मूल को समझे बिना समाधान संभव नहीं

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इस्लाम को मानने वाले अधिकांश लोग भयावह ग़रीबी व भुखमरी में जी लेंगें पर मज़हब का ज़िहादी जुनून और ज़िद पाले रहेंगें। वे लड़ते रहेंगें, तब तक, जब तक उनके कथित शरीयत का क़ानून लागू न हो जाए, जब तक दुनिया का अंतिम व्यक्ति भी इस्लाम क़बूल न कर ले! वे लड़ते रहेंगें, क्योंकि उनका विस्तारवादी-वर्चस्ववादी कट्टर इस्लामी चिंतन उन्हें लड़ने की दिशा में उत्प्रेरित करता है।

हिंदुत्व : धर्म की अवधारणा, सत्य एवं भ्रांति

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हिंदुत्व का दूसरा नाम सनातन संस्कृति या सनातन धर्म है। सनातन का अभिप्राय ही यह है कि जो काल की कसौटी पर सदैव खरा उतरे, जो कभी पुराना न पड़े, जिसमें काल-प्रवाह में आया असत्य प्रक्षालित होकर तलछट में पहुँचता जाय और सत्य सतत प्रवहमान रहे। फिर यह भ्रांति कब,…

विश्व-बंधुत्व की भावना को साकार करता एकात्म मानवदर्शन और पंडित दीनदयाल उपाध्याय

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सरलता और सादगी की प्रतिमूर्त्ति पंडित दीनदयाल उपाध्याय बहुमुखी एवं विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उनका जीवन परिश्रम और पुरुषार्थ का पर्याय था। वे कुशल संगठक एवं मौलिक चिंतक थे। सामाजिक सरोकार एवं संवेदना उनके संस्कारों में रची-बसी थी। उनकी वृत्ति एवं प्रेरणा सत्ताभिमुखी नहीं, समाजोन्मुखी थी। एक राजनेता होते…

राष्ट्र के निर्माण में शिक्षा एवं शिक्षकों का योगदान

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कानपुर की एक सभा में भारत के वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का एक चित्र ध्यानाकर्षण का केंद्रबिंदु बना, जिसमें वे मंच से उतरने के पश्चात सभागार में बैठे अपने शिक्षकों के चरणस्पर्श कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर रहे थे। यही भारत की संस्कृति और संस्कार हैं।

कृष्ण: व्यक्ति एक रूप अनेक

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आज भी वंशी बजैया, रास रचैया, गाय चरैया, लोक लुभैया, गोपियों के वस्त्र उठानेवाले, माखन चुराने वाले, मटकी फोड़ने वाले कृष्ण-रूप का ही सर्वत्र बोलबाला है। श्रीकृष्ण वादक हैं, नर्त्तक हैं, मुरलीधर हैं, चक्रधारी हैं, गीता के प्रवर्त्तक हैं, धर्म-संस्थापक हैं, मर्यादा-स्थापक हैं, निर्बलों के रक्षक, असुरों के संहारक हैं, वे देश के स्वाभिमान और शौर्य के प्रतीक भी हैं। कथा-काव्यों से लेकर प्रसंगों-प्रवचनों-आख्यानों में उनके समग्र रूप के दर्शन होने चाहिए| 

इस्लामिक देशों में बदलाव की बयार और जगती उम्मीदें

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सऊदी अरब की विभिन्न मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकरों पर नमाज के वक्त ऊंची आवाज़ में दी जाने वाली अज़ान पर कुछ शर्त्तों और पाबंदियों का लगना एक वहाबी विचारधारा वाले देश में ऐसी पाबन्दियां एवं शर्त्तें एक युगांतकारी निर्णय एवं घटना है। इसमें भविष्य के उजले संकेत निहित हैं। इस तर्क में दम है कि क्या अल्लाह लाऊड स्पीकर से दी जाने वाली अज़ान को ही स्वीकार करता है? कबीर, जिनकी विरासत पर भारत के मुसलमान भी अपना दावा करते हैं, ने तो बहुत पहले उन्हें सचेत करते हुए कहा था कि - कंकड़ पत्थर जोड़ि के, मस्ज़िद लियो बनाई। ता चढ़ि मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ ख़ुदाय।

