माहेश्‍वरी महिलाओं का राष्ट्रीय कार्य में योगदान

मूत ममता प्रचंड क्षमता
नारी तुझपर संसार गर्विता

नारी विश्व की जननी है। बालकों को जन्म देना, उनका पालन पोषण करना, उन्हें संस्कारक्षम बनाना एवम् शिक्षा देना, परिवार की रक्षा करने का कार्य नारी ही करती है। परिवार की नींव है नारी। किसी भी राष्ट्र की उन्नति स्वस्थ समाज पर निर्भर होती है। स्वस्थ समाज के लिए परिवार की उन्नति एवं उसका स्वस्थ रहना जरूरी है।

सशक्त एवम् बलशाली राष्ट्र के निर्माण के लिए परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परिवार में नारी की अहम् भूमिका होती है।
माहेश्वरी नारी के लिए कहा जाता है – उसकी गति गंगा की, मति सरस्वती की तथा शील पार्वती सा होता है। सदाचारी, बुद्धिमान, गतिशील तथा सबको साथ लेकर चलने वाली दया की मूरत ये माहेश्वरी नारी की विशेषताएं हैं। यहां के ऐतिहासिक एवम् सांस्कृतिक परम्पराओं में प्रेम, त्याग, दया, दान सेवा, संयम एवम् सदाचार के दर्शन माहेश्वरी नारी में कदम-कदम पर दिखाई देते हैं।

सती का व्रत (बानगी, बायन) लेकर अपने पति को युद्धभूमि में भेजने वाली इन नारियों ने राष्ट्रसेवा में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

स्वाधनीता संग्राम में योगदान

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने वालों में माहेश्वरी समाज के वीर पुरुषों की एक लंबी परंपरा रही है। स्वतंत्रता संग्राम में पुरुषों के साथ-साथ माहेश्वरी महिलाओं ने भी अपना सक्रिय योगदान दिया। उस कालखंड में जब महिलाएं घुंघट उतार कर चारदिवारी से बाहर भी नहीं निकल पाती थीं तब माहेश्वरी महिलाओं ने देश के लिए सीमा को लांघ कर स्वतंत्रता प्राप्ति के महायज्ञ में अपनी आहुति दी है। इसका इतिहास गवाह है। अब हम यहां ऐसी वीरांगणाओं पर संक्षेप में विचार करने जा रहे हैं।

इंदौर की राधादेवी पंसारी ने शादी के तुरंत बाद घुंघट को (१९४१ में) उतार कर सत्याग्रह किया, उसके बाद १९४२ में ‘करो या मरो’ आंदोलन में सत्याग्रह करते हुए उन्हें जेल जाना पड़ा।

हैदराबाद की ज्ञानकुमारी हेडा (१९३९ में) मारवाडी मंडल की अध्यक्षा बनीं। उन्होंने माहेश्वरी महिलाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। वह १९४६ तक खादी के प्रचार का कार्य करती रही, उनको निजाम सरकार ने गिरफ्तार किया और जेल में डाल दिया।

समाज में जागृति लाने का काम सावित्रीदेवी बियाणी ने किया। वह १९३४ में अजमेर महासभाधिवेशन में महिला माहेश्वरी परिषद की अध्यक्षा बनीं। उन्होंने १९३० में विदेशों में विदेशी वस्त्रों तथा शराब की दुकानों के खिलाप आवाज उठाई जिसके कारण आपको जेल हुई। १९४२ मे ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भी आपने जेल यात्रा की।

खादी का प्रचार एवम् शिक्षा का कार्य करने वाली वर्धा की श्रीमती मीरादेवी मुंदडा को १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन मेे ४ महीने जेल जाना पड़ा। वर्धा की ही नर्मदाबाई भैसा को ४ साल का कारावास हुआ। समाज के प्रति विधायक कार्य करने वाली सातारा की चंपादेवी भट्टड सत्याग्रह में दो बार जेल गईं।

