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खुला आसमां हमारा

खुला आसमां हमारा

by अमोल पेडणेकर
in मार्च २०१५, संपादकीय
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प्रति वर्ष आठ मार्च को विश्व महिला दिवस के अवसर परस्त्रियों का सम्मान, उनकी प्रगति और समाज में उनका योगदान इत्यादि विषयों
पर चर्चा की जाती है। महिलाओं में भी अब अधिक जागृति दिखाई देती है। अत: महिला दिन भी विशेष रूप से याद रखा जाने लगा है। अब महिलाओं के संपूर्ण विकास की अवधारणा में सशक्तिकरण और सुरक्षा के अलावा अन्य कई आयाम भी जुड़ गए हैं। सब से आनंददायी बात यह है कि समाज के विकास में महिलाओं की भूमिका प्रभावी करने की पद्धति महिलाएं स्वयं भी आत्मसात करने लगी हैं। महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में शराब की बिक्री का धंधा जोरों पर था। इसका सीधा असर परिवार और महिलाओं पर होने वाले अत्याचार पर दिखाई दे रहा था। चंद्रपुर की महिलाओं ने एक बड़े आंदोलन को नियमित रूप से चलाकर सरकार को शराब पर रोक लगाने के लिए बाध्य कर दिया। भारत के गांवों में रहनेवाली स्त्रियों की रोल मॉडल फिल्मों की नायिकाएं नहीं हैं। गांव की महिलाएं शिक्षित होकर ग्राम पंचायत के सरपंच के रूप में अपनी भूमिका निभा रही हैं। देश भर में लगभग १४ लाख महिलाएं ग्रामपंचायत में अपना योगदान दे रही हैं। इसमें से कई महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागृत हैं। सत्ता के समीकरणों को समझकर तथा समझाकर वे स्थानीय नेताओं को टक्कर दे रही हैं।
महिला सशक्तीकरण के संदर्भ में होनेवाले ये परिवर्तन ग्रामीण क्षेत्रों से होना आशादायी है। यह बुनियादी तौर पर विकास होने का प्रतीक है। पिछले दस वर्षों में भारत में विविध स्तरों पर महिलाएं विशेष रूप से चमक रही हैं। खेल के मैदान से लेकर ‘सीईओ’ जैसे अधिकारी पद पर जगह-जगह महिलाओं के बढ़ते अस्तित्व की पहचान होने लगी है। जिन क्षेत्रों पर आज तक पुरुषों का एकाधिकार माना जाता था उन क्षेत्रों में भी महिलाएं अपने कर्तृत्व की छाप छोड़ने लगी हैं। यह मिसाल है कि समय बदल रहा है। विश्व का इतिहास पुरुष प्रधान संस्कृति का ही है। कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो संशोधनों से लेकर साम्राज्य तक सभी जगह पुरुषों का ही वर्चस्व था। अर्थसत्ता, राजसत्ता, धर्मसत्ता सब कुछ पुरुषों के ही हाथ में रहीं। यह कहना शायद अतिशयोक्ति होगी कि इक्कीसवीं सदी में पुरुष प्रधान संस्कृति मिट जाएगी और उसकी जगह स्त्री प्रधान संस्कृति आएगी। परंतु भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के, बदलावों के स्पष्ट चित्र दिखने लगे हैं।
डॉ. बाबासाहब आंबेडकर कहते थे कि ‘मैं महिलाओं के विकास की वास्तविक स्थिति को ही समाज के विकास की योग्य स्थिति मानता हूं।’ समानता को अपने संविधान में स्थान देनेवाले भारत में अगर स्त्रियों को पुरुषों के बराबर का दर्जा मिलने लगे तो निश्चित रूप से पीढियों से चली आ रही उनकी उपेक्षा रुक जाएगी। साथ ही अपने अंदर के गुणों को साबित करने के हर अवसर का वह भरपूर फायदा उठाएगी। नई पीढ़ी की महिलाओं में ये भाव जागृत हो चुके हैं। वैश्वीकरण की हवा चल पड़ी हैं। शिक्षा के क्षितिज का विस्तार हो चुका है, भारतीय अर्थव्यवस्था भी नए रूेप में उभर रही है। ऐसे समय में अर्थात पिछले लगभग दस वर्षों में महिलाओं को अपनी गुणवत्ता सिद्ध करने के लिए खुला आसमान मिल गया है।
अब कई घटनाओं के माध्यम से इस बात का संदेश मिलता है कि महिलाओं की गुणवत्ता का उपयोग देश का सामाजिक स्तर बढ़ाने के लिए किया जा रहा है और महिलाएं भी इस दिशा में मार्गक्रमण कर रही हैं। समानता का अधिकार संविधान में है, परंतु समाज में नहीं था। एक ही घर में उच्च शिक्षा का अधिकार बेटे को मिलता था, परंतु बेटी को नहीं। व्यवसाय का उत्तराधिकारी चुनने का निर्णय हो या किसी संस्था का अधिकार पद हो महिलाओं को वरीयता नहीं दी जाती थी। पिछले डेढ़ दशक में यह स्थिति बदल गई है। खेल के मैदान से लेकर, सेना तक और दूरदर्शन से लेकर शेयर बाजार तक अनेक महत्वपूर्ण पदों पर गुणवान महिलाओं को अपना हुनर दिखाने का मौका मिला और उन्होंने मौके का भरपूर फायदा उठाया भी। मेरी कोम, सानिया मिर्जा, अंजली भागवत, नई पीढ़ी की महिलाओं की आयकॉन बन गईं। सुषमा स्वराज, स्मृति ईरानी, निर्मला सीतारामन इत्यादि महिलाओं ने राजनीति में वर्चस्व बनाया। मीरा बोरवणकर जैसी कई महिलाएं पुलिस में कार्यरत हैं। ग्लैमर की दुनिया में भी कई महिलाएं अभिनेत्री, गायिका और मॉडल के रूप में चमक रही हैं। उनसे फिल्म व्यवसाय को भी प्रतिष्ठा मिल रही है। कल्पना चावला के कारण कई महिलाएं अंतरिक्ष यात्रा के स्वप्न देखने लगी हैं। यह सूची और भी लंबी हो सकती है। कहने का तात्पर्य इतना ही है कि पीढ़ियों से गृहस्थी की चारदीवारी में फंसी महिलाओं को यह आभास हो गया है कि अब आधा आकाश उनका है। विविध क्षेत्रों में महिलाओं ने जो अपना नाम रोशन किया है उसके कारण अब उनके प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण बदलना अपरिहार्य हो गया है। यह परिवर्तन अपेक्षा से अधिक गति से हो रहा है यह अच्छी बात है। अब यह विश्वास हो रहा है कि कल की दुनिया महिलाओं की होगी। हर तरह के आह्वानों को पार करते हुए महिलाएं एक शक्ति के रूप में दुनिया के सामने आ रही हैं। शहरों के विभिन्न क्षेत्रों मे नेतृत्व करने वाली महिलाएं ग्रामीण महिलाओं को भी प्रेरित कर रही हैं। चंद्रपुर में शराब बिक्री पर रोक हो या ग्राम पंचायतों में सरपंच पद का कार्यभार संभालना हो सब कुछ इसी ओर संकेत करता है हर महिला एक दूसरे के लिए रोल मॉडल बन रही है। सभी क्षेत्र की महिलाओं की यह जीत है। इस महिला दिवस के अवसर पर हम सभी का यह प्रयत्न होना चाहिए कि महिलाओं से संबंधित सभी समस्याओं पर विशेष ध्यान देकर हम विकसित भारत के स्वप्न को साकार करें।

अमोल पेडणेकर

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