गीतकार शैलेन्द्र के गुजर जाने के बाद गीत “जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां” एक मुखड़े के रूप में पड़ा हुआ था. राज कपूर ने कई गीतकारों से बात की मगर शैलेन्द्र वाला फ्लेवर कहीं न था. अंत में राज कपूर ने शैलेन्द्र के पुत्र शैली शैलेन्द्र से इस गीत को पूरा करने की गुजारिश की. शैली शैलेन्द्र ने गीत को पूरा लिखा. ये शैलेन्द्र की विरासत ही थी, जो उनके पुत्र शैली शैलेन्द्र के लिखे गीत में भी वही असर था जिसके लिए शैलेन्द्र जाने जाते थे. आज उस गीत को सुनकर लगता ही नहीं है कि ये दो अलग-अलग लोगों के ख्यालों से मिलकर बना है.
SUSHMA bhandarii
13 नवम्बर 2018Achhi jaankaari
Sandeep mane
13 नवम्बर 2018Arthpurn geet.aur great raj kapoorji