‘हिंदी विवेक’ के पांच वर्ष

पिछले पांच वर्षों से ‘हिंदी विवेक’ मासिक पत्रिका सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं समाज के विभिन्न आयामों पर प्रभावी रूप से भाष्य करने का काम कर रही है। अप्रैल २०१० में ‘हिंदी विवेक’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ। सामाजिक, राजनीतिक एवं विशेष रूप से राष्ट्रीय मुद्दों पर प्रभावी रूप से भाष्य करने वाली मासिक पत्रिकाओं का हिंदी क्षेत्र में अभाव है। इस रिक्तता को पूरा करने का प्रयास ‘हिंदी विवेक’ पत्रिका पिछले पांच वर्षों से कर रही है।

पत्रकारिता के क्षेत्र में नियमित व अनियमित पत्रिकाओं की स्थिति देखें तो ‘हिंदी विवेक’ जैसी मासिक पत्रिका पांच वर्ष से नियमित रूप से चल रही है यह उल्लेखनीय होगा। ‘हिंदी विवेक’ हिंदुस्थान प्रकाशन संस्था की ओर से प्रकाशित किया जाता है। मराठी ‘विवेक’ साप्ताहिक को ६० पूर्ण होने के बाद उस हीरक महोत्सवी वर्ष में विवेक परिवार ने हिंदी विवेक मासिक पत्रिका आरंभ की। मराठी विवेक की ६० वर्षों की समृद्ध परंपरा है। हिंदी क्षेत्र की व्यापकता देखते हुए उन सभी के साथ न्याय हो इस तरह के विषय ‘हिंदी विवेक’ के जरिए पाठकों तक पहुंचने लगे। कुछ पत्रिकाएं आम पाठकों के नाम पर सतही अथवा हल्की मनोरंजन की सामग्री ठेलने में रुचि रखती हैं। ‘हिंदी विवेक’ का इस प्रकार की सतही हल्की सामग्री से कुछ लेनादेना नहीं है। पहले अंक से ही यह बात स्पष्ट होती गई।

‘हिंदी विवेक’ की प्रस्तुति में एक तरह का उम्दा खुलापन पहले से ही मौजूद है। इस खुलेपन के कारण इस पत्रिका में विविध रुझानों व प्रवृत्तियों तथा भिन्न पीढ़ियों के लेखक अपनी प्रभावी कलम से पाठकों के जेहन में उतरने के लिए सहभागी हुए हैं। मारुति चितमपल्ली, प्रकाश आमटे, रमेश पतंगे, आलोक भट्टाचार्य, गंगाधर ढोबले, रंजना पोहनकर से लेकर आबिद सुर्ती, मृदुला सिन्हा, जगदीश उपासने, नरेंद्र कोहली, तरुण विजय, दामोदर खड़से, विश्वनाथ सचदेव, हर्षनंदिनी भाटिया, अमृतलाल वेगड़ तक अनेक लब्धप्रतिष्ठित लेखकों ने ‘हिंदी विवेक’ को अपनी कलम से समृद्ध किया है। विविध विषयों को समर्पित तथा पाठकों को मौलिक जानकारी देने वाले विशेषांक प्रकाशित करना ‘हिंदी विवेक’ की खास विशेषता है। मां विशेषांक, सिंधी समाज दर्शन विशेषांक, संगीत दीपावली विशेषांक, राष्ट्र सुरक्षा विशेषांक, हिंदंी दिवस विशेषांक, पर्यावरण विशेषांक, वनवासी कल्याण विशेषांक, उत्तर भारतीय समाज विशेषांक, बिहार परिचय विशेषांक जैसे समाज मन को आकर्षित करने वाले अनेक विषय ‘हिंदी विवेक’ ने चुने। इससे ‘हिंदी विवेक’ महज एक पत्रिका न रह कर सृजनात्मक पत्रिका बन गई।

‘हिंदी विवेक’ में लिखने वाले लेखकों और अब तक प्रकाशित विशेषांकों की केवल सूची देखने से ही ‘हिंदी विवेक’ के स्तर की पहचान हो जाएगी। कहानियां, कविताएं, समीक्षा, फिल्म, संस्कृति, संगीत, खेल, पर्यटन, महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों से जुड़े विविध विषयों व स्वरूपों के लेखन को अवसर प्रदान किए जाने से ‘हिंदी विवेक’ ने पाठकों के मन में गहरी जड़ें जमा ली हैं। केवल साहित्यिक क्षेत्र तक ही सीमित रहने का बंधन ‘हिंदी विवेक’ ने स्वीकार नहीं किया। अपनी संस्कृति के साथ समग्रता से जुड़ने के प्रयासों के तहत सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दों के विविध पहलुओं को स्पर्श करने का ‘हिंदी विवेक’ ने लगतार प्रयत्न किया है।

