रसोई  तो और चटखारेदार बनी है

भारतीय पाक कला ने अब अपना स्वरूप बदल दिया है। खाना बनाने की तकनीक, व्यंजनों में मिलाए जाने वाले पदार्थ, प्रस्तुति की तकनीक आदि बहुत कुछ बदला है और बदलता रहेगा। इससे भारतीय व्यंजनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। प्रस्तुत है प्रसिद्ध शेफ पद्मश्री संजीव कपूर से हुई बातचीत के अंश-

भारतीय खाद्य संस्कृति ने गृहिणी की रसोई से लेकर होटल के टेबल तक की यात्रा की है। आपके इस पर क्या विचार है?

आप किसी भी तरह से देखें, आपको पता चलेगा कि भारतीय व्यंजन बेहद बहुमुखी और संतुलित हैं। भारतीय भोजन में पूर्ण पोषण प्रदान करने वाले सभी आवश्यक खाद्य पदार्थों को शामिल किया गया है। साथ ही यह निरंतर प्रयोगशील है। आज अच्छे भारतीय भोजन के लिए अवसर कई गुना बढ़ गए हैं। तकनीक आज दुनिया को करीब ले आई है। किताबों, टेलीविजन और इंटरनेट ने दुनिया को बहुत छोटा बना दिया है। मुझे यह देखकर बहुत अच्छा लगता है कि भारतीय व्यंजन दुनिया भर में अपना स्थान बना रहे हैं।

हिंदी में एक कहावत है ‘जैसा खाओ अन्न, वैसा बनें मन’। आप एक शेफ होने के नाते लोगों को किस तरह का खाना खाने की सलाह देंगे?

यह बिलकुल सही है। हालांकि, यह केवल अच्छा भोजन खाने के बारे में नहीं है, आपको अपने अंदर अच्छी आदतों को भी विकसित करने की आवश्यकता है। यहां तक कि ‘घर का खाना’ भी खतरनाक हो सकता है यदि आप सामग्री की गुणवत्ता, खाना पकाने के तरीकों, स्वच्छता इत्यादि जैसी चीजों का ध्यान नहीं रखेंगे। इसके अलावा, आपको एक स्वस्थ दिनचर्या की भी ज़रूरत होती है।  व्यायाम, नींद और सकारात्मक सोच अत्यंत आवश्यक है जिससे आप जो कुछ भी खाना चाहें उसे खा सकते हैं, और स्वस्थ रह सकते हैं।

भारत के विभिन्न राज्यों के व्यंजनों की अपनी विशेषता है, परंतु आज व्यंजनों ने राज्यों की उन सीमाओं को तोड़ दिया है। व्यंजनों की इस अंतर्राज्यीय यात्रा को आप किस प्रकार देखते हैं?

एक शेफ होने के अलावा, खाने का शौकीन होने के नाते मैं इस परिवर्तन को खाने वालों के दिल-दिमाग में हुए जबरदस्त बदलाव के रूप में देखता हूं। यही वजह है कि न केवल भारतीय, बल्कि आज दुनिया भर के लोग, भारतीय भोजन को स्वीकार कर रहे हैं जो हमारे देश के विभिन्न राज्यों से संबंधित हैं। चाहे वह पंजाबी छोले हों या राजस्थानी घेवर, गट्टे की सब्जी हो या पुरनपोली। नाश्ते में दक्षिण का इडली-डोसा तो सबका मनपंद है ही। हमारे पास ‘क्लासिक व्यंजनों’ की विशाल श्रेणी है जो किसी आश्चर्य से कम नहीं। मुझे खुशी है कि यह भारतीय व्यंजनों को दुनिया भर में पसंद किया जा रहा है।

वैश्विक आयामों का प्रसार होने के कारण विदेशी व्यंजन भी अब भारतीय लोग चटखारे लेकर खा रहे हैं। आप इसे किस प्रकार देखते हैं?

