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देखो सचिन को….‘प्लेइंग इट माई वे’ से….

देखो सचिन को….‘प्लेइंग इट माई वे’ से….

by राकेश खेडेकर
in खेल, दिसंबर -२०१४
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यदि आप स्वयं सचिन की जीवनी पढ़ना चाहते हैं तो कुछ और दिन आपको इंतजार करना होगा; क्योंकि इसकी अग्रिम बुकिंग हो चुकी है और अभी वेटिंग लिस्ट चल रही है। भारत में किसी किताब की बिक्री का यह एक रिकार्ड है। …एक अहम बात यह कि, इस किताब की बिक्री से मुंबई के एनजीओ ‘अपनालय’ की मदद होगी; क्योंकि इस किताब की बिक्री का एक हिस्सा बच्चों में कुपोषण के खिलाफ लड़ रही आ संस्था को दिया जाएगा।

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर भारतीय क्रिकेट इतिहास का एक सुनहरा पन्ना है। भारत का सर्वोच्च सन्मान ‘भारतरत्न’ प्राप्त करनेवाले खेल जगत के पहले खिलाड़ी। सिर्फ भारत ही नहीं, दुनिया भर में उनके कई प्रशंसक हैं। क्रिकेट के किसी नवोदित खिलाड़ी से अगर पूछा जाए कि आपकोे भविष्य में क्या बनना है? तो उसके मुंह से सहज ही सचिन का नाम निकलेगा। उनका पूरा करिअर ही प्रशंसा के योग्य रहा है। अब इस मास्टर ब्लास्टर ने मैदान के बाहर भी एक नया रिकॉर्ड अपने नाम पर दर्ज किया है। यह रिकॉर्ड किताब के क्षेत्र में है।

भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों के लिए क्रिकेट के ‘भगवान’ माने जाने वाले सचिन ने छह नवंबर को अपनी आत्मकथा ‘प्लेइंग इट माई वे-माई ऑटोबायोग्राफी’ के द्वारा किताब के रूप में अपने करिअर की ढेर सारी बातें दुनिया के सामने लाई हैें। इस किताब ने शुरुआत में ही एक नया रिकार्ड अपने नाम पर किया है। क्रिकेट की पिच पर गेंदबाजों की जमकर धुनाई करनेवाले सचिन की आत्मकथा ने बिक्री के सब रिकॉर्ड अपने नाम पर किए हैं। सचिन की आत्मकथा का प्रकाशन हॉडर एंड स्टॉटन ने तथा इसका सह प्रकाशन हैश इंडिया ने किया है। अब तक की बिक्री के रिकॉर्ड को देखते हुए हैश इंडिया ने इस आत्मकथा का प्रकाशन विभिन्न भारतीय भाषाओं में करने का निर्णय लिया हीै। 2015 तक मराठी, गुजराती, मलयालम, बंगाली जैसी भाषाओं में यह किताब पाठकों तक पहुंए यह उनका प्रयास है। जाने-माने खेल पत्रकार और इतिहासविद् बोरिया मजूमदार ने इस आत्मकथा का सह लेखन किया है।

जब यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि सचिन की यह किताब बिक्री के रिकॉर्ड तोडेगी तभी एक मार्केटींग स्ट्रेटेजी तहत किताब के कुछ वादग्रस्त और चर्चा में रहे किस्सों को प्रकाशन संस्था दुनिया के सामने लाई। जिससे किताब लांच होने के पूर्व ही चर्चा में रही। उसमें एक मुद्दा था असफलता का दौर देखकर सचिन क्रिकेट से दूर होना चाहते थे और दूसरा महत्वपुर्ण मुद्दा था भारत के तत्कालीन कोच ग्रेग चैपल की टीम इंडिया में की जानेवाली ‘दादागिरी’ का।

आज कई लोगों ने सचिन की आत्मकथा पढ़ ली होगी, तो कई उसकीराह देख रहे होंगे। भाई, यह सचिन की आत्मकथा है, तो उसकी चर्चा तो होगी ही। सचिन को भारतीय क्रिकेट फै न्स ‘क्रिकेट का भगवान’ मानते हैं, लेकिन उनके करिअर में भी ऐसे दौर आए थे जब वे अपनी असफलता से इतना डर गए थे और टूट चुके थे कि वे पूरी तरह से क्रिकेट से दूर होना चाहते थे। इसका उल्लेख सचिन ने अपनी आत्मकथा में किया है।

