म्यांमार की सीमा में फौजी कार्रवाई

मणिपुर में नगा व्रिदोहियों के हमले में १८ जवान शहीद और ११ जवान घायल होने की खबर आई और सब को आघात लगा। नगालैण्ड, मणिपुर, अरुणाचल में विद्रोहियों के खिलाफ ‘आपरेशन हिफाजत’ चल रहा है। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैण्ड के खापलांग गुट ने युद्धबंदी तोड़ दी थी। उनसे अन्य विद्रोही गुटों को लड़वाने की योजना सेना ने बनाई थी। लेकिन इसके पूर्व ही इस गुट ने भीषण हमला किया। नगा विद्रोहियों को नसीहत देने का अब समय था। भारत में कार्रवाई कर म्यांमार के जंगल में जाकर छिपना रोकना जरूरी था। यही नहीं, नगा विद्रोही और हमले करने वाले थे। अतः समय बर्बाद न कर विद्रोहियों के अड्डे पर धावा बोलने के लिए म्यांमार में घुसना जरूरी था।

आपरेशन आलआउट

फौज के विशेष दल २१ पैरा के कमांडो इस साहसी मुहिम के लिए तैयार हुए। उनके पास छोटे शस्त्र, रॉकेट प्रॉपेल्ड ग्रेनेड्स, अंधेरे में भी देख सकने वाले थर्मल इमेजर्स एवं विस्फोटक थें उनकी सहायता के लिए असम राइफल्स के जवान थे। ८ जून को रात १२.४५ बजे २१ पैरा की तीन टुकड़ियों ने भारत से कूच की। मिशन था ‘आपरेशन आलआउट’। जवान म्यांमार की दिशा में निकले। रात डेढ़-दो बजे फौजी हेलिकॉप्टरों ने उन्हें सीमा पर भारतीय क्षेत्र में उतारा। हेलिकॉप्टरों की तेज आवाज के कारण विद्रोहियों के अड्डे तक सीधे नहीं जाया जा सकता। इस हमले में एक टुकड़ी के ६०-७० अधिकारी और जवान शामिल हुए। इस हमले के दौरान कमांडों तीन दिशाओं से आगे बढ़े। यह युद्ध रणनीति का एक हिस्सा है। एक ही दिशा से जाने वाले सैनिकों को यदि विद्रोही रोक दें या मुठभेड़ हो जाए तो अन्य दिशाओं से जाने वाले जवान अपना अभियान पूरा कर सकते हैं। यह टुकड़ी ओंझिया के अड्डे की ओर बढ़ा। दूसरी टुकड़ी पोन्या की ओर बढ़ी। ये दोनों अड्डे सीमा से करीब ११ किलोमीटर की दूरी पर हैं। इन अड्डों के पास वे पहुंचे तब मंगलवार के तड़के तीन बजे थे। दोनों अड्डों पर शांति थी। उचित अंतर पर पहुंचने पर कमांडों ने प्रथम आसपास के परिसर, रास्तों का जायजा लिया। लैंड-माइन या अचानक हमले का खतरा था। अब वे रेंगते हुए अड्डे की ओर बढ़ने लगे। दोनों अड्डों पर पहले गोलीबारी और बाद में बायोनेट एवं कुकरी की सहायता से अचानक हमला किया। बाद में बम धमाके कर अड्डे को ध्वस्त कर दिया गया।

अगले ४५ मिनट में अड्डे ध्वस्त हो गए। उनिंदे विद्रोहियों को भारतीय जवानों हमेशा के लिए नींद में सुला दिया। यह अत्यंत साहसी अभियान इन जांबाज जवानों ने पूरा किया। ३८ से अधिक बागी मारे जा चुके हैं। उनकी सामग्री का भी भारी नुकसान हुआ है। इससे इस गुट के पुनः खड़े होने की संभावन कम ही है। यह कार्रवाई अत्यंत साहसी थी। भारतीय फौज के विशेष दलों ने म्यांमार की सीमा में कार्रवाई करते हुए इस हमलें में एनएससीएन (के) तथा केवाईकेएल गुटों के विद्रोहियों को मौत के घाट उतारा। फौज के विशेष दलों ने इस बारे में मिली खुफिया जानकारी के आधार पर म्यांमार की सेना के समन्वय से यह कार्रवाई की। कार्रवाई के बाद भारतीय जवान सुरक्षित लौट आए। भारत के बाहर देश की यह पहली कार्रवाई है।

राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता

इस तरह विदेशी भूमि में जाकर हमला करने के लिए प्रचंड राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत होती है। ताजा हमला प्रधान मंत्री एवं रक्षा मंत्री की अनुमति के बाद ही किया गया। इसके लिए अपना जवाब किस तरह का हो सकता है इसकी राजनीतिक नेतृत्व को जानकारी होना जरूरी होता है। कोई भी निर्णय विचारपूर्वक लेकिन तत्काल लेने की क्षमता नेतृत्व में होनी चाहिए। इस तरह विदेशी भूमि पर जाकर हमला करने के अनेक अंतरराष्ट्रीय आयाम होते हैं। यदि इस तरह का हमला विफल हुआ तो उसकी बहुत कीमत चुकानी होती है। अतः इस तरह के हमले की तैयारी एवं योजना अत्यंत गोपनीयता से करनी होती है। ताजा हमले के लिए म्यांमार में निश्चित किस जगह पर ये आतंकवादी अड्डे हैं इसकी पक्की जानकारी आवश्यक थी। इस संदर्भ में जानकारी २१ पैरा स्पेशल फोर्स ने स्वयं खोजी तथा बाद में तत्काल हमला किया गया।

