देश को आत्मविश्वास दिलाने वाला नेता

 

आज केंद्र और देश की 22 राज्यों में भी भाजपा की सरकार हैं। अटल जी कि अंतिम विदाई के समय भाजपा देश में सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। भाजपा की विकास यात्रा पर गौर करें तो अटल जी का दृढ़ निश्चय याद आता है। दिल्ली के फीरोज शाह कोटला मैदान पर एक नई पार्टी की घोषणा की गई। भारतीय जनता पार्टी उसका नाम था। अटल बिहारी वाजपेयी नये दल के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए थे। वह समय था जब जनता पार्टी में फूट पड़ी थी और सरकार गिर गई थी। राजनीतिक पंडित मान रहे थे कि संघ के ये लोग संघ के राजनीतिक अंग ‘जनसंघ’ को पुनर्जीवित करेंगे। किन्तु, अटल जी ने साफ शब्दों में कहा कि, ‘भारतीय जनता पार्टी’ नामक हमारी नई पार्टी की स्थापना करते समय हम अपने उज्ज्वल भविष्य को देख रहे हैं। अब पीछे नहीं लौटेंगे। हमारी मूल विचारधारा और सिद्वांतों के आधार पर भविष्य में अग्रसर ही रहेंगे। अटल जी का अपनी विचारधारा पर अटूट विश्वास व संघर्ष की अवधि में अपने सहयोगियों के मन में भी वही प्रचंड विश्वास निर्माण करने का सामर्थ्य दिखाई देता है।

अटल जी का जीवन विलक्षण संघर्षपूर्ण था। उनका जीवन इस बात को साबित करता है कि देशोन्नति का लक्ष्य सामने रख कर प्रचंड परिश्रम और दृढ़ विश्वास यदि मन में हो तो ‘नर से नारायण’अवश्य बन सकता है। वे राजनीति के दीपस्तंभ थे। देश की राजनीति में उन्होंने प्रभावी परिवर्तन कराया। अटल जी ने अपने सहयोगियों की सहायता से यह सिद्ध कर दिया कि देश में कांग्रेस के अलावा अन्य राजनीतिक दल भी सत्ता प्राप्त कर सकता है। कांग्रेस-विरोधी राजनीति में आत्मविश्वास पैदा किया। स्वाधीनता के बाद के 70 वर्षों में भारत की राजनीति अनेक मोड़ लेकर अब राष्टी्रय विचारधारा के करीब पहुंच रही है। इसीसे अटल जी के विचारों और संघर्ष का महत्व स्पष्ट होने लगा है। अटल जी जिस कालखंड में देशसेवा का व्रत लेकर खड़े हुए वह कालखंड ही बेहद अनिश्चितता, सत्ता की चमचागिरी और अपनी संस्कृति के विस्मरण का काल था। पूरे देश को एक घराने का गुलाम बनाने की साजिश थी। अटल जी जैसे संवेदनशील, कवि हृदय के मेधावी युवक का इस स्थिति में बेचैन होना स्वाभाविक था। इस बेचैन मन को एक सकारात्मक देशभक्ति का संस्कार मिला- जो था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कार का… राष्ट्र-चिंतन का। इस चिंतन को भारतीय जनता पार्टी के रूप में एक व्यापक वैचारिक, राजनीतिक व सामाजिक मंच मिला। इससे एक सृजनशील कवि अटल जी के राष्ट्रीय विचारों का प्रकटीकरण हुआ।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक लोकमान्य तिलक कहा करते थे, “देश में केवल स्वराज्य नहीं, सुराज्य अर्थात सुशासन आना चाहिए।” अटल जी का शासनकाल इसी के अनुरूप सुशासन का काल था। इसी समय देश में बहुमुखी प्रगति का मार्ग प्रशस्त हुआ। वैश्विक राजनीतिक मंच पर भी उनकी दृढ़निश्चयी प्रवृत्ति दिखाई दी। कठोर परिणामों का अंदेशा होने के बावजूद उन्होंने परमाणु विस्फोट करवाए और विकसित राष्ट्रों के आर्थिक बहिष्कार की धमकी को घास नहीं डाली। इसके बजाए अपने कर्तृत्ववान व प्रेरक नेतृत्व के आधार पर प्रवासी भारतीयों से चार खरब डॉलर का कोष खड़ा कर भारत को अत्यंत कुशलता से विकास के मार्ग पर लाया। भ्रष्टाचार के बारे में भी अटल जी ने जो निर्णय किए वे उनमें राष्ट्रीय संकल्प और नीरक्षीर विवेक भाव को स्पष्ट करने वाले थे। भ्रष्टाचार का आरोप-पत्र दाखिल होने पर सुखराम, बूटा सिंह जैसे सहयोगियों को मंत्रिमंडल से हटा देना, यही क्यों अपने दल के ही दिलीप सिंह जूदेव के विरोध में भ्रष्टाचार का मामला सामने आते ही, न केवल उनका इस्तीफा ले लेना बल्कि सीबीआई जांच की भी पूरी छूट दे देना उनकी विशुद्ध दृष्टि को प्रकट करता है।

