हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
मीडिया के सात्विक तेजको लगा ग्रहण

मीडिया के सात्विक तेजको लगा ग्रहण

by जगदीश उपासने
in मई-२०१५, सामाजिक
0
भारत में मीडिया की वर्तमान दशा-दिशा के बारे में जोबात सबसे अधिक स्पष्ट है, वह यह है कि स्वतंत्रता आंदोलन में पूरी ताकत, प्रतिबद्धता, समर्पण और निष्ठा के साथ भाग लेने वाला ‘प्रेस’ आज ‘मीडिया’ बन चुका है। समाचार और विचार देने वाला प्रभावी माध्यम आज स्वयं समाचारों में है और अधिकांश भारतवासियों के दैनंदिन विचार-विमर्श तथा आलोचनाओं का केंद्रबिंदु बना हुआ है। आज मीडिया के विभिन्न स्वरूपों प्रिंट, टीवी न्यूज और वेबन्यूज पोर्टल में से हरेक के उद्देश्य की तुलना भारत में पहला समाचार पत्र ‘बंगाल गजट’ या ‘केलकटा जनरल एडवाइजर’ २९ जनवरी १७८० को कलकत्ता (कोलकाता) से प्रकाशित करने वाले आइरिश अंग्रेज जेम्स ऑगस्टस हिक्की के घोषित उद्देश्य से कीजिए तो पता चल जाएगा कि अतीत के ‘प्रेस’ से आज मीडिया में तब्दील हुए समाचार-विचार माध्यम आज स्वयं सुर्खियों में क्यों हैं।
हिक्की ने अपने अखबार का उद्देश्य घोषित किया: ‘‘यह राजनैतिक और व्यापारिक पत्र खुला तो सबके लिए है, लेकिन प्रभावित किसी से नहीं है।’’ अखबार निकालने के दो साल बाद ही जब गर्वनर जनरल वारेन हेस्टिग्स से लेकर मुख्य न्यायाधीश काउंसिल के सदस्यों पर व्यक्तिगत प्रहार करने के कारण हिक्की को जेल की हवा खानी पड़ी तो जेल से संपादन करते हुए उसने लिखा, ‘‘अपने मन और आत्मा की स्वतंत्रता के लिए अपने शरीर को बंधन में डालने में मुझे आनंद आता है।’’ हिक्की कोई महान पत्रकार नहीं था और न ही उसने अपना पत्र स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देने को निकाला था। उसके दो पृष्ठों के अखबार में मुख्य रूप से हेस्टिग्स और कंपनी के अन्य बड़े अधिकारियों के निजी जीवन की हल्की, चटपटी खबरें होती थीं। एक तरह से वह पेज-३ का आदिम संस्करण था। दूसरे अंग्रेजों की तरह वह भी कंपनी के हित की बात करता था। लेकिन उसे इतनी समझ् तो थी कि बता सके कि समाचार पत्र की स्वतंत्रता क्या होती है। और इतना साहस भी कि समाचार पत्र की स्वतंत्रता के लिए लड़ सके और अपना सब कुछ न्यौछावर कर सके।
तब से लेकर अब तक हुगली में काफी पानी बह चुका है। आज के मीडिया का उद्देश्य या ध्येयवाक्य अगर कोई है, तो वह समाचार पत्रों के मामले में उनके मास्टहेड (पहले पेज पर समाचार पत्र का नाम) के साथ कहीं छोटे अक्षरों में लिखा होता है और प्रकाशित सामग्री से बहुत मेल नहीं खाता। कई अखबारों में कोई ध्येयवाक्य भी नहीं होता। लगभभग सभी समाचार चैनल भी अपना उद्देश्य ‘अपने मुंह मियां मिठ्ठू’ स्वरूप की टैग लाइन में व्यक्त करना पर्याप्त मान लेते हैं। हां, शेयर बाजार में दर्ज होने वाली पब्लिक लिमिटेड कंपनियों में बदल चुके मीडिया प्रतिष्ठानों को कंपनी एक्ट की अनिवार्यता के कारण अपने उद्देश्यों की लिखित घोषणा अवश्य करनी पड़ती होगी लेकिन इसकी जानकारी उनके अंशधारकों (शेयर होल्डर) के अलावा उनके पाठकों-दर्शकों को शायद ही मिलती है।
