आयात शुल्क, अवैध प्रवासियों को देश के बाहर निकालना, ग्रीनलैंड पर कब्जे, पनामा नहर और कनाडा टेकओवर की इच्छा, रशिया-चीन की बढ़ती ताकत, ऐसी स्थिति में डोनाल्ड ट्रम्प की नीति व निर्णयों का परिणाम विश्व को कहां ले जाएगा यह तो आनेवाला समय ही बताएगा, परंतु इससे दुनिया में भारी उथल पुथल अवश्य होगी।
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अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कौन होगा, इसकी सभी को उत्सुकता से प्रतीक्षा थी। इसका कारण यह है कि आज दुनिया के कुछ देशों में युद्ध चल रहे हैं। कई देशों में आर्थिक उथल-पुथल भी मची हुई है। ऐसे में भारत सहित सम्पूर्ण विश्व भर में इस बात की काफी उत्सुकता थी कि अमेरिका का 47वां राष्ट्रपति कौन बनता है? संयुक्त राज्य अमेरिका के डोनाल्ड ट्रम्प ने राष्ट्रपति पद के लिए पसंदीदा उम्मीदवार के रूप में रिकॉर्ड संख्या में वोट पाए। राष्ट्रपति चुनाव जीतकर रोनाल्ड रीगन, जॉर्ज बुश सीनियर और जॉर्ज बुश जूनियर व्हाइट हाउस दुबारा गए थे। बहरहाल, ट्रम्प अमेरिकी इतिहास में पहले राष्ट्रपति हैं जो न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने पर जेल जाने की बजाय दुबारा व्हाइट हाउस गए।
संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए हुए इस चुनाव का पूरी दुनिया पर व्यापक प्रभाव पड़ा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका के सम्मान की पुनर्स्थापना और एक मजबूत नेतृत्व की स्थिति में अमेरिका की विभिन्न गरिमाओं की सुरक्षा विषय पर डोनाल्ड ट्रम्प ने मतदाताओं को लुभाया। कमला हैरिस ने अमेरिकी चुनाव में गर्भपात, पर्यावरण, शीत युद्ध, स्वास्थ्य सेवा आदि मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। अमेरिकन जनता की दृष्टि से गर्भपात का मुद्दा एक पुरानी बात रही है। ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण पर अमेरिका की दोहरी भूमिका जैसे विषयों पर अमेरिकी मतदाता कुछ सीमा तक उदासीन बने रहे हैं। इसके विपरीत ट्रम्प द्वारा उठाए गए मुद्दे मतदाताओं को अधिक ठोस लगे। ट्रम्प ने इस समय अमेरिका के सबसे बड़े भावनात्मक मुद्दे को छुआ, जो देश में यूरोपीय अप्रवासियों का मुद्दा है।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से पहले कई सर्वे हुए। उसमें हर 10 में से 7 ने कहा, ‘इस देश को बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है, नहीं तो अमेरिका के टुकड़े हो जाएंगे।’ अब अमेरिकियों ने डॉनाल्ड ट्रम्प को अपना राष्ट्रपति चुन लिया है, जिन्हें व्हाइट हाउस में अब तक सबसे ज्यादा उथल-पुथल मचाने वाला माना जाता है। ट्रम्प ने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि वह शपथ लेने वाले दिन ही 2 करोड़ अवैध प्रवासियों को देश से बाहर का रास्ता दिखाएंगे। शायद इसी को यथार्थ में बदलते हुए उन्होंने अवैध रुप से अमेरिका में रह रहे भारतीयों को भी वापस भेजा है। अपने ट्रेडिंग पार्टनर्स और सहयोगी देशों से आने वाले सामान पर 20% शुल्क लगाने का भी वादा किया था। आम अमेरिकियों ने बड़े बदलाव का वादा करने वाले प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रम्प को अमेरिका का राष्ट्रपति चुना है।
अप्रवासियों की बढ़ती संख्या ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर दबाव डाला। अमेरिकन नागरिकों के सामने यह प्रश्न है कि हम कितने अप्रवासियों को सामाजिक सुरक्षा या सुविधाएं प्रदान कर सकते हैं। इस समस्या की प्रकृति न केवल आर्थिक और राजनीतिक है बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक भी है। क्या अप्रवासी देश के सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण के अनुकूल ढल जाते हैं? उत्तर ‘नहीं’ है। जैसे-जैसे अप्रवासियों की संख्या बढ़ती है, वे देश में सार्वजनिक स्थानों पर भी अपने धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार रहने का प्रयास करते हैं, स्थानीय भाषा और जीवनशैली का अनादर करते हैं। सम्पूर्ण यूरोप में शरणार्थी के रूप में आए हुए मुस्लिम घुसपैठियों ने जो हड़कम्प मचा के रखा है, वह इस बात का प्रणाम है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका में 25 प्रतिशत अवैध अप्रवासी हैं। इसीलिए अप्रवासियों का मुद्दा राष्ट्रपति चुनाव में प्रमुख मुद्दा बन गया था।
