हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
गले लग जा जालिम

गले लग जा जालिम

by डॉ. एम. एल. खर
in मार्च २०१५, सामाजिक
0
 मुझे इस विशेषांक के लिए होली पर व्यंग्य लिखने कोकहा गया तो मैं सोच में पड़ गया। होली तो स्वयं ही हास्य-व्यंग्य का महोत्सव है। व्यंग्य पर व्यंग्य तो कोई डबल व्यंग्यकार ही लिख सकता है, जो मैं नहीं हूं। परन्तु आदेश का पालन करना भी आवश्यक है, अन्यथा मेरा ही चेहरा बदरंग हो जाएगा। अत: पाठकों से विनम्र निवेदन है कि उन्हें इस लेख में यदि व्यंग्य का अभीष्ट दर्शन न हो तो उदारतापूर्वक लेखक को क्षमा कर दें।
हां तो मैं कह रहा था कि होली हास्य-व्यंग्य का त्योहार है। होली और हुड़दंग में चोली-दामन का साथ है। यदि हुडदंग न हो तो मजा ही नहीं आता। इसी से तो हंसी ठहाके का माहौल लगता है। लोग एक दूसरे पर रंगों के साथ- साथ व्यंग्य के छींटे डालते हैं। वर्ष भर से मन के भीतर का गुबार और भड़ास बाहर निकालते हैं, कभी मज़ाक के रूप में, कभी हास्यास्पद उपमाओं के रूप में तो कुछ मनचले ग्रामीण गालियों के रूप में। लोग जोकर बने घूमते हैं तथा दूसरों पर और स्वयं पर भी खुलकर हंसते हैं। हमारे देश में इस ऋतु में कुछ संस्थाएं महामूर्ख सम्मेलन, टेंपा सम्मेलन और ठलुआ क्लब का आयोजन करती है, जिसमें बड़े बड़े विद्वान विदूषक बनकर हंसने-हंसाने का प्रयत्न करते हैं। परन्तु ऐसे आयोजन बनावटी लगते हैं जबकि होली पर हंसी मजाक स्वतःस्फूर्त होता है।
होलिकोत्सव के दो चरण हैं- पहला होलिका दहन और दूसरा रंग-गुलाल-अबीर का खेल। बुजुर्गों से सुना होलिका दहन, बुराई और अन्याय को जला डालने का प्रतीक है तथा रंग गुलाल से खेलना हर्षोल्लास का प्रदर्शन। मूल भावना यह है कि रंगीन-गुलाबी मिजाज में एक दूसरे को गले लगाकर बधाई दी जाए ताकि पुराने गिले-शिकवे उड़ती गुलाल के साथ उड़ जाएं। किसी शायर ने कहा है, ‘आ जा गले लग जा जालिम, रस्म-ए-दुनिया भी है, मौका भी है, दस्तूर भी है’। जालिम चाहे बेदर्दी प्रेमी-प्रेमिका हो, रूठा हुआ मित्र हो या पुरानी विद्वेषी। गले मिलकर रंग लगाकर, मनमुटाव मिटाकर सद्भावना की नई इबारत लिखी जाए। किन्तु क्या ऐसा हो पाता है? विशेषत बैरी के साथ और होना भी क्यों चाहिए? भला इतने दिनों दिल की तिजोरी में सुरक्षित रखा मनो-मालिण्य क्या क्षणभर गले मिलने से मिट सकता है? नहीं न! फिर इसकी क्या गारंटी है कि सामनेवाले ने भी गले मिलते ही पुरानी कटुता को झाड़कर फेंक दिया। इसलिए प्यारे भाई! दिखाने के लिए इस दस्तूर को निभाओं अवश्य लेकिन पुराने विद्वेष को ऐन्टीक मानकर सुरक्षित रखे रहो। आज के जमाने में यही व्यवहारिक है। समझदार व्यक्ति ऐसा ही करते हैं।
