सादगी और चारित्र्य की मिसालमनोहर पर्रिकर

गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर अब भारत के नये रक्षामंत्री का दायित्व निभानेवाले हैं। मोदी सरकार में हुई उनकी बढोतरी के कारण उनके द्वारा किया गया गोवा का विकास और उनकी काम के प्रति तत्परता और लगन ही है। इस लेख के माध्यम से उनके व्यक्तित्व और कामों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।

गो वा के साथ ही पूरे भारत की जनता मनोहर पर्रिकर की ओर कौतूहल और सम्मान की दृष्टि से देखती है। वे चाहे सत्ता में रहें या सत्ता से दूर रहें, जनता के मन पर उनका प्रभाव हमेशा रहता है। स्वच्छ चरित्र और जनकल्याणकारी राजनीति के कारण ही वे हमेशा चर्चा का विषय रहे हैं।

आज राजनेता जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं, उनमें मनोहर पर्रिकर जैसे स्वच्छ चरित्र और नैतिकता वाले नेता बिरले ही मिलेंगे। मनोहर पर्रिकर का व्यक्तित्व राजनीति की लीक से हटकर ही है। आईआईटी के अभियंता, अपने तत्वों से किसी भी प्रकार से पीछे न हटनेवाले मुख्यमंत्री के रूप में लोग उन्हें पहचानते हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सांचे में ढले इस कार्यकर्ता को संघ की सीख और अपने व्यक्तित्व को बनाने में संघ का योगदान महत्वपूर्ण लगता है।

मनोहर पर्रिकर के गोवा के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके नीतिगत निर्णयों के कारण गोवा प्रगति के मार्ग पर बढ़ा है। जब पूरे देश में पेट्रोल की कीमतें आसमान छू रही थीं तब गोवा में उन्होंेंने पेट्रोल पर लगने वाले कर ‘वैट’ को २०% कम करते हुए ०.१ प्रतिशत किया अत: गोवा में पेट्रोल लगभग ११ रुपये सस्ता है। उनके इस साहसी निर्णय की ओर लोग आश्चर्यपूर्ण दृष्टि से देखते हैं। गोवा में खदानों में हो रहे भ्रष्टाचार और उसके कारण निर्माण हुई सामाजिक अव्यवस्था को रोकने के लिए उन्होंने खदान विभाग के संचालक को तत्काल बर्खास्त किया और गलत रीति से कार्य करने वाले १४ खदान उद्यमियों के लाइसेंस रद्द कर दिये। वित्त वर्ष २०१२-१३ के लिए गोवा का बजट ९,५४९ करोड़ रुपये का है। पेट्रोल के दाम कम करने और खदान उद्योग पर लगाये गए प्रतिबंधों के कारण राज्य को २०० करोड़ का नुकसान होने की सम्भावना को जानते हुए भी पर्रिकर को इसकी चिंता नहीं थी।

गोवा में भाजपा की सरकार के वापस आने के कारण वहां के जानकार बताते हैं कि भाजपा को सत्ता में लाने के लिए यहां के कैथलिक लोगों ने पर्रिकर को भरपूर मतदान किया था। पर्रिकर संघ के स्वयंसेवक हैं पर यहां की ईसाई जनता मानती है कि वे संघ और चर्च के मध्य उत्तम संतुलन रख सकते हैं।

गोवा में केवल हिंदू मतदाताओं का ही नहीं वरन ईसाई और मुस्लिम मतदाताओं का रुख भी भाजपा की ओर मोड़ने में पर्रिकर सफल रहे हैं। मनोहर पर्रिकर ने यह जाना कि भाजपा को केवल हिंदुओं के मत प्राप्त करने जैसा दृष्टिकोण नहीं रखना चाहिए। उन्होंने यह मानकर कि, चुनाव अन्य धर्म के लोगों को भाजपा के पास लाने का स्वर्णिम अवसर है, अपनी व्यूहरचना की। पिछले अनेक वर्षों में कांग्रेस के झांसों से तंग आकर ईसाई और मुस्लिम बन्धुओं ने ‘कांग्रेस नहीं भाजपा’ की तर्ज पर पर्रिकर की नियोजनबद्ध शैली को देखकर भाजपा को सत्ता दिलायी। मनोहर पर्रिकर का चुनावी ध्रुवीकरण पूरे देश की कांग्रेस के लिए एक प्रकार का धक्का ही था। आज जब कोई भी राजनेता आह्वान करता है तो वह राजनैतिक स्वार्थ के साथ ही स्वहित प्रेरित भी होता है। इस तरह का अनुभव होने के बाद भी गोवा के लोगों ने मनोहर पर्रिकर के आह्वान को क्यों स्वीकारा? इसका उत्तर मनोहर पर्रिकर के व्यक्तित्व में ही छिपा है। राजनीति में होने के बाद भी जिसने अपना चरित्र ऊंचा रखा है, ऐसा अलग किस्म का राजनेता चाहे सत्ता में हो या विपक्ष में, अपने पारदर्शी और साफ व्यवहार के कारण दबदबा कायम करने वाला, अपने चरित्र सम्पन्न कामों के कारण मिसाल कायम करने वाला गोवा की राजनीति का एक भरोसेमंद व्यक्तित्व एक आशा स्थान। उनके कार्यों का अनुभव भी यही रहा है।

