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आंबेडकर विचारों का आदान-प्रदान आवश्यक

आंबेडकर विचारों का आदान-प्रदान आवश्यक

by अमोल पेडणेकर
in अप्रैल -२०१५, संपादकीय
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ब्रिटेन के प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल से एक पत्रकार ने पूछा ‘व्हाट इस द डिफरेन्स बिटवीन ए पॉलिटिशियन एण्ड ए स्टेट्समैन?’ चर्चिल ने जवाब दिया, ‘जो आनेवाले चुनावों को ध्यान में रखकर बात करता है, वह पॉलिटिशियन है और जो आनेवाली पीढ़ी को ध्यान में रखकर बात करता है वह स्टेट्समैन है।’ डॉ. बाबासाहब आंबेडकर को दूसरी श्रेणी का नेता कहा जा सकता है। वे केवल द्रष्टा नेता ही नहीं थे अपितु उनके विचारों के साथ उनकी नियोजनबद्ध कृति भी थी। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर कल भी कालानुरूप थे और आज भी प्रासंगिक हैं। आनेवाले समय में तो वे अधिक प्रासंगिक हो जाएंगे। दलित समाज को मुक्ति का मार्ग दिखाते समय, उस समाज में स्वाभिमान की चेतना जागृत करने के साथ ही डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने संपूर्ण राष्ट्र की विविध समस्याओं का भी विचार किया। आधुनिक भारत की संकल्पना और निर्माण में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का ऐतिहासिक योगदान है। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के प्रखर व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू आश्चर्यचकित करनेवाले हैं।

अमेरिका के विश्वविख्यात कोलंबिया विश्वविद्यालय से उपाधि प्राप्त करनेवाले एक श्रेष्ठ अर्थशास्त्री, ‘बहिष्कृत भारत’ के जुझारू सम्पादक, एक द्रष्टा विचारक जो कहते हैं कि अस्पृश्यता का भाव रखने से केवल अस्पृश्यों का ही नहीं बल्कि भारतीय समाज का भी आंतरिक नुकसान हुआ है; ‘बुद्ध और धम्म’ ग्रंथ लिखकर भगवान बुद्ध के तत्वज्ञान पर प्रकाश डालनेवाले तत्ववेत्ता, विधि महाविद्यालय के प्राचार्य, मुंबई उच्च न्यायालय में वकालत करनेवाले प्रसिद्ध वकील, भारत के श्रमिकों के हितों की रक्षा करनेवाले निडर श्रमिक मंत्री, भारत की महिलाओं को समान अधिकार दिलवाने के लिए हर तरह से प्रयत्न करनेवाले समाज सुधारक….यह डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का परिचय है।

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के व्यक्तित्व के इन विविध रूपों पर गौर किया जाये तो लगता है कि भारतीय समाज का कोई भी घटक उनके ॠण से मुक्त नहीं हो पाएगा। फिर भी भारतीय समाज ने उनके इस विशाल व्यक्तित्व को पूर्ण रूप से नहीं पहचाना। ‘दलितों के उद्धारक’ और ‘संविधान के शिल्पकार’; हमने यहीं तक उनकी पहचान को मर्यादित कर दिया है। इस मर्यादित परिचय ने एक विशाल और तेजस्वी व्यक्तित्व को सीमित कर दिया है। सीमित इस अर्थ में कि हमने बाबासाहब की प्रकांड बुद्धिमत्ता और भव्य कार्य की ओर देखने का कभी कष्ट ही नहीं किया।

