हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
गठजोड़ी चुनाव

गठजोड़ी चुनाव

by अमोल पेडणेकर
in अप्रैल -२०१४, संपादकीय
0

अगले दो माह चुनावों की हुड़दंग और सरकार स्थापना की कश्मकश के होंगे। कौन जीतेगा इसके कयास लगाए जाएंगे और त्रिशंकू की स्थिति पैदा हो जाए तो कौन किसके साथ होगा इसकी चर्चाएं होंगी। इसलिए कि गठजोड़ी राजनीति हमारे चुनावों का अंग बन गई है। क्षेत्रीय दलों के उदय के साथ क्षत्रपों की बन आई है। टुकड़ों के पैबंद लगाकर सत्ता चलाना मजबूरी हो गई है। इससे घोड़ा बाजार पनप रहा है। भ्रष्टाचार की जड़ भी यही है। जब बाजार होगा तो लेनदेन भी होगा ही न्!

गठजोड़ी राजनीति के परिणाम हम भुगत रहे हैं। एक नया मुहावरा कायम हुआ है, ‘गठजोड़ का धर्म’। यहां धर्म को हम ‘तारतम्य रहित समझौता’ मान लेते हैं। सरकार चलाने का यह अनिवार्य पहलू मान लिया गया है। इसलिए एक दूसरे के बीच विचारों का अंतर्विरोध होते हुए भी गठजोड़ हो जाता है। छोटे दल अपने पत्तल पर अधिक खिंचने की कोशिश करते हैं और बड़े दल को उनकी मन-मुनव्वल करनी पड़ती है। सरकार ऐसी बैलगाड़ी बन जाती है, जिसके दोनों बैल अलग-अलग दिशाओं में गाड़ी खिंचने की कोशिश करते हैं और गाड़ी खड्ड से निकलती ही नहीं। जहां थी वहीं रह जाती है या कभी-कभी तो उलट जाती है। पिछले 25-30 वर्षों में यह नित्य का अनुभव हो चुका है। इस बारे में हमारी भावनाएं इतनी भोथरी हो गई हैं कि उसका हमें कुछ लगता ही नहीं।

इससे वैचारिक संवाद तक थमने की स्थिति आ गई है। पहले जो गठजोड़ बनते थे उनमें कम से कम ‘साझा कार्यक्रम’ जनता के सामने रखा जाता था। गठजोड़ के विभिन्न दल अपने विशेष आग्रह छोड़कर सामान्य बातों के आधार पर जनता के सामने कार्यक्रम रखते थे। इसे भी अब तिलांजलि दे दी गई है। अब नया मुहावरा काम कर रहा है ‘मुद्दों पर आधारित समर्थन’। एक और मुहावरा है ‘सरकार का बाहर से समर्थन’। इस तरह के समर्थन महज राजनीतिक चालबाजी होती है। इसका उपयोग दो तरह से होता है- सरकार पर तलवार टंगी रखना और अपना स्वार्थ साधन करना तथा सरकार की विफलताओं का दोष मढ़ने की सुविधा होना; ताकि मतदाताओं के समक्ष अपनी कमीज उजली होने का दावा किया जा सके। मतदान करते समय इसे समझने की आवश्यकता है, ताकि ऐसे दलों की भूमिका सीमित हो सके।

पिछले 15 लोकसभा चुनावों में से पहले चार चुनावों में तो रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा व देश की सुरक्षा महत्वपूर्ण मुद्दे रहे हैं। उस समय कांग्रेस और नेहरू का ही बोलबाला था। बाद के काल में ‘घरानेशाही का विरोध’ मुद्दा बन गया तो इंदिराजी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया। यह गरीबी कांग्रेस अब तक नहीं हटा सकी यह कितनी विडम्बना है! 1975 के आपात्काल के बाद तो राजनीति की दिशा ही बदल गई और जयप्रकाशजी ने ‘सम्पूर्ण क्रांति’ का नारा दिया। यह भी थोड़े समय ही चला। आपसी मतभेदों में ही मोरारजी की सरकार चल बसी। फिर राजीव गांधी आए और बोफोर्स में उलझ गए। विश्वनाथ प्रताप सिंह आए तो उन्होंने अन्य पिछड़े वर्गों की सहानुभूति पाने के लिए मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कर दीं। नतीजा यह हुआ कि नरसिंह राव की अल्पमत सरकार सत्ता में आ गई। तब तक राम मंदिर का मुद्दा गरमा गया और अगले चुनाव में भाजपा सब से बड़े दल के रूप में उभरी, अटलजी पहले गैर-कांग्रेसी प्रधान मंत्री बने; परंतु सरकार 13 दिन ही चल पाई। बाद के चुनाव ‘स्थिर सरकार’ के मुद्दे पर हुए, अटलजी फिर प्रधान मंत्री बने; परंतु एक वोट से सरकार गिर गई। ‘इंडिया शाइनिंग’ के मुद्दे ने भाजपा का साथ नहीं दिया। फिर सोनिया गांधी के ‘विदेशी मूल के मुद्दे’ ने जोर पकड़ा और मनमोहन सिंह के हाथ सरकार आ गई। पिछले दस साल की हालत हम देख चुके हैं और इसी कारण परिवर्तन, विकास और स्थिर सरकार इस चुनाव के मुख्य मुद्दें बन चुके हैं।

