सिंधी भाषा एवं संस्कृतिक का संवर्धन आवश्यक- चे . विद्यासागर राव


मानव सभ्यता के इतिहास में दुनिया की कुछ जातियों ने ही इतने आघात और दर्द झेले होंगे, जितने कि सिंधी समाज ने भारत विभाजन के दौरान झेले हैं। शांतिप्रिय सिंधी समाज को उनके बिना किसी गलती के घर परिवार छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया, जिन्हें भारत में वस्तुतः खाली हाथ आना पड़ा। यद्यपि उनको इस बात का श्रेय जाता है कि सिंधी समाज ने न केवल नए जीवन कि शुरुआत की, वरन् केवल कड़ी मेहनत और प्रबल इच्छाशक्ति के भरोसे स्वयं को एक सफल समाज के रूप में भारत में स्थापित किया। सिंधी भारत के भिन्न-भिन्न भागों में जहां भी बस गए, वहां वे स्थानीय जनों के साथ एकात्म हो गए, साथ ही अपनी पहचान और संस्कृति को भी बचाए रखा।

आचार्य कृपलानी ने सिंधियों के विषय में दो खास बातों का जिक्र किया। पहली बात कि सिंधी समाज ने बिना सरकारी सहायता के अच्छी प्रगति की, दूसरी बात कि, किसी सिंधी ने भारत विभाजन के बाद कभी भीख नहीं मांगी, और ईमानदारी के साथ आजीविका चलाई। यह बात वास्तव में चिन्हांकित किए जाने योग्य है। भारत की स्वतंत्रता के बाद, पिछले ६९ वर्षों के दरम्यान भारत की, महाराष्ट्र की तथा मुंबई की सामाजिक तथा आर्थिक प्रगति में सिंधियों का शानदार योगदान रहा।
मुंबई के विषय में मैं कहूंगा कि १९४७ के बाद का मुंबई का सामाजिक आर्थिक प्रगति का इतिहास सिंधी समाज के बहुआयामी योगदान के गौरवपूर्ण संदर्भ के बिना अधूरा रहेगा।

बैरिस्टर होतचंद आडवानी, प्राचार्य के.एम. कुन्दनानी, डॉ.एल.एच. हीरानंदानी जैसे सिंधी समाज के सदस्यों ने मुंबई और उल्हासनगर में अनेक शिक्षण संस्थाओं को स्थापित किया। इन संथाओं ने न केवल विस्थापित सिंधियों को रोजगार दिलाने का तात्कालिक उद्देश्य पूरा किया, वरन् मुंबई की उच्च श्रेणी की शिक्षा संस्थाओं के रूप में इनका आभिर्भाव हुआ। पिछले छः दशकों से अल्पसंख्यक सिंधी समुदाय की शिक्षण संस्थाओं ने मुंबई में उत्तम सेवाएं प्रदान कर समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त किया है।

 सिंधी समाज ने राजनीतिक क्षेत्र में भी जयरामदास दौलतराम, आचार्य जे. बी. कृपलानी तथा लालकृष्ण आडवानी, जिनके साथ मुझे अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में गृह विभाग में राज्य मंत्री के रूप में सेवाएं देने का अवसर प्राप्त हुआ, और के.आर. मलकानी जैसे अनेक नेता देश को दिए। इस समाज ने देश को साधु वासवानी, दादा वासवानी, बैरिस्टर राम जेठमलानी जैसे राष्ट्रीय स्तर के व्यक्तित्व भी प्रदान किए। वास्तव में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जिसे सिंधी समाज ने न छुआ हो, और अपना महत्वपूर्ण स्थान न बनाया हो।

आज मैं यहां अपने सिंधी भाई-बहनों से विशेष रूप से यह कहने आया हूं कि मुंबई को आप पर गर्व है, महाराष्ट्र को गर्व है, तथा संपूर्ण देश को आप पर गर्व है।

