हवाई जहाज भारत में निर्मित करना मेरा सपना – कैप्टन अमोल यादव

यह सुनकर आप चकित होंगे कि भारत में नागरी विमानों की निर्मिति ही नहीं होती। ये विमान विदेश से आयात किए जाते हैं। इसलिए धुन के पक्के कैप्टन अमोल यादव ने एक सपना देखा- देश में ही विमान बनवाने का। इस सपने का पीछा करते हुए उन्होंने जो संघर्ष यात्रा की है वह लाजवाब है। आइये, इस संघर्ष-यात्रा को जानें उनकी ही जुबानी-

आप द्वारा निर्मित विमान को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने किस प्रकार मदद की है?

यह पूर्णत: भारतीय संरचना का हवाई जहाज है। अब तक हमारे देश में हवाई जहाज बनाने की शुरुआत नहीं हुई है। मेरा सपना है कि भारत में हवाई जहाज हमारी संरचना के हिसाब से ही बनें। इसके लिए मैं विगत 19 वर्षों से प्रयासरत हूं। यहां की नौकरशाही (Bureaucracy) कई बार कुछ अच्छे प्रयास को भी पूरा नहीं करने देती। मुझे विदेशों से हवाई जहाज बनाने के भी कई प्रस्ताव आए परंतु मैं भारत में रह कर ही भारतीय संरचना के हवाई जहाज ही बनाना चाहता हूं। मेरे इस भाव तथा मेरे जहाज को मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी सराहा है।

क्या मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आपके इस प्रकल्प के लिए किस तरह की सहायता प्रदान की है?

हवाई जहाज बनाने के लिए जो तीन प्रमुख बातें आवश्यक हैं वे हैं धन, जगह और रजिस्ट्रेशन। पहले दो आवश्यकताएं किसी तरह से अगर पूरी हो भी जाए तो भी हमारी नौकरशाही (नागरी विमानन महानिदेशक) ने कुछ ऐसे नियम बना रखे हैं कि अगर हम भारत में जहाज बनाते हैं तो भी उसका रजिस्ट्रेशन भारतीय जहाज के रूप में नहीं होगा। यही मुख्य कारण है कि विमानन क्षेत्र के जो प्रतिभावान लोग हैं वे दूसरे देशों में जाकर हवाई जहाज बना रहे हैं। इन प्रतिभाशालियों का हमारे देश को कोई लाभ नहीं मिल रहा है।

आप पेशे से पायलट हैं। हवाई जहाज उड़ाते-उड़ाते उसे बनाने का विचार कैसे आ गया?

मेरे पिताजी ने मुझे बचपन में ही बताया था कि तुम्हें पायलट बनना है। मेरा भी सपना उन्हीं के साथ जुड़ गया। बचपन से मैं अलग-अलग हवाई जहाज देखता आ रहा हूं। मेरा सौभाग्य रहा कि पिताजी ने मुझे ट्रेनिंग के लिए अमेरिका भेजा। वहां हम 3-4 दोस्तों ने मिलकर एक जहाज खरीद लिया जिस पर हम ट्रेनिंग लेते थे। जहाज खरीदने का मकसद पैसे लुटाना नहीं, बचाना था क्योंकि हम सभी को ट्रेनिंग के लिए जितने पैसे देने थे, उतने में हमने हवाई जहाज खरीद लिया। उस जहाज की मरम्मत आदि के लिए भी पैसे बचाने के उद्देश्य से हम उस जहाज की मरम्मत भी स्वयं मिलकर ही किया करते थे। ट्रेनिंग के दौरान हमें जहाज उड़ाना सिखाया जाता था, साथ ही मरम्मत के दौरान मैंने उसके फेब्रिकेशन से भी सम्बंधित सभी बातें सीख लीं। मुझे ऐसा लगा कि यह बनाना बहुत मुश्किल नहीं है।

1995 में भारत लौट कर आने बाद मैंने सोचा कि जब अमेरिका में मेरा हवाई जहाज हो सकता है तो भारत में क्यों नहीं। अत: मैंने तलाश शुरू की। तब मुझे ध्यान आया कि स्वतंत्र भारत के 50 साल के बाद भी हमारे यहां हवाई जहाज विनिर्माण कंपनी नहीं है। अत: मुझे ऐसा लगा कि यदि देश में विमान विनिर्माण कम्पनी नहीं है और मुझे विमान निर्माण करना आता है तो यह मेरा दायित्व है कि मैं ऐसी विमान विनिर्माण कम्पनी शुरू करूं।

भारत सरकार से हवाई जहाज बनाने की मान्यता प्राप्त करने में आप सफल हो गए हैं। परंतु इस सफलता के संघर्ष की कहानी क्या है?

