संघ बगीचे का एक विकसित पौधा

ऐसी हजारों लाखों रेखाएँ विकसित करनी पड़ती हैं। ऐसे देशव्यापी विकसित संघ बगीचे का रेखा एक पौधा है। उसे पाला-पोसा, संवर्धित किया यमगरवाडी ने। उसकी उन्नति देखकर हम सभी कृतार्थ भावना से आनंदित हो जाते हैं।
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रेखा राठौड़ की शादी ठीक 28 जून को यमगरवाडी में बालाजी के साथ संपन्न हुई। किसी कन्या का विवाह होना, इसमें क्या विशेषता? ऐसे लाखों विवाह प्रतिवर्ष होते हैं। उनमें ही यह एक विवाह! ऐसे प्रत्येक विवाह की सार्वजनिक प्रशंसा नहीं की जा सकती, वह एक पारिवारिक समारोह होता है। परंतु रेखा का विवाह कहा जाए तो सामान्य ही है, परंतु वह वैसा नहीं है।

कोरोना महामारी की छाया में यह विवाह यमगरवाड़ी में संपन्न हुआ। इस विवाह के लिए मुंबई, पुणे, लातूर, धाराशिव जिलों से कई लोग आए थे। भाजपा के संगठन मंत्री विजयराव पुराणिक, भिवंडी से डॉक्टर सुवर्णा रावल, डॉक्टर शाहपुरकर, महादेवराव सरडे, लातूर से श्री लातूरे ऐसे कितने नाम गिनाए! रेखा कोई सेलिब्रिटी नहीं है, राजघराने की नहीं, धनिक पुत्री नहीं या किसी बड़े घराने की भी नहीं। परंतु वह किसी बड़े घराने की नहीं, ऐसा कैसे कह सकते हैं? वह संघ घराने की है। संघ के कार्यकर्ताओं ने यमगरवाडी में घुमंतू- विमुक्त लड़के लड़कियों के विकास हेतु एक प्रकल्प शुरू किया है। इस प्रकल्प की वह कन्या है। केवल शब्दार्थ से नहीं, वास्तविक अर्थ में वह प्रकल्प कन्या है। वह अकेली नहीं, ऐसी अनेक कन्याएं हैं। संघ याने समाज, इस अर्थ से वह समाज घराने की कन्या है।

यमगरवाडी में वह तीन भाई बहनों के साथ आई। उसके आने की भी एक कहानी है। किनवट के बस स्टैंड पर अपने भाई बहनों के साथ भीख मांगते हुए संघ प्रचारक गिरीश कुबेर ने उसे देखा। पूछताछ की। उसकी तकलीफें उन्हें समझ में आ गईं। भीख मांगते हुए अनेकों ने उसे देखा होगा। किसी ने भीख दी होगी तो किसी ने गालियां भी दी होंगी। गिरीश कुबेर ने उसे आत्मीयता दी और वह भाई बहनों के साथ यमगरवाड़ी प्रकल्प में आई।

एक बहन, दो भाई। छोटा भाई मात्र 2 माह का। मां बाप नहीं। रिश्तेदार रखने को तैयार नहीं। क्या होता इन सब का? यमगरवाड़ी में वह आई और आज फोर्टिस अस्पताल में नर्स के रूप में काम करने वाली रेखा सबके सामने है। बहन शीतल पुलिस प्रशिक्षण ले रही है। भाई अर्जुन डॉक्टरी पढ़ रहा है। 2 माह का रामू, उसने दसवीं की परीक्षा दी है। इन चार भाई बहनों का पालन पोषण एक परिवार के द्वारा किया जाना बहुत कठिन था। प्रकल्प यानी संगठित शक्ति। ’संगठन में शक्ति है’ यह शाखा में खेला जाने वाला एक खेल है। उस शक्ति का परिचय याने राठौड़ भाई बहनों का विकास है।

इन बच्चों की देखरेख प्रकल्प में सभी ने की। सुजाता गणभीर, सरस्वती माने, उमाकांत और उनकी पत्नी, सभी शिक्षक गण, सभी कार्यकर्ता गण इन सब का यदि उल्लेख किया जाए तो रेल की मालगाड़ी तैयार हो जाएगी। पालन पोषण की जवाबदारी हम पर क्यों? ऐसा विचार किसी के मन मे नहीं आया। क्यों नहीं आया?