पिछले कुछ सालों में ’व्यंजनों’ ने एक नया आयाम प्राप्त कर लिया है। लोगों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्वाद चखने और उसके साथ प्रयोग करने के कई द्वार खुल गए हैं। कई अंतरराष्ट्रीय व्यंजन और उसे बनाने की सामग्री आज आपको आपके घर तक पहुंचांई जाती है।  ऐसे रेस्तरां हैं जो शुद्ध अंतरराष्ट्रीय व्यंजन परोसते हैं। कुछ चायनीज स्वाद के लिए प्रसिद्ध हैं तो कुछ इटालियन। निश्चित रूप से आप अपनी छुट्टी का एक दिन केवल उस रेस्टॉरेंट में व्यतीत कर सकते हैं जहां के व्यंजन आपको आकर्षित करते हैं। परिवार के सभी सदस्यों की फरमाइश अलग-अलग होने के कारण ही आजकल लोग ‘मल्टीक्विजीन रेस्टारेंट’ में जाना अधिक पसंद करते हैं। हालांकि, मेरा विश्वास है कि दिनभर ये सभी प्रकार के भोजन खाने के बाद लोग ’घर के खाने’ या ‘दाल-चावल’ की ओर ही अधिक आकर्षित होते हैं। निश्चित रूप से शुद्ध भारतीय भोजन से संतुष्टी अधिक मिलती है।

भोजन को व्यवसाय का दृष्टिकोण मिलने के बाद से क्या प्रमुख परिवर्तन हुए।

भोजन को अगर हम अपनी जरूरत के अलावा व्यवसाय के रूप में देखें तो हम पाएंगे कि इस क्षेत्र में निरंतर विकास ही होता रहा है। सन 1984 में जब मैंने शेफ के रूप में एक नया रास्ता चुना था तब मुझे अपनी पहचान को रसोईघर की सीमाओं से बाहर निकलकर सार्वजनिक क्षेत्रों में लाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा था। परंतु अब यह एक सामान्य बात है। रेस्टॉरेंट इंडस्ट्री अब सबसे तेजी से बढ़ने वाले उद्योगों में से एक है। यह व्यवसाय हालांकि कठिन है परंतु  आकर्षक है।

आज भोजन बनाना केवल घर की गृहिणी तक सीमित नहीं रह गया है। इसके लिए महाविद्यालयों में कोर्सेस भी शुरू हो चुके हैं। खाद्य परंपरा में आया यह बदलाव किस ओर इशारा करता है?

खाद्य उद्योग हमेशा ही सभी के लिए सफलता से भरा क्षेत्र था, है और रहेगा। वैश्वीकरण, आधुनिकीकरण और डिजिटलीकरण के साथ तो आज इसने अधिक गति प्राप्त कर ली है। निश्चित रूप से इस क्षेत्र में रुचि रखनेवाले प्रतिभा सम्पन्न युवाओं का उचित मार्गदर्शन करने तथा उनकेकौशल को बनाए रखने की आवश्यकता है। पेशेवर लोगों द्वारा उन्हें प्रशिक्षण देने और दुनिया भर में पाककला सीखने के केंद्र, महाविद्यालय बनने के साथ ही चीजें बेहतर होंगी। पुणे का ‘सिम्बायोसिस पाककला’ कला कॉलेज इसका एक उत्तम उदाहरण है।

इसमें प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या का ग्राफ यह दिखाता है  कि आज का युवा इसे केवल महिलाओं का काम मानकर इसे छोड़ नहीं रहा है, बल्कि इस क्षेत्र के सुनहरा भविष्य और आवाहनों को समझ कर उस दिशा में कदम बढ़ा रहा है।

तकनीक के इस दौर में आप घर बैठे कई व्यंजन बनाना सीख सकते हैं। आपके भी कई वीडियो इस पर आधारित हैं। इस सुविधा के विषय में आप क्या कहना चाहेंगे?

तकनीक आज दुनिया को मिला हुआ वरदान है। आप घर बैठे सारी चीजें प्राप्त कर सकते हैं। इंटरनेशनल व्यंजनों को बनाने के लिए जो सामान आपको चाहिए वह खरीदने हेतु आपको विदेश नहीं जाना पड़ता। आप ऑनलाइन सब कुछ मंगा सकते हैं। जहां तक मेरे वीडियो का प्रश्न है, मुझे रोज कई हजार लोग यह बताते हैं कि उन्होंने मेरी बनाई कोई डिश खुद भी वीडियो देखकर बनाई। इससे उन लोगों को और खासकर उन गृहणियों को फायदा मिला है जो नए-नए व्यंजन बनाना सीखना चाहते हैं।

खाना बनाना महिलाओं का क्षेत्र माना जाता है। आपकी रुचि इस क्षेत्र में कैसे उत्पन्न हुई?

