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संघ शाखा अर्थात सेवा यज्ञ

संघ शाखा अर्थात सेवा यज्ञ

by हिंदी विवेक
in संघ
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यदि आप आध्यात्मिक उन्नति की सीढ़ी चढ़ना चाहते हैं तो इसका पहला कदम सेवा है। सेवा भाव जन्मत: प्रत्येक व्यक्ति में होता है, जो व्यक्ति सेवा करता है, उसकी तुलना मां से की जाती है। यदि कोई भी कार्य मां की सेवा भावना से किया जाए तो कार्य में उत्कृष्टता प्राप्त होती है। यदि किसी भी कार्य को भगवान की सेवा समझेंगे तो आपको उस कार्य में ना केवल उत्तमता प्राप्त होगी बल्कि अवर्णनीय खुशी भी मिलेगी और अहंकार आपको छू भी नहीं पायेगा। प्रत्येक कार्य को ईश्वरीय कार्य मानकर करेंगे तो हमारी मनोदशा भी वैसी ही बनेगी जैसा कि संत ज्ञानेश्वर महाराज ने मराठी में बताया है।
कि हे मियां केले। हे माझेनी सिद्धि गेले।
ऐसे नाही ठेवले। वासने माजी।

हमें अपने चारों ओर ऐसे महान व्यक्ति दिखेंगे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन सेवा के महान कार्यों के लिए समर्पित कर दिया।
1. बंगाल के श्री रवींद्रनाथ टैगोर जिन्होंने “शांति निकेतन” के नाम से शिक्षा का आदर्श स्थापित किया।
2. श्री बाबा आमटे जिन्होंने कुष्ठ रोगियों के लिए एक प्रसिद्ध सेवा केंद्र
“आनंद वन” की स्थापना की।
3. पूज्य नारायण गुरु जिन्होंने शिक्षा, संस्कृति, स्वास्थ्य जैसे विभिन्न दृष्टिकोण से दलितों, पीड़ितों और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए कार्य किया।
4. डॉ.भीमराव गस्ती जिन्होंने कर्नाटक के बेलगावी में एक केंद्र की स्थापना करके बेरड समाज के विकास के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
5. गुजरात के श्री जलाराम बापू एक दूरदर्शी संत हुए। जहां अखंड भंडारा चलता रहता है। प्रत्येक राज्य में ऐसे आदर्श हमें दिखाई देंगे।

एक बार व्यक्ति के मन में सहानुभूति विकसित हो जाए तो वह हजारों तरीकों से समाज की सेवा कर सकता है। कोई भी दिव्यांग, मंदबुद्धि, परित्यक्ता, गूंगे- बहरे, अंधे, अनाथ बालक किसी को स्वयं अपनी सेवा के लिए नहीं बुलाते। सैकड़ो संस्थाएं उनके लिए काम करती हुई दिखाई देती है।
भोजन दान को पुण्य कार्य मानकर विद्या अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को चाहे वह शिक्षित हो या अनपढ़, पुरुष हो या स्त्री, उसकी जाति कोई भी हो, बिना भेदभाव किए हर आने वाले व्यक्ति को भोजन मिल सके, इसलिए पीढ़ियों से भंडारा चलाने वाले धार्मिक स्थल भी है।

गुरुद्वारा धार्मिक स्थल लंगर के लिए प्रसिद्ध है। अनेक कार्य जैसे छात्रावास, बाल संस्कार केंद्र, वृद्धाआश्रम, धर्मादाय चिकित्सालय आदि सहृदय व्यक्ति करते रहते हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरणा लेकर वनवासी कल्याण आश्रम संस्थान अपना कार्य क्षेत्र जनजाति समाज को चुना है। हजारों सेवा कार्यों की श्रृंखला खड़ी की है। विश्व हिंदू परिषद भी ऐसी ही सेवा कार्य करने वाली संस्था है। दुर्गम छोटे-छोटे गांवों में एक शिक्षक वाले स्कूल हजारों की संख्या में चलाए जाते हैं।
संघ ने डॉ. हेडगेवार के जन्म शताब्दी वर्ष से अर्थात 1989 से एक स्वतंत्र सेवा विभाग की शुरुआत की है। जिसमें अखिल भारतीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक सेवा संयोजकों की नियुक्ति की गई है। स्वयंसेवकों के द्वारा चलाये जाने वाले सभी सेवा कार्य सेवा भारती के अंतर्गत आते हैं।