आज भारत-अमेरिका सम्बंध पहले से अधिक व्यापक तथा गतिशील हैं, जो 21वीं सदी में वैश्विक व्यवस्था की दिशा तय करेंगे। भारत की बढ़ती वैश्विक प्रतिष्ठा के साथ वर्ष 2030 तक दो खरब डॉलर निर्यात का लक्ष्य निर्धारित है। इसलिए वैश्विक संदर्भों में भारत-अमेरिकी द्विपक्षीय व्यापारिक और आर्थिक सम्बंध महत्वपूर्ण हैं। अमेरिका आज भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश है और साथ ही उन देशों में शामिल है जिनके साथ भारत का व्यापार संतुलन लाभदायक स्थिति में है और बढ़ता भी जा रहा है। भारत-अमेरिका ने व्यापार सहित परस्पर आर्थिक सम्बंधों को मजबूत करने के लिए द्विपक्षीय सहयोग की दिशा में कदम बढ़ाया है। भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को अभी-अभी अमेरिका यात्रा में उन्हें मिले अद्भुत सम्मान से यह बात स्पष्ट होती है।
भारत के साथ मेलजोल बढ़ाना ट्रम्प की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रहेगा? डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिकी राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने से खुले तौर पर भारत के साथ अमेरिकी रिश्ते एक नया मोड़ लेंगे? प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बंधों का परिणाम भारत-अमेरिका व्यापार और रक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों में फलदायी होने वाला है? अब यह सारे भारतीयों के मन में उम्मीद से भरे हुए प्रश्न है, परंतु भारत को यह याद रखना होगा कि ट्रम्प ऐसे दौर में अमेरिका का नेतृत्व करने जा रहे हैं जब अमेरिका को अपने हित में कदम उठाने अत्यंत आवश्यक हैं। डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिका से उभरते भारत के हित में सोच रखने की आशा भारत को नहीं करनी चाहिए। संयुक्त राज्य अमेरिका का पिछले 100 वर्षों का इतिहास बताता है कि राष्ट्र के रूप में अमेरिका का हित सदैव सबसे ऊपर रहा हैं। चाहे राष्ट्रपति कोई भी हो, सत्ता में कोई भी पार्टी हो, अमेरिका के हितों की रक्षा का विचार अमेरिका की घरेलू और विदेश नीति का आधार रहा है। भारत और अमेरिका के बीच में विकास के विभिन्न स्तरों तथा अलग-अलग प्राथमिकताओं, पारस्परिक हितों और अपेक्षाओं के कारण मतभेद भी हैं, किंतु दोनों के बीच का व्यापक हित छोटी-मोटी अड़चनों पर भारी हैं। भारत और अमेरिका दुनिया की दो सबसे बड़ी लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाएं है तथा समृद्ध वैश्विक आर्थिक व्यवस्था बनाने में भागीदार हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प कह चुके थे कि राष्ट्रपति बनने पर वह अमेरिका में आने वाली सभी चीजों पर 20% का आयात शुल्क लगाएंगे। चीनी सामानों पर उन्होंने 60% टैरिफ लगाने की बात कही थी। वह चीन से मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) का दर्जा भी छीन लेंगे। इसका यह संकेत है कि विदेश व्यापार को लेकर इतने वर्षों में जो नीतियां बनी है, उनका दौर डोनाल्ड ट्रम्प के राज में समाप्त होगा।
अमेरिकी बाजार में प्रवेश करने वाले विदेशी सामानों पर भारी शुल्क लगाने से लेकर आवागमन पर प्रतिबंध लगाने तक ट्रम्प ने अपनी नीति की दिशा स्पष्ट कर दी है। इसके साथ ही तीन मुद्दों पर ट्रम्प की नेतृत्व क्षमता की परीक्षा होगी। इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध और अमेरिकी महाशक्ति को चुनौती दे रहा चीन, ट्रम्प के नेतृत्व कौशल की परीक्षा लेगा। ट्रम्प के चुने जाने के तुरंत बाद इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध के रुकने पर ट्रम्प ने ऐसा वक्तव्य दिया, ‘युद्ध केवल इसलिए रुका क्योंकि मैं चुना गया हूं, इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष समाप्त होना शुरू हो गया।’ यह डोनाल्ड ट्रम्प का भ्रम है या सत्य यह बात साबित होने के लिए कुछ और समय भी आवश्यक है। अब यूक्रेन मुद्दे पर रूसी राष्ट्रपति पुतिन ट्रम्प की सलाह को कितना मानेंगे, इसका अनुमान अभी किसी को नहीं है। उत्पादों पर भारी आयात शुल्क लगाना, भी एकतरफा स्वीकार नहीं होगा। यदि ऐसा हुआ तो चीन और अन्य देश इसके उत्तर में कुछ ऐसे ही कदम अवश्य उठाएंगे, यदि ऐसा हुआ तो दुनिया को एक नए व्यापार युद्ध का सामना करना पड़ेगा। टैरिफ में बढ़ोत्तरी के मामलों में ट्रेड और इकोनॉमी के मोर्चे पर अमेरिका लगातार चीन का नाम लेता आया है, परंतु ट्रम्प भारत के उत्पादों पर भी टैरिफ बढ़ा सकते हैं और भारत में ज्यादा मार्केट की मांग कर सकते हैं। ऐसे छोटे-छोटे मामलों पर भारत को कुछ बड़ी दिक्कतें झेलनी पड़ सकती हैं। यदि चीन के साथ अमेरिका का ट्रेड वॉर बढ़ता है तो यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत इसका किस तरह अपने हित में लाभ उठाता है। हालांकि यह भारत की नीतियों पर निर्भर करेगा।
ट्रम्प अनधिकृत अप्रवासियों को देश से बाहर निकलाने में जुट गए हैं। जब अमेरिका से अवैध भारतीय प्रवासियों को भारत वापस भेजने की योजना के बारे में पूछा गया, तो भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत हमेशा से अवैध नागरिकों की वापसी के लिए तैयार रहा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि अप्रवासियों को लेकर हर देश के नियम समान हैं और अमेरिका भी इसका अपवाद नहीं है। भारत ने हमेशा कहा है कि यदि हमारा कोई नागरिक अवैध रूप से वहां रह रहा है और यह पुष्टि हो जाती है कि वे भारतीय हैं तो हम उनकी वापसी के लिए तैयार हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी दूसरी पारी की एक नए जोश के साथ शुरुआत कर दी है। अपने शपथ ग्रहण अभिभाषण में उन्होंने विश्वास दिलाया कि अब अमेरिका स्वर्णकाल में वापसी करने जा रहा है। हालांकि वे चुनाव प्रचार के दौरान भी बार-बार दोहराते रहे कि सत्ता में आने के बाद वे ‘अमेरिका प्रथम’ की नीति पर काम करेंगे। सत्ता की कमान सम्भालते ही उन्होंने इस पर अमल करना भी शुरू कर दिया। शपथ ग्रहण के तुरंत बाद उन्होंने घुसपैठ रोकने के लिए सीमा पर आपातकाल लगा दिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमेरिका को अलग कर दिया। ह्यूमन राइट काउंसिल छोड़ने की घोषणा कर दी है। इतना ही नहीं पेरिस जलवायु समझौते को अमान्य कर दिया। ब्रिक्स देशों को चेताया है कि यदि उनमें से कोई भी अमेरिकी नीतियों के विरुद्ध चलने का प्रयास करेगा, तो उसे उसके गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। हालांकि इसी रवैये की कीमत अमेरिका को चुकानी प़ड़ सकती है। उसका दुनिया में वर्चस्व कम होगा और दुनिया के अनेक देश नया संगठन बनाकर वैश्विक संस्थाओं को खड़ा करेंगे और अमेरिकी बाजार का भी विकल्प तलाशेंगे।
ट्रम्प अन्य देशों पर कब्जे, टेकओवर करने की मनोकामना स्पष्ट कर चुके हैं। अब तक ग्रीनलैंड द्वीप पर कब्जे, पनामा नहर के टेकओवर और अमेरिका के 51वें राज्य के रूप में कनाडा के विलय की इच्छा रोनाल्ड ट्रंप जता चुके हैं। इसके अलावा गाजा के 23 लाख लोगों को मिस्र-जॉर्डन में बसाकर वहां कब्जा करने और रिजॉर्ट सिटी बनाने का वक्तव्य देकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दुनिया के मानचित्र को बदलने की महत्वकांक्षी योजना दुनिया के समक्ष रखी है।
नेतन्याहू का ट्रम्प को समर्थन है, वे गाजा को लीज पर दे सकते हैं। ट्रम्प की योजना के विरोध में प्रमुख अरब देश आ चुके हैं। गाजा पर शासन करने वाले हमास ने तो इसे जातीय नरसंहार करार दिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 में से 146 देश फिलिस्तीन को मान्यता देते हैं, इनमें कई यूरोपीय देश भी हैं। डोनाल्ड ट्रम्प की नीति को फिलिस्तीनी, ग्रीनलैंड, कनाडा कड़ा विरोध करेंगे, जो शुरू भी हो चुका है। डोनाल्ड ट्रम्प की नीति व निर्णयों का परिणाम शीघ्र ही विश्व के सामने किस प्रकार का अंजाम लेकर आने वाले हैं, यह तो समय ही बताएगा, परंतु एक बात निश्चित है कि दुनिया में भारी उथल-पुथल अवश्य होगा।
विश्व में अमेरिका का प्रभुत्व समाप्त होता हुआ महसूस हो रहा है। ट्रम्प इसे वापस पाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, किंतु राह आसान नहीं है। देश और विदेश दोनों जगहों पर उनकी राह में रुकावटें आती रहेंगी। डोनाल्ड ट्रम्प अपने आंतरिक और बाहरी शत्रुओं पर कैसे जीत प्राप्त करते हैं, अब यही उनकी असली अग्निपरीक्षा होगी।