यह इतिहास संक्षेप में इसलिए बताना पड़ा क्योंकि रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा से शुरू हुए मुद्दें मंडल, कमंडल तक बढ़ते हुए विकास और स्थिर सरकार के मुद्दे तक पहुंच चुके हैं। इस इतिहास से यह भी साबित होता है कि कांग्रेस का एक दलीय साम्राज्य समाप्त होने के साथ हुई गठजोड़ी राजनीति ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा है। सरकारें बनती रहीं, टूटती रहीं और स्थायित्व के अभाव में कुछ नहीं कर सकीं।

हमारे राजनीतिक दल आज तक जातिगत, अल्पसंख्यक, दलित, क्षेत्रीय अस्मिता, बाहुबल, धनबल का ध्यान रखकर ही विजय का समीकरण जुटाते रहे हैं। इसके अलावा करीब डेढ़ सौ सीटें देश के राजनीतिक घरानों के पास सदा रहते आई हैं। हमारी व्यक्ति-पूजा की प्रवृत्ति इससे झलकती है। विभिन्न दल भी उन्हें ही बार-बार इसलिए टिकट देते हैं कि उन्हें वोटों का युद्ध जीतना है। और, युद्ध हो तो बाकी बातों के बारे में कौन सोचेगा? इसी कारण दागी उम्मीदवार भी जीत जाते हैं। राजनीति की ‘सफाई’ या स्वच्छ छवि की बातें भाषणों तक सिमट जाती हैं। प्रत्यक्ष में समझौतों व गठजोड़ों पर ही निर्भर होना पड़ता है।
हम सभी परिवर्तन चाहते हैं। परिवर्तन का प्रभाव तभी अनुभव होगा, जब सरकार लंगड़ी नहीं होगी, किसी छोटे दल की मर्जी पर निर्भर नहीं होगी और स्थिर होगी। राजनीतिक स्थिरता देश की दशा अवश्य बदल सकती है और विकास की दिशा की कम से कम बुनियाद तो रख ही सकती है। इसलिए किसी एक दल को पूर्ण बहुमत मिले यह समय की आवश्यकता है। अब किस दल के पक्ष में वोटों का वजन डालें इस पर गौर करें। तुलना करने के लिए हमारे पास दो ही राष्ट्रीय दल बचते हैं- कांग्रेस और भाजपा। अन्य किसी दल में राष्ट्रीय स्तर का माद्दा ही नहीं है इसलिए उन पर विचार करने का प्रश्न ही नहीं है। कांग्रेस को हम दशकों से देखते रहे हैं। अब बारी है भाजपा की। परिवर्तन का माने ही है वर्तमान व्यवस्था को बदलना। प्रश्न उठता है कि फिर इन दोनों दलों के वर्तमान सहयोगी दलों का क्या हो? कोशिश यह हो कि मुख्य दल को बहुमत मिले, अन्य सहयोगियों को मिली सीटें सोने में सुहागा! मुख्य दल को बहुमत मिलने से चूजों की तरह भागने की परम्परा को विराम मिलेगा और सरकार जन समस्याओं पर अधिक ध्यान दे सकेगी। यही इस ऐतिहासिक चुनाव का संकेत है।
—————

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

अमोल पेडणेकर

Next Post
अभिनेता से ‘नेता’ बने कलाकार

अभिनेता से ‘नेता’ बने कलाकार

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0