देखिए, यह कैसा अजब संयोग है कि होली और सरकारी बजट दोनों मार्च के महीने में पड़ते हैं। क्यों न हो? आखिर सरकार को बजट की पिचकारी लेकर नए- नए रंगबिरंगे टैक्सों की बौछार जो करनी होती है। इसके साथ ही उड़ता है नए- नए वादों का गुलाल और चमकती योजनाओं का अबीर। उड़ती गुलाल से आपकी आंखें कुछ देर को बंद हो जाती हैं, तब पता चलता है कि अनजाने में ही आपकी सूरत पर स्याही पोत दी गई। आप जानते हैं कि वादे और योजनाएं तो बातें हैं, बातों का क्या? हां, कुछ चुने हुए लोगों के सिरों और गालों पर गुलाल की रंगीनी अवश्य चस्पां हो जाती है, बाकी गुलाल तो हवा हो जाती है। यह त्योहार ही ऐसा है जो चंद रोज अपनी रंगीनी दिखाकर गुलाल की भांति उड़ जाता है तथा आगे आनेवाली गरमी की भीषण तपन की दस्तक दे जाता है, ठीक वैसे ही जैसे बजट के लुभावने रूप ने आंखें खुलते ही टैक्सों की पीड़ा सहने की सूचना देकर तिरोहित हो जाते हैं।
बच्चे होली आने का बेसब्री से इंतजार करते है। उन्हें बहुत मजा आता है। युवक-युवतियां भी जोश से भरे रहते हैं। होली तो आनंद मनाने का पर्व है। बूढ़ों में इस प्रकार का आनंद मनाने की न तो इच्छा होती है और न सामर्थ्य। उन्हें तो युवक मात्र गुलाल का टीका लगाकर, आशीर्वाद लेकर अपनी हमजोली के साथ मस्ती करने निकल जाते हैं। वृद्धों को समझ लेना चाहिए कि अब वे होली के हर्षोल्लास से रिटायर हो गए हैं। सरकारी नौकरी में भी तो अपनी एक आयु के बाद रिटायर कर दिया जाता है। यदि राजनीति में ऐसा किया गया तो कौन सा अनर्थ हो गया? हे पूज्यवर।अब आपकी उम्र फाग खेलने की नहीं रही, सो घर बैठकर नए युवा खिलाड़ियों को आशीर्वाद देते रहो। क्यों नाहक अपनी छिछालेदार कराना चाहते हैं। आपको तो अब बुढ़ापे की तपन सहन करना है। होली आपको यही पैगाम देती है। फिर भी याद रखिए कि वर्ष में यही एक ऐसा अवसर है, जब भोंडापन शोभायमान होता है।
होली मौसम बदलने का सूचक है। सरकार भी बजट पेश करते समय पुरानी नीतियों को बदलती है। इस सम्बंध में मेरे एक मित्र ने कभी प्रश्न किया था- ‘भाई साहब, प्रति वर्ष सरकार के मंत्रीगण नीतियों मे रद्दोबदल और नया टैक्स स्ट्रक्चर लाते समय कहते हैं कि इन्हें तर्कसंगत बनाया जा रहा है। अर्थात परोक्षत: यह स्वीकार किया जाता है उनके ही द्वारा अपनाई गई पूर्व नीतियां अतर्कसंगत हैं। यह तो ऐसा हुआ जैसे होली में अपने हाथ से अपना ही मुंह काला करना। ऐसा क्यों? ‘तब मैंने कहा था’ देखो भाई अपनी गलती स्वीकार करना बड़प्पन की निशानी है। बुद्धिमान वही है जो ऐसा करके परिमार्जन कर लें। जहां तक अपने हाथों अपना मुंह रंगने की बात है तो होली में कई लोग ऐसा करके घर से बाहर निकलते हैं ताकि देखने वाले समझ जाए कि जनाब घरवाली से होली खेलकर आ रहे हैं।’ इस दिन समस्त शालीनता और वर्जनाओं को ताक पर रखकर उच्छृंखल हो जाने की स्वतंत्रता रहती है। वर्जित है तो मात्र गंभीरता। किंतु याद रहे यह सब हो लक्ष्मण रेखा के भीतर ही। नहीं तो लेने के देने पड़ जाएंगे।