राजनीति, राष्ट्रनीति, समाज नीति और अर्थनीति जैसे क्षेत्रों पर भाष्य करने वाला लेखन ‘हिंदी विवेक’ अवश्य प्रकाशित करता है। वैचारिक अनुशासन और आम पाठकों के बीच सम्यक संवाद कायम करने का प्रयास इस लेखन में होता है। पाठकों को सहलाने वाले लेखन की अपेक्षा उन्हें अंतर्मुख कर अधिक समृद्ध करने वाला लेखन ‘हिंदी विवेक’ में होता है। उसमें गंभीरता होती है, फिर भी पाठकों से संवाद स्थापित करने की अभिलाषा भी उसमें खूब होती है।

‘हिंदी विवेक’ में इस तरह का खुलापन है, फिर भी पत्रिका की अपनी भूमिका भी है। ‘राष्ट्रहित सर्वोपरि’ इस भूमिका को लेकर ‘हिंदी विवेक’ इस क्षेत्र में काम कर रहा है। फलस्वरूप साहित्यिक खुलापन और निश्चित भूमिका के बीच परस्पर सामंजस्य निर्माण करने का कठिन कार्य पूरा करने का प्रयास ‘हिंदी विवेक’ ध्यानपूर्वक करता है। प्रारंभ के पहले अंक के मुखपृष्ठ से ही आकर्षक व ध्यानाकर्षित विषय दिखाई देते हैं। सम्पादकियों में संवाद, चिकित्सा, सृजनात्मकता के आधार पर लेखन होता है। सम्पादकीय पठनीय होते हैं। उनमें पाठकों को ज्ञानवर्धक जानकारी देने के अलावा नई बातों को उजागर करने का सृजनशील प्रयास होता है। ‘राष्ट्रहित सर्वोपरि’ के मूल्य का जतन करने वाले सम्पादकीय ‘हिंदी विवेक’ की खास विशेषता है। आसपास होने वाली घटनाओं, वैश्विक स्तर पर होने वाली घटनाओं की ओर हमें किस दृष्टि से देखना चाहिए यह स्पष्ट करने की जिम्मेदारी ‘हिंदी विवेक’ के सम्पादकीय में मुख्य रूप से परिलक्षित होती है।

वैश्विक स्तर पर और देश में तथा समाज में होने वाली घटनाओं के संदर्भ में ‘हिंदी विवेक’ राष्ट्रीय, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक भूमिका को उभारने की दृष्टि से अंक में विविध विषयों की रूपरेखा होती है। पाठकों ने लेख-आलेख पसंद आने या न पसंद आने के बारे में अवश्य सूचित किया ही है।

मासिक पत्रिका चलाना कई अर्थों में कठिन बात होती है। आर्थिक दिक्कतें सब से पहली बात होती है। इसका विकल्प यही है कि ग्राहकों की संख्या इतनी बढ़नी चाहिए कि पत्रिका आत्मनिर्भर हो सके। हिंदी से स्नेह करने वाले सभी स्तरों के पाठकों का सहभाग बढ़ाकर ग्राहकों की संख्या बढ़ाने का लक्ष्य ‘हिंदी विवेक’ के समक्ष है। पिछले पांच वर्षों में अपनी पहचान कायम करने में ‘हिंदी विवेक’ पत्रिका सफल रही है। फलस्वरूप विज्ञापनदाताओं, हितचिंतकों का अर्थपूर्ण सहयोग ‘हिंदी विवेक’ को प्राप्त हो रहा है। इसे देखते हुए ‘हिंदी विवेक’ की जिम्मेदारी भविष्य में और बढ़ने वाली है और भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर सम्पादकीय, ग्राहकों में बढ़ोत्तरी, विज्ञापनदाताओं का सहयोग इन सभी बातों के बारे में उचित रूपरेखा बनाई गई है।

एक और दिक्कत यह है कि हर माह अंक प्रकाशित करना हो तो स्तरीय साहित्य हर माह उपलब्ध होना जरूरी होता है। इस दिक्कत को एक अवसर मानकर उसका सामना करते हुए एक विशिष्ट स्तर से नीचे न उतरने की कसरत ‘हिंदी विवेक’ करता है और इस स्थिति में भी अपनी छवि बनाने का कार्य कर रहा है। आज भी नई चुनौतियां ‘हिंदी विवेक’ के समक्ष हैं ही। सार यह है कि ‘राष्ट्रहित सर्वोपरि’ मानकर पत्रकारिता के क्षेत्र में पाठकों का प्रबोधन करते हुए जो भी आवश्यक होगा वह करते रहने का ‘हिंदी विवेक’ ने संकल्प किया है। और, इसके लिए क्रियाशील पाठकों, विज्ञापनदाताओं व हितचिंतकों का सहयोग हमें निरंतर प्राप्त होगा यह हमें उम्मीद है।

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अमोल पेडणेकर

दि. १६.१.१५

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