अटल जी यदि राजनीति में न आते तो वे एक श्रेष्ठ कवि होते। अटल जी भी जानते थे कि राजनीति ने उनकी काव्यधारा को सीमित कर दिया है। लेकिन उन्होंने इसके लिए राजनीति को दोष नहीं दिया। वाजपेयी जी केवल राष्ट्रीय भावना से एकरूप हुए राजनीतिज्ञ नहीं थे, बल्कि उच्च श्रेणी के व्यक्तित्व भी थे। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में सिखों का नरसंहार शुरू हुआ था। ऐसे समय में एक उन्मादी, हिंसक भीड़ से बचने के लिए कुछ सिख वाजपेयी जी के बंगले में घुसे। वाजपेयी जी तत्काल अपने बंगले से बाहर आए और सिखों को बचाने के लिए हिंसक भीड़ के सामने उपस्थित हुए। वाजपेयी जी का यह सामाजिक हित का साहस देख कर हिंसक भीड़ आगे तो बढ़ी ही नहीं, वापस लौट गई। इस तरह की निडरता और संवेदन शक्ति के धनी थे अटल जी।

अटल जी का जीवन याने आत्मप्रौढ़ी का प्रवचन नहीं है, बल्कि राष्ट्र विकास के अवसरों को खोज कर समाज का किस तरह भला हो सकेगा इसकी मिसाल देने वाला जीवन मार्ग है। वर्तमान में देश का भविष्य जनता ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी को सौंपा है। ऐसे समय में अटल जी के कृतिशील विचार पार्टी और कार्यकर्ताओं के लिए अत्यंत मार्गदर्शक हैं। भाजपा के कार्यकर्ताओं के लिए अटल जी के निधन के बाद उनके कृतिरूप विचारों का चिंतन करना जरूरी है। इस दृष्टि से यह ‘अनंत अटल जी विशेषांक’ सबको उपयोगी साबित होगा। अटल जी रचना की चंद पंक्तियां स्मरणीय हैं-

जीवन को शत्-शत् आहुति में;

जलना होगा, गलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा।

अटल जी अपनी इस रचना के अनुसार ही चले। अपनी व्यक्तिगत आशा-आकांक्षाओं, सुख-सुविधाओं का त्याग कर राष्ट्र और समाज को प्राथमिकता देने वाला जीवन अटल जी जीये। केवल यह मंत्र ही नहीं दिया, अपितु तद्नुसार समर्पित जीवन जीने वाले अटल जी को शब्द-सुमन अर्पित करने वाला यह ‘अनंत अटल जी विशेषांक’ उनके प्रति कृतज्ञता है और उम्मीद है कि अटल जी के सपने का भारत शीघ्र ही साकार होगा।

 

 

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