“लक्ष्मी जी मेरी बात सुन कर अपने उल्लू पर सवार होकर अन्तर्धान हो गई और मेरे अंधेरे कमरे में गृहलक्ष्मी दरवाजा खोल कर बोली-“क्या उल्लुओं की तरह पड़े हुए हो? सवेरा हो गया है, अब उठो भी?” मैंने कहा-“जब भी मैं सुनहरे सपने देखता हूं तब तुम पता नहीं बीच में क्यों आ धमकती हो? वह बोली- “निखट्टुओं को तो सपने ही आएंगे ना?”
पिछले पचास बरसों से मैं लक्ष्मी का इंतजार ही करता रहा। लेकिन वह कभी मेरे द्वार आना तो दूर झाकी तक नहीं। पता नहीं मेरे सपनों में इस बार कैसे आ गई? उसने कहा-जागो कलमघिसू जागो? और मांगो कोई वरदान?
मैंने जाग कर देखा तो मेरी आंखें मसल कर मैंने कहा- “मुझे तो नींद आ रही है सोने दो भागवान।” वह बोली-“मैं तुम्हारी गृहलक्ष्मी नहीं, लक्ष्मी हूं लक्ष्मी।” मैंने करवट बदलते हुए कहा-“होगी, मुझे क्या?”
वह बोली- “जाग जाग, जागत है सो पावत है, सोवत है सो खोवत है।” मैं बोला-“मैं न जाग रहा हूं और न सो रहा हूं, अधनींद में निद्रालू हू।” वह बोली -“देख मेरी तरफ देख। मैं लक्ष्मी हूं।” मैंने आंखें खोलीं तो आंखें खुली कि खुली रह गईं। सचमुच साक्षात लक्ष्मी मेरे सामने खड़ी थी। तब मैंने कहा-“क” से कलमधिस्सू मैं कलमकार। “क” से कमल, कमल पर विराजमान हे लक्ष्मी! तुम्हारा इंतजार करते-करते सारी उमर बीत गई, तुम नहीं आई। आज इधर कैसे रुख कर लिया? तुम्हारे खातिर गृहलक्ष्मी की झिड़किया खा-खा कर बहुत हूं बेजार। तुम्हें इससे क्या? तुम तो सरोवर के बीच कमल के खिले फूल पर बिराजती हो। इस अंधेरे शहर की अंधेरी गली के अंधेरे मकान के अंधेरे कमरे में कई खटिया तोड़ चुका हूं और पत्नी के कटाक्ष-“तेरी दो टकिया की नौकरी में दो टके भी नहीं जमा हुए?-यह सुन-सुन कर अब तो मेरी कमर ही झुक गई है। यहां जिंदगी में पुष्पहार तो क्या, किसी ने एक पुष्प तक नहीं आगे किया और तुम तो बड़े-बड़े हाथियों से पुष्पहार पहनती रहती हो, जम्बूद्वीप भारतवर्ष बड़े-बड़ेे हाथियों की कमी कहां है? आजादी के बाद तो तुम हाथियों पर ही मेहरबान रही हो, वह भी खास करके सफेद हाथियों पर? ऐसे पालतू सफेद हाथी गांव की चौपाल पर सरपंच से लेकर सचिवालय संसद के अहाते तक में विचरण करते हुए मिल जाएंगे। तब आप मुझे जैसे कलमघिस्सुओं पर कैसे मेहरबान हो सकती हो? “क” से कलमकार नहीं आप तो “क” से कुरसी वालों की ओर मुखाबित हो सकती हो और अब तो आपने हद ही कर दी? “क” से कबाड़िया पर इतनी इतनी मेहरबान हो कि वे दूसरे देशों से कबाड़ में मिसाइल, राकेट के खोल मंगा कर मालामाल हो रहे हैं। मैं विदेशी लेखकों की कोई फटी पुरानी किताब तक नहीं मंगवा सकता? तुम अपने खुले हाथों से आपके चित्र के अनुसार पानी में पैसा बहा रही हो, मेरे अब समझ में आया कि तुम ऐसे कबाडियों को जो कबाड़ में से भी पैसा निकाल लेते हैं, उन्हें लुटा रही है? मैं तुमसे क्या अपेक्षा कर सकता हूं? मैं हाथी के नामराशि वाला कलमकार हूं, मगर तुम मुझ पर तो कभी मेहरबान नहीं हुई? आप हाथियों के साथ-साथ कई गधे अफसरों पर भी मेहरबान रही हो। तभी तो उनके यहां छापे पड़ते हैं, एक ही जगह नहीं कई-कई शहरों में उनके कई-कई बंगलों पर बेचारे आयकर कस्टम अधिकारियों को बेशुमार नोटों की गिड्डियों को गिनने में भी तकलीफ होती है? अखबारों और टीवी के चैनलों पर नोटों की गिड्डियां देख-देख कर मेरी गृहलक्ष्मी की आंखें चौंधियां जाती हैं। वह मेरी ओर आंखें तरेेर कर देखती हैं तब मैं उसे केवल सांत्वना ही दे सकता हूं कि भागवान उस भगवान का धन्यवाद हो कि तुम कितनी खुश नजर आ रही हो? उस पत्नी की कल्पना करो कि जिसका करोड़ों चला गया, वह कितनी दु:खी होगी? यहां तो न नौ किलो तेल होगा और न तुम तरह-तरह के पकवान बनाने की शेखचिल्ली कल्पना करोगी?”
