मुख्य मीडिया की भूमिका निभा रहा सोशल मीडिया

सोशल मीडिया जैसा अभिव्यक्ति का माध्यम मुख्य मीडिया को तो आईना दिखा ही रहा है, साथ ही सामाज को जागरूक और सशक्त भी बना रहा है। लेकिन मुख्य धारा की मीडिया को मूल रूप में आना होगा। उसे अपने राष्ट्र धर्म और समाज धर्म के उद्देश्यों का पालन करते हुए पुनः अपनी सार्थकता सिद्ध करनी होगी।
भारत के संविधान के अनुच्छेद १९(१) के तहत प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अर्थात अपने भावों और विचारों को व्य्क्त करने का हर नागरिक को अधिकार है। इसके तहत कोई भी व्याक्ति न सिर्फ विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकता है; बल्कि किसी भी तरह की सूचना का आदान-प्रदान करने का अधिकार रखता है। एक समय था जब लोग किसी भी तरह की सूचना या जानकारी के लिए केवल समाचार-पत्र और पत्रिकाओं या सरकारी एजेंसियों पर निर्भर रहा करते थे। टी.वी. चैनलों पर समाचार सुनने के लिए लोगों का हुजूम होता था और विश्वसनीयता भी इतनी कि किसी समाचार-पत्र या चैनल में कोई खबर या जानकारी सुनी या पढ़ी हो तो आंख बंद करके लोग विश्वास करते थे। लेकिन बदलते दौर और समय की मांग ने परिवर्तन को ही श्रेष्ठ माना है। आज हर व्यक्ति मीडिया का कार्य कर रहा है। वर्तमान सोशल मीडिया सूचना क्रांति में आए आमूलचूल परिवर्तन का प्रमुख हिस्सा है। इसके प्रयोग ने हर इंसान को सूचना तंत्र से जोड़ दिया है। हर व्यक्ति आज अपनी बात को कभी भी किसी भी रूप में अभिव्यक्त कर सकता है।
२१वीं सदी में कंप्यूटर इंसान का अनिवार्य उपकरण बन गया है तथा इंटरनेट का जाल विश्वव्यापी फैल चुका है। ऐसे में विभिन्न देशों/ क्षेत्रों के व्यक्तियों के बीच संवाद बनाने के मंच के रूप में सोशल मीडिया आज सब से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। विभिन्न मंच जैसे फेसबुक, व्हाटसअप, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और सोशल साइट सूचना या सम्पर्क का जरिया है। आज लोगों के विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति के लिए ये जाने जाते हैं। सच में सोशल मीडिया आज विश्व में लोकतंत्र का वास्तविक पर्याय बन गया है। सोशल मीडिया का उपयोग आज सरकारें भी अपनी योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने, जनता से सीधा संवाद स्थापित करने, जनमत का पता लगाने में करने लगी हैं। लोग विभिन्न समूहों के माध्यम से सरकार की नीतियों, निर्णयों पर बहस करने लगे हैं जो कि लोकतंत्र का आवश्यक तत्व है। सोशल मीडिया आज ऐसा मंच है जहां आम नागरिक बिना किसी रोकटोक के अपने विचार रखता है और करोड़ों लोग उन विचारों को पढ़ते, सुनते हैं तथा उनसे प्रभावित होते हैं। वाकई में आज सोशल मीडिया व्यक्ति के जीवन का अभिन्न अंग सा बन गया है। वर्तमान मोदी सरकार डिजिटल इण्डिया बनाने पर जोर दे रही है ताकि हर कार्य में पारदर्शिता आए।
एक दौर था जब मुख्य मीडिया के द्वारा कही गई बात अटल सत्य मानी जाती थी तथा मीडिया भी अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाता था जिस पर जनता तुरंत विश्वास कर उसे अमल में ले लेती थी। लेकिन धीरे-धीरे मीडिया ने अपनी वास्तविक छवि को खो दिया है। ख़बरों की सत्यता पर संदेह होने लगा है। सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग से अब हर व्यक्ति अपनी समझ के हिसाब से सच्चाई का आंकलन करता हुआ दिखाई देता है।