और अनेक आतंकवादी अड्डे

इस कार्रवाई से इस क्षेत्र के भारतीय नागरिकों को खतरा टालने में सफलता मिली है। भारतीय जवानों ने पहली बार ही सीमा पार कर की यह कार्रवाई आतंकवादियों को कड़ी चेतावनी है। आतंकवादी हमले कर म्यांमार में भाग जाने से ही उन पर वहां जाकर कार्रवाई करना उचित ही था। इस तरह के और ५५-६० अड्डे म्यांमार में हैं। उनकी खुफिया जानकारी प्राप्त कर उनके जवाबी हमले के पूर्व हमें म्यांमार के अड्डों पर पहले ही हमला बोलना होगा।

पूर्ववर्ती सरकार क्या कर रही थीं?

पिछली सरकार हमला होने के बाद परिस्थिति की समीक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय बैठक का आयोजन करती थी। एक प्रेस सम्मेलन में दुख प्रकट करती थी और हमले का निषेध करती थी। यह भी कहते थे कि सीमा पार शक्तियां देश को अस्थिर बना रही हैं और इस तरह के हमले सहन नहीं किए जाएंगे। इस तरह के काम करने वालों को सीधे करेंगे। और इसके बाद पाकिस्तान के साथ किसी भी हालत में वार्ता रद्द न करने की घोषणा भी कर दिया करते थे। विपक्ष पर इस मुद्दे में राजनीतिक करने का आरोप लगाते थे। अगला आतंकवादी हमला देर हो इसकी प्रार्थना किया करते थे। अर्थात बेमतलब की बड़बड़ी किया करते थे, लेकिन कार्रवाई के नाम पर शून्य थे।

आतंकवादियों ने हमारे देश पर आज तक अनेक बेहिसाब हमले किए। इन हमलों में हमारे जवान, अनेक निर्दोष नागरिक मरे। कई जख्मी हुए। भारत यानी कोई भी आए टिचकी मारे और चले जाए, इस तरह हमारे देश की स्थिति थी। लेकिन इस फौजी कार्रवाई से अपने देश में घुस कर आतंकवादी कार्रवाई करने वालों बड़ी नसीहत मिली है। पाकिस्तान जैसे देश एवं उसके समर्थन की कार्रवाई करने वाले देशों को भी इससे पाठ सीखने की आवश्यकता है। देश पर हमला करने वाले किसी को भी इसी तरह कुचल दिया जाना चाहिए। फिर वह पाकिस्तान हो या उसे भारत से हुरियत के गिलानी जैसे मदद करने वाले हो। भारती फौजी विश्व की किसी भी फौज से कमजोर नहीं है, लेकिन देश को राजनीतिक नेतृत्व की जरूरत थी।

चीन की शह

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के इशारों पर काम करने वाला उल्फा का नेता परेश बरुआ ने एनएससीएन-के गुट के एस.एस.खापलांग को भारत सरकार के साथ युद्धबंदी तोड़ने के लिए राजी किया। खापलांग एवं बरुआ म्यांमार, रूईली एवं कुमिंग के बीच आते-जाते रहते हैं। ये दोनों भाग चीन में हैं। बरुआ तथा खापलांग हमेशा चीन के सम्पर्क में होते हैं। यह सूचना टेलीफोन बातचीत से मिली।

कार्रवाई के परिणाम क्या होंगे?

भारत में होने वाले आतंकवादी हमले पाकिस्तान की सीधी सहायता या प्रोत्साहन से हुए हैं।अतः म्यांमार की कार्रवाई से पाकिस्तान को यह चेतावनी देने में भारत सफल रहा है कि यदि आतंकवादी हमले हुए तो हम आपकी सीमा में घुस कर कार्रवाई करेंगे। भारत ने अंत में ‘सॉफ्ट स्टेट’ की भूमिका छोड़ दी है। कुल मिलाकर भारतीय सेना का म्यांमार अभियान हर अर्थ में विलक्षण तथा हर भारतीय गर्व कर सकें और भारतीय जवानों का मनोबल बढ़ सके इस तरह का है।

इस कार्रवाई से यह मनोबल बढ़ेगा कि हमारी सेना दुश्मन के गढ़ में घुस कर हमला कर सकती है। इस तरह की कार्रवाई के लिए आलां दर्जेकी खुफिया जानकारी, साहसी/वीर नेतृत्व, बारीक नियोजन, जोरदार तैयारी की आवश्यकता होती है। इस अभियान में यह सब कुछ था। केवल इस्राईल या अमेरिका ही नहीं, भारत भी मौका आने पर विदेशी भूमि में हमला कर उग्रवादियों के खात्मे का माद्दा रखता है, इसे फौज ने एक जबरदस्त कार्रवाई से विश्व को दिखा दिया।

सीमा पार करने का निर्णय अंत में राजनीतिक नेतृत्व का होता है। मोदी एवं पर्रिकर इसके लिए बधाई के पात्र हैं। पाकिस्तान यदि इस प्रसंग से नसीहत लेकर भारत में आतंकवादी कार्रवाइयों को नहीं रोकता तो यह फौज पाकिस्तान में घुस कर इस तरह की कार्रवाई कर सकती है। फौज की इस कार्रवाई को देशभक्त नागरिकों का सम्पूर्ण समर्थन है। फौज का त्रिवार अभिनंदन!
मो. : ९०९६७०१२५३

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