निस्संदेह मीडिया को अपना उद्देश्य घोषित करना जरूरी नहीं। उसका सार्वजनिक लक्ष्य एक ही है–पाठकों-दर्शकों के पास ‘एफआइआर’ दर्ज करना है। यह फस्ट इन्फार्मेशन रिपोर्ट झ्ूठी या पक्षपातपूर्ण नहीं हो सकती। पाठकों-दर्शकों तक निष्पक्षता से सूचनाएं, जानकारी पहुंचाना, उनका मनोरंजन करना और उन्हें किसी भी विचार, घटना, समस्या, कथन, निर्णय, कार्रवाई और प्रतिक्रिया के प्रत्येक पक्ष से परिचित कराने के लिए ही प्रेस अस्तित्व में आया था। यह सब इसलिए ताकि समाज उचित-अनुचित में भेद कर अपने निर्णय ले सके। प्रेस ने राष्ट्रों के शाश्वत जीवन मूल्यों, उनके मूल भौगोलिक और सांस्कृतिक स्वरूप के संरक्षण और उनकी श्रीवृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वास्तव में कई राष्ट्रों के पुननिर्माण में प्रेस एक बड़ा अंशधारक रहा है। प्रेस समाजों की अस्मिता के ही नहीं, अपितु हर तरह के न्यायोचित संघर्षों का एक सशक्त माध्यम रहा है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में प्रेस या मीडिया का ध्येय समाज को जागरूक बनाए रखना, संस्थाओं और व्यक्तियों की जवाबदेही की निगरानी करना और दोषियों को, चाहे वे कितने भी बड़े और कितने ही शक्तिशाली हों, जनता की अदालत में खींच लाना है। इस ध्येय की पूर्ति में प्रेस की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और पारदर्शिता अंतर्निहित गुण हैं। यह वैश्विक ध्येय है और विश्व भर में प्रेस ने लगभग ढाई-तीन शताब्दियों से इस पर निर्भयता से अमल किया है।
भारत की स्वतंत्रता के आंदोलन में बराबरी से संघर्ष करने वाला प्रेस हिक्की या उन दूसरे अंग्रेजों का नहीं था जिन्होंने अपनी पत्र-पत्रिकाएं मुख्य रूप से अंग्रेजों और एंगलोइंडियनों के लिए शुरू कीं। इनके संपादक अंग्रेज या ईस्ट इंडिया कंपनी के पूर्व अधिकारी थे। ये स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा तो नहीं बने लेकिन प्रेस की स्वतंत्रता के लिए इनमें से कुछ ने कड़ी लड़ाई जरूर लड़ी। यह संभवत: इंग्लैंड और दूसरे यूरोपीय देशों में प्रेस की अपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्रता का असर था। भारत में किसी भारतीय द्वारा भारत के लोगों के लिए स्थापित किया पहला समाचार पत्र १८१६ में राजा राममोहन राय से प्रभावित एक बंगाली सज्जन गंगाधर भट्टाचार्य का ‘बंगाल गजट’ था। हिंदी का पहला समाचार पत्र १८२६ में युगलकिशोर शुक्ल का स्थापित किया और उन्हीं के संपादकत्व में निकला ‘उदंत मार्तंड’ माना जाता है जो डेढ़ वर्ष में बंद हो गया। हालांकि इसके बाद १८५७ में स्वतंत्रता संग्राम शुरू होने तक देश भर में अनेक अखबार निकले। ८ फरवरी १८५७ को हिंदी-उर्दू में दिल्ली के नेता अजीमुल्ला खान द्वारा प्रकाशित ‘पयामे आज़ादी’ क्रांति का अग्रदूत था। उसे सरकार ने जब्त ही नहीं किया, बल्कि जिस किसी के पास भी इस पत्र की प्रति मिली उसे राजद्रोही घोषित कर फांसी पर चढ़ा दिया गया।
