पहले प्रदूषण नियंत्रण, फिर स्मार्ट सिटी

रोटी, कपड़ा, मकान ये मानव की तीन मूलभूत आवश्यकताएं हैं। पहली दो आवश्यकताएं प्रकृति से बड़े पैमाने पर उपलब्ध होती हैं। तीसरी याने निवास, इसकी पूर्ति मानव को स्वत: करनी पड़ती है। इस तीसरी आवश्यकता की पूर्ति हेतु मानव द्वारा प्रकृति का दोहन प्रचुर मात्रा में सतत किया जा रहा है। इस पर यदि समय से नियंत्रण नहीं किया गया तो वैश्विकजलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले अनिष्ट परिणामों को रोकना, मानवी शक्ति के हाथ में नहीं होगा। विभक्त परिवार पद्धति तथा बढ़ते हुए शहरीकरण के कारण निवास का प्रश्न अधिकाधिक जटिल हो गया है। उपरोक्त घटनाओं का विचार कर २०१४ में चुन कर आई मोदी सरकार ने विश्व में चर्चित शहरीकरण की गति का अनुमान लगा कर तथा नागरी जीवनमान का स्तर उंचा करने के लिए ‘स्मार्ट सिटी’ की संकल्पना जनता के सामने रखी। इस संकल्प के अनुसार पूरे देश में १०० स्मार्ट सिटी बनाने का महत्वाकांक्षी निर्णय सरकार ने घोषित किया था। अब नई योजनानुसार, १०० नई स्मार्ट सिटी के बदले कुछ विद्यमान शहरों को ‘स्मार्ट’ बनाने का निर्णय लिया गया है।

जिस प्रकार व्यक्ति का आचरण उसके बाह्य रूप से समझ में आता है, उसी प्रकार शहर का सामाजिक वर्तन कैसा है यह शहर में उपलब्ध प्रमुख सुविधाओं से समझ में आता है। नागरिकों के दृष्टिकोण से, सुविधाएं जितनी कार्यक्षम, टिकाऊ तथा आरामदायी होंगी उस पर शहर का दर्जा निश्चित होता है। सर्वांगीण विकास महत्व का होने के बावजूद यदि वह पर्यावरण के मूल्य पर किया जाता है तो वह घातक हो सकता है। इस संबंध में वर्तमान मुंबई शहर का विकास यहां होने वाले कार्यों से समझने से का यह प्रयत्न है।

पर्यावरण के अनुकूल वैज्ञानिक रीति से शहर स्थापना का सूत्र कैसा हो इसे समझने के लिए ऐतिहासिक शहरों के अनेक प्रमाण आज भी हमारे पास उपलब्ध है। भारत के अधिकांश शहर (मुंबई, दिल्ली, चंडीगड इ.) प्रकृति की गोद में बसाए गए हैं। परंतु शहर का विस्तार जैसे जैसे होता जाता है, प्राकृतिक संपत्ति का र्हास होता जाता है। प्राकृतिक संपत्ति का विनाश याने शहर की अधोगति का प्रारंभ।

लगभग सभी वर्तमान शहरों में तेज गति से हो रहे विकास कार्यों व उनके दबाव के कारण मूलभूत सेवाएं समाप्त होती जा रही हैं। इन शहरों में एक ही समय अनेक बदलाव किए जा रहे हैं। इन बदलावों में जर्जर इमारतों का पुनर्निर्माण, तथा मूलभूत सुविधाओं की कमियों को दूर करने हेतु नई नई हाईटेक सुविधाओं का भार डाला जा रहा है। पुरानी इमारतों की पुनर्निर्माण योजना में, वर्तमान रास्तों का चौड़ा करने हेतु समप्रमाण में इमारतों की ऊंचांई व जनसंख्या का घनत्व नियंत्रित रहेगा ऐसे नियम बना कर यह प्रश्न हमेशा के लिए हल करना संभव है। लेकिन हाईटेक मोनो/मेट्रो के कारण यातायात का प्रश्न सुलझ सकता है यह मानसिकता शहर प्रशासन व सरकार में बलवती होती जा रही है। महानगरोंें के नागरिक अनैसर्गिक व कृत्रिम जीवन शैली की बलि चढते जा रहे हैं, उनकी रोग प्रतिकारक क्षमता कम होती जा रही है।