अपने सामने दु:खी लोगों को देखकर उनका दुख दूर करने के लिए प्रयत्न करना बहुत ही आवश्यक सेवा कार्य है।
संत तुकाराम ने मराठी में लिखा है:
जे का रंजले गांजले। तयासी म्हणे तो आपुले।
तोचि साधू ओळखावा। देव तेथेचि जाणावा।

सज्जनता या नम्रता मानवता का प्रतीक है। ऐसे सेवा कार्य के लिए आर्थिक सहायता मिलती जाती है। अखंड भंडारा या अन्नछत्र चलाने वाली धार्मिक संस्थाओं को अनाज की कभी कमी नही होती। इस तरह के सेवा कार्य विशेष होते है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने लिए एक अलग बुनियादी सेवा कार्य तय किया है। केवल संगठित समाज ही अपनी सारी समस्याएं सफलतापूर्वक सुलझा सकता है। इसीलिए संघ ने हिंदू समाज को संगठित करने का निर्णय लिया है। जब हिंदू संगठन कहा जाता है तो कुछ लोगों के भौहें टेढ़ी हो जाती हैं। मुसलमानों का क्या? ऐसा विचार उनके मन में आता है। मानो मुसलमानों के बिना हिंदू संगठन को कोई अर्थ ही नहीं है।
“हिंदू संगठन” शब्द की गहराई और दायरा बहुत बड़ा है।

1. आपसी भाईचारे और स्नेह पर आधारित सामंजस्य पूर्ण समाज।
2. हर तरह के भेदभाव से मुक्त समाज।
3. अनैतिकता तथा अस्पृश्यता से मुक्त समाज।
4. भ्रष्टाचार से मुक्त चरित्रवान समाज।
5. समाज ही परमेश्वर मानकर एवं मानवसेवा ही ईश्वरसेवा मानने वाला समाज।
6. भारत माता को परम आराध्य मानकर मानव सेवा में रत समाज।

हिंदू संगठन का विचार समय के साथ विस्तारित होता रहेगा। हिंदू समाज को भारत और विश्व में गौरव का स्थान मिलना ही चाहिए।
आदरणीय प.पू. सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार व द्वितीय प.पू. सरसंघचालक श्री गोलवलकर गुरुजी द्वारा व्यक्त किए गए कुछ विचार देखे जाएं तो संघ द्वारा अपने लिए तय किया गया बुनियादी सेवाकार्य अर्थात “हिंदू संगठन” के कार्य का दायरा और गहराई कितनी है, इसकी कल्पना की जा सकती है।

परम पूज्य डॉ. हेडगेवार

1. कोई भी राष्ट्र कितना महान है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस राष्ट्र का सामान्य औसत व्यक्ति कितना महान है। संपूर्ण राष्ट्र की जीवन शक्ति इसी बात पर निर्भर होती है।

2. समाज के प्रत्येक व्यक्ति के मन में सामंजस्य पूर्ण जीवन के लिए रुचि, जुनून और इच्छा पैदा करना ही हमारा ध्येय है, यही हमारी विशेषता है और यही हमारी सफलता की कुंजी है।

