छुटकू आए तो मां मुस्कुराए

मां  बनना जितना सुखद है, उतना ही जरूरी भी। स्त्री का शरीर बना ही ऐसा है कि शिशु जन्म उसे मन से खुश रखता है और तन से स्वस्थ भी।

मां बनने से कतराने वाली कामकाजी स्त्रियों के लिए इसकी हकीकत को समझना बेहद जरूरी है कि बच्चा आएगा, तो मां के लिए स्वास्थ की सौगात भी लाएगा।

सुकृति बहुत व्यस्त रहती है। फटाफट घर का काम निपटना और फिर ऑफिस के लिए निकल जाना, यह बहु का रुटीन है। ऑफिस में तो एक मिनट की पुरसत नहीं है। फोन, मोबाइल, मिटींग, आगे के प्लान। बस दिन कैसे बीतता है पता ही नहीं चलता। शाम को घर पहुंच कर धीरज के साथ कुछ पल हंसी मजाक कर, एक साथ खाना खा लो। कॉफी पीते हुए मैच देखकर आराम करने को मिल जाता है। ऐसी आपाधापी में क्या बच्चा? कभी सोचने का मौका ही न मिला। बच्चे के साथ में कैसे संयोजन करूंगी? मेरे शरीर का क्या होगा? हम दोनों क्या उसे समय दे पाएंगे? मेरे करियर का क्या होगा? पता नहीं कितने प्रश्न कौंध जाते हैं। पर क्या सचमुच सब इतना कठिन है?

शरीर का भी अपना गणित है

बच्चे आना दापत्य जीवन में एक मजबूत जोड़ का काम करता है। स्त्री के शरीर का अभिन्न अंग वह बच्चा उसके तमाम जीवन की धुरी भी है और लक्ष्य भी। फिर भी आजकल करियर की दौड़ में अधिकतर लड़कियां या तो प्रेग्नेंसी को टालती रहती हैं या एक बच्चे के लिए जैसे तैसे समय निकालती हैं। लेकिन इस सारी जोड़तोड़ में जिस हिसाब पर ध्यान नहीं जाता, वह है शरीर का अपना गणित। इस मुद्दे पर कई बार बात की जाती है कि गर्भधारण की एक उम्र होती है और जीवन काल की इन घड़ियों का हर स्त्री को विशेष ध्यान रखना चाहिए। गर्भधारणा का स्त्री के शरीर पर भी गहरा असर पड़ता है। मां बनना आपके शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कितना आवश्यक है, आइए जानते हैं।

जन्मदाता ने बनाया है, तो सोचसमझकर

हम किसी एक छोटे से काम को पूरा करने में घबरा जाते हैं, तो सोचिए ईश्वर नें हमारी संरचना कैसे की होगी। जितना विज्ञान की तह खोलने जाएंगे, परत दर परत ईश्वर का एहसास होता जाएगा। स्त्री के जन्म के पूर्व ही यानी गर्भ में ही जब अंडाशय का विकास हो रहा होता है, तभी एक निश्चित मात्रा के अंडों का चयन हो जाता है।

कहने का अर्थ यह है कि कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग तो पहले से तय है अर्थात मासिक आरंभ होने से अंत तक अंडों का निर्धारण हो चुका होता है। यह पहले से ही सुनिश्चित है कि इतने समय तक मासिक स्त्राव आपके जीवनकाल में होगा। आश्चर्यजनक लगता है किन्तु सत्य है। आपका अंडाशय एक तरफ से अंडों का बैंक है, जो समय समय पर अंडे रिलीज करता है। एक तो इनकी गिनती तय है, दूसरे इनकी गुणवत्ता भी एक उम्र (३५ साल) के बाद कम होने लगती है।

तो सेहत स्वाहा
प्रकरण १
वीना के घर में छोटी बहन की शादी है। जिस हफ्ते में शादी है, महिना भी उन्ही दिनों में आने को है। वह चिंता में पड़ी थी कि पूजा में बैठूंगी कैसे? फिर वही नाटक होगा। शादी में जाने का फायदा और मजा दोनों खत्म। वीना ने तुरंत फैसला लिया और पहुंच गई पास के दवाई वाले के पास। वे सर्दी जुकाम, पेट दर्द हर किसी की दवा तो देते हैं, इसकी भी दे देंगे। बस फिर क्या था, उन्होंने दवाई दे दी। वीना ने खुशी खुशी दवाई ले ली और हो गई मस्त।

लेकिन ये क्या?