कभी मीडिया समाज और देश का नेतृत्व कर रहे लोगों के दिशा सूचक की तरह कार्य करती थी। जिसका समाज पर सकारात्मक प्रभाव भी पड़ता था और सरकारें भी अपने सही गलत के फैसले का आंकलन कर सुधार की दिशा में कार्य करती थीं। मीडिया अर्थात वह माध्यम जो प्रत्येक जन समूह तक सूचना भेजने का कार्य करता है। वह हर सूचना जो आम व्यक्ति की पहुंच से दूर होती है, हर खबर या सूचना आम जनमानस तक पहुंचती है। चाहे शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, मनोरंजन हो या फिर कोई आकस्मिक घटना जिसका जनता से सीधा जुड़ाव हो या जनता को उसकी हकीकत से रूबरू कराना हो। निष्पक्षता से खबर को प्रस्तुत करना मीडिया का अपना मुख्य कर्तव्य के साथ धर्म भी रहा है। यह संचार का सरल और सक्षम माध्यम है। मीडिया राष्ट्र को दिशा देने के साथ ही अंतःकरण की भी रक्षा करता है। यह देश की सुरक्षा और सामाजिक सरोकारों के लिए भी जिम्मेदार है। तभी तो कालांतर में मीडिया को देश के चौथे स्तंभ की संज्ञा दी गई है और इसमें कोई संदेह नहीं कि देश को गुलामी की बेड़ियों से छुड़वाने से लेकर आजाद भारत की सरकारों की नीति और नियति को जनता के समक्ष निष्पक्षता से उजागर करने में मीडिया ने अपना राष्ट्र व समाज धर्म निभाने में कोई कमी की हो।
एक शायर की पंक्ति मीडिया जगत में खूब प्रचलित हैं जो एक दौर में सही साबित भी हुई कि, ‘खीचों न कमानों को, न तलवार निकालो। जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।’ लेकिन जब से मीडिया पर रसूखदारों और सत्ताधीशों का हस्तक्षेप शुरू हुआ है तबसे खबरों को प्रस्तुत करने के तरीके और निष्पक्षता पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं जिसने उक्त पंक्ति के भावार्थ को ही बदल डाले। वर्तमान में सोशल मीडिया मुख्य मीडिया से बेहतर, अबिलम्ब व निष्पक्षता से काम कर रहा है। कम समय में लोगों के पास सब कुछ उपलब्ध हो जाता है। चाहे वह समाज में किसी जन अभियान की बात हो या कोई समाचार। समाज में हो रहे किसी प्रकार के अत्याचार की बात हो या किसी के इन्साफ के लिए आवाज बुलंद करने का जरिया। आज सोशल मीडिया हर व्यक्ति की आवाज है। लोग हर समय अपडेट रहते हैं वो सही गलत का निर्णय भी करते हैं।
लेकिन वर्तमान संदर्भ में देखें तो मुख्य मीडिया की भूमिका संदेह से घिरी दिखाई देती है। प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रानिक दोनों ही बदलते परिवेश में नजर आते हैं। कभी-कभी खबरों की निष्पक्षता से दूर-दूर तक कोई नाता दिखाई नहीं देता। ग्लैमर और चकाचौंध की दुनिया में मीडिया की निष्पक्षता पर भी सवाल उठने लगे हैं लेकिन वर्तमान में आधुनिक भारत का सोशल मीडिया मुख्य मीडिया को आईना दिखा रहा है। सोशल मीडिया हर इंसान की अभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम बन गया है, जिस दौड़ में मुख्य मीडिया कई मीलों पीछे नजर आता है।