परम पूज्य श्रीगुरुजी

1. समाज की जीवंतता को नष्ट करने वाले सभी मतभेदों और संघर्षों को दूर करके एक सामंजस्यपूर्ण और एकजुट समाज का निर्माण करना हमारा सर्वोच्च कर्तव्य है।
2. एक सुव्यवस्थित समाज ही अज्ञानता और दरिद्रता का समाधान करने में सक्षम है। इसीलिए हम ऐसे लोग जो प्रेम भावना से भरे हो, एक दूसरे के सुख-दु:ख को समझते हो, सभी के साथ स्नेह और आत्मीयता की भावना से चलते हो और एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहते हो, ऐसे लोगों को सुनिश्चित करना हमारा कार्य और कर्तव्य है।
3. हमारे लिए इस भूमि से अधिक पवित्र कुछ भी नहीं है। इस भूमि का धूल का हर कण, हर सचेतन-अचेतन वस्तु, हर पत्थर, हर काष्ठ, हर वृक्ष और नदी हमारे लिए पवित्र है। इस भूमि के प्रत्येक व्यक्ति के मन में उत्कट भक्ति हमेशा जागृत रहे, ऐसा संघ का प्रयास है।
4. आइए, हम अपनी जीवनशैली का मार्ग केवल हमारे प्राचीन लोगों द्वारा खोजे गए तथा बुद्धि, अनुभव और इतिहास द्वारा परखे गए शाश्वत सिद्धांतों के आधार पर निर्धारित करें।
संघ शाखा हमेशा यह प्रयत्न करती है कि विचार केवल विचार ना रहे उनके अनुसार आचरण किया जाए। संघ शाखा चलाना एक स्वतंत्र श्रेष्ठ सेवाकार्य है। बाकी सभी सेवाकार्य आधारभूत सेवाकार्य हैं। यह एक व्यापक रचनात्मक कार्य है।

संघ मानता है कि प्रधानाध्यापक का कौशल प्राप्त कर रोज तीन-चार घंटे समय देकर, एक उत्कृष्ट संघ शाखा खड़ी करना बहुत बड़ी देश सेवा है। यह शांतिपूर्वक लगातार किया जाने वाला कार्य है। इसमें विज्ञापन देने जैसा कुछ भी नहीं है। भारत में हमारा जन्म हुआ, हिंदू समाज में हमारा जन्म हुआ, यह हमारा भाग्य है। हिंदू समाज निर्दोष, संगठित, पूरी तरह समर्थ, वैभव संपन्न हो, इसके लिए प्रयत्न करना हमारा कर्तव्य है। इसी भावना से प्रधानाध्यापक और उनके सहकर्मी काम करते हैं। कोई फूलों का हार नहीं, कोई पुरस्कार नहीं, बस यज्ञ की आहुति की तरह बलिदान। इस समय 80 हजार संघ शाखाएं हैं। कितने कार्यकर्ताओं ने अपने समय की आहुति या बलिदान किया होगा।

डॉ. हेडगेवार ने संघ की शाखा स्थापित करने के लिए अपना पूरा जीवन बलिदान कर दिया। समाज सेवा अर्थात ईश्वर की सेवा। डॉ. हेडगेवार बच्चों के घर-घर जाते थे। यदि कोई पूछता था “डॉक्टर कहां गए थे” तो वह कहते थे “मैं ईश्वर के दर्शन करने गया था”। संघस्थान साफ करना, उसका रेखांकन करना, ईश्वर का कार्य है। सन 1940 के संघ वर्ग में डॉ. हेडगेवार का समापन भाषण उनका अंतिम भाषण बन गया।
उसमें उन्होंने कहा था “मैं नागपुर में रहकर भी बीमार होने के कारण आपकी कोई सेवा नहीं कर सका। पुणे की कक्षा में प्रत्येक स्वयंसेवक से मेरा परिचय हुआ। परिचय करना भी समाज रूपी परमेश्वर की सेवा ही है”।
नागपुर के मोहिते संघ स्थान पर होने वाली संघ शाखा डॉ. हेडगेवार ने सन् 1925-26 में शुरू की थी। अभी 2025 है, पिछले 100 वर्षों में कितने प्रधानाध्यापकों ने अपना पसीना बहाया है, इसे किसी ने दर्ज करके नहीं रखा। संघ शाखा अर्थात लगातार चलने वाला सेवा यज्ञ ही है।

