खोया बचपन लौटाने की मुहिम सपनों से अपनों तक

बच्चों का खोया बचपन लौटाना, उनके माता-पिता से उनका पुनर्मिलन करवाना एक ईश्वरीय कार्य है। ‘माय होम इंडिया’ ने सन् २०२० के अंत तक देश के सभी बालगृहों में रह रहे करीब सवा लाख बच्चों को उनके घर पहुंचाने का संकल्प ‘माय होम इंडिया’ के संस्थापक सुनील देवधर ने लिया है।

दिल्ली में रहने वाला १० वर्षीय श्याम एक दिन अपनी मां से झगड़ा करके पुणे आ गया। पुणे से भटकते-भटकते वड़ोदरा, और फिर मुंबई जा पहुंचा। मुंबई में अकेला भटकते देख पुलिस ने ले जाकर उसे मानखुर्द के बालगृह में पहुंचा दिया। श्याम को बालगृह में मां और परिवार की बहुत याद आई लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसे मां के पास पहुंचाने वाला कोई भी नहीं था।

संयोग से माय होम इंडिया के एक कार्यकर्ता अरुण को बालगृह में आए इस नए बच्चे की जानकारी मिली। उन्होंनेे अपनी संस्था की दिल्ली शाखा को सूचित किया। दिल्ली के कार्यकर्ता कपिल ने बड़ी मुश्किल से श्याम का दिल्ली स्थित घर ढूंढ निकाला। सरकारी कार्यवाही पूरी कर जब श्याम को उसकी मां के पास पहुंचाया गया, तो मां-बेटे दोनों की आखों से अश्रुधारा बह निकली। न मा को बेटे से मिलने की उम्मीद रह गई थी, न ही बेटे को मां से। लेकिन एक सामाजिक संगठन की तत्परता ने एक बचपन को बर्बाद होने से बचा कर सुरक्षित उसके घर पहुंचा दिया।

‘माय होम इंडिया’ पूर्वोत्तर के राज्यों से शेष भारत में पढ़ाई एवं नौकरी के लिए आने वाले युवकों की मदद करने वाला एक राष्ट्रव्यापी संगठन है। यही कार्य करते हुए एक दिन उसके एक कार्यकर्ता को पता चला कि असम के चाय बागानों में काम करने वाले आदिवासी परिवारों की १२-१३ वर्ष की कई बच्चियों को मुंबई के एक बालगृह में रखा गया है। ये बच्चियां नवी मुंबई के एक कारखाने में बालमजदूरी करते हुए पकड़ी गई थीं। जिन्हें पुलिस ने ले जाकर बालगृह में पहुंचा दिया था। चूकि बच्चिया पूर्वोत्तर के राज्यों से थीं, इसलिए ‘माय होम इंडिया’ को जानने वाले एक व्यक्ति ने यह जानकारी ‘माय होम इंडिया’ के एक कार्यकर्ता को दी। यह जानकारी मिलने के बाद ‘माय होम इंडिया’ के कार्यकर्ता तमाम कानूनी कार्रवाइयां पूरी कर जब इन बच्चियों को छुड़ाने बालगृह पहुंचे,तो वहां रह रही दूसरी बच्चियों की आंखों में भी घर जाने का सपना दिखाई दिया। सपना ही क्यों, सवाल भी सामने आए। कुछ समझदार बच्चियों ने तो पूछ ही लिया कि भैया मुझे कब मेरे घर पहुंचाओगे?

जब यह सवाल कार्यकर्ताओं के जरिए ‘माय होम इंडिया के संस्थापक सुनील देवधर तक पहुंचा, तो स्थिति की गंभीरता का आकलन करते हुए उन्होंने इन बच्चों के बारे में भी सोचना शुरू कर दिया। इसी सोच का परिणाम है ‘माय होम इंडिया’ का सहयोगी संगठन ‘सपनों से अपनो तक’। जिसने घर से किसी भी परिस्थितिवश दूर जा चुके बच्चों को बालगृहों से छुड़ा कर उनके घरों तक पहुंचाने का बीड़ा उठा रखा है। इस लक्ष्य के तहत ‘सपनों से अपनों तक’ के कार्यकर्ता सितंबर २०१३ से अब तक १२०० से अधिक बच्चों को मुंबई, दिल्ली सहित देश के विभिन्न बालगृहों से मुक्त करवा कर उनके घरों तक पहुंचा चुके हैं। आसान नहीं होता यह काम। कभी घर से नाराज होकर, तो कभी ऊंचे सपने लेकर, कभी अपहृत होकर, तो कभी परिजनों से भीड़भाड़ में बिछुड़ कर महानगरों में पहुंच गए छोटे बच्चों को कई बार घर का पता तो दूर, अपने माता-पिता का नाम तक याद नहीं होता। ऐसी स्थिति में इन बच्चों के घर का पता लगाना संगठन के कार्यकर्ताओं के लिए एक मुश्किल लक्ष्य होता है। इसके बावजूद यह संगठन न सिर्फ भारत के विभिन्न राज्यों से भाग कर दिल्ली-पहुंचे बच्चों को, बल्कि बांग्लादेश और नेपाल तक के बच्चों को उनके परिजनों से मिलाने का काम कर चुका है। पिछले वर्ष ही बांग्लादेश के चार बच्चों एवं नेपाल के २ बच्चों को उनके परिजनों के पास वापस भेजने का काम किया जा चुका है।

