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ओमर अब्दुल्ला कि बेमानी

ओमर अब्दुल्ला कि बेमानी

by अमोल पेडणेकर
in अगस्त -२०१६, संपादकीय
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कश्मीर भारत का सबसे संवेदनशील क्षेत्र होने के साथ ही आए दिन हिंसा और राजनीति को लेकर चर्चाओं में रहता है। अशांति जम्मू एवं कश्मीर के लिए नई बात नहीं है, लेकिन जुलाई के दूसरे सप्ताह में वहां हिंसाचार हुआ, घाटी में हालात तनावपूर्ण बने यह बात अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। पाकिस्तान के आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन ने अपने जिस कमांडर पर अमरनाथ यात्रा में खूनखराबे की जिम्मेदारी सौंपी थी, वह आतंकी बुरहान वानी सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में ढेर हो चुका है। उस पर दस लाख रुपये का ईनाम था। ऐसे खूंखार आतंकी बुरहान वानी की मौत पर ऐसे मातम मनाया जा रहा है कि मानो वह शहीद ही हो। उसके जनाजे में हजारों लोगों की भीड़ शामिल होती है। एतराज भीड़ की मानसिकता पर भी है और भीड़ के हंगामे पर भी है। यह कहां तक जायज है कि एक आतंकी की मौत के बाद लोग सुरक्षा बलों पर, पुलिस पर पथराव करें, निर्दोष लोगों को अपना निशाना बनाए। इस आंतकी की मौत के बाद घाटी में जो तनाव पैदा हुआ है उससे एक बात जरूर उभरती है कि देश की थाली में छेद करने वाले घाटी में कितने लोग हैं!

जिनका जन्म 1990 के दशक के बाद हुआ है और जो आज 14 से 20 की उम्र के हैं ऐसे युवक रास्ते पर उतर कर पुलिस एवं सेना पर पथराव करते हैं। पुलिस के सामने बेखौफ खड़े होते हैं। आज कश्मीर में युवकों के मन से पुलिस और फौज का भय खत्म हो रहा है यह भी चिंता की बात है। असामाजिक तत्वों के मन में प्रशासन का डर अवश्य बना रहना चाहिए। लेकिन वर्तमान हालातों को देख कर मन में एक प्रश्न जरूर उठता है कि आखिर इस बात का अंत कब होगा? यह कर्फ्यू, हड़ताल, पथराव, गोलीबारी इससे कश्मीर कब बाहर आएगा? या कश्मीर की स्थिति फिलीस्तानी जैसी होगी?

बुरहान वानी की शवयात्रा में शामिल भीड़ में फिर एक बार कश्मीर के आज़ादी के नारे गूंजे, पाकिस्तान का झंड़ा फहराने की जुर्रत हुई। गत अनेक वर्षों में पहली बार इतने खूंखार ईनामी आतंकी को सेना के जांबाज सिपाहियों ने ढेर किया है। ऐसी स्थिति में कश्मीर घाटी में हो रही राजनीति चिंता का विषय है। आतंकवाद और आतंकवादी दोनों ही देश के लिए खतरा हैं। ऐसे में नेशनल कांफ्रेन्स नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने अपने ट्विट की जितनी भर्त्सना की जाए उतनी कम ही है। उन्होंने कहा, “श्रीनगर की मस्जिदों से मैंने कई साल बाद आज़ादी का नारा सुना है। बुरहान वानी के रूप में कश्मीर को नया आयकॉन मिल गया है। अपने क्षेत्र के युवाओं को आतंकवाद की राह पर जाने के रोकने के लिए उन्हें शिक्षा और रोजगार के अवसर प्रदान करने चाहिए।” लेकिन ओमर यह भूल गए कि कश्मीरी युवाओं को ये अवसर उन्होंने अपने कार्यकाल में तो प्रदान ही नहीं किए। इसका अर्थ यह है कि ओमर अब्दुला एक आतंकी को आयकॉन बता कर, कश्मीर के युवाओं को कश्मीर की आज़ादी के सपने दिखा कर, आतंकवाद की ओर आकर्षित करने का प्रयास ही तो कर रहे हैं। इसलिए ओमर की यह ट्विट देश विघातक ही है।

