पाकिस्तानः प्रधानमंत्री बनाम प्रधानमंत्री

पाकिस्तान में क्या हर नया प्रधानमंत्री या शासक अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री को सजा दिलाने की नई परंपरा स्थापित कर रहा है? वैसे भी पाकिस्तान के 71 साल के इतिहास में अबतक कोई प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया, यह एक दिलचस्प तथ्य है। हाल ही में, एवनफील्ड प्रॉपर्टीज मामले में 11 साल की सजा झेल रहे पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सउदी अरब में अल अजीजिया स्टील मिल्स खोलने में भ्रष्टाचार को लेकर सजा होने के बाद पाकिस्तान के इस पैटर्न पर बहस शुरू हो गई है।

इमरान खान पाकिस्तान के 30वें प्रधानमंत्री हैं। सत्ता संभालने के बाद उन्होंने कहा भी था कि भ्रष्टाचार के मामले में फंसे शरीफ के मुकदमे को सरकार सख्ती से लड़ेगी। हालांकि स्वयं इमरान खान पर सेना की मदद से आम चुनाव जीतने और पाकिस्तान की बागडोर संभालने का आरोप भी है। कहते हैं कि 2018 के आम चुनाव से पहले ही शरीफ को सत्ता के खेल से बाहर करने की रणनीति सेना बना चुकी थी। इसके लिए सेना ने मोहरा बनाया तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के मुखिया और पूर्व क्रिकेटर इमरान खान को, इसके उलट कह सकते हैं कि इमरान ने भी सत्ता हथियाने के लिए सेना को मोहरा बनाया। दरअसल, अप्रैल 2016 में पनामा पेपर मामले से ही शरीफ के बुरे दिन शुरू हो गए थे। चर्चा है कि सेना और न्यायपालिका का गठजोड़ शरीफ पर भारी पड़ा। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में सार्वजनिक पद धारण करने के अयोग्य घोषित कर दिया और इस तरह इमरान खान के लिए रास्ता साफ हो गया।

इसके पहले 1996 में पाकिस्तान की दो बार प्रधानमंत्री रही बेनजीर भुट्टो को तत्कालीन राष्ट्रपति फारूक लेघारी ने इसलिए बर्खास्त कर दिया था कि भ्रष्टाचार के ही आरोपों में रावलपिंडी हाईकोर्ट ने बेनजीर को पांच साल की सजा दी थी, साथ ही 50 लाख डॉलर जुर्माना भी लगाया था। इस मामले में भुट्टो के पति आसिफ अली जरदारी को भी यही सजा दी गई थी। यहां दिलचस्प यह भी है कि तब नवाज शरीफ की सरकार ने ही श्रीमती भुट्टो के लिए गड्ढा खोदा था। सत्तारूढ़ दल के सीनेटर सैफुर रहमान ने इस मामले में भुट्टो के खिलाफ अभियान छेड़ा था। इस दौरान प्रचंड बहुमत से सत्ता में आयी शरीफ सरकार के दबाव में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति और सेना प्रमुख तक को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी।

सबसे बुरा तो हुआ पाकिस्तान के इतिहास में सर्वाधिक शक्तिशाली, चौथे राष्ट्रपति और नौंवे प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ जो बेनजीर भुट्टो के पिता थे। 1977 में भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी द्वारा काफी अंतर से आम चुनाव जीतने के बावजूद जनरल जिया उल-हक ने सैन्य विद्रोह के जरिये सत्ता हथिया ली और 1988 तक पाकिस्तान के तानाशाह पांचवे राष्ट्रपति रहे, मरते दम तक। खूबी यह है कि हक को सेना प्रमुख भुट्टो ने ही बनवाया था। वर्ष 1978 में सुप्रीम कोर्ट ने भुट्टो को अपने एक प्रबल राजनीतिक आलोचक के पिता नवाब मोहम्मद अहमद खान के पिता की हत्या के षणयंत्र में मौत की सजा सुना दी और अगले साल भुट्टो को गुपचुप तरीके से फांसी पर भी चढ़ा दिया गया।

हैरत है कि ब्रिटिश इंडिया के बाद भारत के साथ ही पाकिस्तान का भी जन्म हुआ लेकिन वह राजनीतिक अस्थिरता और आतंक का शिकार हमेशा रहा। 1951 में पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की हत्या से यह सिलसिला शुरू हुआ। वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। फिर ख्वाजा निजामुद्दीन, मुहम्मद अली बोगरा, चौधरी मुहम्मद अली, हुसैन शहीद सुहरावर्दी, इब्राहिम इस्माइल चूंद्रीगर, फिरोज खान नून, अयूब खान, नुरूल अमीन, जुल्फिकार अली भुट्टो, मुहम्मद खान जुनेजो, बेनजीर भुट्टो, गुलाम मुस्तफा जतोई, नवाज शरीफ, बालख शेर मजारी, नवाज शरीफ, मोइनुद्दीन अहमद कुरेशी, बेनजीर भुट्टो, मलिक मेराज खालिद, नवाज, जफरुल्ला खान जमाली, चौधरी शुजात हुसैन, शौकत अजीज, मुहम्मद मियां सूमरो, यूसफ रजा गिलानी, राजा परवेज अशरफ, मीर हजार खान खोसो, नवाज शरीफ और शाहिद खान अब्बासी भी किसी न किसी कारण से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पूरे समय काबिज नहीं रह सके।

ताजी खबर है कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को अयोग्य साबित करने के लिए इमरान सरकार तैयारी कर रही है। सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने आरोप लगाया है कि जरदारी ने पाकिस्तान चुनाव आयोग के समक्ष दायर हलफनामे में अमेरिका में अपने स्वामित्व वाले एक अपार्टमेंट का उल्लेख नहीं किया। डॉन समाचारपत्र ने उनके हवाले से कहा, “उन्हें (जरदारी) अनुच्छेद 62 एवं 63 के तहत संपत्ति घोषित करनी चाहिए थी जो उन्होंने नहीं किया। इसलिए वह सांसद बनने के योग्य नहीं थे।” जरदारी 2008 से 2013 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे। वह पाकिस्तान के 11वें राष्ट्रपति थे। जुलाई में पाकिस्तान की संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) ने जरदारी और उनकी बहन समेत 20 संदिग्धों को 35 अरब रुपये के धनशोधन मामले में भगोड़ा घोषित किया था।

अब देखना तो यह भी है कि क्या भविष्य में इतिहास अपने आप को दोहराएगा। सीता व्‍हाइट केस में प्रधानमंत्री इमरान खान के विरूद्ध पेशावर हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में कहा गया है कि इमरान ने चुनावों के समय जो नामांकन पेपर फाइल किए थे उनमें अपनी बेटी टीरियान व्‍हाइट का जिक्र नहीं किया था, जो उनके और सीता के रिश्‍ते के बाद जन्‍मी थी। सीता व्‍हाइट एक अमेरिकी नागरिक हैं और इमरान पर आरोप हैं कि उनके सीता के साथ रिश्‍ते थे लेकिन चुनावों के समय उन्‍होंने यह बात छिपाई। इमरान ने यह बात छुपाकर संविधान की धारा 62 और 63 का उल्‍लंघन किया, जिसके अंतर्गत उन्हें सार्वजनिक महत्व के पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है।

 

This Post Has One Comment

  1. Sudhir chandra srivastava

    बहुत अच्छा विवरण।पाकिस्तान के अस्थिर ब्यवस्था की शव परीक्छा

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