अपने घरों से भागे, बिछुड़े या किसी और कारण से लावारिस पाए गए बच्चों को रखने के लिए देश में करीब ६०० बालगृह चल रहे हैं। जिनमें सवा लाख से अधिक बच्चे रह रहे हैं। सरकारी आंक़ड़ों के अनुसार भारत में हर साल घरों से करीब एक लाख बच्चे भाग जाते हैं। इनमें कुछ तो कुछ दिनों बाद वापस घरों को लौट जाते हैं, लेकिन जो नहीं लौट पाते वे या तो गलत हाथों में पड़ जाते हैं, या फिर पुलिस उन्हें निकट के बालगृहों में भेज देती है। इनमें से ज्यादातर बालगृह गैरसरकारी संस्थाओं द्वारा सरकारी अनुदान से चलाए जाते हैं। इन बालगृहों से अपेक्षा होती है कि वे बच्चों को पौष्टिक भोजन, कपड़े, समुचित शिक्षा, संस्कार, चिकित्सा तथा मनोरंजन जैसी बुनियादी सुविधाओं के साथ घर जैसा सुरक्षित माहौल प्रदान करेंगे। लेकिन ज्यादातर बालगृह इन अपेक्षाओं पर खरे उतरते नहीं दिखाई देते। कई बालगृह तो पर्याप्त अनुदान मिलने के बावजूद बच्चों की स्थिति दयनीय बनाए रखते हैं, ताकि उनकी स्थिति देख कर लोग बालगृहों को और मदद करें। बालगृह अपने यहां रह रहे बच्चों के परिवारों की खोजबीन इस डर से भी नहीं करते, क्योंकि उनके यहां बच्चों की संख्या कम होते ही अनुदान भी कम हो जाएगा।

बालगृहों में रह रहे बच्चों को अनेक अप्रिय स्थितियों का भी सामना करना पड़ता है। जिसके कारण वे आपराधिक प्रवृत्तियों, नशाखोरी जैसी बुरी आदतों के शिकार हो जाते हैं। उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत बिगड़ जाती है। ऐसे बच्चों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए ‘सपनों से अपनों तक’ के कार्यकर्ताओं को जितनी मेहनत बच्चों का घर ढूंढने में करनी पड़ती है, लगभग उतनी ही मेहनत बालगृहों की लंबी कानूनी कार्यवाहियां पूरी करने में भी करनी पड़ती है। कई बार तो बालगृहों से मुक्त कराए गए एक ही राज्य या जिले के बच्चों को उनके घर पहुंचाने के लिए संगठन को ट्रेन की स्पेशल बोगियां बुक करानी पड़ती हैं और पुलिस की सहायता भी लेनी पड़ती है। ‘माय होम इंडिया’ एवं ‘सपनों से अपनों तक’ के संस्थापक सुनील देवधर कहते हैं कि इन मुश्किलों के बावजूद उनका संगठन बच्चों को उनके माता-तक पहुंचाना चाहता है। देवधर के अनुसार घरों से भागने वाले ज्यादातर बच्चे चकाचौंध भरी दुनिया के सपने देख कर घर छोड़ देते हैं। लेकिन इन सपनों को पूरा कर पाना आसान नहीं होता। बच्चों का खोया बचपन लौटाना, उनके माता-पिता से उनका पुनर्मिलन करवाना एक ईश्वरीय कार्य है। ‘माय होम इंडिया’ ने सन् २०२० के अंत तक देश के सभी बालगृहों में रह रहे करीब सवा लाख बच्चों को उनके घर पहुंचाने का संकल्प लिया है।

यह संकल्प पूरा होने तक ‘माय होम इंडिया’ के कार्यकर्ता एक तरफ तो विभिन्न बालगृहों में रह रहे बच्चों के घरों का पता लगाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं, बल्कि बालगृहों में जाकर वहां के बच्चों के साथ पारिवारिक वातावारण बनाने की भी कोशिश करते हैं। संगठन के कार्यकर्ता अपना जन्मदिन इन बच्चों के साथ ही मनाते हैं। यही नहीं बालगृहों में रह रहे बच्चों का जन्मदिन भी मनाया जाता है। जिन बच्चों को उनका जन्मदिन याद नहीं रहता, उनका जन्मदिन उनकी प्रिय किसी मशहूर शख्सियत के दिन मान कर मना लिया जाता है। जैसे किसी बच्चे को सचिन तेंडुलकर या विराट कोहली पसंद हैं,तो तेंडुलकर या कोहली का जन्मदिन ही उस बच्चे का जन्मदिन मान लिया जाता है। संगठन के कार्यकर्ता होली, दीवाली और रक्षाबंधन जैसे त्यौहार भी बालगृहों में ही जाकर मनाते हैं। बालगृहों में बच्चों के लिए पौधारोपण, खेलकूद व चित्रकला स्पर्धा, पुस्तक वितरण जैसे रचनात्मक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। इन आयोजनों में संगठन का साथ देने के लिए बहुत से लोग अब व्यक्तिगत या संस्थागत रूप से आगे आने लगे हैं, क्योंकि बच्चों का खोया बचपन लौटाना ईश्वरीय कार्य जो है।

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