काले धन की चुनौती

भारतीय राजनीति में कुछ विषय परंपरागत रूप से चले आ रहे हैं। उनमें से एक विषय है स्विस बैंक में जमा काला धन। काला धन क्या है? काला धन अनैतिक व्यवहार से तथा गलत मार्गों से कमाया हुआ या संचय किया हुआ धन है। काले धन का सबसे बड़ा परिणाम यह है कि इस धन के कारण देश की राष्ट्रीय आय को क्षति पहुंचती है। कम उत्पादन और बाजार में फैलने वाले काले धन के कारण महंगाई बढ़ती है। काला धन आर्थिक असमानता को बढ़ावा देता है। समाज में बड़ी आर्थिक दरार उत्पन्न करता है। सीधे शब्दों में कहा जाए तो विदेश में भेजा गया धन या काला धन देश विरोधी कार्य करता है। इसे एक तरह का ‘आर्थिक आतंकवाद’ माना गया है।

पिछले कुछ वर्षो में भारत में आर्थिक घोटालों की एक लंबी श्रृंखला तैयार हो गई है। इस श्रृंखला में देश के राजनेता, आयपीएस अधिकारी, उद्योगपति, सामाजिक नेता भी शामिल हैं। अभी तक जिनके खुलासे हो गए हैं और जो अज्ञात हैं ऐसे सभी घोटाले भारतीय समाज व्यवस्था को लगा हुआ भ्रष्टाचार रूपी कैंसर है। यह कैंसर अब तीसरी अवस्था में पहुंच गया है। ऐसे कई उदाहरण हमें अपने चारों ओर देखने को मिल जाएंगे। भ्रष्टाचार को सतही तौर पर देखते समय यह गलतफहमी होती है कि कोई एक व्यक्ति जिम्मेदार है। परंतु यह भ्रम है। क्योंकि जिस तरह हर शिखर की नींव होती है उसी तरह दिखाई देनेवाले इस भ्रष्ट व्यक्ति को आधार देनेवाली एक विस्तृत व्यवस्था होती है।

पिछले कुछ सालों में भारतीय राजनीति और समाज में एक शब्द प्रचलित हैै ‘जुगाड़’। अपनी समाज व्यवस्था में कई स्थानों पर इस तरह की जुगाड़ व्यवस्था अपना मजबूत स्थान बना रही है। सामान्य व्यक्ति को अगर मोटर साइकिल का लायसेंस भी बनवाना हो तो ऐसे जुगाड़ों के पैर पकड़ने पडते हैं। इस परंपरा के लोग हमें राशन की दूकानों से लेकर राजनैतिक, सामाजिक और कार्पोरेट स्तर तक मिलते रहते हैं। जुगाड़ करनेवाले ये लोग इतने बेफिक्र हैं कि पकड़े जाने पर उनमें डर का नामोनिशान तक नहीं होता। जेल जाते समय वे कुछ इस तरह मुस्कुराते हैं जैसे कोई नेक काम किया हो और जेल से आने के बाद उनके समर्थकों के द्वारा उनका जो स्वागत होता है उससे देखकर जनसामान्यों की आंखें चौंधिया जाती हैं। संपूर्ण देश यह सारा तमाशा हताश होकर देखता है। कल तक जनसाधारण के मन में यह खिन्नता थी कि इस सारी स्थिति के प्रति रोष होने के बाद भी हम कुछ नहीं कर सकते।