2011 में मैंने सर्वप्रथम रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन किया था। मेरे पिताजी स्वयं फॉर्म लेकर दिल्ली गए थे। उन्होंने मेरे पिताजी का लिहाज करते हुए फॉर्म तो ले लिए परंतु उसके बाद हमें गुमराह करते रहे। जब भी पिताजी जाते कल या दो दिन बाद आना कह कर हमें टाल दिया जाता था। उस समय मुंबई से दिल्ली जाना- आना और वहां रहना काफी मुश्किल हुआ करता था। 2013 में मैंने जब उस रजिस्ट्रेशन आवेदन का फिर से स्मरण-पत्र भेजा, तब उन्हें समझ में आ गया कि यह आदमी ऐसे पीछा नहीं छोड़ेगा। 2014 में जब सरकार बदली तो मुझे ऐसा लगा कि अब शायद नौकरशाही अपनी मनमर्जी नहीं चला सकेगी। परंतु मुझे बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि 2014 में नागरी विमानन महानिदेशक ने उन सारे नियम-कानूनों को खत्म कर दिया जिन पर अमल करते हुए मैं हवाई जहाज बना रहा था। इसका अर्थ यह था कि मैं भले ही जहाज बना लूं परंतु उसका रजिस्ट्रेशन नहीं कर पाऊंगा। अब उन्होंने मुझे लिखकर दे दिया है कि उनके पास मेरे जहाज को रजिस्टर करने का कोई प्रावधान नहीं है। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह हुआ कि भारत में कोई भी हवाई जहाज बन नहीं सकता और अगर बनाया गया तो रजिस्टर नहीं किया जाएगा। यह अत्यंत गहन और हमारी नौकरशाही की ताकत दिखाने वाला मुद्दा है।

इसके बाद मैंने आरटीआई के माध्यम से काफी जानकारी इकट्ठा की। फिर मैं इन सभी को लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस जी से मिला। उन्हें सारी बातें समझाईं। उन्होंने मेरी बातों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंचाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश के बाद मेरे हवाई जहाज का रजिस्ट्रेशन किया गया।

रजिस्ट्रेशन के लिए किए गए तेरह साल के संघर्ष से आपने क्या सीखा?

मेरे पिताजी ने मुझे एक बात सिखाई है कि जब तक आपका देखा हुआ सपना पूरा नहीं हो जाता तब तक आपको रुकना नहीं चाहिए। अपने आप पर विश्वास रखकर उस सपने को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। जिस दिन आप रुके उस दिन आप हारे।

इस तरह के स्वप्न को पूरा करने के लिए धन, समय, और संयम तीनों की आवश्यकता है, कभी निराशा भी होती है। आपने इनका तालमेल कैसे रखा?

सच कहूं तो न मेरे पास धन है, न समय। परंतु संयम अत्यधिक है। इसके कारण कई कामों में देर हो रही है। मैं अपना घर चलाने के लिए नौकरी कर ही रहा हूं। उससे मिलने वाले पैसों से कुछ बचाकर मैं अपने सपने के लिए अर्थात हवाई जहाज बनाने के लिए दे रहा हूं। साथ ही मेरे साथ काम करने वाले लोगों को वेतन भी दे रहा हूं। किसी बड़े हिज्जे को खरीदने के लिए मुझे अपने 3-4 महीने के वेतन से पैसे बचाने पड़ते हैं तभी मैं उसे खरीद पाता हूं। इन सभी अड़चनों के कारण मुझे काफी देरी हो रही है। साथ ही पहले भारतीय हवाई जहाज बनने में भी काफी देर हो रही है।

आपने जिस हवाई जहाज का प्रेजेंटेशन किया वह आपने अपनी छत पर ही तैयार किया था। उस जहाज के बारे में बताइये।

