परिवारवाद बनाम राष्ट्रवाद

भारत में पूरे साल भर चुनाव का उत्सव कहीं ना कहीं होते ही रहता है। लेकिन, आम चुनाव को तो महाउत्सव के रूप में देखना होगा। इस महाउत्सव के नगाड़े अब बजने लगे हैं। लोकसभा का यह चुनाव भाजपा और कांग्रेस के साथ अन्य दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। 55 साल भारत में सत्ता की राजनीति करने वाली कांग्रेस पार्टी अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। जो कांग्रेस कभी आम चुनाव में 400 सीट पाकर देश पर राज करती थी, वही कांग्रेस अब जैसे-तैसे 40 सीट पर आकर सिमटी है। कांग्रेस को सत्ता का गलत उपयोग करने की सजा मतदाताओं ने दी है। जो भारतीय जनता पार्टी कभी 2 सीट पर थी वह आज बहुमत से भारत की सत्ता चला रही है। इस कारण कांग्रेस तिलमिलाई हुई है।

मोदी सरकार ने बीते लगभग पांच वर्षों में एक ही परिवार के प्रभाव को, जातिगत और सांप्रदायिक राजनीति को समाप्त करने का प्रयास किया है। देश को भ्रष्टाचार से छुटकारा दिलाया। भारतीय जनता पार्टी और मोदी सरकार देश को तीव्र गति से विकास के रास्ते पर ला रही है। 2020 के बाद देश चीन और अमेरिका की अर्थव्यवस्था से आगे बढ़ने के लिए तैयार है। कांग्रेस ने पिछले 55 साल के अपने राज में जो नहीं किया, उसे 55 महीने में मोदी सरकार सार्थक करने का प्रयास कर रही है। अत्यंत पारदर्शक, राष्ट्रहित को वरीयता, भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई, तीव्र गति से विकास की पेशकश के कारण देश के नागरिकों में मोदी सरकार की प्रतिमा उज्ज्वल बनी हुई है।

ऐसे में 55 वर्ष विरुद्ध 55 महीने का संघर्ष खड़ा हुआ है। आम चुनाव में कांग्रेस और मोदी विरोधी यह प्रचार भभकाएंगे कि मोदी सरकार किस प्रकार असफल रही है, उसने कैसे देश का नुकसान किया है, नोटबंदी, जीएसटी का देश पर किस प्रकार से बुरा असर पड़ा है इत्यादि। राहुल गांधी गत कुछ महीनों से राफेल विमान को उड़ाने का खेल खेल रहे हैं। देश की वायुसेना को दुर्बल करने का प्रयास कांग्रेस कर रही है। 55 साल देश की सत्ता का  उपभोग लेने वाली कांग्रेस देश की न्याय व्यवस्था को धमकाने का प्रयास कर रही है। महाभियोग की धमकी दे रही है। भारत के सेना प्रमुख को ‘गुंडा’ संबोधित करती है। जब संपूर्ण देश बेहतर बजट की चर्चा कर रहा हो तब कांग्रेस ईवीएम पर चर्चा करती है। इन सब बातों के मद्देनजर कांग्रेस की बौखलाहट समझी जा सकता है।

