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 कानून की विजय हुई है!

आर-पार की लड़ाई

by अमोल पेडणेकर
in संपादकीय, सितंबर- २०१५
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पिछले महीने में कई घटनाएं घटित हुईं। इनमें से अधिकतर घटनाएं महत्वपूर्ण थीं। मुख्यत: याकूब मेमन की फांसी के बाद से तो वातावरण बहुत ही तनावपूर्ण हो गया है। धार्मिक आतंकवाद के विभिन्न रूप कभी आतंकवादियों के माध्यम से तो कभी बुद्धि परिवर्तन करनेवाले विभिन्न लोगों के माध्यम से सामने आ रहे हैं। पंजाब के गुरुदासपुर में नावेद नामक आतंकवादी युवक पकडा गया। पकडे जाने के बाद उससे पूछ गया कि ‘ऐसा करके उसे क्या मिलता है?’ उसने अत्यंत शांतिपूर्वक जवाब दिया कि ‘हिंदुओं को मारने में मुझे मजा आता है। मैं यहां हिंदुओं को मारने के लिए आया हूं। इस पवित्र कार्य में अगर मैं मर भी गया तो अल्लाह की मर्जी।‘ बीस साल से भी कम उम्र के युवक के ये उद्गार दुनिया भर के समस्त हिंदुओं को क्रोधित और बेचैन करनेवाले हैं।

उस आतंकवादी युवक ने ये उद्गार अत्यंत शांत भाव से कहे थे। इससे यह जाहिर होता है कि न वह मनोरोगी था,न निराशा से ग्रसित था और न ही रास्ता भटका हुआ युवक था। नावेद उन मुस्लिम नौजवानों का प्रतीक है जो इस्लाम के लिए सर्वस्व कुर्बान करने के लिए तैयार रहते हैं और समय आने पर अपना बलिदान देने की भावना जिनके खून में मिली हुई है। भारत जैसे राष्ट्र को और हिंदुओं को आव्हान करने की क्षमता आखिर इन युवकों में आती कहां से है? उनमें ऐसी कौन सी ‘बारूद’ भरी जाती है? हिंदुओं के प्रति पराकोटि का द्वेषभाव कहां से आता है? अगर इसका उत्तर चाहिये तो दुनियाभर में ‘इस्लाम का राज’ स्थापित करने की इस्लाम की मनीषा को समझना होगा

इस्लाम के शब्दकोश का सबसे प्रभावी और ज्वलंत शब्द अगर कोई है तो वह है ‘जिहाद’। इस्लाम पृथ्वी पर सब जगह ‘अल्लाह का राज’ प्रस्थापति करने की घोषणा करता है। जो भी कोई इसका विरोध करता है, उसके विरोध में युद्ध करने का अर्थ है ‘जिहाद’। ‘इस्लाम काराज’ स्थापित करने के लिए, इस्लाम को पुनर्जीवित करने के लिए और इस्लाम की रक्षा करने के लिए हजारों ‘जिहादी’ तैयार हो रहे हैं। इस्लाम के लिए खुद को कुर्बान करने के बाद स्वर्ग के दरवाजे खुल जाते हैं, इस प्रकार की धार्मिक अंधश्रद्धा के कारण हजारों आतंकवादी विचारों से प्रेरित युवक इस्लाम के लिए जान देने और जान लेने के लिए तैयार हो जाते हैं। ओसामा बिन लादेन इन्हीं में से एक उदाहरण है। इस्लामी राष्ट्रों के साथ ही भारत के मदरसों में इस प्रकार की तालीम लेनेवाले कई युवक हैं। इसी तालीबानी वृत्ति के युवक पूरी दुनिया के साथ ही भारत को भी ‘आतंकवाद’ की ओर लेकर जा रहे हैं।

पूरी दुनिया में स्वतंत्र इस्लामी राष्ट्र का निर्माण करने के नारे लगाकर तबाही मचानेवाला संगठन है ‘इसिस’। इस संगठन की ओर भारतीय मुसलमान युवकों के आकर्षित होने की घटनाएं सामने आ रही हैं। फिर चाहे वे मुंबई के उपनगर कल्याण के युवक हों या शुक्रवार की नमाज के बाद श्रीनगर में इसिस के झंडे फहरानेवाले युवक हों। भारत की ये घटनाएं बर्फ के पहाड का दिखनेवाला उपरी भाग मात्र हैं। परंतु इसकी भीषणता अत्यंत परिणामकारक है। भारतीय मुस्लिम युवकों का आतंकवाद की ओर आकर्षित होना अत्यंत चिंताजनक विषय है।