हमारा समाज तो जातियों में विभाजित है। आए हुए चार भाई बहन ना तो संभालने वालों की जाति के, ना ही रक्त के। नाम पर से जाति पहचानने की प्रगतिशील कला संघ में नहीं सिखाई जाती। एक ही संस्कार होता है, वह याने यह मेरा आत्मीय समाज है। ये सब मेरे भाई बहन हैं। मैं उनका हूं, वे मेरे हैं। यह आत्मीय भावना ही इस यमगरवाड़ी का आधार है। रेखा की जाति कौन सी, वह दलित है या नहीं, इन विचारों को यहां कोई जगह नहीं है।

वर्तमान में इश्ररलज्ञ श्रर्ळींशी ारीींंशी इस विषय की बहुत चर्चा है। भारत के वामपंथी हमें सिखाते हैं की एससी,एसटी, ये अलग वंश के लोग हैं। काले वंश के हैं। गोरे वंश के आर्य उन पर अत्याचार करते हैं। यह पढ़ने के बाद हमें हंसी आती है। उनकी बुद्धि पर तरस आता है। यमगरवाड़ी में रहने वाली सभी लड़कियां एवं लड़के अलग वंश के किस प्रकार हुए? रेखा का वंश अलग कैसा?
हम सब की माता एक, वह यानी भारत माता! इस भारत माता की हम सब संतान। इन संतानों में जन्मसिद्ध भ्रातृ भाव, भगिनी भाव। यहां कोई अनाथ नहीं, हम सब सनाथ हैं, इस भावना के कारण ही रेखा और यमगरवाडी की अन्य कन्याएं दिवाली में अनेक परिवारों में जाकर आनंदपूर्वक रहते हैं। एकात्मता का अनुभव प्राप्त करते हैं। हम सब एक हैं, सब के दुख सुख एक समान है, वह आपस में बांट लेना चाहिए, यह संस्कार सहज रूप में निर्माण होता है।

रेखा की उम्र शादी की हो गई। अब उसका विवाह करना यह प्रकल्प की जवाबदारी हो गई। अपने भावी पति की खोज रेखा ने पहले ही कर रखी थी। बालाजी के साथ शादी करने के निश्चय पर वह दृढ़ थी। उसमें अनेक अड़चनें थीं। परंतु प्रेम की राह कांटों से ही जाती है। रेखा के जीवन की यह भी एक स्वतंत्र कहानी है। सिनेमा को विषय देने वाली। अड़चनों में से राह निकालने का काम सुवर्णा रावल एवं विजय पुराणिक ने किया। बालाजी के माता-पिता की सहमति प्राप्त की और शादी संपन्न हुई।
विवाह याने खर्च! बिल्कुल सादी शादी में भी लाख सवा लाख सहजता से खर्च हो जाते हैं। 25000 कन्या ने दिए, उसका नाम नहीं लिख रहा हूं। नाम लिखा तो वह नाराज हो जाएगी और लेख पढ़ने के बाद पहले फोन करेगी। और भाई बहनों ने भी खर्च किए। अपने परिवार में विवाह है, यह इसके पीछे की भावना है।

यह लिखते समय मन भूतकाल में कब चला गया यह समझ में नहीं आया। यह एक देश है, एक राष्ट्र है, इसकी संस्कृति प्राचीन है। इस कृति की रचना किसने की? महर्षि व्यास एक मछली पकड़ने वाली के पुत्र हैं। महर्षि वाल्मीकि एक कनिष्ठ जाति के हैं। सत्यकाम जाबाल एवं ऐतरेय ऋषि भी दासी पुत्र हैं। श्री कृष्ण का लालन-पालन यादव कुल में हुआ। रोहिदास चर्मकार है। गाडगे बाबा धोबी है। संविधान निर्माता बाबासाहब सवर्ण नहीं हैं। ये और ऐसे असंख्य इस देश की संस्कृति का निर्माण करने वाले हैं। रेखा जिस पारधी समाज से आई, उस पारधी की स्मृति में इस देश में महाशिवरात्रि मनाई जाती है।

बीच के काल में सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया और समाज के ये बंधु दलित कहलाने लगे। वास्तव में ये देश निर्माता एवं संस्कृति निर्माता हैं। उन्हें अवसर मिलना चाहिए। उन्हें सक्षम बनाना चाहिए। उनके अंगभूत गुणों को बढ़ावा देना चाहिए। इन्हीं लोगों में कल के व्यास, वाल्मीकि, आंबेडकर छिपे हैं।

रेखा एवं उसके भाई-बहन गुणी हैं, क्षमतावान हैं, बुद्धिमान हैं। यमगरवाड़ी ने उनके गुणों का विकास किया। जो गुण उनके शरीर में है उन्हें ही बढ़ने दिया। अलग-अलग खेलों में इन भाई-बहनों ने पुरस्कार जीते हैं। प्रतियोगिताएं जीती हैं। यह सब हमने नहीं किया, जो उनमें था उसके विकास की अनुकूलता निर्माण की। समाज की पुनर्रचना बड़े-बड़े ग्रंथ लिख कर या सेमिनारों के माध्यम से नहीं होती। ऐसी हजारों लाखों रेखाएँ विकसित करनी पड़ती हैं। ऐसे देशव्यापी विकसित संघ बगीचे का रेखा एक पौधा है। उसकी उन्नति देखकर हम सभी कृतार्थ भावना से आनंदित हो जाते हैं।

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