ढलती सांझ के प्रेममयी रंग…

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देर तक विशाखा खिड़की से बाहर ढलते सूरज की लालिमा को गहराते देखती रही। देखती रही तेज गति से दौड़ती ट्रेन की खिड़की से पीछे छूटते पेड़ों को और घरों को। ट्रेन तेजी से आगे भाग रही थी और मन पीछे छूटते जा रहे पेड़ों के साथ पीछे भाग रहा था। भाग रहा था पीछे छूटे अपने शहर की ओर, उस शहर की ओर जहां उसका घर था, वह घर जिसे उसने पूरे 33 बरस सहेजा था।

स्वावलंबन का सूरज

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उस दिन सुजाता के घर गांव से बहुत से मेहमान आए हुए थे। नाश्ते, भोजन आदि की व्यवस्था के साथ उसे मेहमानों को नाशिक दर्शन के लिए भी ले जाना था। पंचवटी, रामकुंड, काला राम, गोरा राम मंदिर, सीता गुफा आदि के दर्शन के पश्चात वह शाम छह बजे मेहमानों के साथ अपने घर पहुंची, फिर रात का खाना खिलाकर उसने मेहमानों को आठ बजे विदा किया।

मुचकुंद की काल यात्रा

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पुराणों का रचनाकाल अट्ठारह सौ से दो हज़ार वर्ष पूर्व का रहा होगा ऐसा अनुमान लगाया जाता है। प्रस्तुत राजा मुचकुंद की कथा का उल्लेख विष्णु पुराण के पंचम अंश के तेईसवें अध्याय व श्रीमद्भागवत के दशम स्कंद के इक्यावनवें अध्याय में है। टाइम डाइलेशन जैसी जटिल विज्ञान अवधारणा पर आधारित इस विज्ञान कथा को पढ़कर हम अपने पूर्वजों की प्रखर मेधा से चमत्कृत हो उठते हैं।

तलाक

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तुम पुलिस, कचहरी कहीं भी जाओ, मैं डरने वाला नहीं हूं। तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। शुक्र मनाओ कि रुकईया के कहने पर मैं तुम्हें जिंदा छोड़ दे रहा हूं, नहीं तो अब तक तुम्हारी लाश किसी नदी-नाले में सड़ रही होती। अब मैं तुम्हारे साथ एक पल नहीं रह सकता। मैं तुम्हें अभी तलाक़ देता हूं। इतना कहकर रहमान ने कहा- तलाक़ तलाक़ तलाक़।

जहां सुमति तहं सम्पति नाना…

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मंजुला और श्याम ने अलमारी खोली। उसमें चांदी के सिक्के, चांदी का लोटा, चांदी की प्लेट, कुछ गिन्नियां रखी थीं। कुछ कपड़े आदि भी रखे थे। श्याम ने कहा, बस यह चांदी-सोने का सामान मुझे दे दो। बाकी जो कुछ है, वह तुम ले लो। मोहन ने कहा, ठीक है भैया आपको जो अच्छा लग रहा है, वह आप ले लीजिये।

जो बोएं सो काटें

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हजारों व्यक्तियों की आशाएं, उम्मीदें पूरी करने हेतु, उन्हें उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए ट्रेन अपनी तीव्र गति से चल रही थी। हर यात्री को अपने गंतव्य पर पहुंचने का इंतजार था। कोई अपने माता-पिता से मिलने जा रहा था तो कोई किसी विशेष काम से, कोई भ्रमण के लिए, जितने व्यक्ति उतने लक्ष्य।

सुनहरी कालिमा

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फिल्म की बाहरी दुनिया जितनी चकाचौंध है अंदर से उतनी ही काली। अंधेरे से अनजान इसकी चमक से मोहित होकर हजारों युवक युवतियां यहां भाग्य आजमाने आते हैं। उनमें से एक मैं भी हूं। नाच गाने का शौक मुझे बचपन से था। ईश्वर ने मुझे सुंदर भी बनाया था। दर्पण में अपनी सुंदरता देखकर बहुत खुश होती थी, बड़े बड़े सपने देखती थी।

आशा और विश्वास से मिलेगा रास्ता

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एक बार एक व्यक्ति रेगिस्तान में कहीं भटक गया । उसके पास खाने-पीने की जो थोड़ी बहुत चीजें थीं, वो जल्द ही ख़त्म हो गयीं और पिछले दो दिनों से वह पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा था वह मन ही मन जान चुका था कि अगले कुछ…

जैसी दृष्टि होगी, वैसी सृष्टि होगी

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एक बार राजा भोज की सभा में एक व्यापारी ने प्रवेश किया. राजा भोज की दृष्टि उस पर पड़ी तो उसे देखते ही अचानक उनके मन में विचार आया कि कुछ ऐसा किया जाए ताकि इस व्यापारी की सारी संपत्ति छीनकर राजकोष में जमा कर दी जाए. व्यापारी जब तक…

दूसरी भूल

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यतींद्र और शैलजा के विवाह की यह दसवीं वर्षगांठ थी। सुबह के आठ बज रहे थे। मौसम खुशगवार था। आसमान में घिरे हुए हल्के-हल्के बादल जैसे सूरज को इधर-उधर झांकने का अवसर ही नहीं देना चाहते थे, इसलिये बाहर लॉन में भी प्रकाश केवल देखने भर को था। सुहानी और…

अधिकार

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मुंबई से दिल्ली प्लेन का सफर मुझसे काटे नहीं कट रहा था। आज सुबह ही नीरा की बेटी शालिनी का फोन आया था। उसने रोते हुए कहा था, आंटी, मम्मी से मिलना है, तो जल्दी से आ जाइए। डॉक्टर ने कहा है, उनके पास अब अधिक समय नहीं है। शालिनी…

सुनहरी किरण

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रात के सन्नाटे में जीप धांय-धांय उड़ी जा रही थी...किरण ड्राइवर के पास वाली सीट पर बैठी थी। कांस्टेबल ओम प्रकाश गाड़ी चला रहा थे। पीछे की सीट पर उसकी अन्य दो सहकर्मी निद्रालीन थीं। किरण की वैसे भी अनिद्रा से पुरानी यारी थी, सो वह आगे की सीट पर…

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