होली को भक्त प्रल्हाद की कथा से जोड़कर हमने उसे एक धार्मिक रूप दे दिया है किंतु जो लोग होली को अपने धर्म-विरुद्ध मानते हैं और उससे बचते हैं, उनमें से ही कुछ भटके हुए कट्टरवादी एक दूसरे प्रकार की होली, वर्ष में एक दिन नहीं, बल्कि आए दिन खेलते हैं। खून की होली। विडम्बना यह है कि वे इस खून की होली को अपना धार्मिक कृत्य (जेहाद) मानते हैं। उन्हें अहिंसात्मक होली से परहेज है, हिंसात्मक, होली खेलना उनका शगल है। होलिका दहन की तर्ज पर वे गांव के गांव जला देते हैं। निरीह बेकसूर लोगों को जिन्दा जलाकर खुश होते हैं और अपनी सफलता का ऐलान करते हैं। अपनी अपनी समझ का फेर है। सामिष मौजी शाकाहार को हेय दृष्टि से देखता हैं।
उत्तर प्रदेश में बरसाने की लट्ठमार होली प्रसिद्ध है। इसमें स्त्रियां पुरुषों पर डंडे बरसाती हैं और पुरुष बेचारे बांस की ढालों से अपने को बचाते फिरते हैं। प्रतीकात्मक रूप से यह नारी के सशक्त होने का प्रदर्शन है। वर्षं भर तो वह पुरुष से दबी रहती है, पर इस एक दिन वह ‘अबला’ से ‘बला’ बन जाती है। वैसे देखा जाए तो ‘शक्ति’ शब्द स्वयं ही स्त्री बोधक है। जितनी भी शक्तिशाली संस्थाएं या वस्तुएं हैं वे सब नारी वाचक हैं जैसे सरकार, संसद, पुलिस, अदालत, पिस्तौल, बंदूक, तोप, मिसाइल, जेल, कोठरी आदि। हिंदी भाषा में उन शब्दों द्वारा नारी सशक्तीकरण को वरीयता दी गई है। नारी तो है ही सशक्त। लोग व्यर्थ ही नारी सशक्तीकरण की बात करते हैं। वैसे आप चाहें तो मेरे इस कथन को होली का व्यंगय भी मान सकते हैं, क्योंकि वास्तव में पुरुष नारी को सनातन के काल से रौंदता आया है। इसवीं सदी में यह रौंदना सामूहिक हो चला है। नारी सशक्तीकरण का पारा खोखला है। देखो, होली के खुशनुमा अवसर पर मैंने भी कैसी रुलानेवाली बात कह दी।
आइए थोडा हंस लें। होली पर लोगों की विद्रूपताओं को हंसी के बहाने उजागर किया जाता है। एक बार एक सात फुट लंबे सीकिया पहलवान को उपाधि दी गयी- ‘हाथ अगरबत्ती, पाव मोमबत्ती’। दूसरे नाटे सज्जन को कहा गया- ‘खड़े तो लौंग, बैठे तो इलायची। एक पांडे जी चले आ रहे थे तो उनसे कहा गया आइए प में अंडे की मात्रा (प+अंडे= पांडे)। एक काले महाशय की पत्नी बहुत गोरी थी सो उन्हें उपाधि दी गई- ‘कौवे की चोंच में अनार की कलीं।’ होली पर किसी को कुछ भी कहने की छूट रहती है। रंग न हो तो गोबर कीचड़ तक उछाला जाता है। सब कुछ किया जाता है सिर्फ एक बात के साथ- ‘बुरा न मानो होली है’।

डॉ. एम. एल. खर

Next Post
मुसीबत और परेशानी

मुसीबत और परेशानी

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0