आगामी आम चुनाव में कांग्रेस की स्थिति ‘करो या मरो’ जैसी है। इसी कारण उसे प्रियंका गांधी या ट्रंप कार्ड बाहर निकालना पड़ा। कांग्रेसी नेताओं की गत 70 सालों में एक धारणा बनी हुई है कि नेहरू-गांधी परिवार का नेतृत्व होने पर उन्हें अपना कर्तृत्व दिखाने की जरूरत नहीं होती। याने यह कि गांधी परिवार है इसी कारण कांग्रेस जीवित है। प्रियंका गांधी का आगमन इसी बात को स्पष्ट करता है। वैसे भी पिछले 12 सालों से कांग्रेसी ईश्वर से एक ही दुआ मांग रहे थे कि किसी तरह प्रियंका राजनीति के अखाड़े में आ जाए। लेकिन जनता किसी एकाध व्यक्ति के आने से देश को फिर परिवारवाद और भ्रष्टाचार की गहरी खाई में ढकेलने के लिए   कदापि तैयार नहीं है। प्रियंका सक्रिय राजनीति से बाहर थीं तो बंद मुट्ठी की तरह थी। आज देश की जनता उस मुट्ठी को खोल कर कांग्रेस मुक्त भारत का नारा बुलंद करेगी। कांग्रेस मुक्त भारत का अर्थ किसी राजनीतिक दल से मुक्ति पाना नहीं है। कांग्रेस मुक्त भारत का अर्थ है, परिवारवाद, भ्रष्टाचार मुक्त भारत। यह लड़ाई तो परिवारवाद बनाम राष्ट्रवाद की है।

जिस तरह कांग्रेस में एक प्रकार की बौखलाहट दिखाई दे रही है, उसी तरह मोदी विरोधी राजनीतिक दलों में भी तिलमिलाहट है और वे संगठित होने का प्रयास कर रहे हैं। इसे राजनीति में अपने अस्तित्व को बरकरार रखने के एक अंतिम प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है। कोलकाता के परेड ग्राउंड पर विपक्षी दलों के जमावड़े ने देश में भविष्य की सरकार बनाने का विचार तो व्यक्त किया, परंतु उसमें सिद्धांतिक व वैचारिक पृष्ठभूमि का पूर्णतः अभाव था। इस मंच पर 22 दलों के नेताओं ने एक दूसरे के हाथ-हाथ में डाले मोदी सरकार के खिलाफ हुंकार भरी, लेकिन उनमें आपस मे अंतर्विरोध भी कुछ कम नहीं है। 16 वें लोकसभा समापन के दौरान धुर विरोधी होने के बावजूद भाजपा के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के कार्यो से प्रभावित होकर उनकी तारीफ की और मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनने की इच्छा मुलायम सिंह यादव ने जाहिर की। भारतीय राजनीति से कोई भी आए, लेकिन गांधी परिवार का कोई भी व्यक्ति प्रधानमंत्री पद पर विराजित न होने पाए। कांग्रेस के वरदहस्त नाममात्र हेतु मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्री की पुनरावृत्ति देश में फिर न हो,यही संदेश देने का प्रयास मुलायम यादव ने किया है। राजनीतिक पंडितों के अनुसार लोकतंत्र को कमजोर करने वाले विपक्षी नेताओ के षड्यंत्र का करारा जवाब मुलायम सिंह यादव ने दिया है और लोकतंत्र को मजबूती प्रदान की है। ऐसे माहौल में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व और कार्यकर्ताओं को कांग्रेस की किस्मत का फैसला होने के अंतिम क्षण तक अत्यंत संतुलित स्थिति में डटे रहना होगा। कांग्रेस का बढ़ा हुआ विश्वास और विपक्ष की एकता इन दोनों को एकसाथ चुनौती देना भाजपा के लिए एक चुनौती है।

55 साल में कांग्रेस के भ्रष्टाचार और परिवारवाद के कारण देश का हुआ नुकसान देश की जनता महसूस कर रही है। सुनहरा अर्थसंकल्प, साढ़े चार वर्ष में हुआ विकास कार्य, हिंदू संस्कृति, परंपरा इन सारे मुद्दों के साथ कश्मीर के पुलवामा हमले जैसे नापाक हरकतों को निपटने के लिए मोदी जैसा सामर्थ्यशील नेता ही देश का प्रधानमंत्री होना आवश्यक है। देश की समझदार जनता कांग्रेस और मोदी विरोधी खेमे को निष्प्रभ करने के लिए मददगार हो सकती है। मैदाने-घुड़दौड़ अब नजदीक ही है। अर्थात, कौन कितने पानी में है, यह बात आने वाला समय ही बताएगा।

Leave a Reply