१८५७ की क्रांति के बाद तो देश के लगभग हर प्रमुख प्रांत में भारतीयों ने अपने समाचार पत्र आरंभ किए। दो भारतीय भाषाओं बांग्ला, हिंदी, उर्दू, तमिल तथा फारसी के समाचार पत्रों के प्रकाशन से शुरू हुआ मुद्रित शब्दों का यह प्रवाह बाद के कालखंड में कितना विशाल और शक्तिशाली बन गया इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि एलन ओक्टावियन ह्यूम ने जिस अखिल भारतीय कांग्रेस की स्थापना की उसके पहले अधिवेशन में अधिकतर बड़े नेता या तो समाचार पत्र-पत्रिकाओं के संस्थापक थे या संपादक। आजादी की लडाई प्रिटिंग प्रेस और पत्र-पत्रिकाओं से लडऩे वाले वीरव्रती प्रेेस मालिकों और संपादकों की लंबी सूची है। स्वातंत्र्य समर में भारतीय प्रेस की दग्धता कितनी तीव्र थी इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि इलाहाबाद से १९०७ में प्रकाशित साप्ताहिक ‘स्वराज’ के ढाई वर्षों में निकले ७५ अंकों के दौरान नौ संपादकों को आजादी के लिए कलम चलाने के कारण काला पानी से लेकर लंबे सश्रम कारावास भोगने पड़े। इस पत्र में संपादक के पद के लिए छपने वाला विज्ञापन उस दौर के भारतीय पत्रों की संघर्ष गाथा का सजीव प्रतीक है: ‘‘चाहिए ‘स्वराज’ के लिए एक संपादक। वेतन दो सूखी रोटियां, एक गिलास ठंंडा पानी और हर संपादकीय के लिए १० साल जेल।’’
यह पत्रकारिता मिशन थी। पत्र स्वामियों-संपादकों ने स्वयं को और अपने प्रकाशनों को भारत की स्वतंत्रता के उदात्त लक्ष्य के लिए निष्काम समर्पित कर दिया।
देश की आजादी के बाद प्रेस का परिदृश्य एकदम से नहीं बदला। प्रेस देश के पुननिर्माण का सजग प्रहरी बना रहा। उसके मिशन का प्रोफेशन में परिवर्तन तब हुआ जब प्रिंट में बढ़ती प्रतिस्पर्धा से पार पाने और व्यग्र पाठक वर्ग की संतुष्टि के लिए सामग्री, डिजाइन और छपाई में अधिक गुणवत्ता की जरूरत पड़ी। प्रौद्योगिकी के विकास ने इसे और गति दी। इससे पूंजी और आय की जरूरत भी बढ़ गई और यह उद्योग में परिवर्तित हो गया। लेकिन समाचारों और विचारों के प्रकाशन-प्रसार पर प्रिंट का एकाधिकार बना रहा। पत्र-पत्रिकाएं छपे हुए शब्द अपने पाठकों को और अपने विज्ञापनदाताओं को बेचकर बढ़ते रहे और मोटा मुनाफा कमाते रहे। पाठक संख्या में वृद्धि और लाभ बढ़ाना समानार्थी लक्ष्य बन गए। लेकिन टीवी न्यूज चैनलों के पदार्पण से प्रिंट के सामने अपने पाठक और विज्ञापन की आय बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई तो प्रोफेशनल पत्रकारिता और परवान चढ़ी। हालांकि समाचार-विचार के एकमेव स्रोत के रूप में उसका साम्राज्य कुछ दरक जरूर गया।