“सेवा है यज्ञ कुंड, समिधा सम हम जले”। इस कविता की पंक्ति गुनगुनाते स्वयंसेवक आपके पूरे देश में मिलेंगे।
डॉ. हेडगेवार संघ शाखा की तुलना पावर हाउस से करते हैं। लगातार विद्युत की आपूर्ति बनाए रखना महत्वपूर्ण होता है। पावर हाउस चलाने वाले लोग अपना काम छोड़कर इधर-उधर नहीं भाग सकते। शाखा छोड़कर अन्य दिखने वाले कार्यों के पीछे दौड़ना फायदेमंद नहीं होता। संघ प्रारंभ होने के बाद डॉ. ने अन्य सभी काम छोड़ दिए।

श्रीगुरुजी संघ शाखा को कल्पवृक्ष कहते थे। वह कहते थे “उसकी छाया में बैठो, सब कुछ मिलेगा। देश के कोने-कोने तक संघ की शाखाओं को पहुंचाओं, सफलता ही सफलता दिखेगी”।
तृतीय सरसंघचालक श्री बालासाहेब देवरस संघ शाखा का वर्णन इस प्रकार करते हैं “संघ शाखा केवल खेलने का या व्यायाम करने का स्थान नहीं है। सज्जनों की सुरक्षा का वादा है। युवाओं को नशा मुक्त रखने का अनुष्ठान है। समाज पर अचानक आने वाले संकट के समय बिना शर्त सहायता प्रदान करने वाला आशा केंद्र है। महिलाओं के लिए निडरता और सभ्य आचरण का वादा है। दुष्ट और राष्ट्र विरोधी शक्तियों के लिए भय निर्माण करने वाली शक्ति है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह ऐसा विश्वविद्यालय है जो सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में योग्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण प्रदान करता है।
इस लेख का समापन श्रीगुरुजी के शब्दों के साथ करना ही उचित होगा।

“राष्ट्रभक्ति की विशुद्ध भावना के आधार पर भेदभाव को मिट्टी में गाड़कर संगठित, तेजस्वी तथा प्रभावशाली समाज जीवन निर्माण करने का महान कार्य हम लोगों ने हाथ में लिया है। राष्ट्र क्या है? यह ज्ञान हुए बिना राष्ट्रभक्ति पैदा नहीं होती। राष्ट्रभक्ति की भावना के बिना स्वार्थ को तिलांजलि देकर, राष्ट्र के लिए परिश्रम करना संभव नहीं है। इसीलिए विशुद्ध राष्ट्र भावना से परिपूर्ण, श्रद्धा युक्त तथा परिश्रमी लोगों को एक सूत्र में बांधना, एक प्रवृत्ति के लोगों की परंपरा निर्माण करने वाला संगठन खड़ा करना तथा इस संगठन के बल पर राष्ट्रीय जीवन के सारे दोष समाप्त करने का प्रयत्न करना, बुनियादी और महत्वपूर्ण कार्य है।
सैकड़ो दैनिक समस्याओं को हम कैसे सुलझाते हैं? इस पर यह कार्य निर्भर नहीं करता। समाज की विभिन्नता और भेद समाप्त कर राष्ट्र भावना से प्रेरित एकरस समाज जीवन निर्माण किया गया तो अनेक दैनिक और तात्कालिक समस्याएं सरलता से हल हो सकती हैं।

यह बात तो स्पष्ट है कि यह कल्पना ऐसी नहीं है जो कुछ दिनों अथवा कुछ वर्षों में साकार की जा सके। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सैकड़ो, हजारों जीवन चाहिए जो शांति के साथ अथक प्रयास करते रहें।

 

-मधुभाई कुलकर्णी

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