‘सुखी और समृद्धशाली गोवा ही मेरा स्वप्न है’ इस एक वाक्य में अपने काम की प्रेरणा बताने वाले पर्रिकर एक अत्यन्त साधारण रहन—सहन अपनाने वाले व्यक्ति हैं। उनका यह साधारण रहन—सहन सर्वसामान्य आदमी को भी अचम्भित कर देता है। सभी को हमेशा ही यह देखकर आश्चर्य होता है कि किसी राज्य का मुख्यमंत्री इतना साधारण कैसे हो सकता है। उन्हें लगता है कि हवाई यात्रा करना उनके काम की आवश्यकता है, परन्तु वह ‘एक्सीक्युटिव क्लास’ में यात्रा करना विलास मानते हैं, आवश्यकता नहीं। अत: वे हमेशा ही ‘इकॉनामी क्लास’ में सफर करते हैं।

हम अक्सर राजनेताओं को सूटबूट, इस्त्री किये हुए कड़क कपड़ों में देखते हैं, परन्तु मनोहर पर्रिकर को अत्यंत साधारण पोषाक में घूमते देखा जा सकता है। पैरों में साधारण चप्पल, आधे बांह की बुशर्ट और काली पैंट ही उनका पोषाक है। बाल करीने से बने होते ही हैं, ऐसा आवश्यक नहीं है। इसी स्थिति में पर्रिकर दिल्ली से गोवा का आवागमन करते रहते हैं। चाहे गोवा में कोई सभा हो या मुंबई के किसी पंच तारांकित होटल में व्यापारियों की बैठक मनोहर पर्रिकर का वेश यही होता है। उसमें स्थल, समय, कालानुरूप बदलाव नहीं होता है, वरना भारत ने ऐसे भी नेता देखे हैं जो आतंकवादियों के हमले और बम विस्फोट के बाद मीडिया को दिये जाने वाले साक्षात्कारों के लिए दिन में तीन बार सूट बदलते हैं। किसी राज्य के मुख्यमंत्री के साथ सुरक्षाकर्मियों का घेरा होता ही है परन्तु मनोहर पर्रिकर के साथ केवल दो ही सुरक्षाकर्मी होते हैं। उनका मत है कि सुरक्षाकर्मियों का जमावड़ा रखना राज्य के खजाने पर बेवजह भार बढ़ाना है।

उन्होंने किसी भी सरकारी वस्तु का उपयोग अपने व्यक्तिगत जीवन में नहीं किया। अपने बच्चे की गम्भीर बीमारी का इलाज भी उन्होंने बिना किसी से कुछ बोले मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में करवाया। इस दौरान उनके साथ न नौकर न चाकर थे, न लोगों का जमावड़ा। इलाज के दौरान कई दिनों तक उन्होंने अस्पताल के सामान्य कमरे में ही निवास किया। वहां के कर्मचारियों को आश्चर्य होता था कि उनके अस्पताल के एक सामान्य कमरे में एक मुख्यमंत्री रहता है। मुख्यमंत्री होने के बावजूद उनके बच्चे कभी सरकारी वाहनों में सफर नहीं करते।

अगर कभी ‘नो पार्किंग’ में गाड़ी खड़ी करते हैं तो पर्रिकर के बच्चे एक आम नागरिक की तरह जुर्माना भरते हैं। आखिर व्यवहार से ही बच्चों पर संस्कार होते हैं। जब मनोहर पर्रिकर अपने बेटे की पढ़ाई के लिए बैंक में कर्ज के लिए आवेदन करते हैं तो बैंक के मैनेजर को आश्चर्य होता है कि किसी राज्य के मुख्यमंत्री को कर्ज की आवश्यकता है, परन्तु पर्रिकर तब एक मुख्यमंत्री नहीं पिता की भूमिका में होते हैं और उनकी सोच होती है कि जब पिता कर्ज लेकर अपने बच्चों की पढ़ाई करवाते हैं तो बच्चों को सही मायने में पढ़ाई का अर्थ समझ में आता है।