लेकिन ४५ वर्ष पहले आई इंटरनेट प्रौद्योगिकी और लगभग २४ बरस पहले बने वल्र्ड वाइड वेब (डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू) से पाठकों-दर्शकों-श्रोताओं (अब ऑडियंस) के सामने एक ऐसा विकल्प आ गया जिस पर किसी का एकाधिकार न था। पाठकों को चुनने की आजादी मिलने से मूलत: एकाधिकार से पनपे प्रिंट का दुनियाभर में फैला साम्राज्य सबसे पहले खंडित हुआ। नए मीडिया ने टीवी न्यूज चैनलों को भी समाचार सबसे पहले पहुंचाने के विशेषाधिकार से वंचित कर दिया। लगभग सभी विकसित देशों में पत्र-पत्रिकाएं अपने पाठक और विज्ञापन बचाए रखने के लिए संघर्षरत हैं तो न्यूज चैनलों को भी वेब से निबटने में पसीना छूट रहा है। अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, जापान जैसे देशों में प्रिंट ६ से १५ प्रतिशत तक नकारात्मक विकास से जूझ रहा है। अमेरिका में वेब २०१० में ही प्रिंट को पछाड़ चुका है, ३० वर्ष से कम आयु के युवाओं के लिए समाचार का स्रोत आज इंटरनेट है। स्मार्टफोन प्रौद्योगिकी से प्रिंट-टीवी की कठिनाई और बढ़ी है। मोबाइल उपकरणों पर समाचार-विचार की खपत कल्पनातीत गति से बढ़ रही है। दुनिया सचमुच अब पाठकों-दर्शकों-श्रोताओं की मुट्ठी में है। इंटरनेशनल न्यूज मीडिया एसोसिएशन का ताजा आकलन यह है कि अब समाचार-विचार के लिए ऑडियंस का पहला स्रोत मोबाइल है, दूसरा डिजिटल है और प्रिंट मृत्युशय्या है
भारत, चीन, अफ्रीका जैसे कम विकसित देशों में भी अभी कुछ वर्ष पहले तक तेजी से बढ़ता प्रिंट भी क्या इसी गति को प्राप्त होगा? अंदेशे गहरा रहे हैं। भारत में साक्षरता अभी ७४ प्रतिशत है लेकिन १०० फीसदी हो जाने और डिजिटल कनेक्टिविटी सब तरफ पहुंच जाने के बाद कितने पाठक रहेंगे, कहना कठिन है। हालांकि भारत में पिछले कुछ वर्षों में मीडिया का उपभोग ३ से ५ प्रतिशत तक बढ़ा है लेकिन २०१३ के विवादास्पद इंडियन रीडरशिप सर्वे(आइआरएस) के आंकड़े बताते हैं कि पत्र-पत्रिकाओं के पाठकों की संख्या २०१२ के ३५.३० करोड़ से २०१३ में २८.१० करोड़ पर आ गई। देश के प्रमुख हिदी-अंग्रेजी और भाषायी पत्रों की प्रसार संख्या में ५ से १६ फीसदी की गिरावट दर्ज हुई। जाहिर है, मीडिया संस्थानों ने इन नतीजों को मानने से इनकार कर दिया। लेकिन २०१५ में आए आइआरएस-२०१४ के नतीजे भी कोई उत्साह नहीं जगाते। देश का ९० प्रतिशत युवा जब इंटरनेट से न्यूज लेता हो और ८५ फीसदी से अधिक युवा सोशल नेटवर्किंग साइटों पर खबरों और विचारों को शेयर कर रहा हो तो प्रिंट के पाठक बढऩा कहां से लाया जाएं? न्यूज चैनलों में सर्वोच्च तीन चैनलों का दर्शक हिस्सा पूरे देश में १५ से १८ प्रतिशत ही है जबकि समाचार और समसामयिक मामलों पर केंद्रित कुल ३९७ चैनल हैं और देश के १२.६ करोड़ घरों में केबल और सैटेलाइट कनेक्शन हैं। हालांकि मीडिया उद्योग को मिलने वाले विज्ञापनों में सबसे बड़ा हिस्सा अभी भी प्रिंट और टीवी का ही है लेकिन इसमें गिरावट तेजी से आ रही है।