वर्तमान में हमारे देश की पत्रकारिता के इतिहास, स्वरूप में आए बदलाव और मूल्यों की गिरावट होने की परिस्थितियों को देख कर ऐसा लगता है कि अब पत्रकारिता केवल व्यवसाय का एक जरिया मात्र है। रसूखदारों के बढ़ते प्रभाव ने मीडिया की निष्पक्ष भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगा दिया। जनता का मुख्य मीडिया से भरोसा उठने लगा। लेकिन वास्तव में मीडिया की भूमिका निभा रहा है आधुनिक सोशल मीडिया जिसमें हर व्यक्ति पत्रकार और संपादक है। मुख्य मीडिया में राजनीति के असर और रसूखदारों के ब़ढ़ते प्रभाव ने इसकी साख को गिराया है। जैसे-जैसे राजनीति बदली वैसे-वैसे ही मीडिया का स्वभाव और स्वरूप भी बदलता गया।
मीडिया एक ओर जहां अच्छे समाज, लोकप्रिय सरकार के निर्माण और संचालन में जहां सकारात्मक भूमिका निभाता है, वहीं गलतियों पर अंगुली भी उठाने का काम करता है। जब मीडिया व पत्रकारिता की बात करते हैं और वर्तमान संदर्भ से उसकी तुलना करें तो स्वाभाविक ही है कि इतिहास के पन्नों पर नजर डाली जाए। जब देश गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था और देश का जन सामान्य इस बात से भी अनभिज्ञ था कि आखिर इन बेड़ियों से छुटकारा कैसे मिले। तब केवल एक ही माध्यम लोगों को अपनी खोई हुई विरासत को व उनके जमीर को जगाने के काम आया और वह माध्यम था केवल समाचार पत्र- पत्रिकाएं अर्थात मीडिया। छोटे-छोटे समाचार पत्रों ने गुलाम देश के असंख्य लोगों के मन में आजादी की ज्वाला के बीज अंकुरित किए। देश के क्रांतिकारियों ने आजादी के लिए इन्हें ही अपना माध्यम बनाया।
देश की आजादी के लिए हो रहे आंदोलन के दौरान पत्रकारिता एक मिशन के रूप में काम कर रही थी। गणेश शंकर विद्यार्थी, बाबूराव विष्णु पराड़कर और खुद महात्मा गांधी तक असंख्य पत्रकार केवल इसलिए इस पेशे में थे या इस पेशे से उन्हें प्यार था। क्योंकि उन्हें लगता था कि स्वाधीनता संग्राम की अलख जगाने और उसे जन-जन तक पहुंचाने का काम पत्रकारिता के माध्यम से ही हो सकता है। यही वजह थी कि प्रत्येक आंदोलनकारी कहीं न कहीं एक पत्रकार के रूप में कार्य करता था। शहीद भगत सिंह हो या वीर सावरकर से लेकर अनेकों युवा क्रांतिकारियों ने किसी न किसी रूप में अपनी कलम के जरिये उद्घोष किया हो या कविताएं लिखी हों, सभी ने स्वाधीनता आंदोलन का हथियार पत्रकारिता को बनाया था। ‘हरिजन’ समेत ऐसे हजारों पत्रों का उल्लेख मिलता है जो हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ राष्ट्रव्यापी माहौल बनाते थे।
पत्रकारिता का यह मिशन आजादी के बाद भी इसी जुझारू प्रण से चलता रहा। ताकतवर मंत्री हों या प्रधान मंत्री, कलम के पैरोकारों ने निष्पक्षता के साथ उनकी हकीकत को उजागर किया है। चाहे कोई घोटाला हो या देश की सुरक्षा से सम्बंधित कोई मुद्देे पत्रकारों ने कभी घुटने नही टेके। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में १९७७ में लगा आपातकाल लोकतंत्र के पन्नों में काला इतिहास है। यह इस बात का प्रतीक भी है कि कलमकारों ने कभी सत्ताधीशों के आगे सर नहीं झुकाया। आपातकाल के विरोध में संपादक सम्पादकीय कॉलम को रिक्त छोड़ कर विरोध जताने तक का साहस करके जनता की आवाज को बुलंद करते थे।