‘प्लेइंग इट माई वे’ के नजरिये से सचिन के बारे में बात करें तो उन्होंने अपने करिअर में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। सचिन के करिअर में कप्तानी के दौरान हलका सा दाग लगा था। सचिन ने अपनी आत्मकथा में भी इसका उल्लेख किया है। सचिन कहते हैं कि, मुझे हार से नफरत है और टीम के कप्तान के रूप में मैं लगातार खराब प्रदर्शन के लिए खुद को जिम्मेदार मानता था। इससे भी अधिक चिंता की बात यह थी कि मुझे नहीं पता था कि इससे कैसे उबरा जाए क्योंकि मैं पहले ही अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहा था। मैंने अपनी पत्नी अंजली से कहा कि मुझे डर है कि मैं लगातार हार से उबरने के लिए शायद कुछ नहीं कर सकता। लगातार मैच हारने से मैं काफी डर गया था। मैंने अपना सब कुछ झोंक दिया और मुझे भरोसा नहीं था कि मैं 0.1 प्रतिश्त भी और दे सकता हू्ं। इसके बाद सचिन ने खुलासा किया है कि, इससे मुझे काफी पीड़ा पहुंच रही थी और इन हार से निपटने में मुझे लंबा समय लगा। मैं पूरी तरह से खेल से दूर होने के बारे में विचार करने लगा था; क्योंकि ऐसा लग रहा था कि कुछ भी मेरे पक्ष में नहीं हो रहा था।

सचिन का वह बुरा दौर 1997 के समय का है जब भारतीय टीम वेस्ट इंडिज का दौरा कर रही थी। पहले दो टेस्ट ड्रा कराने के बाद भारतीय टीम तीसरे में जीत की ओर बढ़ रही थी और उसे सिर्फ 120 रन का लक्ष्य हासिल करना था। लेकिन भारतीय टीम सिर्फ 81 रन पर ढेर हो गई जिसमें सिर्फ वी वी एस लक्ष्मण ही दोहरे अंक तक पहुंचने में सफल रहे।

सचिन ने उस दिन को आत्मकथा में भारतीय इतिहास का काला दिन और निश्चित तौर पर खुद के कप्तानी करिअर का सबसे खराब दिन कहा है।

भारत के तत्कालीन कोच ग्रेग चैपल और भारतीय खिलाड़ियों की बहुत ही कम जमी होगी। उनके और खिलाड़ियों के बीच कुछ ना कुछ विवाद होते ही थे। उसका एक बड़ा खुलासा सचिन ने अपनी आत्मकथा में किया है। उसके मुताबिक चैपल ने वेस्ट इंडिज में खेले गये विश्व कप 2007 से कुछ महीने पहले राहुल द्रविड के स्थान पर उन्हें भारतीय टीम की कप्तानी संभालने का सुझाव दिया था। सचिन ने आत्मकथा में चैपल की कड़ी आलोचना करते हुए उन्हें ‘रिंग मास्टर’ करार दिया जो खिलाड़ियों पर अपने विचार थोंपता थे और कभी इसकी परवाह नहीं करते थे कि खिलाड़ी सहज महसूस कर रहे हैं या नहीं। सबसे अहम बात यह कि चैपल विश्व कप के कुछ दिन पहले सचिन के निवास पर गए थे और उन्होंने सचिन से कहा था कि, हम दोनों मिलकर वर्षों तक भारतीय क्रिकेट को नियंत्रित कर सकते हैं। इस दौरान चैपल ने पेशकश की कि द्रविड़ से कप्तानी लेने में वह उनकी मदद कर सकते हैं। सचिन के मुताबिक उस समय अंजली भी उसके साथ बैठी थी और वह यह बात सुनकर हैरान रह गईं और उसने यह प्रस्ताव ठुकराया था।

