हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है..

 

दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश होकर गुजरता है। यह वाक्य अपने आप में परिपूर्ण है यह बताने के लिए कि राजनीतिक रूप से उत्तर प्रदेश कितना महत्वपूर्ण है। यह उत्तर प्रदेश की ही सरजमीं है जहां से ताल्लुक रखने वाले रामनाथ कोविंद भारत के १४वें राष्ट्रपति बने हैं। भारत के दलितों का प्रतिनिधित्व करने वाली एक मात्र महिला नेता मायावती उत्तर प्रदेश से ही हैं। बनारस की वही धरती है जहां की लोकसभा सीट जीत कर प्रधान मंत्री बने नरेंद्र मोदी। यह वही सरजमीं है जहां की दो बेटियां पूनम यादव और दीप्ति शर्मा ने महिला विश्व कप में शानदार प्रदर्शन किया। इस तरह गिनाने के लिए उत्तर प्रदेश के पास बहुत सारे रिकॉर्ड हैं। लेकिन वर्तमान स्थिति में उत्तर प्रदेश की राजनीतिक दशा और दिशा क्या है यह भी जानना जरूरी है।

उत्तर प्रदेश जैसा राज्य भारत में कोई नहीं जिसके हर शहर और कस्बे की अलग पहचान है। अलीगढ़ के ताले, काकोरी के कबाब, मुरादाबाद की पीतल की कारीगरी, फिरोजाबाद की चूड़ियां, खुर्जा की पॉटरी, मथुरा के पेड़े, बनारस की साड़ी…ये सूची काफी लंबी है। ऐतिहासिक मंदिर, मस्जिद और दरगाह चप्पे-चप्पे पर हैं। देश को अनेक प्रधान मंत्री देने वाला उत्तर प्रदेश कितना अहम है इसे समझे बिना नरेंद्र मोदी भी प्रधान मंत्री नहीं बन सकते थे। उत्तर प्रदेश वह राज्य है जिसने गुजरात के व्यक्ति को देश का प्रधानमंत्री बनाया है।

नाच-गाना, खान-पान, दस्तकारी, शायरी-कव्वाली, धर्म-दर्शन से लेकर सियासत तक, जीवन का वह कौन सा हिस्सा है जिस पर उत्तर प्रदेश की गंगा-जमुनी संस्कृति की छाप न हो। उत्तर भारत की संस्कृति का हृदयस्थल अगर कोई है तो वह उत्तर प्रदेश है। जब कोई समाजवादी, सेकुलर, वामपंथी और हिंदू राष्ट्रवादी नहीं था, तब की है ये संस्कृति। गंगा-जमुनी संस्कृति का मतलब होता है मिली-जुली संस्कृति। यह सब न तो किसी पॉलिटिकल करेक्टनेस के तहत था, न खुद को सेकुलर साबित करने के लिए, न ही किसी खास तबके को खुश करने के लिए। यह जिंदगी जीने का ढंग था, ढंग जो उत्तर प्रदेश ने सब को सिखाया। फैजाबाद के खड़ाऊं-कमंडल बनाने वाले मुसलमान, ताजिया उठाने वाले हिंदू कोई विचित्र जीव या अपवाद नहीं हैं। वे एक सहज मिले-जुले समाज के चलते-फिरते, नाचते-गाते, खाते-कमाते लोग हैं जो पिछले पांच सौ साल से इसी तरह जीते आए हैं, लेकिन पिछले पचास-साठ साल की सियासत के शिकार होकर बिखरते जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश का जितना असर हमारी साझा विरासत और संस्कृति पर है, उसके दरकने-चटकने का असर भी पूरे देश पर होगा।