वर्तमान संदर्भ में जब हम मीडिया की भूमिका को खोजने निकलते हैं तो किसी तरह के नकारात्मक या सकारात्मक निष्कर्ष तक पहुंचने में खासी मेहनत करनी पड़ती है। न तो मीडिया की तारीफ करते बनता है और न ही बेवजह मीडिया की आलोचना की जा सकती है। मीडिया जगत केवल पत्रकारों का न होकर व्यवसायियों और राजनीतिज्ञों के चंगुल में फंस कर रह गया, जिसे ‘जब चाहे जहां चाहे’ मोड़ दिया जाता है। वास्तविकता और हकीकत से दूर केवल कपोलकल्पित घटनाओं और अपने निजी स्वार्थों में आकर मीडिया सिमट गया, जिसे राष्ट्रधर्म की परिभाषा में गूंथना नामुमकिन सा है।
आधुनिकता व वैश्वीकरण के इस दौर में इन पत्र-पत्रिकाओं व नामी-गिरामी न्यूज चैनलों को ग्रामीण परिवेश से लाभ नहीं हो पाता इसलिए उन्हें सरोकार की खबरों से कोई लेना देना नहीं है। मीडिया धीरे-धीरे सामाजिक सरोकारों से दूर भाग रहा है और औद्योगीकरण के इस दौर में पत्रकारिता ने भी सामाजिक सरोकारों को भुलाते हुए उद्योग का रूप ले लिया है। गंभीर से गंभीर मुद्दों को भी व्यवसायिक लाभ के चलते उजागर नहीं किया जाता तथा कई बार तो सिरे से गायब रहते हैं। मीडिया की तटस्थता स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अत्यंत घातक है। मीडिया और सरकार के बीच के रिश्ते हमेशा अच्छे नहीं हो सकते क्योंकि मीडिया का काम ही है सरकारी कामकाज पर नज़र रखना। लेकिन वह सरकार को लोगों की समस्याओं, उनकी भावनाओं और उनकी मांगों से भी अवगत कराने का काम करता है और यह मौका उपलब्ध कराता है कि सरकार जनभावनाओं के अनुरूप काम करें। आज देश आतंकवाद, नक्सलवाद जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है। समाज हित के कार्य व सामाजिक सरोकारों को कैसे जनता के सामने लायें जिससे जनता जागरूक हो, समाज को और युवा पीढ़ी को दिशा मिले जैसे अनेक विषयों सहित कई मुद्दों पर मीडिया मौन रुख अख्तियार किए हुए हैं। वहीं सोशल मीडिया की प्रतिक्रियाओं से देखने में आता है कि यह मुख्य मीडिया का काम कर रही है। सकारात्मक रूप हो या नकारात्मक सोशल मीडिया में तुरंत प्रतिक्रिया होती है। अब यह जरूरी नहीं कि आपकी बात किसी समाचार या न्यूज़ चैनल के माध्यम से लोगों तक पहुंचे। आज हर व्यक्ति जो सामाजिक सरोकारों को सकारात्मकता के साथ सोशल मीडिया पर विषय को ला रहा है वह वाकई पत्रकारिता के असली धर्म को निभा रहा है।
एक अनुमान के मुताबिक भारत की सवा अरब जनसंख्या में लगभग ७० करोड़ लोगों के पास फोन हैं। इनमें से २५ करोड़ लोगों की जेब में स्मार्टफोन हैं। दुनिया में करीब ५० प्रतिशत लोग सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। हाल ही के वर्षों में देखा जाए तो बड़े – बड़े आंदोलन को सफल बनाने और विषय को आग की तरह फैलाने में सोशल मीडिया ने मुख्य भूमिका अदा की है। जहां एक ओर इस विज्ञान के वरदान के नकारात्मक उपयोग हैं तो वहीं दूसरी और इसका सकारात्मक उपयोग कर देश के विकास में, भ्रष्टाचार मुक्त, स्वस्थ और स्वच्छ व नए भारत के निर्माण में भागीदार बन कर हर व्यक्ति अपने देश के प्रति कर्तव्य का निर्वाह कर सकता है। सोशल मीडिया जैसा अभिव्यक्ति का माध्यम मुख्य मीडिया को तो आईना दिखा ही रहा है, साथ ही सामाज को जागरूक और सशक्त भी बना रहा है। लेकिन मुख्य धारा की मीडिया को मूल रूप में आना होगा। उसे अपने राष्ट्र धर्म और समाज धर्म के उद्देश्यों का पालन करते हुए, पुनः अपनी साफ और निष्पक्ष छवि के साथ कर्तव्य का पालन करना होगा तभी मीडिया की सार्थकता सिद्ध होगी।

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