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 माहेश्‍वरी धर्म

 माहेश्‍वरी धर्म

by विनोद कांकाणी
in सामाजिक, सितंबर- २०१५
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माहेश्वरी धर्म के अनुयायियों को माहेश्वरी कहते हैं। इसे कभी-कभी मारवाड़ी या राजस्थानी भी लिखा जाता है। मान्यता के अनुसार माहेश्वरियों की उत्पत्ति भगवान महेश के कृपा-आशीर्वाद से ही हुई है इसलिए ‘श्री महेश परिवार’ (भगवान शिव, माता पार्वती एवं गणेशजी) को माहेश्वरियों के (माहेश्वरी वंश के) कुलदेवता माना जाता है। माहेश्वरी वंश की उत्पत्ति के समय भगवन महेश ने भरणपोषण के लिए आशीर्वाद स्वरूप व्यापारीबुद्धि हमें प्रदान की। इसी कारण भारत की आजादी की लड़ाई में और भारत की अर्थव्यवस्था में माहेश्वरियों का बहुत बड़ा योगदान आज भी भुला नहीं सकते।

जन्म-मरण विहीन एक ईश्वर (महेश) में आस्था और मानव मात्र के कल्याण की कामना माहेश्वरी धर्म के प्रमुख सिद्धांत हैं। माहेश्वरी समाज सत्य, प्रेम और न्याय के पथ पर चलता है। शरीर को स्वस्थ-निरोगी रखना, कर्म करना (मेहनत और ईमानदारी से काम करना), बांट कर खाना और प्रभु की भक्ति (नाम जाप एवं योग साधना) करना हमारे आधार हैं। हम माहेश्वरी अपने धर्माचरण का पूरी निष्ठा के साथ पालन करते हैं तथा जिस स्थान/देश/प्रदेश में रहते हैं वहां की स्थानीय संस्कृति का पूरा आदर-सम्मान करते हैं, नर सेवा नारायण सेवा के मंत्र को आत्मसात कर मानव समाज की सेवा हेतु तन मन धन से सहयोग करते हैं। यह माहेश्वरी समाज की विशेष बात है। आज दुनियाभर के कई देशों में और तकरीबन भारत के हर राज्य, हर शहर में माहेश्वरी बसे हुए हैं और अपने अच्छे व्यवहार व व्यापार के लिए पहचाने जाते हैं।

माहेश्वरी निशान-प्रतीक चिह्न

माहेश्वरी उत्पत्ति के समय माहेश्वरियों के गुरु बनाए गए थे। इन गुरुओं ने माहेश्वरी धर्म के निशान (प्रतीक चिह्न) का एक स्वरूप बनाया था। यह निशान हमारी अपनी परम्परा में श्रद्धा एवं विश्वास का द्योतक है।

माहेश्वरी निशान कई मूल भावनाओं को अपने में समाहित करता है। यह माहेश्वरी समाज का एक पवित्र निशान है, जिसमें एक त्रिशूल और त्रिशूल के बीच के पाते में एक वृत्त तथा वृत्त के बीच ॐ (प्रणव) होता है। त्रिशूल धर्मरक्षा के लिए समर्पण का प्रतीक है। त्रिशूल शस्त्र भी है और शास्त्र भी है। आततायियों के लिए यह एक शस्त्र है, तो सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र का यह एक अनिर्वचनीय शास्त्र भी है। त्रिशूल विविध तापों को नष्ट करने वाला एवं दुष्ट प्रवृत्ति का दमन करने वाला है। त्रिशूल का दाहिना पाता सत्य का, बाया पाता न्याय का और बीच का पाता प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। त्रिशूल माहेश्वरी धर्म को दर्शाता है, जिसका मूल भाव सत्य-प्रेम-न्याय है। प्रत्येक संसारी प्राणी जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होना चाहता है। त्रिशूल के तीन पाते सम्यक रत्नत्रय-सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान एवं सम्यक चरित्र को दर्शाते हैं और संदेश देते हैं कि सम्यक रत्नत्रय के बिना प्राणी मुक्ति को प्राप्त नहीं कर सकता है। सम्यक रत्नत्रय की उपलब्धता माहेश्वरीत्व के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के लिए परम आवश्यक है। वृत्त के बीच का ‘प्रणव’ पवित्रता का प्रतीक है, अखिल ब्रह्मांड का प्रतीक है। सभी मंगल मंत्रों का मूलाधार ॐ है। परमात्मा के असंख्य रूप हैं। उन सभी रूपों का समावेश प्रणव (ॐ) में हो जाता है। ॐ सगुण निर्गुण का समन्वय और एकाक्षर ब्रह्म भी है। भगवद्गीता में कहा है ओमित्येकाक्षरं ब्रह्मः। माहेश्वरी समाज आस्तिक और प्रभुविश्वासी रहा है। इसी ईश्वर श्रध्दा का प्रतीक है ॐ।

माहेश्वरी का बोधवाक्य- माहेश्वरियों का बोधवाक्य ‘सर्वेभवन्तु सुखिन:’ माहेश्वरियों की विचारधारा को, संस्कृति को दर्शाता है। ‘सर्वेभवन्तु सुखिन:’ अर्थात केवल माहेश्वरियों का ही नहीं बल्कि सर्वे(सभी के) सुख की कामना करने वाला तथा सत्य, प्रेम, न्याय का उद्घोषक यह माहेश्वरी निशान सचमुच बड़ा अर्थपूर्ण है। माहेश्वरी निशान का दर्शन अत्यंत मंगलमय है। इसे देखते ही आतंरिक शक्ति, आतंरिक ऊर्जा जागृत हो जाती है। इसे देखते ही अनेक प्रेरक भाव मन में प्रस्फुटित होते हैं।

माहेश्वरी निशान (प्रतीक चिह्न) किसी भी विचारधारा, दर्शन या दल के ध्वज के समान है, जिसको देखने मात्र से पता लग जाता है कि यह किससे संबंधित है, परंतु इसके लिए किसी भी निशान का विशिष्ट होना एवं सभी स्थानों पर समानुपाती होना बहुत ही आवश्यक है। यह भी आवश्यक है कि प्रतीक का प्रारूप बनाते समय जो मूल भावनाएं इसमें समाहित की गई थीं, उन सभी मूल भावनाओं को यह चिह्न अच्छी तरह से प्रकट करता है।

विनोद कांकाणी

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