जैविक खेती के प्रति अति मोह और राजनीतिक स्टंटबाजी के कारण सिक्किम में अनाज उत्पादन बहुत तेजी से घटता चला गया। राज्य को दूसरे राज्यों से बड़े पैमाने पर अनाज लाना पड़ता है। बढ़ती आबादी के संदर्भ में इस स्थिति पर गौर और पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
सन 2012 में सत्यमेव जयते टीवी शो से सिक्किम की जैविक खेती के प्रति मीडिया आकर्षित हुआ और उसका लगातार गुणगान और वाहवाही होती रही। हाल में वाशिंगटन टाइम्स का प्रशंसक समूह (फैन्स क्लब) भी उसमें शामिल हो गया। इससे भारत और विदेश के कई लोग मानने लगे कि सिक्किम की जैविक खेती चमत्कारिक माडल है और अन्य को भी उसका अनुसरण करना चाहिए। लिहाजा, इससे बड़ा और विनाशकारी भुलावा और कोई हो नहीं सकता।
सिक्किम सरकार ने सन 2003 में खेती को पूरी तरह जैविक बनाने का फैसला किया और खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग पर पाबंदी लगा दी। उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि राज्य में जैविक खेती का नियम लागू करने के बाद अनाजों के उत्पादन में तीव्र गिरावट आई है।
सिक्किम की जैविक खेती विफल
क्या उपर्युक्त आंकड़ें बहुत बेचैन करनेवाले नहीं हैं? स्पष्ट है कि ये आंकड़ें भटकाव की ओर इंगित करते हैं। पिछले 20 वर्षों में सिक्किम में मुख्य अनाजों के उत्पादन में 60% की भारी कमी आई है, जबकि आबादी 4 लाख से बढ़कर 6.5 लाख (इसमें 14 लाख पर्यटक और जोड़ लीजिए) हो गई है। अनाजों के उत्पादन में भारी कमी से स्वाभाविक रूप से अनाजों की बेहद कमी महसूस की जा रही है। शतप्रतिशत जैविक खेती के कारण सिक्किम को अपनी आबादी और पर्यटकों को अनाज मुहैया करने के लिए अन्य राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। कुछ साफ-साफ कहें तो, प.बंगाल, पंजाब, उ.प्र., बिहार जैसे अनाज के अतिरिक्त उत्पादन वाले राज्यों से सिक्किम में दैनिक आयात यदि बंद हो जाए तो सिक्किम को भूखबलि और सामाजिक असंतोष का सामना करना पड़ेगा। गौर हो कि अतिरिक्त पैदावार करने वाले ये राज्य रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों आदि का उपयोग करते हैं।
सिक्किम में चावल सर्वाधिक महत्वपूर्ण अनाज है। राज्य में चावल की प्रति व्यक्ति खपत 40.4 किलो है, जबकि अखिल भारतीय औसत 17.1 किलो का है। (स्रोतः आईसीआआईईआर अध्ययन 294)। सिक्किम में चावल की भारी कमी है। सालाना 1,00,000 टन से अधिक की जरूरत है, जबकि उत्पादन होता है केवल 20%।
सिक्किम की दलहनों की जरूरत 11,700 टन की है, जबकि राज्य में केवल 5,800 टन दलहनों का उत्पादन होता है।
राज्य का गेहूं उत्पादन 1990 के दशक में 21,600 टन था, जो गिरकर अब 350 टन रह गया है। सिक्किम की जरूरत का 95% गेहूं अन्य राज्यों से आता है।
केवल एक ही अनाज के उत्पादन में वृद्धि दर्ज हुई है, वह है मक्का, जो पशुचारे के रूप में अधिक इस्तेमाल होता है। राज्य में मक्के का उत्पादन 1996 के 59,000 टन के मुकाबले 2016 में 68,000 टन हुआ है। लेकिन मक्के के बुआई क्षेत्र में वृद्धि के कारण यह बढ़ोत्तरी दिखाई देती है।
सिक्किम के कारण ही भारत बड़ी इलायची के उत्पादन में सिरमौर का अपना स्थान खोता जा रहा है। सन 2004 में सिक्किम में बड़ी इलायची का उत्पादन 5,400 टन था। सन 2015 में यह उत्पादन घटकर 4,000 टन रह गया। भारत के पड़ोसी नेपाल ने 6,000 टन से अधिक उत्पादन कर बड़ी इलायची के मामले में भारत को पछाड़ दिया है। सन 2016-17 में भारत ने नेपाल से 3,120 टन बड़ी इलायची का आयात किया।