देखा जाए तो बाबासाहब ने देश की प्रत्येक समस्या का गहराई से अध्ययन किया है। केवल इतना ही नहीं उन्होंने समय-समय पर उन समस्याओं को सुलझाने के उपाय भी बताये हैं। अर्थनीति, भाषा पर आधारित प्रांतों की रचना, शिक्षा प्रणाली, जल नीति, विद्युत संबंधित नीति, नदियों के पानी के वितरण की समस्या, पाकिस्तान समस्या इत्यादि जैसी कोई भी महत्वपूर्ण बात उनकी नजरों से छूटी नहीं। देश की समस्याओं का इतनी गहराई से, विस्तृत और समग्र विचार उन्होंने क्यों किया होगा? और वह भी तब जब उन्हें जाति के आधार पर सतत अवहेलना का सामना करना पड़ रहा था? इसका एक ही उत्तर है कि डॉ. बाबासाहब आंबेडकर प्रखर देशभक्त थे। हजारों वर्षों की जाति व्यवस्था के विरुद्ध अकेले संघर्ष करने की जिम्मेदारी भारतीय इतिहास ने उनके ऊपर डाली थी। उस जिम्मेदारी को सफलतापूर्वक निभाकर भारतीय समाज व्यवस्था को सामाजिक प्रारूप प्रदान करने का ऐतिहासिक कार्य उनके द्वारा किया गया है। इस प्रारूप को वास्तविक रूप में उतारने का अवसर उन्हें तब मिला जब उन्हें संविधान सभा की मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने इस अवसर का भी भरपूर लाभ उठाया। राष्ट्र की संकल्पना मानव निर्मित है। अत: राष्ट्र का वास्तविक नायक मानव ही है। राष्ट्र अर्थात मानव का मानव से संबंध। यह संबंध समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय पर आधारित हो, यही बाबासाहब का आग्रह था।

बाबासाहब का स्मरण करते समय उनका प्रखर राष्ट्रप्रेम नहीं भूलना चाहिये। डॉ. आंबेडकर के जीवनकार्य से स्पष्ट होता है कि उन्होंने सदैव हिंदू समाज की परम्पराओं में जो बुराइयां थीं, उनमें सुधार करके देश की एकात्मता बनाए रखने का प्रयत्न किया। सैकड़ों अन्याय होने के बावजूद भी उन्होंने अपने पूरे जीवन में कोई भी ऐसा कार्य नहीं किया जिससे देश की एकात्मता को ठेस पहुंचे।

समाज के प्रत्येक वर्ग में उनकी लोकप्रियता प्रति दिन बढती जा रही है। अब पिछड़ी जातियों के और उच्च जाति के लोग भी बाबासाहब को अपना नेता मानते हैं। संविधान का अर्थ है लोकतंत्र। लोकतंत्र की जड़ें जितनी मजबूत होंगी, बाबासाहब की प्रासंगिकता उतनी ही बढ़ती जाएगी। उनके विचारों का समाज के सुधार के लिए, संगठन के लिए और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, सामाजिक क्रांति इत्यादि जीवन मूल्य केवल इन शब्दों के उच्चारण मात्र से प्रस्थापित नहीं होते। आज की बदलती हुई सामाजिक, धार्मिक और राष्ट्रीय परिस्थिति के संदर्भ में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के विचारों को कालानुरूप और प्रवाहपूर्ण तरीके से लोगों के समक्ष रखना आवश्यक है। ऐसा मानना कि डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के विचार किसी एक विशिष्ट वर्ग के लिए ही हैं; यह एक प्रकार से डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का संप्रदाय बनाने का अप्रत्यक्ष प्रयत्न है। किसी भी विचार को सांप्रदायिक रूप प्राप्त होना समाज के हित में नहीं होता। इस तरह विचारों की अस्पृश्यता सामाजिक परिवर्तन नहीं ला सकती। सामाजिक परिवर्तन के लिए विचारों के आदान-प्रदान की अत्यधिक आवश्यकता है। विभिन्न मंचों पर आंबेडकर विचारों का आदान-प्रदान होना तथा आंबेडकर विचारों को समझना और समझाना आवश्यक है।

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के विचार राष्ट्रीय एकात्मता और राष्ट्रप्रेम के उदाहरण हैं। साथ ही वे विषमता के विरुद्ध लडनेवाले विचार भी हैं। अपने विचारों के माध्यम से परिवर्तन का ध्येय रखनेवाले डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के विचार आज भी उतने ही मार्गर्दशक हैं।

अमोल पेडणेकर

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