मेरठ की वीरबाला मालपानी जब १५ वर्ष की थी, तब स्वाधीनता आंदोलन के दौरान भाषण देते हुए गिरफ्तार हो गई। इंदौर की शांतिदेवी परवाल ने स्वतंत्रता संग्राम के समय प्रज्ञा मंडल पत्रिका द्वारा प्रचार प्रसार में योगदान दिया।

भारत छोड़ो आंदोलन के समय (१९४२ में) तोड़फोड़ करने वाली वर्धा की शांतिदेवी जाजू, सीताबाई राठी, औरंगाबाद की कमलाबाई मुंदडा आदि महिलाओं को जेल जाना पड़ा। कोलकता की दृढ़प्रतिज्ञ और वीर महिला गंगादेवी मोहता ने खादी एवं स्वदेशी चीजों का प्रचार किया।

राजनीति के क्षेत्र में योगदान

जब जब राष्ट्र पर कोई आपत्ति आती है, तो तन मन धन से राष्ट्रीय कार्य के लिए तत्पर रहने वाली माहेश्वरी समाज की महिला राजनीति के क्षेत्र से अलिप्त रही। परंतु शिक्षा एवम् महिला आरक्षण के कारण से उसने इस क्षेत्र में भी विश्वास के साथ कदम रखा है। ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, जिला परिषद तथा विधायक, सांसद के लिए वह चुनाव लड़ रही है। १९६२ से १९८५ तक धुलिया की राजनीति में श्रीमती कमलाबाई अजमेरा का कार्य बहुत ही प्रभावी रहा है। वह दो बार विधान सभा की, एक बार विधान परिषद की सदस्य रह चुकी हैं। वह पूर्व मुख्यमंत्री बाबासाहब भोसले के कार्यकाल में महिला बाल कल्याण विभाग की उपमंत्री थीं। उनका समाज सेवा और विशेषत: शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसी कार्यकाल में चंद्रपुर की यशोधराजी बजाज भी विधायक बनीं और साथ ही मंत्री भी रह चुकी हैं।

उदयपुर की किरण माहेश्वरी ने सांसद के रूप में राजनीति के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है। वह सभी नारी शक्ति के लिए प्रेरणा स्रोत बनी है। ई.स. २००० में किरणजी राजस्थान भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष बनीं। उनके कार्य से प्रभावित होकर २००४ में उदयपुर क्षेत्र से जनता नें उन्हें तत्कालीन कांग्रेसी सांसद एवम् कांग्रेस अध्यक्ष गिरिजा व्यास के विरुध्द भारी मतों से चुनकर दिया।

प्रशासकीय क्षेत्र में योगदान

राजनीति के साथ साथ प्रशासकीय सेवा में माहेश्वरी महिलाओं ने अपने कदम बढाए। पुलिस अधीक्षक के रूप में सुमनजी मालीवाल, भावनाजी राठी, शोभाजी भुतडा आदि पुलिस अधिकारियों का कार्य सराहनीय है। इंदौर की नायब तहसीलदार पूर्णिमा सिंगी ने अपने कार्यकाल में गांव के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

जिन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए समर्पित किया ऐसी दम्पति केसरीलालजी बियाणी और माता श्रीमती सावित्री देवी बियाणी की बेटी सरला देवी बिडला समाज सेवा और उन्नति की मिसाल है। अत्यंत संपन्न बिड़ला परिवार में रहते हुए भी अध्यात्म एवम मानव सेवा के लिए कार्य करती रही। स्वदेशी आंदोलन, मंदिरों का निर्माण, आधुनिक शिक्षालयों का निर्माण उन्होंने करवाया।
पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित उद्योगपति श्रीमती राजश्री बिड़ला ने ग्रामविकास, पीने का पानी, रोजगार योजनाएं आदि सामाजिक क्षेत्रों में विशेष कार्य किया।

लघु उद्योग एवम् उच्च शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप देकर अनेक युवक युवतियों के जीवन को उभारा है। मानवता के लिए जीवन समर्पित करने वाली डॉ. सरोजजी बजाज नारी रत्न हैं।

