सुरक्षा के हेतु उपकरण और एप
सोशल मीडिया के लाभ के साथ नुकसान भी हैं, इसलिए इसका सतर्कता के साथ उपयोग करना चाहिए। ऐसे कई उपकरण हैं जो आपको तकनीक के खतरों से बचा सकते हैं। संकट की घड़ी में आपके बचाव के लिए कई एप भी हाजिर हैं।
सोशल मीडिया के लाभ के साथ नुकसान भी हैं, इसलिए इसका सतर्कता के साथ उपयोग करना चाहिए। ऐसे कई उपकरण हैं जो आपको तकनीक के खतरों से बचा सकते हैं। संकट की घड़ी में आपके बचाव के लिए कई एप भी हाजिर हैं।
एक बड़ी सिद्ध कहावत है ‘नेकी कर दरिया में डाल’ अर्थात् उपकारी उपकार को कर्तव्य अर्थात फर्ज मान कर उसे सम्पादित करें। उसमें उपकार करके उसके बदले प्रतिलाभता प्राप्त करने का विचार नहीं होना चाहिए।
मानसिक तैयारी और शारीरिक तैयारी आपको बीमारियों के कष्ट को कम करने में बहुत मदद कर सकती है। खान - पान, नियमित व्यायाम शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखने का पहला हथियार है। कष्ट को टाले नहीं, डॉक्टरी सलाह समय पर अवश्य लें।
‘आख़िर थोइबा ने अपनी मणिपुरी पहचान और विरासत को स्वीकार कर लिया था। प्रशांत को लगा कि उसकी पत्नी लीला भी स्वर्ग में से अपने बेटे का अपनी मणिपुरी पहचान को स्वीकार कर लेना देख कर बेहद प्रसन्न हो रही होगी।”
भारत के अलावा दुनिया में कौन सा देश ऐसा है जो इन्हें शरण देगा? मुसलमानों के लिए तो घोषित रूप से दुनिया में 50 से अधिक देश है, जहाँ उन्हें शरण मिल जाएगी। लेकिन इन हिन्दू, सिख, बौद्ध, और जैनों के लिए तो एकमात्र भारत ही आखिरी उम्मीद है।
केवल सरकार देश की सारी समस्याओं का समाधान नहीं कर सकती। उसमें समाज को भी अपना योगदान देना होगा। इसलिए सरकार और सामाजिक संस्थाओं का समन्वय जरूरी है। इसके लिए गिरीश भाई लगातार प्रयासरत हैं।
भारतीय नारी के इस शक्ति स्वरूप की विषद् व्याख्या भारतीय वाङ्मय में मिलती है। ... पुराण काल से वर्तमान समय तक हमारी भारतभूमि तमाम ऐसी पुरुषार्थ साधिकाओं के शौर्य से गौरवान्वित होती आ रही है।
जरूरी है कि मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों विशेष कर महिलाओं में भी जागरूकता फैलें और वे अपनी परेशानियों में दब कर ना रहें। इसके लिए परिवार का संवेदनात्मक सहयोग जरूरी है।
महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग करियर की संकल्पना ही गलत है। आज कुछ ऐसे हटके करियर ऑप्शन्स उपलब्ध हैं, जिनमें पिछले कई सालों में महिलाओं का बोलबाला रहा है।
हम सभी के लिए शर्मसार होने वाली बात है कि ’घरेलू हिंसा’ को आज भी हर परिवार का आंतरिक मामला ही समझा जाता है। इन घटनाओं को रोकने के बजाय लोग इनसे दूरी बना लेना बेहतर समझते हैं। आखिर कब जागेगी दुर्गा?
महिला आंदोलनों में ग्रामीण महिलाओं की आवाज दब कर रह गई है। आज जो कुछ भी अधिकार मिल रहे हैं वे सिर्फ शहरी मध्यम वर्ग की महिलाएं प्राप्त कर रही हैं।
महिलाओं को मानसिक रूप से सशक्त और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के साथ ही सकारात्मक, मितभाषी और मित्रवत बने रहना चाहिए, वरना उनमें और पुरुषों में फर्क ही क्या रह जाएगा। महिलाओं के इसी गुण की वजह से ही तो उन्हें ‘देवी’ की संज्ञा दी जाती है।