कला में परिवर्तन हो रहा है

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निजी तौर पर तो कला के क्षेत्र में हो तो बहुत कुछ रहा है जिसके कारण भारत के चित्रकारों को निरंतर पहचान मिल रही है किन्तु आवश्यकता है इस दिशा में सरकार द्वारा भी कोई ठोस कदम उठाने की। कलाकारों को महज सम्मानित कर देने से कला का सम्यक विकास नहीं होगा।कला तभी जीवित रह सकती है, जब कलाकार जीवित रहे और अपने जीवन निर्वाह के लिए किए जाने वाले प्रयासों से परे होकर विचार करने के लिए उसका मन स्वतंत्र हो।

चित्र फलक पर गांव

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गांवों ने न केवल हमारे राजनीतिज्ञों, कवियों, लेखकों को आलोकित किया है, चित्रकार भी इससे अछूते नहीं रहे हैं। यह कथन सही है कि भारत की आत्मा गांवों में ही बसती है।

प्रकृति का कोई राग ही है रंजना पोहनकर की कला

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वह संगीतकारों के परिवार में पैदा हुईं। उनके पिता श्री कृष्णराव मजुमदार देवास दरबार के प्रसिद्ध गायक उस्ताद रजब अली साहब के शिष्य थे। घर में शास्त्रीय संगीत का वातावरण बचपन से ही मिला और विवाह भी अजय पोहनकर परिवार में हुआ जो आज भी शास्त्रीय गायन में प्रमुख स्थान रखता है।

रामजन्म भूमि से आया एक चित्रकार

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अयोध्यावासी पंडित किरण मिश्र जब 1980 में मुंबई आये तो मन में दबी हुई इच्छा तो यही लेकर आये थे कि उन्हें चित्रकार बनने का अपना जुनून सच करना है, पर पहली ज़रूरत उनके सामने यहां जमने और रोज़ी-रोटी का जुगाड़ करने की थी।

एलीना : अकेली औरत की त्रासदी

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बहुत कठिन होता है बिन ब्याही अथवा अकेली औरत के लिए जिन्दगी ग्ाुजारना; और अगर वह मां भी हो, वह भी बिन ब्याही, तब तो जैसे उसके सामने कठिनाइयों का पहाड़ ही आ खड़ा हो जाता है । यों भी समाज बड़ा निष्ठुर है ।

हमेशा विवादों से घिरी रही हैं अंजलि इला मेनन

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कुछ वर्ष पहले आज की बहुचर्चित और विवादास्पद चित्रकार अंजलि इला मेनन एक बार इसलिए चर्चा में आयी थीं कि उनके यहां काम करने वाले व्यक्ति ने उनके कुछ चित्रों की नकल करके बेचने की कोशिश की थी, जिसमें मुंबई की एक गैलरी भी आरोप के घेरे में आ गयी थी ।

गांवों को समर्फित चित्रकार दत्तात्रय फाडेकर

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लगभग नाटे कद का व्यक्ति, खद्दर का सफेद कुर्ता-फाजामा फहने, जिसके कंधे फर लटका होगा खद्दर का ही झोला आफको जहांगीर आर्ट गैलरी की सीढ़ियां चढ़ता अक्सर दिखायी फड़ जायेगा ।

पूनम अगरवाल : चित्रों के बहाने रूपांतरण और आत्मपरीक्षण

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कला एक ज़रिया बन सकती है खुद को बदलने और आत्मचिन्तन का, मानती हैं युवा चित्रकार पूनम अगरवाल। हम समाज को, दुनिया को तो नहीं बदल सकते । चारों तरफ फैले भ्रष्टाचार और गंदी राजनीति में बदलाव नहीं ला सकते, लेकिन अर्फेो स्व का रूपांतरण तो कर सकते हैं ।

नयना कनोडिया : अनगढ़ शैली ने दिलाई विश्वभर में ख्याति

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नयना कनोडिया का जन्म यद्यफि फुणे में हुआ, किन्तु वे मूलत: राजस्थान की हैं । वे एक ऐसे फारम्फरिक मारवाड़ी फरिवार से हैं, जिसका चित्रकला से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था । फिता फौज में थे, इसलिए देश भर में घूमना फड़ा ।

क्या कार्टूनों की आड़ में अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रहार किया जा रहा है?

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पहले उस कार्टून के बारे में थोड़ा जान लिया जाय। जादबपुर विश्वविद्यालय के प्रो. अंबिकेश महापात्र ने ममता बनर्जी पर बनाये गये अपने कुछ कार्टूनों को इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट ‘फेसबुक’ पर लगाया और उन्हें अपने कुछ मित्रों को भी पोस्ट किया।

कंचन चन्द्र स्त्री-विमर्श की चित्रकार हैं

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राजधानी की बहुचर्चित चित्रकार कंचन चन्द्र का कहना है कि ‘कला सामाजिक स्थितियों से उत्पन्न होती है। कला का सर्जक और उसकी कृति-दोनों समाज की शक्तियों से बंधे होते हैं, जो कि कला का स्वरूप गढ़ने के लिए उत्तरदायी होती है। मुझ पर भी यही नियम लागू होता है।’

अनश्वर फक्षी के फ्रतीक-चित्रों के बहाने

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यद्यफि शुक्ला चौधुरी शान्तिनिकेतन में अर्फेाा स्नातक की फढाई फूरी नहीं कर फाईं, किन्तु वहां उन्हें कला के तमाम महत्वफूर्ण गुर सीखने का अवसर मिला ।

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