वर्तमान शहरों को स्मार्ट करने की प्रक्रिया में अनेक सक्षम सेवाओं की सहभागिता की आवश्यक्ता होती है। उसमें भी पर्यावरण से संबधित सेवाओं का हिस्सा ज्यादा होता है। पर्यावरण की ओर ध्यान न देने के कारण शहरों में प्रदूषण दिनोंदिन बढ़ रहा है। संतुलित व परिपूर्ण जीवन के लिए नीचे दी गई तीन बातों की आवश्यक्ता होती है।

ऊर्जा – बिजली का उत्पादन व उसकी पूर्ति, स्वयंपूर्ण व विश्वसनीय होना आवश्यक है।

पानी – प्रकृति से प्राप्त पानी की अखंड उपलब्धता अथवा पानी के स्रोत शहर के पास होने चाहिए।

यातायात – शहर के रास्तों की रचना ग्रिड प्रणाली पर आधारित होना बहुत महत्वपूर्ण है।वर्तमान शहर रचना में, व्यावसायिक व निवासी संकुलों की मिश्रित योजना के कारण नागरिकों को अनेक प्रकार के प्रदूषणों का सामना करना पड़ता है। इसमें प्रमुखत: जल, वायु, ध्वनि व भू-प्रदूषण का समावेश है।

जल प्रदूषण – कारखानों से निकले गंदे पानी, खुले नाले, पुरानी जंग लगी पाइप लाइनों इ. के कारण।

वायु प्रदूषण – वाहनों से निकलने वाला धुआं (कार्बन डाइ आक्साइड), ग्रीन गैस, कचरे को जलाने से निकलने वाला धुआं, हवा के धूली कण, रास्तों व फुटपाथों पर सड़ी हुई सब्जियों की तेज गंध इ.

भू-प्रदूषण – सार्वजनिक विकास कामों तथा इमारतों के पुनर्निर्माण के कारण निकलने वाला मलबा, रास्तों/फुटपाथों पर खाद्य सामग्री बेचने वालों द्वारा की गई गंदगी, रास्तों पर जमा कचरा, समुद्र किनारों की गंदगी इ.

ध्वनि प्रदूषण – कर्कश आवाज में बजाए जाने वाले उपकरणों के उपयोग के कारण ध्वनि प्रदूषण बढ़ता है। इससे अस्पताल के रोगियों को परेशानी होती है। साथ ही रास्ते पर चलने वाले वरिष्ठ लोगों एवं बच्चों को परेशापनी होने से दुर्घटना होने का भय रहता है।

मुंबई के तकलीफदेह यातायात का प्रश्न ५६ फ्लाय ओवर के बावजूद सुलझा नहीं है। वही मोनो/मेट्रो के काम की वजह से विकास कार्यों ने रास्तों पर कब्जा कर लिया है। फ्लाय ओवर के नीचे की खुली जगहें बिगड़ी गाड़ियों के पार्किंग स्थल बन गए हैं तो बाकी भाग धूल और कचरे से भरा है, खुले नाले हैं। ऐसे अनेक कारणों से मुंबई का स्वास्थ्य व सुंदरता बिगड़ रही है। शहर में निर्मित हो रहे ऊंचे ऊंचे टावर मूलभूत सेवाओं पर दबाव बढ़ा रहे हैं तो वही मेट्रो/मोनो रेल के लिए जारी खुदाई के कारण चौड़े रास्ते संकरे व संकरे रास्ते यातायात हेतु कम पड़ते जा रहे हैं। हाईटेक सेवाओं की आवश्यकता दूसरे दर्जे के शहरों को अधिक है। मुंबई सरीखे भीडभरे शहर में विकास कभी न रुकने वाला चक्र है। अब हमें निश्चित रूप से किस मार्ग का अवलंब करना है, इसे निश्चित करने का समय आ गया है। इस विषय में नागरिक जागृत क्यों नहीं हो रहे हैं इसका आश्चर्य लगता है।

क्या जीने योग्य प्रदूषण मुक्त शहर भारत में है? कुछ वर्ष पूर्ण उन्नीस-बीस के फरक से अनुकूल ऐसे बहुत से शहर थे। परंतु पर्यावरण का ध्यान न रखने से वे प्रदूषित होते जा रहे हैं। निश्चित नीति से विकास की योजना बना कर आरामदायी शहरी जीवन शैली को साध्य किया जा सकता है। एक ही समय में अनेक स्तरों पर होने वाले विकास कार्यों को रोक कर निवासी/व्यापारिक इमारतों के निर्माण की कालावधि निश्चित करके ही विकास की दिशा निश्चित करनी होगी। सब से पहले नागरी सुविधाएं एवं अधिक से अधिक स्वच्छता गृहों का निर्माण प्राथमिकता के आधार पर करना होगा अन्यथा शहर का स्वास्थ अधिक बिगड़ता जाएगा इसमें संदेह नहीं।

