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यक्ष प्रश्न

यक्ष प्रश्न

by अमोल पेडणेकर
in जुलाई -२०१४, संपादकीय
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विचार शक्ति को बधिर करने वाला कोई प्रश्न जब सामने आता है तो उसे ‘यक्ष प्रश्न’ कहा जाता है। यक्ष प्रश्न का एक प्रसंग महाभारत में मिलता है। धर्मराज युधिष्ठिर की सत्यता की परीक्षा लेने के लिए यक्ष ने उनसे कठिन से कठिन प्रश्न पूछे। धर्मराज ने इन प्रश्नों के यथोचित उत्तर दिए। यक्ष ने पूछा, ‘राष्ट्र मर चुका है, ऐसा कब समझना चाहिए?’ धर्मराज ने उत्तर दिया, ‘जिस राष्ट्र में अराजकता फैल चुकी हो, उस राष्ट्र को मृत समझना चाहिए।’ यक्ष ने दूसरा प्रश्न पूछा, ‘मार्ग प्रस्थान की दिशा कौन सी होनी चाहिए? यक्ष के प्रश्न का उत्तर देते हुए धर्मराज कहते हैं- किस दिशा में जाना है, किस दिशा में पहुंचना है, यह समझे बिना मार्ग में प्रस्थान करना कोल्हू के बैल जैसा है जो उसी स्थान पर घूमता रहता है। अगर मल्लाह अपनी दृष्टि ध्रुव तारे से हटा ले तो वह समुद्र में अपने मार्ग से भटक जाता है। वह अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच सकता। यक्ष का तीसरा प्रश्न है, ‘ऋषियों ने स्थिरता की क्या व्याख्या की है?’ धर्मराज इस प्रश्न के उत्तर में कहते हैं- ‘अपने धर्म पर टिके रहना ही स्थिरता है। स्वधर्म का पालन करते समय किसी लोभ या मोह में नहीं फंसना चाहिए। कार्य में आलस्य किए बिना उत्साह पूर्वक अपनी स्थिरता कायम रखनी चाहिए।’ यक्ष के द्वारा पूछे गए प्रश्न और युधिष्ठिर के द्वारा दिए गए उत्तर दोनों ही शाश्वत हैं। वर्तमान स्थिति के अनेक प्रश्नों के उत्तर भी इनमें ही छुपे हुए हैं।

2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को उसके सहयोगी दलों के साथ जनता का स्पष्ट जनादेश मिला है। देश के ‘अच्छे दिन’ आ गए हैं। 16 मई को पूरी दुनिया के राष्ट्र प्रमुखों की ओर से नरेंद्र मोदी को बधाई संदेश प्राप्त हुए थे। 26 मई को शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के प्रमुख उपस्थित थे। भारतीय जनता के साथ ही प़डोसी देशों के लिए भी विदेश नीति के दृष्टिकोण से यह ‘अच्छे दिनों’ की बानगी थी। स्पष्ट था कि शुरुवात अच्छी हुई है।

नरेंद्र मोदी ने अपने पहले ही भाषण में यह विश्वास दिलाया कि उनकी सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ की नीति पर काम करेगी। कांग्रेस के अराजक शासन के दौर में देश के हालात बहुत बिग़ड गए थे। नरेंद्र मोदी ने अब तक जो कदम उठाए हैं वे दिखाते हैं कि इन हालातों को ठीक करने की अत्यंत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के प्रति वे सजग हैं। निश्चित ही यह सराहनीय कदम है। सरकार का दस सूत्री एजेंडा उन्होंने घोषित किया है, साथ ही उन्होंने अपने मंत्रियों को आने वाले 100 दिनों का लक्ष्य निर्धारित करने और उसे प्राप्त करने का भी संदेश दिया। सरकारी एजेंडे की महत्वपूर्ण बात है नौकरशाहों का मनोबल ब़ढाना। उन्हें निर्भयता पूर्वक निर्णय लेने का अधिकार देना। शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, रोजगार, पारदर्शी कार्य प्रणाली, विदेशी निवेश के लिए आवश्यक वातावरण का निर्माण, आतंकवाद और नक्सलवाद के निराकरण के लिए कठोर नीति, अर्थ व्यवस्था को सुधारने का निर्णय, वैश्विक स्तर के औद्योगिक क्षेत्रों का निर्माण इत्यादि विषयों का समावेश भी सरकारी एजेंडे में हैै।