वे अपने तत्वों को अत्यन्त सहजता से और बिना किसी से बोले अपने आचरण में लाते हैं। इसी स्वभाव को जनता अचरज से देखती है। इस तरह के सादे और चरित्रवान लोग राजनीति में कम दिखायी देने के कारण ही उनकी साधारण जीवनशैली को ‘न्यूज वैल्यू’ प्राप्त होती है। इस साधारण जीवनशैली के अलावा उनकी जीवनशैली का एक और पहलू है जो ध्यान आकर्षित करता है और वह है काम के प्रति उनका उत्साह और लगन। उन्हें काम करने की मानो लत लगी हो। पार्टी का काम हो, जनता के हितों का मुद्दा हो, राज्य के विकास की बात हो या अन्य कोई भी समस्या हो, मनोहर पर्रिकर का उत्साह, लगन और निष्ठा को गोवा के नागरिकों ने नजदीक से जाना है। ‘गति’ उनके कार्य का अविभाज्य अंग है। पांच साल आम आदमी के लिए ६० महीने होते हैं, परन्तु उन्हें तो जैसे आने वाले ६ महीनों में ही सारे काम खत्म करने हैं इसी गति से पर्रिकर कार्य करते हैं। रोज १५-१६ घण्टे और हफ्ते के सातों दिन कार्य करने की उनकी आदत है। अगर उनके शरीर और बुद्धि का गुणनफल निकाला जाये तो उत्तर आएगा ‘गोवा का विकास’।

प्रशासन में होने वाले अच्छे परिवर्तन और भ्रष्टाचार के विरोध में चलायी जाने वाली योजनाओं के कारण जनता को राहत मिली है। उनके कार्यों के कारण उनकी छवि जनता के मन में एक पारदर्शी नेता के रूप में उभर रही है। व्यक्तिगत और राजनैतिक, दोनों स्तरों पर भ्रष्टाचार विरोधी और चरित्रवान व्यक्ति के रूप में वे जनता के मन में अपनी प्रतिमा बना रहे हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शिक्षा का उनके जीवन में बहुत बड़ा योगदान है। वे मानते हैं कि उनका जन्म देश की सेवा और समाज सेवा करने के लिए ही हुआ है। अत: जब कभी उन्हें अवसर मिला उन्होंने सम्बन्धित व्यक्तियों के मन में स्वयं के प्रति विश्वास निर्माण किया है, फिर वह चाहे नगर संघचालक का दायित्व हो या भाजपा का कार्यकर्ता हो या गोवा के मुख्यमंत्री का हो। उनके काम का उचित अनुभव हर बार मिलता रहा। २६-२७ वर्ष की आयु में ही वे म्हापसा शहर संघचालक का दायित्व निभाने के लिए जुट गये थे। १९८५ से १९९१ का वह काल खण्ड था, जिसे उन्होंने गंगा यात्रा, शिला पूजन, राम जन्मभूमि आन्दोलन में गोवा का नेतृत्व किया। १९९१ में जब प्रमोद महाजन लोकसभा के लिए उम्मीदवार खोज रहे थे तभी संघ ने पर्रिकर को आदेश दिया कि वे गोवा की राजनीति में उतरें। पर्रिकर को लोकसभा का टिकट मिला परन्तु वे चुनाव हार गये और बाद में विधायक के रूप में जीतकर आये। मिली हुई जिम्मेदारी को तन-मन से निभाना ही उनका स्वभाव है। जनहित के कायार्ंे में स्वत: को झोंक देने की वजह से आम आदमी के मन में ‘अपने काम का आदमी’ होने की छवि उन्होंने निर्माण कर ली है। उसी समय से गोवा विधान सभा में केवल चार विधायक होने के बावजूद भी भाजपा का अस्तित्व दिखायी देने लगा था। भाजपा अपनी पहचान प्रमुख पार्टी के रूप में बना चुकी थी।

मनोहर पर्रिकर संघ के कट्टर स्वयंसेवक हैं। गोवा में अनेक जाति और धर्म के लोग रहते हैं। ईसाई लोग बड़ी संख्या में हैं। पर्रिकर कहते हैं कि पहले यहां धर्मांतरण समस्या थी परन्तु अब ऐसा कुछ नहीं है। सामाजिक ज्ञान के लिए इतिहास का ज्ञान होना आवश्यक है। परन्तु ईसाई-हिंदू में अब भेद नहीं है। प्रशासन सम्भालते समय मैं धर्म निरपेक्ष हूं। हिंदू, मुस्लिम, ईसाई सभी को समान अधिकार है। मतदान को ध्यान में रखकर किसी एक को अधिक तवज्जो देना सही नहीं है। मैं किसी भी धर्म का तिरस्कार नहीं करता। मुझे संघ से ही शिक्षा मिली है। रामराज्य का क्या अर्थ है? सही मायने में रामराज्य भरत ने किया। राम की पादुकाओं को रखकर उनके प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया। उसी तरह जनता के प्रतिनिधि के रूप में मैं गोवा का कार्यभार सम्भालता हूं।

जब-जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विरोधियों की ओर से संघ के बारे में गलत विचार फैलाये जाते हैं, तब-तब मनोहर पर्रिकर जैसे व्यक्तित्व वाला इंसान एक दीपस्तम्भ के रूप में दिखायी देता है।

 

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