जब से कश्मीर में लोकनियुक्त सरकार सत्ता पर आई है अलगाववादी ताकतों की हलचल बढ़ गई है। अलगाववाद से प्रेरित घटनाएं तब हो रही हैं जब केंद्र और राज्य सरकार राज्य की स्थिति में सुधार लाने के जोरदार प्रयास कर रही हैं। इसी कारण कश्मीर का माहौल जबरन् बिगाड़ने की कोशिश करने वाला एक गुट घाटी में अधिक सक्रिय हो गया है। ऐसा इसलिए कि कश्मीर में हो रहे अमनचैन के प्रयासों और विकास की संभावना से यह वर्ग डरता है। एक और महत्वपूर्ण बात यह कि भारतीय सेना द्वारा आतंकवाद के विरोध में उठाए जा रहे ठोस कदमों से सीमा पार से हो रहे आतंक पर अंकुश लग रहा है। राज्य में आर्थिक विकास की योजना बनाई गई है। इस योजना के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर में बुनियादी सुविधाओं के साथ विकास पर बल दिया जा रहा है, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएं बहाल की जा रही हैं। रोजगारों के सृजन के उपाय किए जा रहे हैं। सड़क निर्माण, रेल मार्ग विकास जैसे विविध जनहितकारी कार्यों को प्राथमिकता दी जा रही है। इसी कारण सीमा पार के आतंकवादियों और घरेलू अलगाववादियों में नैराश्य की भावना बढ़ी है, क्योंकि विकास हो तो इन लोगों के मनसूबे पूरे नहीं होंगे। इस नैराश्य के चलते ही इन असंतुष्ट लोगों ने आक्रामक प्रतिरोध की नई रणनीति बनाई है। इस रणनीति के तहत कश्मीरी युवाओं के माध्यम से घाटी में समय-समय पर अशांति का माहौल पैदा किया जाता है। कभी आतंकी बुरहान वानी, तो कभी स्कूली बच्चों से छेड़छाड़ जैसे अनेक बहानों पर आक्रामक प्रतिरोध उपस्थित करने की यह रणनीति है। इसी कारण छोटी-मोटी बात पर भी कश्मीर सुलग उठता है।

कश्मीरी युवाओं का आतंकवाद की ओर झुकाव अधिक है, यह बात समय- समय पर सामने आ रही है। सुरक्षा दलों से भिड़ने वाले युवक, हर जुम्मे की नमाज के बाद इसिस के झंड़े फहराकर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाने वाले युवक, आतंकियों को सुरक्षा बलों द्वारा मौत के घाट उतारने पर रास्तों पर हिसंक प्रदर्शन करने वाले युवक आम बात होती जा रही है। कश्मीरी युवकों की ये कार्रवाइयां भारत की सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है। पाकिस्तान की उन्हें शह है। वैसे पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ भारत के साथ दोस्ती एवं सहयोग प्रस्थापित करने की भाषा बोलते हैं। लेकिन तथ्य यह है कि वहां राजनीतिक सरकार ही सबकुछ नहीं होती, वहां की फौज एवं धार्मिक संगठनों की इसमें भूमिका महत्वपूर्ण होती है और पाकिस्तानी फौज एवं धार्मिक संगठन भारत में आतंक फैलाने के पक्षधर हैं। अतः पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार है, नवाज शरीफ भारत के साथ दोस्ताना माहौल बनाने की बात करते हैं, इसलिए पाकिस्तान की भूमि से भारत में आतंकवाद प्रक्षेपित नहीं होगा, इस मुगालते में भारत को कभी नहीं रहना चाहिए। पाकिस्तान चाहता है कि कश्मीर सदा सुलगता रहे, आतंकवाद की आग में झुलसता रहे। भारत को हैरान करने एवं उलझाए रखने में पाकिस्तान अपना हित देखता है। इसलिए वह कश्मीर का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बार-बार उठाने का प्रयास करता है। वह इस्लामिक राष्ट्रों को झूठा ही सही परंतु यह जताने का मौका ढूंढ़ता रहता है कि भारत में मानवाधिकार का उल्लंघन हो रहा है, धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अन्याय हो रहा है आदि। यह मानने का कोई कारण नहीं है कि इस्लामिक देश या शेष अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान की चिल्लमपो के झांसे में आने लायक अपरिपक्व हैं।

कश्मीर की विडंबना देखें कि जो युवा मतदान के लिए बुथ पर आता है वही युवा सुरक्षा बलों पर हमला करता है। राष्ट्रविरोधी ताकतें ऐसी कारगुजारियों को पनाह दे रही हैं। इसलिए आम युवाओं और राष्ट्रविरोधी गुट में साँठगाँठ न होने देना समय की मांग है। इससे अपनी साजिश में युवाओं को शामिल करने वाले आतंकवादी संगठनों को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सकेगा। पाकिस्तान प्रेरित, प्रायोजित और आधारित आंतकवादी, अलगाववादी संगठनों से आम कश्मीरी युवाओं को अलग करना सब से बड़ी चुनौती है। घाटी में रोजगार और विकास के अवसर उपलब्ध कर इस चुनौती को पूरा किया जा सकता है; ताकि फिर कोई ओमर अब्दुल्ला या कट्टर धार्मिक संगठन कश्मीर की आज़ादी या आतंकवादी को कश्मीर का आयकॉन बताकर युवकों को बरगलाने की कोशिश न कर सके और कश्मीर को फिलीस्तीनी माहौल में तब्दील न कर सके।

अमोल पेडणेकर

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