एक नजर में यूपी
उत्तर प्रदेश में लगभग ६६ प्रतिशत जनसंख्या का मुख्य व्यवसाय कृषि है। राज्य में लगभग १६७.५० लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कृषि होती है। १९९९ से २००८ के बीच अर्थव्यवस्था में केवल ४.४ प्रतिशत की ही वृद्वि हुई है। गन्ना राज्य की प्रमुख नगदी फसल है। उत्तर प्रदेश आलू, तिलहन का सब से बड़ा उत्पादक राज्य है। राज्य में वस्त्रोद्योग और चीनी उद्योग दो महत्वपूर्ण उद्योग हैं। इसके अलावा राज्य में चमड़े का काम सर्वाधिक मात्रा में होता है। आगरा व कानपुर चमड़े के कारखानों के मुख्य केन्द्र हैं। भारत में महाराष्ट्र के बाद उत्तर प्रदेश दूसरी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था है। उत्तर प्रदेश का जनसंख्या में भारत में पहला स्थान है।

देश का सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य, उत्तर प्रदेश अक्सर गलत वजहों से चर्चा में रहता है। कबीर, जायसी, रसखान की प्रेम-भक्ति से सराबोर धरती पर दंगे भड़कते रहते हैं। जिसे गंगा-जमुनी तहजीब कहते हैं, उसी गंगा-जमुना का दोआबा समय-असमय सुलगता रहा है। शाहहारूनपुर, जिसे आज सहारनपुर के नाम से जाना जाता है, १४वीं सदी में सूफी संत शाह हारून चिश्ती का ठिकाना था, वे प्रेम और भाईचारे के लिए जाने जाते थे। सहारनपुर के दक्षिण में, शायर जिगर का शहर, पीतल की कारीगरी का शहर, शाहजहां के बेटे मुराद बख्श के नाम पर बसाया गया मुरादाबाद भी झुलसता रहता है। मुजफ्फरनगर के घाव अभी भरे नहीं हैं।

ल्ेकिन यह वर्तमान निजाम के समझ से परे है। हाल ही में हुए विधान सभा चुनावों में जनता ने भाजपा को जनादेश दिया। सपा के अखिलेश यादव और बसपा की मायावती को नकार दिया। चुनावों के दौरान पक्ष-विपक्ष में होने वाले आरोपों-प्रत्यारोपों को छोड़ भी दें तब भी मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ पर यह भार और जनदबाव है कि वे कानून व्यवस्था को सर्वोच्च प्राथमिकता देगी। यों तो उन्होंने पिछले दिनों अपनी सरकार के सौ दिनों का रिपोर्ट कार्ड जारी किया, जिसमें कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर भारी कामयाबी का दावा किया है, परंतु अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

बहरहाल, फिर भी कोई शहर व राज्य अगर जिंदा है तो वह उत्तर प्रदेश है। वह भी अपने निवासियों की जिंदादिली के दम पर। यहां के लोग राज्य और अपने-आप पर गर्व करते हैं। सोने पर सुहागा तब हो जाता है जब लोग अपने खान-पान और तहजीब पर गर्व करते हैं। इन कसौटियों पर कस कर देखें तो उत्तर प्रदेश के अधिकांश शहर देश भर के दूसरे शहरों से आप अव्वल पाएंगे। सड़क-बिजली-पानी और तमाम तरह की बुनियादी नागरिक सुविधाएं, जिनमें शिक्षा, साफ-सफाई, चिकित्सा-व्यवस्था और यातायात भी शामिल है, सब भूल जाइये। बस इस प्रदेश के शहर जिन्दा हैं तो अपने लोगों के कारण। देश की रगों में रची-बसी गंगा-जमुनी तहजीब के अनुपम नजारे का एह्सास भी इसी प्रदेश के लोग ही तो पूरी संजीदगी से कराते हैं।