लक्ष्मी झुझंला कर बोली-“हे सरस्वती पुत्र। मेरे पास इतना वक्त नहीं है कि तुम्हारे उलाहने सुन चलो। जल्दी से कोई वर मांग लो- जो चाहो सो?” मैंने कहा-“हे लक्ष्मी मां! सरस्वती पुत्र तो आपके लिए “सौतेला पुत्र” होता है। पहले ही इस देश में रामायण काल से लेकर आज तक सौतेली मां बदनाम रही है। लेकिन कई सौतेली माताएं आज भी यशोदा माता की तरह मेहरबान रहती हैं, जैसे एक उद्योगपति घराने की मां उनके सचिव पर ऐसी मेहरबान हुई कि सारी संपत्ति ही उनके नाम कर दी? आप तो भ्रष्ट नेताओं, रिश्वतखोर अफसरों, मिलावट करने वाले या दो नंबर का धंधा करने वाले व्यापारियों, भूमाफियों, तस्करों, अण्डरवर्ल्ड के अपराधियों को ही खास करके करोड़पति बनाने में बिजी हो आजकल। बेचारे गरीबों, मेहनतकश लोगों, निष्ठावान और ईमानदारों को क्यों पूछने लगी? आपकी नजर में तो बुरे धंधे करने वाले ही लक्ष्मीपुत्र होने लगे हैं। इसलिए मुझे आपके वरदान से कुछ लेना-देना नहीं है। आपको तो ऐसों के घर ही जाना और रहना पसंद है, आप वही जाइए।
लक्ष्मी हंस कर बोली-“नहीं, ऐसी बात तो नहीं है। खैर, यह बात तुम छोडो। तुम जो भी कुछ मांगोगे, मैं देने के लिए तैयार हूं। जल्दी से बोलो?” मैंने कहा- “हे लक्ष्मी मां! इस घोर अंधेरी काली रात में विचरण करने वाला आपका “उल्लू” वाहन दे दो। दे सकोगी?” वह चिंतित होकर बोली-“यह तो बड़ा मुश्किल काम है। बिना वाहन के मैं फिर कैसे विचरण कर सकूंगी? तुम कुछ और मांग लो?” मैंने कहा-“इस देश के उजड़े गुलिस्ता को आबाद करने के िएल आपका एक उल्लू ही मेरे लिए काफी है। बाकी यहां तो हर डाल पर उल्लू बैठे हैं। जिन्होंने इस गुलिस्तान को काफी कुछ तो उजाड़ दिया है और उजाड़ने में लगे हुए हैं, उन सबको आपके साथ ले जाओ, ये स्वर्ग को भी उजाड़ने में समर्थ है।” लक्ष्मी बोली-“लेकिन तुम मेरे उल्लू को लेकर क्यो करोंगे?” मैंने कहा-“हे लक्ष्मी मां! आपके उल्लू के सहारे मैं गरीबों की गरीबी हटाने का उल्लू सीधा करूंगा, वैसे यहां की कई राजनीतिक पार्टियां गरीबों की गरीबी मिटाने के लोभ में उन्हें बरसों से उल्लू बना कर वोट बटोरती आ रही हैं। कई मंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं और कई भ्रष्ट लोगों के काले कारनामे आपके उल्लू की सहायता से रात में देखकर दिन में उजागर करूंगा। आपके उल्लू से देश का काला धन, गड़ा धन और छिपा धन जो वित्त मंत्री और देश के भ्रष्टाचार के हित में जहरिले नागों, बिच्छुओं, तिलचट्टो को चट करेगा और सबसे बड़ी बात यह होगी कि यह भ्रष्टाचार के हरे-हरे नोट, स्मगलिंग की चीजें, सोने के बिस्किट, चांदी की सिल्लियां, दहेज का माल आदि यह ढूंढ निकालेगा। इक्कीसवीं सदी में इस उल्लू की सख्त जरूरत है। इसलिए आपका यह उल्लू मुझे दे दीजिए। मैं इसे पालूंगा। मुझे इसके सिवाय कुछ नहीं चाहिए। दोगी?”
लक्ष्मी जी मेरी बात सुन कर अपने उल्लू पर सवार होकर अन्तर्धान हो गई और मेरे अंधेरे कमरे में गृहलक्ष्मी दरवाजा खोल कर बोली-“क्या उल्लुओं की तरह पड़े हुए हो? सवेरा हो गया है, अब उठो भी?” मैंने कहा-“जब भी मैं सुनहरे सपने देखता हूं तब तुम पता नहीं बीच में क्यों आ धमकती हो? वह बोली- “निखट्टुओं को तो सपने ही आएंगे ना?”