भ्रमित आज़ादी का बौद्धिक आतंकवाद

राष्ट्र तथा समाज की स्वतंत्रता को कुचलने और उनके जीवन मूल्यों को समाप्त करने की कोशिश का नाम है आतंकवाद। हथियारों का उपयोग करके भयभीत करने तक ही अब आतंकवाद सीमित नहीं रहा है, वरन् वैचारिक रूप से किसी को भ्रमित करना भी एक तरह का सोचा-समझा आतंकवाद ही है। छद्म युद्ध के रूप में कभी माओवाद, कभी अलगाववाद तो कभी आज़ादी के नाम पर पूरे देश में संभ्रम निर्माण किया गया है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में देशविरोधी नारों की निंदनीय घटना ने पूरे देश को हतप्रभ कर दिया है। फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया पर भी इसी मसले को लेकर बहस छिड़ी हुई है। देश की राजधानी में बर्बादी की बातें की जाती हैं। अफज़ल गुरू और मकबूल बट्ट की जयजयकार की जाती है। ‘अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं’ तथा देश के टुकड़े-टुकड़े करने के नारे लगाए जाते हैं। मकबूल बट्ट कौन है? मकबूल बट्ट वह आतंकवादी था जिसने पहली बार भारतीय हवाई जहाज का अपहरण कर कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दिया था। अफज़ल गुरू संसद पर हमले का दोषी था। ऐसे आतंकवादियों के समर्थन में देश के एक शैक्षणिक संस्थान में प्रदर्शन होना अत्यंत दुखद घटना है। यह घटना सीमा पर अपनी जान की बाजी लगाने वाले सैनिकों का मनोबल तोड़ने वाली भी है।

अफज़ल गुरू की फांसी सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय था। सर्वोच्च न्यायालय के फांसी के निर्णय को गलत ठहराते हुए पाकिस्तान जिंदाबाद और देश को तोड़ने वाले नारों को किस तरह जायज ठहराया जा सकता है? भारत को बर्बाद करने वाले नारे किस मानसिकता को दर्शाते हैं? इसे देशद्रोह नहीं तो और क्या कहा जाए? इस घटना को देखते हुए अगर यह कहा जाए कि आतंकवादी संगठनों ने शिक्षा संस्थानों तक अपना जाल बिछाना शुरू कर दिया है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जेएनयू की घटना पर हर दूसरे व्यक्ति का यही मत है कि यह कतई देशहित में नहीं है। ‘भारत के टुकड़े-टुकड़े’ करने के नारे लगाती ‘इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह’ करती युवाओं की भीड़ भारतीय जनता को खटक गई। इस घटना ने लोगों की नाराजगी के साथ ही उनकी चिंता को भी बढ़ा दिया है।

आज कांग्रेस पार्टी अपनी सुधबुध खो चुकी है। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी जेएनयू से पढ़ कर निकले उन विद्यार्थियों के घर कभी नहीं गए जिन्होंने सीमा पर अपनी जान गंवाई। वे जाकर देश को बांटने वालों के साथ खड़े हो गए। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह है कि सत्ता गंवाने के कारण और दूर-दूर तक सत्ता में वापस आने के आसार न दिखने के कारण कांग्रेस अपना आपा खो बैठी है।

अगर कांग्रेस यह सोचती है कि कन्हैया कुमार और उमर खालिद जैसे देश विरोधी नारे लगाने वाले लोगों के साथ खड़े रह कर उसे भारत की जनता का समर्थन मिल सकता है तो उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि भारत की जनता ऐसी आज़ादी को कभी भी समर्थन नहीं देगी। सरकारें आएंगी, सरकारें जाएंगी। परंतु देश हमेशा ही महत्वपूर्ण रहेगा। देश के संदर्भ में कुछ बातों पर कभी भी समझौता नहीं किया जा सकता और वे बातें हैं राष्ट्रप्रेम और राष्ट्र सम्मान। और कांग्रेस इन्ही बातों से समझौता कर रही है।

पी. चिदंबरम ने जिस तरीके से इशरत जहां केस में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को फंसाने का प्रयत्न किया था उसे तो नीचता की हद ही कहा जाना चाहिए। इशरत जहां के एनकाउंटर को लेकर कांगे्रस सरकार द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों का प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्षों तक सामना किया है। इशरत आतंवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की सदस्य थी यह बात सरकारी हलफनामे से हटाने का राष्ट्रविरोधी कार्य भी कांग्रेसी नेतृत्व के माध्यम से ही किया गया। ऐसी सोच रखने वाली कांग्रस से कन्हैया और उमर खालिद के मामले में देशहित की सोच रखने की उम्मीद करना ही गलत है।

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में देशविरोधी नारेबाजी का नेतृत्व करने वाले कन्हैया कुमार को न्यायालय ने छह महीने की अंतरिम जमानत दी है। जेल से बाहर निकलने के बाद प्रसार माध्यमों ने उसका साक्षात्कार कुछ इस प्रकार लिया जैसे वह किसी युद्ध का विजेता हो। अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए प्रसार माध्यमों ने इस सनसनीखेज खबर के साथ कन्हैया कुमार को खूब प्रसिद्धि दी। कन्हैया कुमार अपने साक्षात्कार में कहता है- ‘मेरा आइकॉन अफज़ल गुरू नहीं, मेरा आइकॉन रोहित वेमुला है।’ रोहित वेमुला ने भी ‘तुम एक याकूब मारोगे, घर-घर से याकूब निकलेगा’ नारा लगाया था। वही वेमुला इस कन्हैया का आइकॉन है। गौमांस उत्सव का आयोजन, किस ऑफ लव, समलैंगिकता हमारा अधिकार है, हम इसे लेकर ही रहेंगे… इत्यादि जैसे विचार रोहित वेमुला के हैं। इन्हें लगता है कि ऐसे विचारों की भारत में आज़ादी होनी चाहिए। आखिर आज़ादी को वेमुला के ये बंदे कहां ले जाना चाहते हैं?

अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर देश के विरोध में कुछ भी ऊलजलूल बोलते रहना गलत कार्य है। भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी को हमेशा ही महत्व दिया है। परंतु भारत के देशभक्त नागरिक किसी को भी देश की एकजुटता, एकात्मता एवं सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने की स्वतंत्रता कभी नहीं देंगे। युवा आंदोलन के नाम पर देशविरोधी गतिविधियों को कभी भी सहन नहीं किया जाएगा। इन सभी का मकसद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम करना है। हालांकि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह सब नया नहीं है। गोधरा हत्याकांड और इशरत जहां एनकाउंटर के बाद जितना अपमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सहा है उतना और शायद ही किसी नेता ने झेला हो। इन आरोपों का जवाब अब मीडिया के माध्यम से नहीं बल्कि प्रत्यक्ष कृति से दिया जाना आवश्यक है। राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत जनता राजनीतिक अतिवादी प्रयोगों से भ्रमित नहीं हो सकती और देश के आतंकवादियों को अपना सगा मानने वाले तथा भ्रमित आज़ादी का बौद्धिक आतंकवाद फैलाने वालों को भी वह सही दिशा दिखाएगी ही।
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