इतने बड़े प्रकल्प के लिए निश्चित ही बड़ी जगह की आवश्यकता है। जब मैंने यह कार्य प्रारंभ किया, तो इसके लिए स्थान की जरूरत थी। हमने मुंबई में एक शेड़ किराए पर लेने की बात सोची परंतु उसका किराया अत्यधिक था, और मुंबई से बाहर जाना मेरे लिए संभव नहीं था, क्योंकि मैं तब भी नौकरी कर ही रहा था। हालांकि मेरी टीम के लोग छत पर हवाई जहाज बनाना इस बात के लिए तैयार नहीं थे, अत: मैंने सोचा कि जब तक अपने बजट की नई जगह नहीं मिलती तब तक हम कुछ भाग यहां बनाएंगे। घर की छत पर काम शुरू करने के कारण अन्य खर्चों पर भी नियंत्रण हो गया और सबसे बड़ी बात यह थी कि नौकरी के बाद बचा हुआ सारा समय मैं हवाई जहाज निर्माण में लगा सका।

सरकार की ओर से आपको मान्यता दे दी गई है। अब आपकी आगे की योजना क्या है?

मूलत: मेरा उद्देश्य यह है कि मैं किसी तरह से देश के काम आ सकूं। इससे पैसा कमाने का मेरा उद्देश्य नहीं है। मुझे विश्वास है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री इसे आगे ले जाने के लक्ष्य मेरी मदद करेंगे तथा मेरे कौशल को देश में प्रयोग करने का अवसर देंगे।

इस प्रकल्प को शुरू करने के लिए इतने लंबे समय तक भागदौड़ करते समय क्या कभी विदेश में जाकर काम शुरू करने का विचार आपके मन में नहीं आया?

मुझे कई लोगों ने कहा कि आपका काम भारत में नहीं होगा, आपको विदेश जाकर ही अपना स्वप्न पूर्ण करना होगा। परंतु मुझे लगता है कि अगर मैंने विदेश में जाकर यह कार्य किया और मेरा कौशल देश के काम नहीं आया तो मेरा जीना व्यर्थ है। केवल हवाई जहाज बनाना मेरा उद्देश्य नहीं है। मैं चाहता हूं जो जहाज मैं बनाऊं वह मेरे देश का जहाज हो। अमेरिका से तो 30 दिन के अंदर ही मेरे पास रजिस्ट्रेशन के कागज आ गए थे, परंतु मैं वह करना नहीं चाहता था। नागरी विमानन मंत्रालय तथा डीजीसीए के साथ जब मैंने बैठकें कीं तो उन्होंने मुझे कहा कि आप इसे अमेरिका से रजिस्टर कीजिए; फिर हम यहां रजिस्ट्रेशन करेंगे। परंतु मैं इस प्रक्रिया के लिए तैयार नहीं था; क्योंकि फिर ये हवाई जहाज भी अन्य जहाजों की तरह अमेरिका में निर्मित ही कहलाएगा, भारत में नहीं। मेरे मन में यह विशुद्ध भावना है कि भारत हवाई जहाज निर्माण करने वाला देश बने।

आप युवा हैं, आप भारत के अन्य युवाओं के बारे में क्या विचार करते हैं?

आपके माध्यम से मैं भारत के युवाओं को एक संदेश देना चाहूंगा कि जब भी कभी हमारा काम नहीं होता है तो हम सरकार पर, राजनैतिक पर्टियों पर दोषारोपण करते हैं। परंतु मैं अपने अनुभव के आधार पर यह कहना चाहूंगा कि राजनेता काम करना चाहते हैं परंतु नौकरशाही उन्हें काम नहीं करने देती। मेरे अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि अगर आपका काम किसी भी स्तर पर अटक रहा हो तो आप पूरी ताकत के साथ उसके नौकरशाही प्रणाली पर सवाल करें। यही आज के युवा कर्तव्य है।

सन 2014 से देश में जो सत्ता परिवर्तन हुआ, उसके बाद क्या आपको लगता है कि देश अब सही दिशा में जा रहा है?

मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री ही वे व्यक्ति हैं जो सारे नौकरशाही अड़चनों को पार करके मेरे कौशल का देश के विकास के लिए सही जगह उपयोग कर सकते हैं। इतने सालों से चलने वाली इस सिस्टम को बदलना बहुत जरूरी है और मैं करता हूं कि वे बदलेंगे।

आपके द्वारा बनाए गए जहाज को हम आकाश में उड़ते हुए कब देख सकेंगे?

