संघर्ष से सफलता तक महिलाओं का सफर

हिंदुस्तान मेलों और त्योहारों का देश कहा जाता है। विश्व परिपेक्ष्य में बदलते समय के अनुरूप हिंदुस्तान भी दिवसों का देश बनता जा रहा है। हिंदी दिवस, फादर्स डे, मदर्स डे, वैलेंटाइन डे और महिला दिवस इसी पंकि में आ चुका है। प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को महिला दिवस मनाने की प्रथा प्रचलन में है। सम्पूर्ण विश्व की महिलाएं देश, जाति, भाषा, धर्म, सांस्कृतिक, राजनैतिक विभिन्नताओं और भेदभाव से ऊपर उठकर महिला दिवस को मनाती हैं। इसके इतिहास को याद किया जाए तो सर्वप्रथम समानाधिकार की इस लड़ाई को आम महिलाओं द्वारा शुरू किया गया था। प्राचीन ग्रीस में महिलाओं द्वारा इस आन्दोलन की शुरुआत की गई थी जिसका उद्देश्य था युद्ध के बाद और दौरान महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों का विरोध करना। इसके पश्चात् फारसी महिलाओं तथा सन 1909 में अमेरिका में पहली बार 28 फरवरी को महिला दिवस मनाया गया। कोपेनहेगन में महिला दिवस की स्थापना के साथ सन् 1911में आस्ट्रिया, जर्मनी, स्विटजरलैंड की लाखों महिलाओं द्वारा रैली निकालकर मताधिकार एवं सरकारी कार्यकारिणी में जगह तथा नौकरी में होने वाले भेदभाव को लिंग आधार पर समाप्त करना जैसे अनेक मुद्दों को सामने लाया गया।
  आज सभी विकसित एवं विकासशील देशों में महिला दिवस मनाया जाता है। इस दिन महिलाओं को आर्थिक सामाजिक,राजनीतिक एवं सांस्कृतिक योगदान के लिए तथा उनकी क्षमताओं के अनुसार किये जाने वाले श्रेष्ठतम प्रदर्शनों व कार्यों के लिए सम्मानित किया जाता है।
  भारत में भी महिला दिवस बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। देश भर में महिलाओं को समाज में उनके विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत व सम्मानित करने के लिए अनेक समारोह आयोजित किये जाते हैं। महिलाओं के उत्थान के लिए काम करने वाले अनेक संस्थान व समाज सेवी संस्थाएँ भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करती हैं। विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के अद्मय साहस और उनके द्वारा अर्जित उपलब्धियो के लिए सम्मानित किया जाता है।यद्यपि देश में महिलाओं को अग्रिम पंक्ति में रखने हेतु सभी स्तरों पर बहुत काम किया जा रहा है फिर भी और अधिक काम करने की आवश्यकता है। आज भले ही महिला किसी क्षेत्र में पिछड़ी नहीं है फिर चाहे वह सेना, वायु सेना, पुलिस,  इंजीनियरिंग,डाक्टर, शिक्षा,  उच्चतम प्रशासनिक सेवा व डाक्टरी पेशा ही क्यूँ नहीं हो हर जगह अपनी निष्ठा और योग्यता को सही साबित करती है। उद्यमी महिलाओं की भी कमी नहीं है चाहे फिर वह फैशन, बालीवुड, हालीवुड या कोई अन्य श्रेत्र हो सब जगह अपनी अमिट छाप छोड़ने में सक्षम है।
 आर्थिक रूप से सशक्त महिला का आत्मविश्वास अलग से निखर कर आता है। पैसा कमाना केवल पुरुषों का अधिकार श्रेत्र नहीं है। पैसे से केवल खुशियां ही नहीं और भी बहुत कुछ आता है। वास्तविक परिवर्तन तो आम लोगों के जीवन में आना चाहिए और यह तभी संभव है जब उनकी सोच में बदलाव लाया जा सके। इस सोच का शुभारंभ भी सर्व प्रथम परिवार से होना चाहिए जिस दिन परिवारों में लड़की और लड़के के बीच समान व्यवहार होने लगेगा उस दिन से ही बेटियां स्वयं को कमतर न समझ कर सम्मान की पात्रा बन पाएगी।
 इतिहास गवाह है किसी भी युग में महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरूषों से पीछे नहीं रही चाहे फिर वह युद्ध क्षेत्र, राज्य संचालन, जासूसी  करने जैसे कठिन कार्यों को बाखूबी अंजाम तक पहुंचाया है। आज के युग में भी खेल का मैदान हो या फिर देश की रक्षा करने का जज्बा कहीं भी पीछे नहीं है। आवश्यकता है उनकी क्षमता, जोश और साहस को पहचान कर उन्हें पहली कतार में खड़ा रखने की। बेटियां भी हर प्रकार से परिवार और देश का नाम रोशन कर सकती हैं पुरूष प्रधान समाज को उनपर भरोसा होना चाहिए। शहरी महिलाओं के जीवन स्तर से समस्त महिला समाज की स्थिति में वास्तव में कितना सुधार हुआ है यह नहीं जाना जा सकता है। जमीनी हकीकत कुछ अलग है, अभी भी महिला समाज को अपने अधिकारों, सम्मान के लिए लम्बी लड़ाई जारी रखनी होगी।आज भी समाज में नारी पुरूषों, परिवार और समाज के आंतक से पीड़ित है। सम्पूर्ण विश्व में मनाये जाने वाले इस महिला दिवस को केवल एक दिन का सम्मानित दिवस न बना कर वर्ष के 365 दिन महिला सम्मानित बना दिया जाए तो कितना अच्छा होता। परिवार की महिला प्रसन्न तो पूरा परिवार खुशहाल, परिवार प्रसन्न तो समाज और देश भी खुशहाल।

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