सशक्त मंत्रिमंडल का गठन करके आगे के काम को दिशा देने के उद्देश्य से केंद्रीय मंत्रिमंडल की पहली बैठक में एक मजबूत निर्णय लिया गया। यह निर्णय था विदेशी बैंकों में जमा किए गए काले धन की जांच करने के लिए एस. आई. टी. गठन का। इस प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह संकेत दिया है कि उनकी सरकार भविष्य में देशहित के मद्देनजर क़डे कदम उठाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने हिस्सा लिया था। यह पहली बार हुआ था कि पाकिस्तान का कोई नेता भारत आया और उसने कश्मीर का राग नहीं आलापा। साथ ही आतंकवाद पर भारत की बात भी सुनी। उसके बाद चीन के विदेश मंत्री भारत आए। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की दक्षिण एशिया संबंधों की प्रमुख निशा देसाई बिश्वाल ने भारतीय अधिकारियों से भारत आकर मुलाकात की। अब भविष्य में दुनियाभर के शक्तिशाली देशों की मोदी सरकार से नजदीकियां बढ़ाने की मनीषा दिखेगी। विदेशों से संबंध सुधारने की दृष्टि से यह एक अच्छी शुरुवात है। सत्ता संभालने के बाद कुछ ही दिनों में सरकार ने अपनी कूटनीति का प्रदर्शन कर सभी को अचंभित कर दिया है।
यक्ष ने जो प्रश्न युधिष्ठिर से पूछे थे वे राष्ट्र के सम्मान, स्थिरता और दिशा के संदर्भ में थे। आज के संदर्भ में अगर इनका विचार किया जाए तो मृतवत होते जा रहे, निराशा के गर्त में डूबते जा रहे समाज को नरेंद्र मोदी अपने कुशल नेतृत्व से जागृत अवस्था में ले आए हैं। अपने धर्म को समझकर अत्यंत नीतिबद्ध तरीके से देश को स्थिरता और दिशा देने का महत्वपूर्ण कार्य मोदी सरकार कर रही है। चुनावों के समय में जनता को जो आश्वासन दिए गए थे, वे पूर्ण करके भारतीय जनता को चैतन्य रखने की, देश के कामकाज में स्थिरता लाने की और समर्थ भारत के स्वप्न को साकार करने कीनिश्चित दिशा मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह से ही दिख रही है। परंतु कुछ दिनों बाद नई सरकार की नवीनता खत्म हो जाएगी। सरकार की सफलता और असफलता का मापदंड उस समय के कामों के अनुसार निश्चित की जाएगी। विशेषत: प्रधानमंत्री मोदी से जनता को कई अपक्षाएं हैं। सन 2014 की लोकसभा का जनादेश जनता ने कार्य प्रवण सरकार के लिए दिया है। ऐसा लग रहा है कि वे इस कसौटी पर खरे उतरेंगे। हमारे देश का बहुसंख्यक मध्यम वर्गीय समाज ‘रिजल्ट ओरिएंटेड’(परिणामोन्मुख) है,‘प्रोसेस ओरिएंटेड’(प्रक्रियोन्मुख) नहीं। अत: प्रभावपूर्ण सता संचालन के लिए सत्ताधारियों को बहुत मेहनत करनी प़डेगी। सरकार का शुभारंभ तो आकर्षक है, लेकिन ‘राष्ट्र निर्माण’ का लक्ष्य तभी पूरा हो सकेगा जब दृढ़ संकल्प से कार्य किया जाए।
राष्ट्र को सम्मान दिलाने वाले, विकास कार्यों को दिशा देने वाले और स्थिरता प्रदान करने वाले मार्ग में कई मुश्किलों के ‘यक्ष प्रश्न’ समाज के सामने ख़डे हैं। भारतीय जन-मानस में यह विश्वास है कि इन प्रश्नों के यथोचित उत्तर मोदी सरकार देगी। भविष्य में मोदी सरकार जन-मानस के विश्वास पर खरी उतरे; यही शुभकामनाएं।

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