तेरे बज्म में आनेसे ऐ साकी….

‘उर्दू गजल’ के चाहनेवाले दिन-ब-दिन बढते ही रहे हैं; और यह बडी खुशी की बात है । इस में पुरानी फिल्मों के संगीत का बडा योगदान रहा है। संगीतकार मदनमोहन, नौशाद, सी. रामचंद्र जैसे कई महान संगीतकारों ने इस विषय में अपनी छाप छोडी है । जगजितसिंग, अनुप जलोटा, तलत अजीज जैसे कलाकारों को तो हम हमेशा बार बार सुनते ही हैं। कुछ और नाम इस फैहरिस्त में जोडने होंगे। मेहदी हसन, गुलाम अली का हम पे यह ऋण रहेगा कि इस विधा से  उन्हों ने न सिर्फ परिचित ही कराया, बल्कि  यहां के अनेक गायकों को उन से प्रेरणा मिली हैं। सच है कि  कला या कलाकारों को किसी किस्म की सीमाएं नहीं रोक सकतीं । आबिदा परवीन, सलमा आगा, नाहीदा अख्तर इ. फनकाराँ को सुनने का आनंद हम से कौन छीन सकता है?

जब यह खयाल आया, कि गजल की इस विधा को अपनानेवाली या उसे आगे ले जानेवाली गायिकाओं के नाम कौन कौन से हैं? तब पहला नाम जो याद आया वह था ‘बेगम अख्तर’ जिनको मल्लिका-ए-गजल का खिताब किसी संस्था या सरकार ने नहीं दिया थाः वह तो उनके सुनने वालों ने उन्हें बडे प्यार से अता किया था ! उनके नाम से शकील की एक गजल तो हर किसी को याद होगी –

https://www.youtube.com/watch?v=-yx6tT9lor4

                  ऐ मुहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया

                  जाने क्यूं आज तेरे नामपे रोना आया…  

गजल का जिक्र हो तो, हमारी भारतरत्न लताजी, तथा आशाजी को  हम कैसे भूल सकते हैं? हमारा भाव-विश्व ही उनके सुरोंसे जुडा हुआ है । लताजी की वो गजल-

            हाले-दिल यूं उन्हें सुनाया गया

            आंख ही को जुबाँ बनाया गया.. (जहाँआरा )

या अदालत फिल्म से

                  यूं हसरतों के दाग मुहब्बत में धो लिए

                  खुद दिल से दिल की बात कही और रो लिए…

-जैसी गजलें भुलाएं नही भूलतीं ।

आशा जी की गायी ‘उमरावजान’ की गजलें भी हमारे दिल के बिल्कुल पास रहीं हैं । गये कलकी नजदिकी जमाने में चित्रा सिंग को भी हमने सुना, प्यार दिया ।

            दर्द बढकर फुगाँ न हो जाए

            ये जमीं आसमाँ न हो जाए….

                  दिल में डूबा हुआ जो नश्तर है

                  मेरे दिल की जुबाँ न हो जाए….

                        दिल को ले लीजिए जो लेना है

                        फिर ये सौदा गिराँ न हो जाए…

                              आह कीजे मगर लतीफतरीन

                              लबतक आकर धुआं न हो जाए…

चित्राजी की गायी यह गजल आज भी हमारे दिल में ताजा है। दुख यह है, कि उनके साथ एक ऐसी दुर्गटना घटी कि उन्होने गाना ही छोड दिया । उन्हें जो सदमा लगा वह उन्होंने इस तरह सह लिया और जब्त भी किया ; उनकी आह इतनी ‘लतीफतरीन’ निकली कि लोगोंतक न पहुंची । लेकिन उस आह से उनके सुर भी अंदर ही अंदर दब के रह गए ।

चलिए, ये तो सब कलकी बातें हुईं । मन में विचार आता है, कि क्या आज कोई नयी गायिकाएं गजल को ले के उभर रहीं हैं या हमें सिर्फ पुराने खजाने को ही खोलते रहना होगा?