आत्मरक्षा हेतु करे आसुरी शक्तियों का प्रतिकार

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हिंसा पाप है। पर कायरता महापाप है। कोई भी केंद्रीय सरकार या प्रदेश सरकार भी आपकी हमारी बहन-बेटी-पत्नी की आबरू बचाने के लिए, चौबीसों घंटे हमारी जान की हिफाज़त के लिए पहरे पर तैनात नहीं रह सकती। उस परिस्थिति में तो बिलकुल भी नहीं, जब किसी प्रदेश की पूरी-की-पूरी सरकारी मशीनरी राज्य की सत्ता के विरोध में मत देने वालों से बदले पर उतारू हो! इसलिए आत्मरक्षा के लिए हमें-आपको ही आगे आना होगा। भेड़-बकरियों की तरह ज़ुनूनी-उन्मादी-मज़हबी भीड़ के सामने कटने के लिए स्वयं को समर्पित कर देना महा कायरता है! इससे जान-माल की अधिक क्षति होगी।

बंगाल में भाजपा का उदय

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गृहमंत्री अमित शाह की रैली एवं रोड शो में उमड़ी जबरदस्त भीड़ और मेदिनीपुर व उसके आस-पास के 50 विधानसभा सीटों पर अच्छा-खासा प्रभाव रखने वाले शुवेंदु अधिकारी समेत लगभग 10 विधायकों एवं अनेक सांसदों का बीजेपी में शामिल होना आगामी विधानसभा चुनाव की तस्वीरें साफ़ करता है।

आंबेडकर के विचारों को सही मायने और संदर्भों में आत्मसात करना ज़रूरी

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भारतरत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर अपने अधिकांश समकालीन राजनीतिज्ञों की तुलना में राजनीति के खुरदुरे यथार्थ की ठोस एवं बेहतर  समझ रखते थे। नारों एवं तक़रीरों की हकीक़त वे बख़ूबी समझते थे। जाति-भेद व छुआछूत के अपमानजनक दंश को उन्होंने केवल देखा-सुना-पढ़ा ही नहीं, अपितु भोगा भी था।

मुसलमानों के प्रति बदलता दुनिया का नजरिया

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जर्मनी जुलाई 2020 में बुर्का और नक़ाब को विद्यालयों-विश्वविद्यालयों में प्रतिबंधित कर चुका है। स्विट्जरलैंड ने अभी कुछ दिनों पूर्व ही जनमत करा बुर्का पर प्रतिबंध लगाया है। श्रीलंका ने बीते दिनों 1000 मदरसों को बंद करने के साथ-साथ बुर्के को भी प्रतिबंधित करने की घोषणा की है। ऑस्ट्रेलिया में भी इसे लेकर व्यापक विमर्श जारी है।

भारत की चिरंतन सांस्कृतिक धारा की समझ आवश्यक

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संघ को लेकर पूर्वाग्रह-दुराग्रह रखने वाले सभी दलों एवं नेताओं को उदार मन से आकलित करना चाहिए था कि क्या कारण हैं कि तीन-तीन प्रतिबंधों और विरोधियों के तमाम अनर्गल आरोपों को झेलकर भी संघ विचार-परिवार विशाल वटवृक्ष की भाँति संपूर्ण भारतवर्ष में फैलता गया, उसकी जड़ें और मज़बूत एवं गहरी होती चली गईं

किसान-आंदोलन की आड़ में राष्ट्र की एकता, अखंडता, संप्रभुता से खिलवाड़

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इसमें कोई संदेह नहीं कि इन तथाकथित किसानों ने लालकिले पर 26 जनवरी जैसे राष्ट्रीय-दिवस पर जैसा उपद्रव-उत्पात मचाया है, किले के गुंबदों को जो क्षति पहुँचाई है उससे लोकतंत्र शर्मसार हुआ है। उससे पूरी दुनिया में हमारी छवि धूमिल हुई है, हमारे मस्तक पर हमेशा-हमेशा के लिए कलंक का टीका लगा है। और उससे भी अधिक विस्मयकारी यह है कि अभी भी कुछ नेता, सामाजिक-राजनीतिक संगठन, तथाकथित बुद्धिजीवी इस हिंसक आंदोलन को जन-आंदोलन की संज्ञा देकर महिमामंडित करने की कुचेष्टा कर रहे हैं।

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