आतंकवादी याकूब की अंतयात्रा में हजारों मुस्लिम युवक सहभागी हुए। याकूब के लिए नमाज पढने से वे स्वयं को धन्य मानते हैं। याकूब ने धर्म के लिये अपने प्राण गंवाये फिर हम पीछे क्यों रहें? इस्लाम की रक्षा के लिए हमें भी आगे आना चाहिये, ये विचार अंतयात्रा में शामिल हुए युवकों के मन में आते हैं। इस प्रकार की विचारधारा से देश और हिंदू धर्म के लोगों को निश्चित रूप से खतरा है।

२५ जुलाई को अमेरिका के एक अखबार ‘यूएस टुडे’ में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। वह रिपोर्ट आतंकवादी संगठन के पाकिस्तानी नागरिक से मिला था। उसमें ऐसा लिखा था कि भारत पर भयानक परिणाम करने वाले हमले की तैयारी की जा रही है। वह हमला इतना प्रभावशाली होगा कि अमेरिका को भी संघर्ष में खींच लेगा। उस समय होनेवाले अंतिम युद्ध में दुनियाभर के जिहादी मानसिकता वाले मुसलमान एकजुट होकर संघर्ष करेंगे। इस घटना के माध्यम से दुनियाभर के जिहादी मानसिकता वाले मुसलमानों को ‘खिलाफत’ के झंडे के नीचे एकत्रित करना तथा एकमात्र ‘इस्लामिक स्टेट’ का राज्य प्रस्थापित करना ही मुख्य उद्देश्य है। वास्तविक रूप से देखा जाये तो इस्लामी आतंकवादियों की इच्छा विश्वयुद्ध की तरह आर-पार की लडाई लडने की है। दुनियाभर के तालिबानी वृत्ति के मुसलमानों को एक साथ लाने की रणनीति पर इस्लामिक आतंकवाद कार्य कर रहा है। इस्लामिक स्टेट ने पाकिस्तान में अपना आधार बना लिया है। अब वह भारत में अपना आधार बनाने के लिये प्रयत्न कर रहा है। उन्हें दुनिया में ’इस्लाम का राज’ स्थापित करना है। इसके लिए ‘इस्लाम खतरे में है’ कहकर देश में तनाव का वातावरण निर्माण करने की नापाक इच्छा मुस्लिम आतंकवादी संगठनों में है। याकूब मेमन की फांसी सजा भी इसके लिए पर्याप्त है। पिछले कुछ दिनों में देशभर में घटनेवाली विभिन्न आतंकवादी घटनाएं और मुसलमानों की ओर से याकूब की फांसी का किया गया विरोध खुद सारी कहानी बयां करती है। कभी आंतरिक आतंकवाद, कभी बाह्य आतंकवाद तो कभी बुद्धि भ्रष्ट करनेवाला वैचारिक आतंकवाद इत्यादि जैसे नये-नये आतंकवादी संकट भारत के सामने खडे हैं। आतंकवाद के संकट कभी भी छोटे या बडे स्वरूप में नहीं होते। कोई समूह कितना बडा है या उसकी भौगोलिक स्थिति क्या है इस पर वह निर्भर नहीं होता है बल्कि आतंकवादी समुदाय की इच्छा, क्षमता और रणनीति पर निर्भर करता है। अमेरिकी अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट, उसमें दर्ज आतंकवादी संगठनोंे की भारत पर भयानक हमला करने की योजना, तथा जिहादी मानसिकता वाले मुसलमानों की ‘इस्लाम का राज’ स्थापित करने की मूलभूत इच्छा इन सारी बातों से निर्माण होनेवाला गंभीर खतरा हम सभी को समझना आवश्यक है। अब शत्रु हमारी दहलीज तक आने की योजना बना रहे हैं। यह सारी पार्श्वभूमि ध्यान में रखते हुए हमें अपनी रणनीति बनानी होगी। अभी तक आतंकवाद पाकिस्तान के द्वारा शुरू की गई छोटी-मोटी घटनाओं से संबंधित था। परंतु ‘इस्लाम का राज’ लाने की मनीषा लेकर दुनियाभर के मुसलमानों को युद्ध करने का संदेश देनेवाली घटनाओं को देखते हुए ऐसा लगता है कि भारत को आरपार की लड़ाई ल़ड़नी होगी। निश्चित ही वह भारत की ‘अग्निपरीक्षा’ की घडी होगी।

अमोल पेडणेकर

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