खुशी की बात है, कि आज भी गायिकाओं को गजल लुभा रही है और नये नये नाम सामने आ रहे हैं। भले, वे पुरानी गजलें गाना ही जियादा पसंद करतीं हों; लेकिन उनका अपना एक अलग अंदाज जरूर है ।

हाल ही में मैं ने एक नयी गायिका को सुना । मेरेलिए नयी; हो सकता है कि आप ने बहुत पहले उन्हें सुना होगा । जयन्ती नाडिग । उनकी आवाज में मैं ने जो गजल सुनी वह जगजीतसींग जी ने सुर में बांधी थी; लताजी के सुर में एक अल्बम में भी आई है ।

                  दर्द से मेरा दामन भरदे या अल्ला

                  फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्ला ….

            मैं ने तुझसे चाँद सितारे कब माँगे?

            रौशन दिल बेदार नजर दे या अल्ला…

                  सूरज सी इक चीज तो हम सब देख चुके

                  सचमुच की अब एक सहर दे या अल्ला…..

            या धरती के जख्मोंपर मरहम रख दे

            या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्ला…

पाकिस्तान के शायर कतील शिफाई  ने लिखी हुई यह गजल लता जी ने पहले भी गायी है । फिर भी जयन्ती जी यह गजल गाने में इतनी सफल हुईं है कि पलभर हम भूल जाते हैं कि यह लता नहीं है ! जयन्तीजी की भावभीनी आवाज हमारे दिल को छू लेती है । गजल का आशय तो सुंदर है ही; पर गानेवाले की आवाज आशय को सामइनके दिलोंतक पहुंचाती है। आवाज प्रभावपूर्ण माध्यम होना जरूरी होता है। और जयन्ती जी किसी भी तरह लताजी से कम नहीं ठहरी्ं।

पूजा गायतोंडे; यह नाम है उस मराठी लडकी का जिसका चर्चा आजकल गजलगायन  क्षेत्र में हो रहा है ।  राजकुमार रिज्वी, इख्तियार भट, विकास भाटवडेकर; ये वे नाम हैं जिनसे पूजा ने तालीम ली है या अभी भी ले रही है । पूजा ने ऐसी कुछ गजलें गायीं हैं जो, गजलों के बादशाह मेहदी हसन साहब ने बडी लोकप्रिय की हैं ।

            रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

            आ फिर से मुझे छोड के जाने के लिए आ….

-अब हम दोनों में पहले जैसा रिश्ता नहीं रहा । उल्टा, अब अदावत या नाराजगी का रिश्ता हो गया है। तू जब आएगा तो, मेरा दिल दुखाने का ही इरादा लेकर आएगा । फिर भी आ जा । क्यों कि मुझे छोड के (या ने दुख दे के) जाने का मजा तो तुझे तभी मिलेगा न, जब तू  पहले मुझे मिलने आएगा !

इस गजल का हासिले-गजल शेर यह है-

            कुछ तो मेरे पिंदारे-महब्बत का भरम रख

            तू भी तो कभी मुझ को  मनाने के लिए आ….

-मुहब्बत के बारेमें मेरी जो कल्पना है, मुझे मेरी मुहब्बत पर जो गर्व है; वह तेरी नजर में झूट ही सही लेकिन मेरी दृष्टी से वह एक सच है । शायद ये मेरा भरम ही क्यूं न हो ! वह मेरा भरम बना रहे यही मैं चाहती हूं । तू  मुझसे  प्यार करता है यह भरम रखने के लिए तो तुझे आना ही होगा ।  और भी एक वजह है,  जिस से तुझे आना चाहिए-

            किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम

            तू मुझ से खफा है तो जमानेके लिए आ….