महिला दक्षता समिति, फैमिली काऊन्सलिंग सेंटर, शॉर्ट स्टे होम, डे केअर सेंटर, स्लम बस्तियों में मोबाइल मेडिकेअर, स्वाधार गृह, कानूनी सचेत शिविर, रक्तदान, बैंक, शिक्षालय, रोशी कल्याण ट्रस्ट, बाल विकास ट्रस्ट आदि का निर्माण तथा संचालन आपने किया है। आपको १९९१ में रेड क्रॉस सोसायटी द्वारा गोल्ड मेडल, वर्ष १९९३ में मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत द्वारा गोल्ड मेडल, १९९४ नेशनल सिटीजन अवार्ड, राजस्थानी गौरव पुरस्कार, महिला रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

डॉ. रानी बंग- समाजसेवा की मिसाल स्वास्थ्य सेवा की मसीहा हैं डॉ. रानी बंग और उनके पति डॉ. अभयजी बंग। इन दोनों ने गड़चिरोली जैसे पहाड़ी, पिछड़े, ग्रामीण एवं आदिवासी भूमि में जाकर पीड़ित, अशिक्षित, जादूटोना पर विश्वास रखने वाली गरीब जनता के बीच में कार्य किया है। उनका कार्य केवल स्वास्थ्य के लिए ही नहीं अपितु इन ग्रामीणवासियों का सर्वांगीण विकास हो इस हेतु उन्होंने स्वयंसेवी संगठन की स्थापना की।

स्व. डॉ. शैला लोहियाजी ने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया है। ललिता देवी मालपानी- बाल संस्कारों की गंगोत्री संगमनेर की ललिता देवी मालपानी ने आधुनिक शिक्षा के साथ संस्कारों की घुट्टी पिलाने हेतु स्वामी गोविंदगिरीजी की प्रेरणा से गीता परिवार की स्थापना की। गीता परिवार की शाखाएं भारत में गांव गांव में फैली हुई हैं। गीता परिवार द्वारा संचालित संस्कार वर्गों तथा शिविरों में प्रति वर्ष हजारों बच्चे सम्मिलित होते हैं। ये बच्चे केवल माहेश्वरी समाज के ही नहीं अपितु समाज के हर वर्ग के बच्चे इन शिविरों में आते हैं।

अमरावती के अनेक सामाजिक क्षेत्रों में कार्य करने वाली उषाजी करवा ने दलित बस्तियों में जाकर विशेष कार्य किया है, जिनके कारण उन्हें २००७ में भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर विशेष समाज सेवा गौरव पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया है।
तारामती तापडिया को मूक-बधिरों की माता कहा जाता है। उनका जलगांव में ५०० मूक-बधिर विद्यार्थियों का विद्यालय है। आदर्श माता पुरस्कार से आपको सम्मानित किया गया है।

विकलांगों के लिए कार्य करने वाली कानपुर की मंजु बांगड ने लगभग १००० लोगों को ट्राईसिकल व्हिल चेअर गिफ्ट के रूप में दी है। कानपुर गौरव पुरस्कार प्राप्त हुआ है।

औद्योगिक क्षेत्र में योगदान

वर्तमान समय में औद्योगिक क्षेत्र में माहेश्वरी समाज की महिलाओं ने यह सिध्द कर दिया कि वे पुरुषों से कहीं कम नहीं हैंं। डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर, पुलिस ऑफिसर के साथ वे समाज की वर्कफोर्स भी हैं। व्यापार औद्योगिकरण में न केवल महिला परंपरागत उद्योग बल्कि पुरुषप्रधान व्यवसायों में भी अपनी भागीदारी दर्ज करवा रही हैं। पहले महिलाओं का कार्य कृषि, पशु व्यवस्था, वस्त्र सिलाई, अचार, पापड आदि उद्योगों तक ही सीमित रहा, परंतु आज इलेक्ट्रॉनिक्स, लेदर, पलास्टिक, कृषि उपकरण, सीमेंट, दवाइयां, फर्निचर, रसायन, कंसल्टंसी आदि क्षेत्रों में वह सफलता से उद्योग स्थापित कर रही हैं।