अभी रजिस्ट्रेशन तो मिल गया है परंतु ‘परमिट टू फ्लाय’ नहीं मिला है। अत: हम उसकी टेस्टिंग नहीं कर सकते। परंतु जल्द ही मैं मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस जी से इस संदर्भ में मिलने वाला हूं। और अगर सब समय पर पूरा हो गया तो हम जनवरी 2019 में इसे उड़ते हुए देख सकेंगे।

आपके द्वारा बनाए गए जहाज की संरचना किस प्रकार है और आप भारत की नागरिक सेवा के लिए उसका उपयोग किस प्रकार करना चाहेंगे?

हमारे देश भौगोलिक दृष्टि से बहुत बड़ा है। जब हम पर अंग्रजों का शासन था तब उन्होंने लगभग हर जिले में एयरपोर्ट बनाए थे। आज भी वे एयरपोर्ट हैं, उन पर सिविल काम होता है, पैसा खर्च होता है। परंतु वे आम लोगों के काम नहीं आ पाते। सन 1947 से पहले अंग्रजों ने एयरपोर्ट बनाए थे तो आजादी के इतने सालों बाद भी हम उस तरह का परिवहन क्यों शुरू नहीं कर सके। इसका उत्तर वही है कि इतने सालों में नौकरशाही द्वारा किसी भी तरह की अनुमति न देने के कारण हमारा सारा वैभव खत्म हो गया। आज मेरे पास अगर धुले में हवाई जहाज है तो क्या मैं उससे मुंबई आ सकता हूं? नहीं। उससे आने के लिए जिस बुनियादी ढांचे की जरूरत है वह है ही नहीं। अंग्रजों ने बहुत कम लागत से यह बनाया था और आज भी बहुत कम लागत से इसे दुबारा शुरू किया जा सकता है। जो बुनियादी ढांचा बना हुआ है उस पर अधिक पैसा खर्च न करके भी उस हवाई-पट्टी पर उतरनेे वाले हवाई जहाज बनाए जा सकते हैं। मैं भी इसी दिशा में प्रयत्नशील हूं।

मैं 19 सीटों का टीएसी 005 जहाज बना सकता हूं, जो काफी उपयोगी साबित हो सकता है। आज अगर हमें फंड मिल जाता है तो भारत के हर जिले में हम ये जहाज शुरू करने की क्षमता रखते हैं। आज भारत को विदेश से हवाई जहाज खरीदने में जितनी रकम लगती हैं उस रकम से एक प्रतिशत जादा रकम की लागत से 100 हवाई जहाज बनाने का कारखाना निर्माण करने की योजना मेरे पास है।

आपके इस संघर्ष में आपके परिवार ने आपका कैसे साथ दिया?

यह दौर मूलत: मानसिक संघर्ष का था। मेरे पिताजी, बड़े भाई और सारे परिवार ने मेरा भरपूर साथ दिया। मानसिक आधार सबसे ज्यादा आवश्यक था जो परिवार से मुझे मिला।

क्या कोई प्रसंग ऐसा भी जब नकारात्मकता आप पर हावी हो गई थी?

जी हां, जरूर। सन 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो उनके भाषण को सुनकर मुझे लगा कि अब तो नौकरशाही को सही काम करने ही होंगे। अब उनकी मनमर्जी नहीं चलेगी। परंतु उस समय डीजीसीए ने इससे सम्बंधित सारे नियम-कानून मिटा दिए थे, तब मैं बहुत निराश हो गया था। उसी निराशा में मैंने अपने बड़े भाई साहब को फोन करके बताया कि हमारी सारी मेहनत विफल हो गई है। तब उन्होंने और मेरे पिताजी ने मुझे ढांढस बंधाते हुए कहा कि हम नौकरशाही के खिलाफ लडेंगे। आरटीआई के माध्यम से जानकारियां लेंगे और अन्याय के विरुद्ध लड़ कर अपना सपना पूरा करेंगे।

आप हिंदी विवेक के माध्यम से आज के युवा को क्या संदेश देना चाहेंगे?

मैं सभी से यह कहना चाहूंगा कि सपना देखो और आत्मविश्वास के साथ अपने संस्कारों पर विश्वास रखते हुए उसे पूरा करने की हर संभव कोशिश करो।

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