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 बारिश और स्वाद

 बारिश और स्वाद

by अमोल पेडणेकर
in जुलाई -२०१४, सामाजिक
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वर्षा ऋतु सभी को समृद्ध करने वाला है। सभी उसकी आतुरता से प्रतीक्षा करते हैं। हम बचपन से सुनते हैं जब आसमान में बादल छाते हैं तो मोर नाचते हैं। आसमान में बादलों को घिरते तो हमने देखा है, पर क्या मोर सचमुच नाचते हैं? मोर नाचे या न नाचे पर इतना जरूर पता है कि पेट के कौए किसी अलग ही सुर में चिल्लाने लगते हैं। जरूर बादलों और पेट का कोई गहरा नाता होगा, क्योंकि जैसे ही बादलों से हवा टकराती है, जीभ कुछ स्वादिष्ट खाने को लालायित हो उठती है। यह अनुभव प्रत्येक नर-नारी से लेकर बच्चों और बूढ़ों तक सभी को होता है।

अब बारिश और खाने का क्या संबंध है? उसमें कौन सी नई बात है, बारिश होगी तो भूख तो लगेगी ही। ऐसे सवाल अगर किसी के मन में उठ रहे हैं तो उसने शायद जीवन की मौज-मस्ती ही खो दी है। बारिश तो हर साल होती है उसमें क्या नई बात है? यह पूछने वाला व्यक्ति बारिश में कुछ ज्यादा ही चिकचिक करता है। ऐसे लोगों को बारिश के चार महीने दूर रखकर हमें प्रकृति के साथ एकरूप हो जाना चाहिए।

पे़ड स्वयं को जोरदार हवाओं और बारिश की तेज झ़डी के हवाले कर देते हैं। बारिश में तर कोई यौवना अपने चेहरे पर आए भीगे बालों को संवारती हुई दिखती है। ख़िडकी से बाहर झांकते हुए जब ऐसे मनमोहक द़ृश्य दिखाई देते हैं तो मन करता है कि हाथ में गरमा-गरम चाय और पकौ़डे हों। वाह! क्या ‘परफेक्ट सीन’ होता है वह। बिलकुल वैसा ही जैसे मुगल-ए-आजम में मधुबाला परफेक्ट थीं। ऐसे मौसम में दिल और क्या चाहता है? यही कि कहीं से ‘रिमझिम गिरे सावन, सुलग-सुलग जाए मन, भीगे आज इस मौसम में, लगी कैसी ये अगन’ सुनाई दे। बारिश रिमझिम हो या मूसलाधार ‘भीगे आज इस मौसम में, लगी कैसी ये अगन’ पंक्ति बहुत महत्वपूर्ण है। बारिश की किसी रम्य शाम को या रविवार को सबसे पहला प्रश्न होता है, नाश्ता क्या बनाया जाए? कौन सा व्यंजन बनाया जाए जो बारिश का स्वाद बढ़ा दे। बारिश का आनंद उठाने वालों को क्या चाहिए? बस कुछ तीखा, चटपटा और जायकेदार।

मूंगदाल की खिच़डी, मसाला भरी मिर्ची, दही और पाप़ड और अगर इस खिच़डी पर हींग का त़डका लग जाए तो फिर बात ही कुछ और है। ‘खिच़डी के चार यार, दही, पाप़ड, घी, अचार’ यूं ही नहीं कहा जाता। खाने वालों के लिए ये खिच़डी किसी पुरस्कार से कम नहीं होगी। जैसे चांद का नाम आते ही नील आर्मस्ट्रांग का नाम आता है वैसे ही बारिश का मौसम आते ही भजिए, पकौ़डे, आलू-बंडे याद आ ही जाते हैं। ये भजिए सभी अपने-अपने स्वाद के अनुसार बनाते हैं कभी प्याज, आलू, बैंगन तो कभी केक़डा। सौ बातों की एक बात यह कि हम वर्षा मनाते हैं। बारिश के मौसम के खाद्य पदार्थों में अलग-अलग स्थानों के हिसाब से परिवर्तन होता रहता है। तले हुए व्यंजन जैसे समोसा, कचौडी आलूबंडा, भजिया, पकौडे आदि तो लगभग बनते ही हैं। महाराष्ट्र में थालीपीठ नामक एक खास पदार्थ बनाया जाता है। विभिन्न दालों को मिक्स कर बनाया गये इस व्यंजन को लहसुन की ताजी चटनी के साथ खाते हैं। बाहर बारिश हो रही हो और हाथ में गरमा-गरम थालीपीठ और उसपर शुद्ध देसी घी और चटनी, मुंह में पानी लाने के लिये इतना ही काफी है। ऐसा ही एक और पदार्थ है ‘भाकरी और पिठल।’ भाकरी अर्थात ज्वार या बाजरे की रोटी। पिठल अर्थात लगभग कढ़ी जैसा पदार्थ। इसमें कुछ लोग मुनगा डालते हैं। बेसन में डूबी हुए मुनगे को चूसने में बडा ही मजा आता है। भाकरी के साथ कुछ लोगों को बैंगन, टमाटर और मुनगे की रसीली सब्जी भी पसंद आती है। हालांकि गैस के जमाने चूल्हे दिखाई नहीं देते पर अगर इस सब्जी को चुल्हे पर बनाया जाये तो उसका मजा ही कुछ और है।
बारिश शुरू होते ही कुछ लोगों के कदम अपने आप बाहर निकलने को लालायित हो उठते हैं। फिर चाय की टपरी, भजिए के ठेलों और भुट्टे बेचने वाले की चांदी हो जाती है। ऐसे दिनों में इनकी विशेष ‘डिमांड’ होती है।

शायद बारिश को भगवान ने इंसानों का स्वाद बदलने के लिए ही बनाया है। खासकर मांसाहारी और मत्स्याहारी व्यंजन पसंद करने वालों के लिए तो यह ‘उत्सव’ ही होता है। इस भोजन का स्वाद का वर्णन मांसाहारी और मत्स्याहारी लोगों के साथ होने वाली ‘स्वादिष्ट’ चर्चा के दौरान सहज ही मिल जाता है। इस भोजन में अगर सूखी मछली को भूंनकर, उसमें नमक-मिर्च लगाकर शामिल कर लिया जाए तब तो खाने वालों के लिए सोने पर सुहागा होगा। सूखी मछली का स्वाद क्या होता है, यह तो खाने वाला ही जान सकता है, क्योंकि बारिश के पूर्णत्व का ही वह आस्वाद लेता है।

किस व्यंजन के कारण किसी के मुंह में पानी आ जाए, कोई नहीं कह सकता। परंतु बाहर जब झमाझम बारिश हो रही हो, तब कौन सा व्यंजन आपकी क्षुधा शांत कर सकता है, यह तो आप ही बेहतर जान सकते हैं। परंतु चाहे बारिश रिमझिम हो या झमाझम, लज्जतदार व स्वादिष्ट खाना और मनभावन संगीत दोनों ही बारिश का मजा बढ़ाते हैं यह तय है।

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