लौह महिला के रूप में जानी जाने वाली इंदौर की आकांक्षा राठी ने आयर्न ऍन्ड स्टील इंडस्ट्रीज लिमिटेड के निदेशक के रूप में न्यूनतम दरों में श्रेष्ठतम उत्पादन की अपनी रणनीति के साथ राठी स्टील को नए आयाम तक पहुंचाया है।

शोभा इंदानी को पाक कला की दमक कहा जाता है। शोभा इंदानी संपूर्ण भारत में अपनी पाक कला क्लासेस के लिए प्रसिद्ध हैं। भारत और भारत के बाहर माहेश्वरी जहां जहां हैं वहां वहां शोभाजी की कुकिंग रेसीपी बुक मिलती ही है। मार्केटिंग क्षेत्र में कार्य करने वाली अहमदाबाद की श्रीमती उर्मिला कलंत्री ने रिलायंस इंफोकॉम में सफलता प्राप्त की है।

अमरावती की ज्योति परतानी की ग्लास उत्पादन क्षेत्र में पुष्पराज क्रियेशंस की फॅक्टरी है। ग्लास फर्निचर, ग्लास वॉश बेसिन, ग्लास बाऊल्स आदि उत्पादन गुणवत्ता व नूतनता के लिए संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। ट्रांसपोर्ट व्यवसाय में कार्य करने वाली इंदौर की वंदना लढ्ढा को उनके कार्य के लिए महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा कंपनी ने ट्रान्सपोर्टर ऑफ द इ्रयर अवार्ड से सम्मानित किया है।

विज्ञापन जगत की मल्लिका सोनल जेडा, ५० से अधिक वेबसाइट एवं विविध क्षेत्रों के लिए सॉफ्टवेअर का निर्माण करने वाली २७ वर्षीय रुपाली बजाज, सेन्ट पलॅस्टिंग की (जिसमें लौह धातुओं के बाहरी आवरण को चमका दिया जाता है) कुशल प्रबंधक भोपाल की आशा बजाज, पत्रकारिता को आजीविका के ाूप में अपनाने वाली इंदौर की सारिका मुछाल, ये सभी उद्योग के क्षेत्र में नई मिसाल हैं।

माहेश्वरी महिलाओं ने बैंकिंग के क्षेत्र में भी विशेष कार्य किया है। इसमें उल्लेखनीय कार्य है बैंकिंग गुरु ममता बिन्नानी।
पॉश आर्क डिजाइनिंग आर्किटेक्चर की संचालिका इंदौर की आर्किटेक्ट सोना मंत्री अपने कार्य के लिए देश विदेश में मानी जाती हैं।

साहित्य के क्षेत्र में योगदान

माहेश्वरी समाज की मूल भाषा मारवाडी है। मारवाडी भाषा राजस्थानी भाषा का एक रूप है। वह एक विशिष्ट क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली भाषा है। मारवाडी तथा राजस्थानी में विशेष अंतर नहीं है। जिस राजस्थानी क्षेत्र में माहेश्वरी समाज के लोग गए उस क्षेत्र की भाषा पर मारवाडी भाषा का प्रभाव दिखाई देता है।

मारवाडी भाषा में अनगिनत लोकगीत लिखे गए हैं। इन गीतों में समयावधि तथा क्षेत्र के कारण मारवाडी में परिवर्तन होता गया है। आज भी विवाह आदि संस्कारों में ये गीत घर घर में बड़े चाव से गाए जाते हैं, जो संस्कृति की रक्षा कर रहे हैं।

आज माहेश्वरी समाज का संपूर्ण व्यवहार सामाजिक कार्यक्रम आदि हिंदी भाषा में ही होता है। माहेश्वरी महिलाओं ने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में भी अपना योगदान दिया है। हम यहां कुछ लेखिकाओं की महत्वपूर्ण साहित्यिक कृतियों पर प्रकाश डालेंगे।

पद्माजी बिनानी की लेखनी से कई अनुपम कृतियों का निर्माण हुआ है। नर्मदा के तट से, समय बड़ा बलवान, इंडिया की कलम से, हेल्थ गाइड ऑफ इंडिया, महाभारत, तृष्णा- तृप्ति – जिज्ञासा, प्रियतमा, कर्मयोग के पथिक (संस्मरणात्मक जीवनी) आदि उनकी प्रमुख कृतियां हैं।
उनका लेखन के साथ साथ, संगीत के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनकी दानशूरता की प्रवृति को देखकर उन्हेंं भामाशाह पुरस्कार दिया गया है।

