मिसाल-ए- कलाकार – कादर खान

सन 1973 में राजेश खन्ना के साथ फ़िल्म ‘दाग’ से अपने फ़िल्मी करियर की शुरआत करने वाले फ़िल्मी दुनिया के हरदिल अज़ीज़ सितारे,  रहे श्री कादर खान का पिछले दिनों हुआ निधन भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री के एक अपूर्णनीय क्षति है। लगभग तीन सौ फ़िल्मों में काम करने वाले कादर खान एक दमदार अभिनेता होने के साथ- साथ जाने माने पुरस्कृत संवाद लेखक भी थे।

जीवन के प्रति उनका नज़रिया एक श्रेष्ठ दार्शनिक सा था। और यही कारण था कि उनके लिखे संवाद इतने संवेदनशील और शिक्षाप्रद भी थे। उनकी भाषा और शब्दों का चयन भी अपने दौर के अन्य लेखकों से भिन्न था। जिसके चलते भारतीय सिनेमा में वे एक अलग ही छवि के साथ  उजागर हुए और लंबे समय तक इंडस्ट्री पर छाए रहे।

रोज़ मर्रा की ज़िंदगी में प्रयुक्त होते शब्दों का इस्तेमाल जब उन्होंने फ़िल्मों की कहानियों में किया तो आम आदमी पात्रों के साथ स्वयं को और नज़दीकी से जोड़ पाया। उनका एक कैरेक्टर कलाकार और लेखक दोनों ही रूप में इंडस्ट्री में अपना एक अद्भुत दौर था। कादर खान के चाहने वालों की कतार बेहद लंबी थी।

हालांकि अभिनय और लेखन से उन्हें बड़ा लगाव था लेकिन शरुआत में कादर खान कभी भी फ़िल्मों में काम नहीं करना चाहते थे। और ऐसा इसलिए  था क्योंकि उस दौर में फ़िल्मों में काम करने वाले दिग्गज़ कलाकारों को भी बड़ी हेय दृष्टि से देखा जाता था। तो ज़ाहिर है कि कादर खान भी कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे उनका और उनके परिवार का नाम रोशन हो। और इसलिए नियमित रूप से नाटकों की पटकथा लेखन करते रहने के बावजूद भी वे फ़िल्मों से दूरी बनाए हुए थे।

ये बात शायद कम ही लोगों को ज्ञात होगी कि फ़िल्मी दुनिया में अपना करियर शुरू करने से पहले कादर खान सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर थे। लेकिन शायद उनका कला और साहित्य से इतना जुड़ाव था, अभिनय और लेखन के प्रति प्रेम इतना प्रगाढ़ था कि वे स्वयं को इस क्षेत्र से दूर नहीं रख पाए। और 1973 में आई सुपरस्टार राजेश खन्ना की फ़िल्म दाग़ में उन्होंने एक वकील की भूमिका अदा कर अपने अभिनय का लोहा मनवा लिया।   अभिनेता और लेखक होने के साथ ही वे एक बेहतरीन अनुवादक भी थे। अनुवादक के रूप में गालिब की गजलों का उनका अनुवाद साहित्य प्रे

 

मियो के बीच अब भी काफी लोकप्रिय है।

बहुत कम समय में ही उन्होंने अपने हुनर से एक लोकप्रिय छवि  बना ली। बहुत सी

हिट  फ़िल्में उन्होंने एक करैक्टर आर्टिस्ट और संवाद लेखक के रूप में फ़िल्म इंडस्ट्री को दीं। कुछ फ़िल्मों में  खलनायक के किरदार भी उन्होंने बखूबी निभाए। मगर जब बात कॉमेडी की आई तो उनके पंच और टाइमिंग का कोई सानी नहीं था। देखते ही देखते वे कॉमेडी के सरताज बन गए। ‘हिम्मतवाला’, बाप नम्बरी बेटा दस नम्बरी, मेरी आवाज सुनो, आज का दौर, हम आदि फिल्मों ने इन्हें एक स्थापत्य दिलवाया।

    अभिनेता  गोविंदा के साथ इनकी जोड़ी तो जैसे लोगों की पहली पसंद ही बन गई थी। इनकी फ़िल्में राजा बाबू, साजन चले ससुराल, कुली नंबर 1, छोटे सरकार, आंखें, आंटी नंबर 1, हीरो नंबर 1, राजाजी, दूल्हे राजा, अखियों से गोली मारे, हसीना मान जाएगी, आदि सुपर हिट रहींं। कुछ फिल्में भी इन्होंने निर्देशित कीं।

लेकिन अपने जीवन में इस ऊंचाई पर पहुंचने के लिए कादर खान ने कितना संघर्ष किया ये उनके इस सशक्त कथन से साफ पता चलता है कि, एक अच्छा लेखक वही बन सकता है जो अपने जीवन में बहुत ही मुश्किलों और दुखों से गुज़रा हो।

भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री में कादर खान का योगदान हर विधा में, चाहे अभिनय हो या लेखन, अतुलनीय रहा है। निश्चित ही उनका शानदार अभिनय और उनके दमदार संवाद भारतीय सिनेमा का प्रतिनिधितित्व करते रहेंगे।

 

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