सिक्किम राज्य सहकारी आपूर्ति और विपणन महासंघ लि. (डखचऋएऊ) की दुकानें नेचरलैण्ड (राजस्थान), इकोलाइफ (तमिलनाडु) और तत्त्व (उ.प्र.) जैसे अन्य राज्यों से आए जैविक ब्रांडेड उत्पाद ही बेचती हैं।
सिक्किम समेत पूर्वोत्तर राज्यों की अनाज उत्पादन के मामले में संकटपूर्ण स्थिति पर टिप्पणी करते हुए पूर्वोत्तर परिषद (छेीींह एरीीं र्उेीपलळश्र) ने बारहवीं योजना (2012-2017) पर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, “निकट भविष्य में अनाज उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना संभव नहीं होगा।”
क्या जैविक खेती कृषि उत्पादन की दृष्टि से अधिक उपयोगी है? जैविक खेती और स्थैर्य (र्डीीींरळपरलळश्रीूं) की तुलना नहीं हो सकती। यदि तुलना करें तो हमने स्थैर्य शब्द का ही गलत अर्थ ले लिया ऐसा होगा। स्थैर्य अर्थात र्डीीींरळपरलळश्रीूं का ऑक्सफर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में जो अर्थ दिया गया है वह है ‘जो शाश्वत और चिरस्थायी होने में सक्षम हो।’
साठ से अस्सी वर्ष पहले तक पूरे विश्व में 100% जैविक खेती होती थी और दुनिया की आबादी भी आज की तुलना में आधी थी। फिर भी, जैविक खेती पर्याप्त अनाज पैदा करने में विफल थी और टिक नहीं पाई।
1960 के दशक तक भारत में अक्सर अनाज की कमी होती थी और भूख से लोग मरते थे। वह जैविक खेती का जमाना था और सरकार को विदेशों से अनाज सहायता स्वीकार करने को मजबूर होना पड़ता था। इससे हमें ‘जीने के लिए अनाज लानेवाला देश’ संज्ञा प्राप्त हो गई थी। हमें रोटी और कपड़ा मुहैया कराने के लिए अनाज और कपास देनेवाला मुख्य दाता अमेरिका था। इसके बाद देखिए कितना अभूतपूर्व परिवर्तन आया! भारत अब अमेरिका से अधिक चावल, अधिक कपास, अधिक फल और अधिक सब्जियों और अधिक दूध का उत्पादन करता है। खेती में विज्ञान का उपयोग और गहन कृषि के कारण यह परिवर्तन हुआ है। यह समय है विज्ञान का अभिवादन करने का, हमारे किसानों का अभिवादन करने का!
विश्व की खेती की पैदावार में सबसे आगे पांच देश हैं- 1. चीन, 2. भारत, 3. अमेरिका, 4. ब्राजील, और 5. इंडोनेशिया। ये देश कुल मिलाकर विश्व की कृषि उपज का 40% पैदा करते हैं। उपरोक्त तालिका में इन देशों की जैविक खेती के हिस्से का विवरण देखिए-
(स्रोतः एफआईबीएल एवं आईएफओएम रिपोर्ट- जैविक खेती की दुनिया 2018)
विश्व में सर्वाधिक कृषि उपज वाले प्रमुख देशों में जैविक खेती का क्षेत्र बहुत कम रह गया है। इसके निश्चित रूप से कारण हैं। कुछ छोटे से क्षेत्र में जैविक खेती अच्छी मानी जा सकती है।
सिक्किम में खेती की घटती पैदावार के अलावा संकट के अन्य संकेत भी हैं। राज्य में आत्महत्या का अनुपात एक लाख जनसंख्या पर 37.5 है। राष्ट्रीय औसत 10.6 के मुकाबले यह 3.6 गुना अधिक है। (स्रोतः एनसीआरबी, 2015)। वर्ष 2000 में सिक्किम में आत्महत्या की दर 14.9 थी। तब से वह दुगुनी हो गई है। पूर्वोत्तर के राज्यों में कैंसर बड़े पैमाने पर है, जो राष्ट्रीय औसत से बहुत ज्यादा है।
इस लेख का उद्देश्य जैविक खेती के प्रति अति मोह को टालने और सतर्कता बरतने के लिए लोगों में जागृति निर्माण करना है।
देश जैविक खेती का क्षेत्र (%) परंपरागत खेती का क्षेत्र (%)
चीन 0.4 99.6
भारत 0.8 99.2
अमेरिका 0.6 99.4
ब्राजील 0.3 99.7
इंडोनेशिया 0.2 99.8