इस किताब में सौरव गांगुली के प्रति कोच चैपल के रवैये का जिक्र किया जिसे सचिन ने ‘हैरान करने वाला’ करार दिया। सचिन कहते हैं कि, चैपल ने सबके सामने कहा था कि भले ही उन्हें सौरव की वजह से यह पद मिला हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे ताउम्र सौरव का पक्ष लेते रहेंगे। चैपल सीनियर खिलाड़ियों को टीम से बाहर करना चाहते थे।
सचिन ने कहा कि विश्व कप 2007 की हार के बाद उनके दिमाग में संन्यास लेने का विचार आया लेकिन परिजनों और दोस्तों ने उन्हें बने रहने के लिए कहा। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 18 साल बिताने के बाद इस तरह की चीजों को सहन करना मुश्किल था और संन्यास का विचार मेरे दिमाग में आया था। मेरे परिवार और संजय नायक जैसे मित्रों ने मुझे खुश रखने के लिए अपनी तरफ से हर तरह की कोशिश की और एक सप्ताह बाद मैंने इसको लेकर कुछ करने का फैसला किया। मैंने दौड़ना शुरू किया। यह विश्व कप की यादों को दिमाग से निकालने की कोशिश थी।

इस आत्मकथा में सचिन ने बहुचर्चित मैच फिक्सिंग मामले में कुछ लिखना सही नहीं समझा। फिक्सिंग के बारे में मैं कुछ नहीं जानता था, इसलिए मुझे उस पर टिप्पणी नहीं करनी है ऐसा सचिन ने किताब में लिखा है। उस मुद्दे को नहीं छेड़ने का फैसला किया; क्योंकि ऐसी चीज के बारे में टिप्पणी करना ‘अनुचित’ होता जिसके बारे में आपको पूरी जानकारी नहीं है, ऐसा सचिन को लगता है।

आपको मंकीगेट याद है। हां, वही मंकीगेट जिसके कारण भारत और आस्ट्रेलिया के बीच क्रिकेट रिश्ते में खटास निर्माण हुई थी। इस ‘मंकीगेट कांड’ के दौरान जो विश्वासघात महसूस हुआ उसके कारण इस दौरे का बहिष्कार करना चाहते थे ऐसी टिप्पणी सचिन ने अपनी आत्मकथा में की है। सचिन इस विवाद के मुख्य गवाह रह चुके हैं।

सचिन को कप्तानी से हटाया गया था वह काल को उसने ‘अनौपचारिक’ तथा बहुत ‘लज्जाजनक’ और ‘अपमानाजनक’ करार दिया। और सर्वकालिक महान भारतीय आलराउंडरों में से एक कपिल देव ने कोच के रूप में सचिन को निराश किया था जिसका खुलासा भी सचिन ने अपनीे आत्मकथा में किया है।

सचिन के करिअर में ऐशी ढेर सारी घटनाएं घट चुकी हैं जो अच्छी और बुरी रही हैं। अगर आपको यह सब जानना है, तो सचिन की आत्मकथा को ही पढ़ना होगा। फिलहाल दिसम्बर तक इस आत्मकथा की बुकिंंग हो चुकी है और बहुत से पाठक वेटिंग लिस्ट में हैं। इसलिए आपको स्वयं उसे पढ़ने के लिए कुछ और दिन ठहरना होगा। जिसने इसको खरीदा है, अब तक वह सचिन के जीवनकाल को पढ़कर संतुष्ट हुआ होगा ऐसी आशा रखते है। एक अहम बात यह कि, इस किताब की बिक्री से मुंबई के एनजीओ ‘अपनालय’ की मदद होगी; क्योंकि इस किताब की बिक्री का एक हिस्सा बच्चों में कुपोषण के खिलाफ लड़ रही इस संस्था को दिया जाएगा। सचिन पिछले दो दशक से ‘अपनालय’ को सहयोग दे रहे हैं और उन्होंने किताब की बिक्री से कम से कम 25 लाख रुपए संस्था को देने की प्रतिबद्धता जताई है।

Tags: actionactiveathletecricketfootballhindi vivekhindi vivek magazineolympicscoresportswinwinners

राकेश खेडेकर

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