भाइयों और बहनों, भारत विभाजन की त्रासदी के बाद सिंधी समाज को भिन्न- भिन्न स्थानों में बिखर जाना पड़ा। आज सिंधीयों ने अपनी वैश्विक पहचान बना ली है, वे दुनिया के अनेक देशों में सफल एवं हितसंवर्धक सिद्ध हुए हैं। परन्तु इस बदलाव ने आप सब के सामने सिंधियत की महान संस्कृति को, परम्पराओं को, और खास कर सिंधी भाषा को बचाए रखने की एक चुनौती भी पैदा कर दी है, सिंधियत को बचाए रखने में आप सबके सहयोग की आवश्यकता है।

सिंधी भाषा का प्रचार करने और लोकप्रिय बनाने के लिए, खास कर युवा पीढ़ी के बीच, बहुत कुछ करने की जरूरत है। हमें मेघावी तथा अच्छे विद्यार्थियों को, युवाओं को सिंधी भाषा के अध्ययन के लिए आकर्षित करना होगा, और प्रोत्साहित करना होगा, जिससे कि हमारे पास ऐसी नई पीढ़ी होगी, जिसे सिंधी समाज के इस समृद्ध साहित्य, इतिहास, संस्कृति, और कला पर अभिमान होगा। मैंने गांधीग्राम के आदिपुर में स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ सिन्धोलॉजी के विषय में सुना है। यह इंस्टिट्यूट सिंधी समाज की संस्कृति को सहेज कर उसे बढ़ावा दे रहा है, साथ में यह भी सुनिश्चित कर रहा है कि समाज के नवयुवकों तक इसका प्रसार हो।

मैं सोचता हूं कि महाराष्ट्र मुंबई में भी सिंधी भाषा एवं संस्कृति के लिए इस प्रकार का एक इंस्टिट्यूट हो। इस प्रकार के किसी इंस्टिट्यूट का जब भी कोई प्रस्ताव आएगा तो महाराष्ट्र के विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में मैं इसके लिए संपूर्ण सहयोग करूंगा। आज मुंबई में विदेशी भाषा सीखना आसान है। यहां ऐसी कई संस्थाएं हैं जो जर्मन, फ्रेंच, स्पैनिश आदि विदेशी भाषाएं पढ़ाने के लिए लघुकालिक तथा दीर्घकालिक पाठ्यक्रम चलाती हैं। परन्तु किसी ऐसी संस्था को खोजना कठिन है, जो सिंधी जैसी किसी देशी भाषा का लघु पाठ्यक्रम चलाती हो। मैं चाहता हूं और आशा करता हूं कि भाटिया सिंधु सभा गैर सिंधी भाषियों को भी सिंधी भाषा और संस्कृति सीखने और समझने के लिए प्रोत्साहित करेगी, इस प्रकार के विद्यार्थियों के लिए जो सिंधी भाषा और संस्कृति को समझना चाहते हैं, छात्रवृत्ति भी दी जा सकती है। हमें यह भी विचार करना चाहिए कि सिंधी भाषा तथा साहित्य को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए तकनीक का किस प्रकार इस्तेमाल किया जा सकता है। विश्व में फैले सिंधी समाज को एकसाथ लाने के लिए एक ग्लोबल पोर्टल प्रारम्भ कर इस दिशा में काम कर सकते हैं।

आज दूरदर्शन संवाद का एक प्रभावी माध्यम बन गया है। मैं समाज के लोगों से निवेदन करूंगा कि सिंधी भाषा, साहित्य तथा संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए एक सिंधी चैनल प्रारंभ करना चाहिए।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि किस प्रकार संत झूलेलाल ने शासकों की तानाशाही के विरुद्ध खड़े होकर धर्म तथा समाज के लोगों को बचाया। यद्यपि वे शांति और साहस का संदेश देते रहे। हम भी कीर्तन और अन्य कार्यक्रमों के द्वारा समाज में संत झूलेलाल के अध्यात्मिक विचारों को आगे बढ़ा सकते हैं।

आज सरकार ने उद्योगधंधों को बढ़ावा देने के लिए ‘स्टार्ट अप इंडिया’ की शुरुआत की है, मेरा मानना है कि सिंधी इस विकास क्रांति के आधार स्तंभ हैं, सिंधी समाज के सदस्यों ने देश के विकास के लिए अन्य लोगों को भी उद्योगधंधों से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

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