शादी के बीच में एक दिन स्पॉटिंग होने लगी आर फिर दूसरे दिन भी। तीसरे दिन से तो जो ऐसी ब्लीडिंग होनी शुरु हुई कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। फिर दौड़ी दवाई की दुकान पर। फिर एक नुस्खा मिला। दो दिन आराम रहा, फिर वही सिलसिला शुरू।

बीस दिन से यही घमासान चल रहा है। वीना थक गई है। अब कमजोरी आने लगी है। चिड़चिड़ापन आने लगा है। अब तो लगता है डॉक्टर के पास जाना ही पड़ेगा।

प्रकरण २
कई दिनों से पेट में दर्द सा महसूस कर रही थी संध्या। बार-बार पेशाब भी आ रही थी। जलन भी होने लगी थी। जलन तो अब बढ़ती जा रही थी। ठंड़े पानी से भी आराम नहीं मिलता था, अब तो हरारत भी महसूस होने लगी थी। टूटा टूटा सा बदन लगता था। ऐसा लगता था, उठने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। पास वाले भैया जरूर अच्छी दवाई बता देंगे, ऐसा सोचकर संध्या के पति दूसरे के परामर्श पर खाने की दवाई और पीने की शीशी ले आए। आराम भी आ गया। संध्या और उसके पति प्रसन्न थे कि डॉक्टर के पास जाते तो क्या क्या टेस्ट लिखते और फिज लगती सो अलग। हो तो गया इलाज.. फालतू की माथापच्ची से बचे।

पंद्रह दिन भी नहीं बीते थे कि संध्या को फिर वही तकलीफ शुरू हो गई। दवाई का पता संभाल कर रखा था, शीशी भी वही कहकर मंगवा ली संध्या ने। फिर आराम आ गया। लेकिन यह क्या पंद्रह दिन भी नहीं बीते कि फिर वही तकलीफ उभर गई थी। अब उसे चिंता होने लगी थी। यह बार-बार उसके साथ ही क्यों हो रहा है। कही कोई बड़ी तकलीफ तो नहीं। अब तो डॉक्टर को दिखाना ही होगा।

प्रकरण ३
शैफाली और राहुल की अभी-अभी शादी हुई है। दोनों अभी सैंटल भी नहीं हुए है। एक छोटे से किराए के घर में अपनी गृहस्थी जमाने की कोशिश में लगे हैं। अभी तो बच्चे के बारे में सोच भी नहीं सकते। उन्हें लगता है कि वे तो खुद अभी बच्चे हैं। ऐसी जल्दी भी क्या है? एक महिने, महिना नहीं आया। शायद कोई अन्य कारण हो। शैफाली ने जब तक सोचा विचारा, दस दिन ऊपर हो गए थे। फिर सोचा कही गर्भ तो नहीं ठहर गया? राहुल ने दुकान से पूछ कर दवाई ले ली। महिना आने की कोई दवा का पैकेट मिला था। शैफाली ने उस पैकेट की गोलियां खा लीं।

फिर शुरु हुई बेचैनी और घबराहट, कुछ दवाई की, तो कुछ महिना आने, न आने की- करें तो क्या करें? अब इंतजार में पंद्रह बीस दिन ऊपर हो चले थे। एक दिन कुछ स्पॉटिंग-सी (हल्की सी माहावरी) लगी थी, बस फिर उसके बाद कुछ नहीं। कभी पेट दुखता था, कभी भारीपन लगता था, तो कभी उल्टी सी आती थी। पर महिना था कि आने का नाम नहीं लेता था। अब तो थक हार कर डॉक्टर के पास जाना ही था। डॉक्टर ने तुरंत कहा कि प्रेग्नंसी तो है, परंतु गर्भपात यानी अबॉर्शन करवाना पड़ेगा।

प्रकरण ४
इसी श्रेणी के एक और दंपति है। वे थोड़ी और समझदारी का परिचय देते हैं। उन्होंने अपने मित्रगणों से सुन रखा है कि प्रेग्नेंसी टेस्ट करने के लिए आजकल ‘किट’ उपलब्ध है, जिससे दस मिनट में पता चल जाता है, प्रेग्नेंसी है कि नहीं। सो पहले उन्होंने वह कर लिया। यह क्या प्रेग्नेंसी तो है। अब? पता है कि आजकल दवा से गर्भपात कराया जा सकता है। दवाई तो मिल गई, पर इस्तेमाल की सावधानियां कौन बताएगा? कैसे कैसे लेनी है सो तो पता चल जाता है, पर उससे होने वाली परेशानियों के बारे में कौन बताएगा? फिर शुरु होता है सिलसिला, कभी पेट दर्द, तो कभी उल्टी, तो कभी अत्याधिक स्राव का। कुछ भी समझ में नहीं आ रहा। स्त्राव अत्याधिक तो है ही पर अब सात दिन हो गए। उसी अनुपात में आ रहा है, बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा है। कारण शायद अंदर कुछ टुकड़े बच गए हो। सोनोग्राफी करवाते हैं, तो पता चलता है कि वाकई अभी अंदर टुकड़े बाकी हैं। अब गर्भपात करवाना पड़ेगा। इसे कहते हैं लेने के देने पड़ना। पहले ही डॉक्टर की सलाह ले लेते तो इतनी तकलीफ से तो बच जाते।

