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चिंता और चिंतन की जरूरत

by अमोल पेडणेकर
in जनवरी २०१८, संपादकीय
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लोकतंत्र में चुनाव का विशेष महत्व है. इन चुनावों के माध्यम से जनता अपने भविष्य के सपने को पंख देने की कोशिश करती है. हाल में हुए गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों को इसी दृष्टि से महत्व प्राप्त हो गया था. चुनावों के दौरान हिमाचल की अपेक्षा गुजरात के चुनाव विशेष चर्चित रहे. चुनावी माहौल आरोप-प्रत्यारोपों से उफनता रहा. इसमें एक बात तीव्रता से अनुभव की जा रही थी कि गुजरात के चुनाव देश में भविष्य के राजनीतिक समीकरण बदलने वाले सिद्ध होंगे. नरेंद्र मोदी गुजरात के भूमिपुत्र हैं. इसलिए आरंभ में ऐसा लग रहा था कि यह चुनाव इकतरफा होंगे. लेकिन ये चुनाव दो समतुल्य पहलवानों की दंगल साबित हुई. भारतीय जनता पार्टी इस दंगल में विजयी हुई. उसके ९९ उम्मीदवार जीते. अतः ‘जो जीता वही सिकंदर’ के हिसाब से भाजपा को बधाई. लक्ष्य कभी भी बड़ा ही होना चाहिए, इस नियम के अनुसार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने १५० सीटों का लक्ष्य रखा था. इस संख्या का पीछा करते समय भाजपा ने पिछले पांच और २२ वर्षों में गुजरात में हुआ विकास जनता के समक्ष रखा. इसीके साथ राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा सरकार के कार्यों को भी प्रचार में प्रस्तुत किया. कांग्रेस ने जातिगत राजनीति के अपने समीकरण का इस्तेमाल किया. नोटबंदी, जीएसटी, रोजगार के बारे में देश भर में एक तरह की भ्रांति निर्माण करने वाला प्रचार कांग्रेस ने किया. कपिल सिब्बल द्वारा रामजन्मभूमि को लेकर हौव्वा खड़ा करने और मणिशंकर अय्यर द्वारा प्रधान मंत्री जैसे सम्मानजनक पद पर आसीन नरेंद्र मोदी को ‘नीच आदमी’ कहने जैसी निचले स्तर की राजनीति कांग्रेस ने की. गुजरात की जनता ने इस तरह के सभी नकारात्मक प्रचार को नकार दिया है. कांग्रेस ने नोटबंदी, जीएसटी और विकास के मुद्दे पर संभ्रम फैलाने की कोशिश की, जिसे भी जनता ने ठुकरा दिया. वोटों के जरिए गुजरात की जनता ने साफ कर दिया है कि इस तरह की भ्रांतियों का उनके मन पर कोई असर नहीं होता.
हिमाचल में भाजपा को मिली विजय वहां की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के विरोध में मिली विजय है. हिमाचल में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने जो ढुलमुल नीति अपनाई थी उसके विरोध में प्रदेश की जनता ने भाजपा को बहुमत से विजयीश्री दिलाई. इसी तरह का प्रवाह भारतीय राजनीति में हम बार-बार अनुभव कर रहे हैं. सत्तारूढ़ लोगों का काम जनता को संतोष दिलाने वाला न हो तो जनता उन्हें लोकतंत्र के मार्ग से विस्थापित कर देती है. इस दृष्टि से गुजरात के चुनाव परिणामों की ओर देखें. गुजरात में पिछले २२ वर्षों से भाजपा सत्ता में है. इतनी प्रदीर्घ अवधि तक सत्ता में होने के बाद भी गुजरात की जनता ने भाजपा को पुनः सत्ता सौंप दी है. भाजपा की कार्यप्रणाली पर गुजरात की जनता के ठोस विश्वास का यह प्रतीक है. लोकतंत्र की दृष्टि से गुजरात के चुनाव की ओर देखें तो लगता है भाजपा गुजराती जनता के विकास की दृष्टि से वाकई कार्यरत है.