एक फिल्मी संवाद है कि ‘हम जहां खड़े होते है लाइन वहीं से शुरू होती है।’ तो यह संवाद उत्तर प्रदेश निवासियों पर खरा उतरता है। फिल्मी दुनिया से इसकी शुरुआत करते हैं। गंगा किनारे वाला छोरा अमिताभ बच्चन सिने जगत में उत्तर प्रदेश से निकलने वाली प्रतिभाओं की हैसियत बताने के लिए काफी है। सब से बड़ी आबादी वाले इस प्रदेश ने कई ऐसे नामी गिरामी कलाकार दिए हैं जिन्होंने न सिर्फ देश में बल्कि पूरे विश्व में अपने अभिनय का लोहा मनवाया है। वैसे तो हिंदी फिल्मों की बात चलती है तो मुंबई के कलाकारों का ख्याल आना लाजमी है, लेकिन अब हिंदी फिल्मों में काम करने के लिए मुंबई ही नहीं उत्तर प्रदेश से भी बड़े कलाकार आगे आए हैं। जिनमें महानायक अमिताभ बच्चन से देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा और कई ऐसे बड़े-बड़े अनगिनत कलाकारों ने अपनी एक्टिंग की वजह से सूबे का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमकाया है।

हिंदी फिल्मों के हास्य अभिनेता के तौर पर उत्तर प्रदेश से एक नया नाम और जुड़ता है राजपाल यादव का। वे अपनी कॉमिक टाइमिंग की वजह से बॉलीवुड में खासे मशहूर हैं। वे हिंदी फिल्मों के बेहतरीन हास्य कलाकारों में से एक हैं। उनका जन्म शाहजहांपुर से ४० किलोमीटर दूर कुंद्रा गांव में १६ मार्च १९७१ हुआ था। शाहजहांपुर से ही उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की और लखनऊ से भारतेंदु नाट्य एकेडमी में थियेटर ट्रेनिंग के लिए आ गए। वहां दो साल का कोर्स करने के बाद १९९४-९७ के दौरान वे दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा चले गए। इसके बाद वे १९९७ में भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में अपना करियर बनाने के लिए मुंबई आ गए।

राजपाल यादव के साथ ही एक और नाम नवाजुद्दीन सिद्दीकी का भी है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी एक ऐसे अभिनेता हैं जिन्होंने अपने जीवन में बहुत असफलताएं देखी हैं और आखिरकार उन्होंने सफलता पाई। इन्हीं कलाकारों की तरह अनुष्का शर्मा भी उत्तर प्रदेश से हैं। वर्तमान में वह भारत की सब से प्रसिद्ध और हाईएस्ट-पेड अभिनेत्रियों में भी शामिल है। उत्तर प्रदेश की शान इन कलाकरों तक ही सीमित नहीं है बल्कि राज्य सरकार ने ऐसी नीति भी बनाई है कि फिल्म इंडस्ट्री अब सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही फिल्म बनाना चाहती है।

उत्तर प्रदेश तो व्यंजनों के लिए खास तौर से जाना जाता है। प्रदेश के अवध क्षेत्र की अपनी एक अलग खास नवाबी खानपान शैली है। इसमें विभिन्न तरह की बिरयानी, कबाब, कोरमा, नाहरी कुल्चे, शीरमाल, जर्दा, रुमाली रोटी और वर्की परांठा, और रोटियां आदि हैं, जिनमें काकोरी कबाब, गलावटी कबाब, पतीली कबाब, बोटी कबाब, घुटवां कबाब और शामी कबाब प्रमुख हैं। शहर में बहुत सी जगह ये व्यंजन मिलेंगे। लखनऊ की चाट देश की बेहतरीन चाट में से एक है। खास तौर से बास्केट चाट। और खाने के अंत में विश्व-प्रसिद्ध बनारसी और लखनऊ के पान का कोई सानी नहीं है।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि शोहरत की बात हो या फिर हैरत की, सभी में उत्तर प्रदेश अव्वल नजर आता है। खेल, साहित्य और सिनेमा आदि के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश का कोई सानी नहीं। राजनीति का लिट्मस टेस्ट यहीं होता है।

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