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पुलिस कभी नियमों को नहीं तोड़ती, नियमों को तो लोग तोड़ते है

पुलिस कभी नियमों को नहीं तोड़ती, नियमों को तो लोग तोड़ते है

by अमोल पेडणेकर
in सामाजिक
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मोदी सरकार ने मोटर वाहन कानूनों में राष्ट्रीय स्तर पर नए सुधारित नियम लागू किए हैं। इन  सुधारित कानूनों में ट्रैफिक से जुड़ी सभी गलतियों पर जुर्माने की राशि में वृद्धि की है। गौरतलब है कि सुधारित कानूनों के लागू होते ही केंद्र सरकार पर नकारात्मक प्रतिक्रिया देने में समाज का कुछ हिस्सा अग्रसर हुआ है। इसमें सोशल मीडिया पर जोर शोर से बहस शुरू है। जिस सोशल मीडिया से सामाजिक सुधारों के लिए सहायक होने की अपेक्षा की जाती है, वही सोशल मीडिया अपनी उद्देश्य को नजरअंदाज करते हुए नकारात्मक वातावरण फैलाने में अपना योगदान दे रहा है। बहती गंगा में मोदी विरोधी अपने हाथ साफ करते हुए दिखाई दे रहे हैं।

देश में ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करना शौर्य की बात मानने वाले लोग भी है। नियमों का उल्लंघन करने वालों का मानना होता है कि ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करते हुए पकड़े भी गए तो सस्ते में छूट जाएंगे और इसी सूझबूझ के कारण दुनिया में सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं भारत देश में होती है। रफ्तार से गाड़ी चलाना, शराब पीकर गाड़ी चलाना  लोग अपनी शान मानते हैं। इस कारण होने वाली सड़क दुर्घटनाओं की संख्या भी बहुत बड़ी है।

मामूली सड़क हादसे में हेलमेट ना होने के कारण कई लोगों की मौत होने की खबरें हम रोज पढ़ते हैं। ऐसे में रास्ता यह दिखाई देता है कि मोटर वाहन कानून को सख्त करके जुर्माने की राशि बढ़ा दी जाए। भारी जुर्माने के कारण सड़क नियमों को  लोग मजबूरी से मानने लगे। आहिस्ता – आहिस्ता इसी के कारण सड़क नियमों का पालन करना समाज की आदत हो जाएगी।

सरकार के सड़क नियमों को सख्त करने के प्रयासों पर जनता के द्वारा विरोध जताना स्वाभाविक बात है। विरोध को दर्शाते हुए वाहन पुलिसकर्मियों का भ्रष्टाचार, रास्तों  के गड्डे जैसे मुद्दों की भी बड़ी जोर शोर से चर्चा हो रही है। मोटर वाहन कानून का पालन करना और सड़क के गड्डेे एवं यातायात पुलिस का भ्रष्टाचार दोनों मुद्दे अलग है। दो  अलग-अलग  मुद्दों को गलत तर्क के आधार पर जोड़ना यह एक सामाजिक बीमारी है। ऐसे ही गलत मुद्दों को सोशल मीडिया के माध्यम से समाज में प्रसारित करने की गलत बात होते हुए हमें दिखाई दे रही  है। सोशल मीडिया समाज में गलत धारणाएं निर्माण करने में अपना योगदान दे रही है । सरकार के माध्यम से किसी भी नियमों में परिवर्तन किए जाने पर उन नियमों के संदर्भ में समाज में उत्सुकता अथवा नाराजगी निर्माण होना एक सहजभाव है। लेकिन इस घटना को मोदी  सरकार के विरुद्ध द्वेष भाव रखने वालों ने राजनीतिक उत्सव का स्वरूप दिया है।

  नियमों का  पालन करना प्रत्येक व्यक्ति की वैयक्तिगत ज़िम्मेदारी भी होती है। समाज और देश की जरूरतों को ध्यान में रखकर  नियम और कर्तव्य का पालन करना आवश्यक होता है। जिससे देश के नागरिकों की देश के कानून के प्रति सजगता नापी जाती है। भारत में सड़क नियमों के पालन को लेकर स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। समाज की बिगड़ती आदत को देखकर सड़क पर वाहन चलाने के नियमों को सख्त करने में किसी को तो हिम्मत दिखाने की जरूरत थी।