ऐसी स्थिति में भारत में परिवर्तन हुआ और भारत की राजनीति में नरेन्द्र मोदी की सत्ता स्थापित हुई। नरेन्द्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान काला धन भारत में लाने का आश्वासन भारत की जनता को दिया था। सत्ता में आने के बाद भी प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह साफ शब्दों में कहा कि विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस लाएंगे ही। इससे जनसामान्यों की आशाएं पल्लवित हो रही हैं। नरेन्द्र मोदी की प्रतिमा जैसी कथनी वैसी करनी वाले व्यक्ति के रूप में समाज में छा चुकी है। प्रश्न यह है कि पिछले 68 सालों में सत्ताधारी दलों और विरोधी दलों ने क्या किया? अनुभव यह कहता है कि जब सत्ता से दूर होते हैं तो काले धन को राजनैतिक मुद्दा बनाते हैं और जब सत्ता में आते हैं तो उसी काले धन के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है तथा दुनिया भर के नियम-कानून या कूटनीति का बखान किया जाता है।
परंतु प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव प्रचार क े दौरान और प्रधान मंत्री बनने के बाद भी विदेशों में जमा काले धन को देश में वापस लाने का निश्चय व्यक्त किया है। विदेशी बैंकों से किसी भी प्रकार की औपचारिक सूचना या सहयोग न मिलने के बावजूद भी भारत सरकार स्वयं संपर्क करके काले धन की जानकारी इकट्ठा कर रही है। एसआयटी का गठन करके भारत सरकार ने काले धन के संदर्भ में अपनी गंभीर भूमिका स्पष्ट की है। विदेशों से काला धन भारत में लाने की अपेक्षा सब से बड़ी चुनौती है देश में निर्माण होने वाला काला धन व उसके निर्माण की प्रक्रिया को रोकना। अभी तक इस तरह जितना काला धन देश में जमा हुआ है उसे सामने लाना ही मोदी सरकार की अग्नि परीक्षा है।

असली मुद्दा यह है कि जितना पैसा विदेशी बैंकों में नेताओं या अधिकारियों का जमा है उससे कई गुना अधिक व्यापारियों और उद्योगपतियों का है। दूसरी बात यह है हमारी इस सोच को दरकिनार करना होगा कि काला धन विदेशी बैंकों से भारत में लाने की एक सीधी सरल प्रक्रिया है। एक और बात की ओर हमें ध्यान देना चाहिए कि जब से वैश्विक व्यापार में भारतीय बाजारों का महत्व बढ़ने लगा तब से बड़े देशों में भारतीय बाजार में निवेश करने की होड़ लगी है। यह वैश्विक सोच बन रही है कि सवा सौ करोड़ की जनसंख्या वाला यह देश विश्व का एक बड़ा बाजार है। ऐसे समय में भारतीयों का काला धन विदेशी बैंकों में सुप्तावस्था में पड़े रहनेवाली बात गले से नहीं उतरती। इस काले धन का बड़ा हिस्सा अर्थचक्र के रूप में घूम कर फिर भारत में ही आता है। और जब यह भारत में आता है तो वह पहले से ज्यादा सुरक्षित हो जाता है। इसी पैसे का भारत में विभिन्न स्तरों पर निवेश होता है। असंख्य व्यापारों और चुनावों में इस काले धन का उपयोग किया जाता है। काले धन का मामला इतना सरल नहीं है जितना पहली दृष्टि में हमें दिखाई देता है। इसे सामने लाना कोई साधा कार्य नहीं है। मोदी सरकार का निश्चय और एसआयटी जैसी संस्था इसमें सफल हो सकती है परंतु उसके लिए नीतिगत बंधनों का पालन करना आवश्यक है। अपने-पराए का भाव भूलकर इस समस्या की ओर देखना होगा; क्योंकि ‘एक दूसरे को रिश्वत देंगे और दोनों अमीर होंगे’ इस सोच के कारण ही भ्रष्टाचार बढ़ा है। सभी जानते हैं कि इसमें सभी दल और सभी स्तर के लोग हर भेद भुलाकर शामिल हैं।

पिछले 65 सालों में समाज के छोटे-बड़े वर्ग के लोगों को अपनी क्षमता के अनुसार भ्रष्टाचार करने की आदत लग गई है और अब यह उनका स्वभाव बन गया है। किसी जमाने में साधु-संतों का देश कहा जानेवाला यह देश इक्कीसवीं सदी में आर्थिक महासत्ता बनने के स्वप्न देख रहा है। इसी समय वैश्विक पटल पर उसकी पहचान भ्रष्ट देश के रूप में भी हो रही है। ऐसा लगता है कि समाज के ऐसे भ्रष्ट लोगों को नैतिकता सिखाने का और देश की प्रतिमा को ऊंचा उठाने का बीड़ा नियति ने नरेन्द्र मोदी के हाथ में सौंपा है और अब यह नियति ही उनके प्रयासों को सफलता देगी।
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