मेरा जन्म 10 अप्रैल 1964 को अंबाला में हुआ था। मेरी स्कूली शिक्षा भारत के विभिन्न राज्यों में हुई क्योंकि मेरे पिताजी बैंक में होने के कारण हम निरंतर स्थानांतरित होते रहते थे। कई अलग-अलग शहरों में हम रहे थे। मेरे परिवार को ‘खाने के शौकीन’ परिवार के रूप में जाना जाता है। हमारे परिवार की प्राथमिकताओं में अच्छे भोजन का स्थान हमेशा पहला रहा है। मेरी मां बहुत अच्छी कुक हैं तथा मेरे स्वर्गीय पिताजी भी अपने खाली समय में नए-नए व्यंजनों को बनाना पसंद करते थे। स्कूली दिनों में मैं एक सामान्य छात्र था। कुकिंग को करियर के रूप में चुनना न मेरा स्वप्न था और न ही शेफ बनना बचपन की महत्वाकांक्षा। यह अचानक हो गया। उन दिनों इंजीनियरिंग या मेडिकल क्षेत्र में करियर के रूप में चुनने का फैशन था। परंतु हमेशा कुछ अलग करने की सोच के कारण मैंने सोचा मैं आर्किटेक्ट बनूंगा। परंतु शायद ऐसा नहीं होना था, और मैंने पीयूएसआई  दिल्ली में होटल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में प्रवेश ले लिया। यह उस समय की बात है जब आम लोग ऐसे किसी कोर्स से अवगत भी नहीं थे। उस समय मेरे ‘आइडल’ मेरे माता-पिता थे। मेरे पिता रसोई में न केवल नियमित आते थे, वरन शानदार भोजन बनाते भी थे। उन्होंने खाना बनाने की विधि और विज्ञान को समझने के लिए मेरी आंखें भी खोलीं।

आपको शेफ ऑफ इंडिया के रूप में तथा पद्मश्री से नवाजा गया है। क्या इस बारे में आपने कभी कल्पना की थी?

मैं इतने वर्षों में मिले प्यार और हौसलाअफजाई से बहुत खुश हूं। यह कहना झूठ होगा कि मैंने कभी यह स्वप्न नहीं देखा। जब से मैं इस क्षेत्र में आया हूं, मेरा लक्ष्य भारतीय व्यंजनों को उच्च स्थान पर ले जाना है। मैंने कई तरीकों से इसमें योगदान देने की कोशिश की है परंतु मुझे अभी भी लगता है कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है। वो कहते हैं ना “अभी तो शुरुआत है, तस्वीर अभी बाकी है मेरे दोस्त!”

जिस प्रकार भारतीय समाज विदेशी व्यंजन पसंद करता है, उसी प्रकार क्या विदेशी लोग भी भारतीय व्यंजन पसंद करते हैं?

बिलकुल, विदेशों में लोगों द्वारा भारतीय व्यंजन पसंद किया जाता है। यह देखकर मुझमें अधिक उत्साह का संचार होता है।

आज जिस प्रकार भारतीय पर्यटन विदेशी लोगों के आकर्षण का केंद्र है, क्या उसी प्रकार भारतीय व्यंजन भी हो सकते हैं?

निश्चित रूप से। जैसा कि मैंने पहले भी उल्लेख किया था, भारतीय व्यंजन विदेशियों के आकर्षण का केंद्र हैं। जैसे-जैसे हम प्रगति कर रहे हैं, अधिक से अधिक लोग भारतीय भोजन की विविधता को स्वीकार कर रहे हैं। और यह हमारे पर्यटन उद्योग को भी बड़े पैमाने पर लाभ पहुंचा रहा है।

भविष्य में भारतीय खाद्य पदार्थों, उनके व्यवसायों तथा प्रसार में किस प्रकार का परिवर्तन आप देख रहे हैं?

वर्तमान में जो कुछ मैं देखता हूं उसके अनुसार भारतीय व्यंजनों का  भविष्य अच्छा है। प्रस्तुति की तकनीकों, खाना पकाने की तकनीकों, व्यंजनों में मिलाए जाने वाले पदार्थों में बदलाव करते हुएभारतीय खाद्य पदार्थों को और अधिक परिपूर्ण बनाया जा सकता है। मैं हर तरह से इसे नंबर एक बनाने के अपने मिशन पर काम कर रहा हूं और जब तक मैं ऐसा नहीं करता तब तक मैं आराम नहीं करूंगा।

This Post Has 6 Comments

  1. Manjeri verma

    Best artical

  2. Manjeri verma

    ये आर्टीकल बहुत पसंद आया क्यूंकि शेफ संजीव जी से ही खाना बनाने में रुचि आई।????

  3. Awadhesh Kumar

    अच्छा साक्षात्कार।

  4. Richa Pandey

    Nice write up

  5. Sharad Khale

    Very nice article, loved it. Very informative.

  6. Neerja Bodhankar

    क्या बात है!बहुत अच्छा लिखा है पल्लवी???

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