कई सालों से सड़क पर वाहन चलाने के नियमों को लेकर प्रश्न मौजूद थे, उन प्रश्नों का हल निकालने का प्रयास मोदी सरकार के केंद्रीय यातायात मंत्री  नितिन गडकरी ने किया है। नया कानून लागू होते ही लोगों ने हेलमेट खरीदने और प्रदूषण प्रमाण पत्र बनाने के लिए भीड़ लगा दी है। यह  बात यही दर्शाती है  कि समाज में  कड़े कानून की अत्यंत आवश्यकता है। इस स्थिति को देखते हुए ऐसा लगता है कि परिवर्तित हुए कानूनों को लेकर लोगों के मन में पूरी तरह से अराजकता है, ऐसी कोई बात नहीं। यह तो नकारात्मक मीडिया की मानसिकता का नजरिया हैं, जो देश में होने वाली एकाध दूसरी बातों का बतंगड़ बना कर पेश कर रही है।

समाज को सहज भाव से कार्यान्वित करने के लिए कानून यह संकल्पना मनुष्य ने ही अस्तित्व में लाई है। मनुष्य के नागरिकता की प्रक्रिया में इन कानूनों का पालन करना अत्यंत महत्व की बात होती है। नागरिकों की ओर से सड़क यातायात कानूनों का उल्लंघन होता है । यह अत्यंत शर्म की बात है। इसी सामाजिक गलत आदत के कारण आए दिन  सड़क दुर्घटना में मौतें होती है। ऐसी स्थिति में एक बात हमें समझना  अत्यंत जरूरी है कि समाज व्यवस्था तभी यशस्वी होती है जब समाज में कानूनों के नियमों का पालन अत्यंत सहज भाव से होता है। दुर्भाग्य से यह बात कहनी पड़ रही है कि नितिन गडकरी जी ने समाज में पनप रही गलत आदत को ठीक करने का प्रयास किया है। ऐसी स्थिति में यातायात पुलिस भ्रष्टाचार करेगी, ऐसी बातों को आगे लाकर कानून  द्वारा तय किए हुए नियमों को नजरअंदाज करने का प्रयास करना  यह सही बात नहीं है।

हाल ही में बाटला हाउस सिनेमा देखने का योग आया। उस सिनेमा में  एक संवाद बहुत बढ़िया है। पुलिस कभी नियमों को नहीं तोड़ती,  नियमों को तो समाज तोड़ता है और कानून से बचने के लिए पुलिस को घुस देने का प्रयास करता है। पुलिस भ्रष्टाचार करेगी, यह पूर्ण सत्य नहीं है। इसलिए यातायात पुलिस भ्रष्टाचार करेगी, इस बात को लेकर सुधारित सड़क कानूनों को विरोध करना यह सड़ी हुई मानसिकता का लक्षण है। अपनी गलत धारणाओं को ध्यान में रखकर कानून को दोष देना ठीक नहीं।

हमारे देश में ट्रैफिक नियमों का पालन गंभीरता से न  करने के कारण जो अराजकता का माहौल समाज में दिखाई दे रहा है। वह माहौल हमारे गलत आदतों के कारण बना है। नरेंद्र मोदी सरकार ने लागू किए हुए सड़क नियमों के कारण हमारी बिगड़ी हुई आदत  सुधर जाती है  तो परावर्तित हुए सड़क कानून का बहुत बड़ा योगदान होगा। समाज माध्यम और मीडिया के माध्यम से प्रसारित किए जाने वाले नकारात्मक माहौल के बजाय सड़क नियमों का यशस्वी होना अत्यंत आवश्यक है। नए भारत में प्रवेश करते वक्त हमारी गलत सामाजिक आदतों को भी नियमों के अंतर्गत परिमाण देना महत्वपूर्ण है। नरेंद्र मोदी सरकार का  सड़क नियमों को सख्त करने में शायद यही दृष्टिकोण होगा।

 

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Comments 1

  1. Dr Indresh Kulshrestha says:
    6 years ago

    रोड के नियम गधे व घोड़े को अनुशासन में रहने के लिए बनाए जाते हैं। नियमों को पालन करने में आपत्ति है या दंड की।
    नियमों का कठोरता से पालन करने से कोई भी दंड नहीं हैं।
    फिर दंड तो गलती होने पर मिलना ही चाहिए रामायण में वर्णित किया है

    भय बिनु होय न प्रीति…..…

    Reply

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