-मुझे अकेला देखकर लोग पूछते हैं कि इस का कारन क्या है ? अब तुम दोनों में वो मुहब्बत नहीं रही? इन सवालों के जवाब तो मेरे पास नहीं है। लोगों के मुंह बंद करने के लिए तो तुझे आना ही होगा। तू मुझ से नाराज है तो यही सही! लेकिन जमाने को दिखानेके लिए तो आ !

हम सब ने यह गजल बारबार सुनी है । कभी मेहदी साहब से, कभी रूना लैला से या दत्तप्रसाद रानडेजी से। पूजा गायतोंडे  की आवाज में भी यह गजल उतनी ही अच्छी लगती है। बहुतों ने गायी हुई गजल गा कर दाद लेना कठिन काम होता है, जो करके पूजा ने खुद को साबित कर दिया है; ऐसी मेरी अपनी राय है। मेरी राय तब कायम हुई जब मैं ने पूजा से हीर सुनी । ‘

      ‘तेरे बज्म में आनेसे ऐ साकी, चमके मयकदा जामे-शराब चमके

       जर्रा जर्रा नजर आए माहपारा, गोशा गोशा मिस्ले आफताब चमके ...

-जब साकी  (हरिवंशराय बच्चन जिसे मधुबाला कहते थे) मयखानेमें आ जाती है तो सब मयख्वार उल्हसित हो जाते हैं। क्यों कि वह सबको शराब पिलाता है । उसके आनेसे वहाँ का कण कण चमक उठता है, जैसे चाँद  टूटकर उसका चूरा इधरउधर बिखर गया हो ।और मधुशाला का कोना कोना भी इतना रौशन हो गया है कि हर कोने में जैसे सूरज उगा हो ! ये सब साकी के आने से हुआ !

शराब अच्छी या बुरी यह मुद्दआ न उठाते हुए हमें उस चीज का इसलिए मन से स्वीकार करना चाहिए कि इस चीज ने शायरी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह अच्छी शायरी का विषय बनी है।

छाया गांगुली ने ‘गमन’ फिल्म के लिए एक अच्छी गजल गायी थी। उसपर भी एक नजर डालें ।

            आपकी याद आती रही रातभर

            चश्मे-नम मुस्कराती रही रातभर…

                  रातभर दर्द की शम्मा जलती रही

                  गम की लौ थरथराती रही रातभर…

            यादके चाँद दिल में उतरते रहे

            चाँदनी जगमगाती रही रातभर….

इस गजल को संगीत में ढाला था जयदेव जी ने । पर्देपर स्मिता पाटील का अभिनय और ‘बॅक-ग्राउंड’ में यह गजल, ऐसा सीन गमन में था।

गजल गानेवाली  गायिकाओं की संख्या शायद कम है; लेकिन गुणों में कोई कमी नहीं ।

इस क्षेत्र में भी उन्हों ने खुद को साबित किया हैं, यह बडी गर्व की बात है ।

मशहूर क्लासिकल सिंगर अलका देव-मारुलकर से मैं ने गालिब की गजल सुनी थी, वह मैं आजतक नहीं भूल पायी

                  दहर में नक्शे-वफा वजह तसल्ली न हुआ

                  है ये वो लफ्ज जो शर्मिंदा-ए-मानी न हुआ…

इस जमाने में वफा कहां बाकी है? इन्सां का बर्ताव तो  ऐसे होता जा रहा है कि ‘वफा’ शब्द को भी शर्मिंदा होना पड जाएगा ! लेकिन अभी भी ऐसा नीं हुआ है; अचरज की बात है, न?

पूने की शशिकला शिरगोपीकर भी गजल-फनकाराँ है, जिन्हें  बेगम अख्तर से तालीम लेने का मौका मिला था । उनका गाया एक शेर देखिये

             दिल लगानेकी किसी से वो सजा पायी कि बस्

            ऐसी ऐसी इश्क में इस दिल पे बन आयी कि बस् ….

गजल का यह सफर ऐसा ही चलता रहेगा, इस में कोई शक नहीं ।

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