अंतरराष्ट्रीय रव्यातिप्राप्त शहर मुंबई ‘खुले में शौच से मुक्त’ हो गया ऐसी घोषणा करने का समय मुख्यमंत्री या शहर के प्रशासनिक अधिकारियों पर क्यों आए? अनेक वर्षों से लाखों यात्रियों को मुख्य व उपनगरीय रेल मार्गों के आसपास जमा कचरे के ढेर एवं उससे उत्पन्न प्रदूषण को सहन करना पड़ रहा है। इस सैकड़ों वर्गमीटर लंबे भूभाग पर का कचरा, स्वच्छ शहर अभियान के अंतर्गत क्यों नहीं साफ किया जाता? इस जगह का हरित पट्टे के रूप में रूपांतरण किया जाए तो मुंबई का अधिकांश भाग ‘प्रदूषण मुक्त व सुंदर’ करने का श्रेय, इसी मुंबई शहर के नागरिक रेल मंत्री, श्री सुरेश प्रभु को मिलेगा।

नागरिकों को नागरी सेवा देने वाला प्रशासन व नागरिक को जोड़ने वाली कड़ी याने राजनीतिक इच्छाशक्ति भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। वर्तमान शहर को स्मार्ट सिटी में बदलने हेतु नागरी सेवाओं के अतिरिक्त अन्य कई सेवा सुविधाओं को जुटाना पड़ेगा। साथ ही शहर के नागरिकों से चर्चा कर उनकी अड़चनों को समझ कर ठोस निर्णय लेना महत्वपूर्ण है तथा ये निर्णय सही है व कार्यान्वित करने योग्य है या नहीं यह भी जांचना महत्वपूर्ण है। भारतीय चुनाव आयोग भारत सरकार के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था है। उसी प्रकार राज्यों की सेवा सुविधाओं के लिए जगह का परिसीमन व आरक्षण इ. नीतियां निश्चित करने वाली एक नागरिक संस्था होनी चाहिए। स्थानीय प्रशासन उस संस्था के अंतर्गत होनी चाहिए। जिससे ये शहर राजनीतिक दबाव व हस्तक्षेप से दूर रह सकें।

प्रदूषण नियंत्रण को साध्य करने हेतु कुछ महत्वपूर्ण मार्गदर्शक बातें-

१. प्रत्येक पुराने व नवीन शहर तथा छोटी बड़ी बस्तियों का विकास पूर्व निश्चित होना चाहिए।

२. शहर के पास स्थित नदी, नाले, तालाब व पानी के अन्य स्रोंतों की जगह संरक्षित कर अत्यधिक रेती निकालने पर कड़े बंधन होने चाहिए।

३. शहर के पास के स्थित नैसर्गिक पहाड़ों या पहाड़ियों को निश्चित सीमा के बाहर जमीदोस्त करने पर प्रतिबंध हो।

४. अनेक वर्षों पूर्व लगाए गए पेड़ों की देखभाल व नए पेड़ों का रोपण हो।

५. शहर की सीमा में स्थित नमक की खेती, खुले मैदान एवं हरित पट्टे को हमेशा के लिए संरक्षित करने के कदम उठाए जाए।

६. रास्तों पर कचरा डालने व खाद्य पदार्थ खुले में व गंदी जगहों पर बेचने पर कानूनन बंदी हो।

लेखक के मत से शहर स्मार्ट नहीं होते वरन उस शहर के नागरिक स्मार्ट होते हैं। वही शहर स्मार्ट कहलाता है। सब को सुखी जीवन तथा नागरिकों का हित संवर्धन करने वाली शहर की प्रतिमा अपेक्षित है। मुंबई की जनसंख्या व प्रशासन के सेवा कर्मचारियों की संख्या भी व्यस्त है। स्मार्ट सिटी बनाने हेतु प्रदूषण मुक्त जीवन शैली ही निर्धारित करनी होगी। महाराष्ट्र के अन्य शहरों का हाल मुंबई जैसा तो नहीं होगा ऐसा होने का डर लगता है। प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी के माध्यम से कम से कम अवधि में भ्रष्टाचार नियंत्रण का मार्ग खोजा है, अब राज्य सरकार व नव निर्वाचित स्थानीय प्रशासन को ‘प्रदूषण मुक्त शहर’ का आवाहन स्वीकार कर जनता के प्रति अपना उत्तरदायित्व सिद्ध करना चाहिए।

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