय स्टेट बैंक के साथ विलय किया जा चुका है। इससे बैंकों के एकीकरण की राह आसान हुई है, लेकिन बैंकों के बढ़ते एनपीए और धोखाधड़ी की घटनाओं की वजह से फिलहाल यह प्रक्रिया को रोक दी गई है।

भारत जैसे बड़े एवं विविधितापूर्ण देश में बैंकिंग की सुविधा गली-मोहल्लों तक पहुंचाने के लिए ग्रामीण क्षेत्र से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराना सरकार के लिए आज भी एक बड़ी चुनौती है। विलय के बाद ग्रामीण क्षेत्र में इनकी उपस्थिति में और भी इजाफा होगा। जो भी हो, भारत के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्वरूप का ताना-बाना बड़े बैंक के अनुकूल है, क्योंकि बड़े बैंक ही इतने बड़े देश में समान रूप से बेहतर ग्राहक सुविधाएं मुहैया करा सकते हैं। वैश्विक उपस्थिति होने से बैंकों के ग्राहकों को देश व विदेश दोनों जगहों पर समान रूप से सेवा मिल सकेगी।

नवम्बर, 2016 में विमुद्रीकरण करने का निर्णय लेना मोदी सरकार द्वारा उठाया गया एक साहसिक कदम था। इस निर्णय से नक्सलवाद, आतंकवाद, कालेधन एवं कर चोरी पर रोक तो लगी ही, साथ ही डिजिटलीकरण को भी बढ़ावा मिला। इसके बाद सब्जीवाले, खोमचेवाले, चायवाले आदि भी डिजिटल लेनदेन करने लगे। इतना ही नहीं बड़े-बुजुर्ग और ग्रामीण महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर डिजिटल लेनदेन में हिस्सा लिया।

अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए विमुद्रीकरण के तुरंत बाद जीएसटी को लागू किया गया। यह एक सशक्त अप्रत्यक्ष कर प्रणाली है। जीएसटी के तहत अलग-अलग कर की बजाय एक कर का प्रावधान किया गया। इससे विनिर्माण लागत में कमी आई। उपभोक्ताओं को आज देश भर में किसी भी सामान या सेवा का एक शुल्क अदा करना पड़ रहा है। टीवी, गाड़ी, फ्रिज एक ही कीमत पर मुंबई, दिल्ली, पटना, भोपाल आदि शहरों में उपभोक्ताओं को मिल रहा है।

इससे कर चोरी की वारदातें एवं कर विवाद के मामले कम हो रहे हैं। टैक्स वसूली की लागत में भी उल्लेखनीय कमी आई है। रोजगार सृजन में वृद्धि, चाइनीज उत्पादों की बिक्री में कमी, जरूरी चीजों पर कर कम होने एवं विलासिता की वस्तुएं महंगी होने से सरकार व आम लोगों दोनों को फायदा हो रहा है।

केंद्र सरकार ने देश में निवेश को प्रोत्साहन देने और कारोबारी सुगमता को बढ़ाने के लिए तरह तरह के सुधार किए हैं, जिसे तकनीकी भाषा में ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ कहते हैं। पिछले वर्ष ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में भारत ने रिकॉर्ड 30 पायदान सुधार कर 100वां स्थान हासिल किया था। इस साल भारत 50वें स्थान को पाना चाहता है। विश्व बैंक दस मानदंडों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार करता है, जो बताता है कि कौन सा देश कारोबार के लिहाज से कितना बेहतर है। इस क्रम में कारोबारी सुगमता को रैंकिंग के निर्धारण का मुख्य आधार बनाया जाता है। विश्व बैंक की पिछली रिपोर्ट में न्यूजीलैंड पहले स्थान पर था और सिंगापुर दूसरे। इस साल रैकिंग के निर्धारण की तिथि 1 मई तय की गई है और रैंकिंग की घोषणा अक्टूबर महीने में की जाएगी।

विश्व बैंक ने अपने द्विवार्षिक प्रकाशन ‘इंडिया डेवलपमेंट अपडेट्स् इंडियाज ग्रोथ स्टोरी’ नामक रिपोर्ट में कहा है कि भारत की जीडीपी की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2018-19 में 7.3 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2019-20 में बढ़कर 7.5 प्रतिशत रह सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 8 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करने के लिए भारत को ऋण और निवेश से संबंधित मुद्दों को सुलझाने और निर्यात को प्रतिस्पर्धात्मकता बनाने की पहल करनी होगी। इन मोर्चों पर सरकार बेहतरी लाने की लगातार कोशिश भी कर रही है। विश्व बैंक ने रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा है कि नोटबंदी और जीएसटी का अल्पकालिक प्रभाव आर्थिक गतिविधियों पर पड़ा था, लेकिन अब वह खत्म हो गया है।

वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने भी भारत की आर्थिक वृद्धि दर के वित्त वर्ष 2018-19 में 7.3 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2019-20 में बढ़कर 7.5 प्रतिशत पहुंचने का अनुमान लगाया है। फिच के मुताबिक नीति-संबंधी निर्णय तेजी से लिए जाने के कारण देश में वृद्धि की संभावना बढ़ी है। पूंजी निवेश में भी सुधार आया है। जीएसटी से जुड़े अवरोध खत्म हो रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में सकारात्मक स्थिति दृष्टिगोचर हो रही है। कृषि, निर्माण और विनिर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन की बदौलत पिछले वित्त वर्ष की अक्टूबर-दिसम्बर तिमाही के दौरान देश की आर्थिक वृद्धि दर बढ़कर 7.2 प्रतिशत हो गई, जो पिछली पांच तिमाहियों में सर्वाधिक थी।

‘स्टार्टअप इंडिया’ भारत सरकार की एक प्रमुख पहल है, जिसका उद्देश्य देश में स्टार्टअप और नए विचारों के लिए एक ऐसे माहौल का निर्माण करना है, जिससे देश के आर्थिक विकास और रोजगार सृजन को मुमकिन बनाया जा सकेगा। इसकी मदद से नवाचार, विकास, व्यवसायीकरण आदि प्रक्रिया को भी गति दी जा सकेगी।

विश्व बैंक ने 19 अप्रैल को जारी अपनी रिपोर्ट ‘ग्लोबल फिन्डेक्स’ में भारत में वित्तीय समावेशन की दिशा में उठाए गए प्रयासों की सराहना की है। साथ ही, कहा कि भारत में डिजिटल लेनदेन में तेजी आ रही है। विश्व बैंक के अनुसार व्यापक पैमाने पर जनधन खाते खोलने और ‘आधार’ को बैंक खाता खोलने की प्रक्रिया में शामिल करने से ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इससे वित्तीय समावेशन के लैंगिक अंतर को कम करने में मदद मिली है और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिल रहा है। महिलाएं खुद से अब डिजिटल लेनदेन करने लगी हैं।

विश्व बैंक की यह रिपोर्ट बैंक के माध्यम से बचत, उधारी, डिजिटल लेनदेन और वित्तीय तौर-तरीकों के बारे में दुनिया भर से जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014 में भारत की केवल 53 प्रतिशत आबादी के पास ही बैंक खाते थे, लेकिन 2017 के अंत तक यह संख्या बढ़कर 80 प्रतिशत हो गई। अब 83 प्रतिशत पुरुषों और 77 प्रतिशत महिलाओं के पास अपने बैंक खाते हैं, जो भारत में वित्तीय समावेशन की दिशा में किए जा रहे कार्यों की सफलता की कहानी बताते हैं।

यह रिपोर्ट डिजिटल भुगतान में आ रही तेजी की भी पुष्टि करती है। यह रिपोर्ट बताती है कि बैंक खाता रखने वाले 36 प्रतिशत से अधिक भारतीयों ने अपने जीवन में कभी-न-कभी डिजिटल लेनदेन जरूर किया है। सरकारी योजनाओं को लागू करने में भी डिजिटल लेनदेन किया जा रहा है, जिससे सरकारी प्रणाली में पारदर्शिता आ रही है। डिजिटल लेनदेन की प्रक्रिया के सरल होने से आम लोगों ने इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इस वजह से विविध सामाजिक सरोकारों को पूरा करने के क्रम में आनेवाले सरकारी खर्च में भी कमी आ रही है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पेंशन का डिजिटल भुगतान किया जा रहा है और हाल के दिनों में इसकी रफ्तार में तेज बढ़ोतरी हुई है। अब नकद पेंशन देने के बजाय बॉयोमेट्रिक स्मार्ट कार्ड के जरिये पेंशन का भुगतान किया जा रहा है। लोग डेबिट कार्ड के जरिये भी अपनी पेंशन ले रहे हैं। मोबाइल बैंकिंग के लोकप्रिय होने से भारत के दूर-दराज इलाकों में भी बैंक पहुंच गया है।

प्रौद्योगिकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने अपने एक बयान में कहा है कि भारत में आ रहे डिजिटल बदलावों से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 2021 तक 154 अरब डॉलर जुड़ जाएंगे। यह खुलासा माइक्रोसॉफ्ट और आईडीसी की रिपोर्ट ‘एशिया प्रशांत में डिजिटल बदलाव के आर्थिक प्रभाव’ में की गई है। इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 15 मध्यम एवं बड़े आकार के संगठनों के 1,560 लोगों द्वारा व्यक्त विचारों का समावेश किया गया। माइक्रोसॉफ्ट इंडिया के अनुसार, वर्ष 2017 में भारत में जीडीपी में बढ़ोतरी डिजिटल उत्पादों और सेवाओं में सकारात्मक बदलावों के कारण मुमकिन हुआ। ये उत्पाद एवं सेवाएं डिजिटल प्रौद्योगिकियों जैसे मोबिलिटी, क्लाउड, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) एवं आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से संभव हो सका। माइक्रोसॉफ्ट का कहना है कि आगामी 4 सालों में देश के तकरीबन 60% जीडीपी में वृद्धि के कारक डिजिटल बदलाव होंगे।

कहा जा सकता है मोदी सरकार ने अपने चार सालों के कार्यकाल में बैंकिंग और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए अनेक काम किए हैं, जिसके सकारात्मक परिणाम परिलक्षित भी होने लगे हैं।

 

 

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