एक नया सिलसिला और शुरु हुआ है एक वैज्ञानिक खोज का। एक चमत्कारिक गोली आ गई है बाजार में जो असुरक्षित यौन सम्बंध होने के कुछ घंटे भीतर ले लेने से गर्भ नहीं ठहरता ऐसा विज्ञापन कहते हैं। दिखाते हैं, उन पत्नियों को जो अभी मां नहीं बनना चाहती। एक विज्ञापन में तो वो दोस्त इतनी खुली है कि स्पष्ट रूप से सम्बंध होने का समय पूछ डालती है। लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि ये चमत्कारिक गोलियां पत्नियां तो शायद कम लेती हों, कॉलेज आर ऑफिस जाने वाली लड़कियां अधिक लेती हैं।

सम्बंधों का खुलापन अब समाज में प्रतिष्ठित होता जा रहा है। ऐसे में इन दवाओं का प्रचलन और सेवन दोनों बढ़ गए हैं। पर इन दवाओं के लेने से क्या वाकई कोई समस्या नहीं होती? क्या इनको लेने से मासिक नहीं गड़बड़ता? क्या एक बार लेने से आसानी के बाद पुनरावृत्ति नहीं होगी? और यदि होगी, तो क्या इसके दूरगामी परिणाम नहीं होंगे? हो सकता है यह वाद-विवाद का विषय हो, परंतु यह याद रखना आवश्यक है कि ऐसी कोई दवा अभी तक नहीं बनी, जिसके दुष्परिणाम न हों।

प्रकरण एक में, जो दवा वीना ने ली, उससे मासिक रुका लेकिन जरा देर को। दरअसल ऐसी दवाएं, जो मासिक को कुछ दिनों के लिए टाल सकती हों, उपलब्ध हैं, लेकिन कौन सी दवा देनी है, यह सिर्फ डॉक्टर ही बता सकते हैं। जो महिला दवा लेने वाली है, उसकी जरूरत के मुताबिक दवा कितनी मात्रा में और कितनी क्षमता वाली देनी है, यह समझकर ही डॉक्टर दवा सुझाते हैं। ऐसी दवाइयों में सबसे महत्वपूर्ण है, दवाई को शुरू करने का समय। मासिक आने की तय तिथि से एकाध दिन पहले से इसे लेना जरा भी असरकारक नहीं होता। दुकान से अपनी मर्जी या किसी और की सलाह पर दवा लेने से वीना जैसा हाल हो सकता है। उसकी माहवारी को नियमित होने में चार महीने लग गए। इस दौरान जो कमजोरी और तनाव रहा वो अलग।
प्रकरण तीन में शैफाली ने जो किया, उसे महज अपनी सेहत से खतरनाक खिलवाड़ कहा जा सकता है। गर्भपात करने की १०-१४ तरह की अलग-अलग दवाएं बाजार में उपलब्ध हैं। डॉक्टर गर्भधारण की अवधि देखकर दवा देते हैं। अवधि दवा के हिसाब से बढ़ गई हो, तो फिर एमटीपी कराया जाता है। लेकिन जो गलती शैफाली ने की, उससे उसे दोहरी तकलीफ उठानी पड़ी। लगातार ब्लीडिंग होती रही और बाद में एमटीपी भी हुई। चूंकि इस दौरान हारमोन्स का पूरा चक्र गड़बड़ा चुका था, सो ५ महीने वह तकलीफ भी झेली।

पश्चिमी देशों में बिना डॉक्टरी पर्चे के दुकान से दवा लेने पर प्रतिबंध है।
दवाओं के मामले में डॉक्टर की सलाह ले लें, तो अनावश्यक समस्याओं ये बचा जा सकता है। अपना इलाज बिना विशेषज्ञ की सलाह के करना, स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। इस आत्मघात से बचने में सिर्फ आप ही अपनी मदद कर सकती हैं। और अपनी सेहत को खुद ही स्वाहा करने से बचा सकती हैं।

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