दूसरी तरफ अनुमान है कि इस वर्ष के अंत में भारत इंटरनेट का उपयोग करने वालों की संख्या के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ देगा। दिसंबर २०१४ तक देश में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या ३०.२ करोड़ होने का अंदाज था। ग्रामीण क्षेत्र में यह वृद्धि ३९ प्रतिशत तो शहरी भारत में २९ प्रतिशत है। २०१३ में देश में इंटरनेट की विज्ञापनों से कमाई २० अरब अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान था। दूरसंचार नियामक आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में ८९ करोड़ सक्रिय मोबाइल कनेक्शन हैं जबकि कुल आबादी के १३ फीसदी लोग स्मार्टफोनों का उपयोग करते हैं। मोबाइल पर बढ़ते इंटरनेट उपभोग का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि अक्तूबर २०१४ तक १५.९ करोड़ लोग इसका उपभोग कर रहे थे। कुल इंटरनेट उपभोक्ताओं के ९७ प्रतिशत हिस्से के किसी न किसी सोशल नेटवर्किंग साइट पर जानकारी-समाचार-विचार शेयर करने से पत्र-पत्रिकाओं और न्यूज चैनलों वाला मीडिया जैसे अंधी सुरंग में फंस गया है। भारत की बजाए ‘इंडिया’ से संवाद करने वाले मीडिया की यह दशा चौंकाती नहीं।
परंपरागत मीडिया के अस्तित्व के संघर्ष से जो विडंबनाएं पैदा हुई हैं उनसे उसकी साख संकट में आ गई है। पत्र-पत्रिकाओं के संस्करण जिला स्तर पर ले जाने, क्षेत्रीय भाषाओं में न्यूज चैनल शुरू करने जैसे अति-स्थानीयता के प्रयास भी पाठक-दर्शक और विज्ञापनों में गिरावट को थाम नहीं पा रहे हैं तो अधिकतर कोशिशें अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी तथा विस्तार पर हुए भारी-भरकम खर्च की भरपाई पर केंद्रित हो गई हैं। इससे पेड न्यूज, छद्म समाचारों और पीत पत्रकारिता का दौर फिर शुरू हो गया है। ‘मैन्युफैक्चर्ड न्यूज’, मिथ्या प्रचार और अपुष्ट खबरें सामान्य बात है। मीडिया संस्थानों का विलय, बिक्री और अधिग्रहण नए जमाने का मंत्र है। छोटे संस्थान बड़ी कंपनियों के ‘बुके’ का अंग बन रहे हैं जिससे क्रास-मीडिया स्वामित्व तेजी से बढ़ रहा है और एकाधिकारी स्वामित्व का खतरा खड़ा हो गया है।
देश भर में मात्र १.५ प्रतिशत पाठक संख्या वाले अंग्रेजी मीडिया तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के एक हिस्से के बर्ताव से मुख्य धारा के मीडिया की विडंबना और दुर्दशा बढ़ी है। ऐसा लगता है कि मीडिया के इस हिस्से का डीएनए भारत के डीएनए से ज़रा भी मेल नहीं खाता। राष्ट्रीय अस्मिता और राष्ट्र के जीवन मूल्यों, परंपराओं, मान्यताओं, सम्मान के प्रतीकों का उपहास कर उनके मुकाबले भारत के लिए विजातीय अवधारणाओं-मान्यताओं की मिथ्या आधार पर पैरवी करने की इन कोशिशों से मुख्यधारा के मीडिया का सात्विक तेज क्षीण हो गया है। मिथ्या अवधारणाओं के प्रचार और समाचार-विचारों में वस्तुनिष्ठता बरतने के पत्रकारिता के स्थापित नियम को धता बताने के इन कुत्सित प्रयासों को वेब के खुले अखाड़े में बार-बार पटखनी मिलने के बावजूद यदि इन पर विराम नहीं लगता तो तथाकथित मुख्यधारा के मीडिया की बची-खुची साख भी खत्म होते देर नहीं लगेगी।
मो.: ९८१०४०११९५

जगदीश उपासने

Next Post
जीव एवं पर्यावरण रक्षक संस्था‘समस्त महाजन’

जीव एवं पर्यावरण रक्षक संस्था‘समस्त महाजन’

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0