जेष्ठ समाजसेवी डॉ. सरोज बजाज की यशपाल और उनका उपन्यास, यशपाल के कथा साहित्य में सामाजिक चेतना, विजन ऑफ २१ सेन्च्युरी आदि पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। विश्व हिंदी कॉन्फरन्स में दो बार भाग लेने वाली डॉ. सरोज बजाज के १५० से अधिक लेख विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। रेडियो टेलीविजन में डाक्युमेन्ट्री फिल्मों का निर्माण आपने किया है। अमरावती की श्रीमती रजनी राठी एक श्रेष्ठ कवयित्री हैं। आपको २००६ में अखिल भारतीय कवयित्री परिषद, दिल्ली द्वारा गार्गी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
५०० से अधिक काव्य गोष्ठियों में भाग लेने वाली रजनीजी के मराठी में कुंकवाचं देणं, स्पंदन, आकृत्यांचे आभास आदि काव्यसंग्रह प्रकाशित हुए हैं। हिंदी में पलाश के तीन पत्ते, पतझड़ की श्याम आदि काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। इसके अलावा गद्य साहित्य में रजनी गंधा, साक्षी एवम् सुचिता आदि उपन्यासों का लेखन भी श्रीमती राठीजी ने किया है।

कविताजी मालपानी एक जानी मानी साहित्यकार हैं। १९९२ में बिना दरवाजों के घर यह काव्य संग्रह १९९८ में पलक गढे बालक, २००३ में रुखमा एक लघु आत्मकथा का प्रकाशन हुआ है।

राजकुंवरजी लढ्ढा सफल साहित्यकार हैं, जिनकी साहित्यिक कृतियां इस प्रकार हैं- समाजरा दर्पण, राजस्थानी लोकगीतों में मानवीय अभिव्यक्तियां, नारी की सिसकियां, आखिर ऐसा क्यों? आदि।

डॉ. मन्नु भंडारी हिंदी साहित्य की चर्चित कथाकार हैं। आपने हिंदी भाषा में कई उपन्यास एवं कहानियां लिखी हैं। आप मारवाडी समाज की है। आपका बंटी अत्यंत चर्चित उपन्यास है। आप प्रसिद्ध साहित्यकार राजेंद्र यादव की पत्नी हैं। आपके कहानी संग्रह इस प्रकार हैं- यही सच है, मैं हार गयी, तीन निगाहों की एक तस्वीर, एक फ्लेट सैलाब, बंद दरवाजों के साथ। आपके उपन्यास महाभोज का नाटक रूप में भी रुपांतर हुआ है।

खेल के क्षेत्र में योगदान

खेल के क्षेत्र में माहेश्वरी कन्याओं का कदम बढ रहा है। अनेक जिलास्तरीय एवम् राज्यस्तरीय खेलों में ये युवतियां सुल हो रही हैं। खेल के क्षेत्र में प्रेरणाज्योति बनीं ५१ वर्षीय श्रीमती संतोषजी मुंदडा। आप जूनागढ़ से हैं। आपने २०१० में मलेशिया में आयोजित अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भारत का प्रतिनिधित्व किया है।

माहेश्वरी समाज की कैप्टन अश्विनी माहेश्वरी प्रथम महिला सैन्य अधिकारी हैं, जिन्होंने एवरेस्ट फतह कर सफलता का परचम लहराया।
साहित्य के साथ ही संगीत, नृत्य, अभिनय, चित्रकारी आदि क्षेत्रों में राष्ट्रीय कार्य करने वाली माहेश्वरी महिला सेपाली, सुजाता माहेश्वरी नृत्य, चित्रकार लता लाहोटी, राखी बजाज, जमा बाहेती, संगीत पदमा बियाणी, नेहा जेडा, शोभा कर्वा इनका भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

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