चुनाव में विजयी होने के बाद पत्रकारों की ओर से एक प्रश्न जानबूझकर उपस्थित किया जा रहा है- गुजरात की विजय किसके कारण हुई? भूमिपुत्र नरेंद्र मोदी के कारण या गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी के कारण? इस बार गुजरात के चुनाव किसी भी धार्मिक अथवा भावनात्मक मुद्दे पर नहीं लड़े गए. भाजपा ने विकास के मुद्दे पर यह चुनाव लड़ा. गुजरात की जनता ने विकास के सकारात्मक मुद्दे को ही विजय तक पहुंचाकर सकारात्मक प्रतिसाद दिया है. २०१२ की तुलना में इस चुनाव में भाजपा को मिले वोटों का प्रतिशत बढ़ा है. यह एक अच्छी बात है. एक बात भाजपा और कांग्रेस दोनों में अनुभव की जा रही थी और वह थी स्थानीय सक्षम नेतृत्व का अभाव. भाजपा के गुजरात के भूमिपुत्र नरेंद्र मोदी को इस बार चुनाव प्रचार में अपने को पूरी तरह झोंक देना पड़ा. कांग्रेस के राहुल गांधी ने भी अपने को इस चुनाव में दांव पर लगा दिया था. लगातार होती दारुण पराजय तो कांग्रेस नियति बन गई थी. वैसे भी कांग्रेस के पास इस चुनाव में गंवाने जैसा कुछ था ही नहीं. इस स्थिति में जय-पराजय की सीमा रेखा तक कांग्रेस पहुंच जाती है. इस बार के चुनाव में ८० सीटें पाकर उसने भाजपा को २०१२ में उसकी जीती ११५ सीटों तक पहुंचने से भी रोक दिया. पिछले चुनाव की कांग्रेस की ६१ सीटें उछल कर इस बार ८० तक पहुंचना कांग्रेस कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने वाला है. हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और मेवानी जैसे युवकों को साथ लेकर कांग्रेस ने कड़ी चुनौती उपस्थित की थी. पूरा चुनाव भाजपा और कांग्रेस के दो पाटों के बीच मथ रहा था. एक तरफ अकेली भाजपा और दूसरी तरफ सारे- इस तरह के ध्रुवीकरण के बावजूद भाजपा का जीत जाना गुजराती जनता के उसे प्राप्त समर्थन को उजागर करता है.
चुनाव प्रचार के दौरान एक दूसरे पर जो आरोप लगाए जाते हैं उन्हें जनता कितनी गंभीरता से लेती है इसका चुनाव परिणामों से पता चलता है. प्रचार की धमाचौकड़ी के दौरान आपके पास जनता जनार्दन की सेवा का मंत्र होगा तो ही जनता आपके हाथों में सत्ता का तंत्र देती है. आज गुजरात में भाजपा की विजय यही साबित कर रही है. २०१२ में भाजपा को ११५ सीटें मिली थीं और अब ९९ सीटें मिली हैं. जिन सीटों पर भाजपा ने विजय पायी है, उन्हें हासिल करने के लिए भाजपा ने जी-तोड़ मेहनत अवश्य की है. हाल में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने राहुल गांधी इस चुनाव में एक नए रूप और जोश के साथ भारतीय जनता के समक्ष आए. उन्होंने इसके पूर्व ही ‘‘२०१९ भूल जाओ, २०२४ के लिए तैयारी करो’’ का संदेश अपने कार्यकर्ताओं को दिया है.
गुजरात के चुनावों का भारतीय राजनीति पर निश्चित रूप से असर होगा. अब शीघ्र ही राजस्थान, मध्यप्रदेश, ओडिशा में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं. साथ मे २०१९ मे लोकसभा चुनाव होने है. भाजपा के नेतृत्व और कार्यकर्ताओं को सतर्क रहने की जरूरत है. राहुल गांधी ने कांग्रेस में नई उम्मीद जगाई है. गुजरात में चुनाव प्रचार सभाओं में भूमिपुत्र नरेंद्र मोदी का सहभाग भाजपा को गुजरात राज्य में बचा पाया. भाजपा को भविष्य में संगठनात्मक दृष्टि से पार्टी नेतृत्व, नियति और नीति निश्चित करने के लिए देश के हर राज्य में विशेष ध्यान केंद्रित करना होगा. अतः भाजपा के नेतृत्व और कार्यकर्ताओं को इस दृष्टि से चिंता और चिंतन अवश्य करना चाहिए.

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