हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
रोजगार के लिए जरूरी है मैन्यूफैक्चरिंग फले फूले

रोजगार के लिए जरूरी है मैन्यूफैक्चरिंग फले फूले

by सतीश पेडणेकर
in अप्रैल -२०१६, सामाजिक
0

मोदी सरकार ‘मेक इन इंडिया’ के जरिये देश को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने की दिशा में कोशिशें कर रही है। यह काम आसान नहीं है; लेकिन यदि वह इसमें कामयाब होती है तो इससे करोड़ों लोगों को रोजगार मिलेगा और यह देश में अच्छे दिनों की आहट होगी।

कोई सरकार अपने देश की जनता को यदि सबसे अच्छा कोई तोहफा दे सकती है तो वह है रोजगार। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए ही नरेंद्र मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ की योजना शुरू की है। इसका मकसद भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना है। अपने चुनावी भाषणों के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले कुछ वर्षों में 10 करोड़ लोगों को रोजगार देने का वायदा किया था। तब उन्होंने कहा था इसके लिए जरूरी है कि सामान भारत में बने भले ही हम उसे बेचे कहीं भी। उन्होंने इस बात पर अचरज जताया कि बहुत सी सामान्य चीजें भी हम अपने देश में नहीं बना पाते। यह कहकर मोदी ने देश की सबसे बड़ी आर्थिक समस्या पर उंगली रख दी। इस देश में अच्छे दिन तब तक आ ही नहीं सकते जब तक हमारे देश का मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर तेजी से नहीं फलेगा फूलेगा; क्योंकि यही सेक्टर है जो लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार दे सकता है। विडंबना यह है कि इस मामले में ही हम सबसे अनाड़ी रहे हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चीन ने मैन्यूफैक्चरड सामान के मामले में भारतीय बाजार पर कब्जा किया हुआ है। हमारी कई बड़ी कंपनियों की हालत यह है कि वे सामान चीन में बनाती हैं यहां अपने ब्रांड का ठप्पा लगा करके बेचती हैं। इसके अलावा यहां तक कि गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियां और पिचकारी और मोबाइल भी चीन से आकर बिकता है। यदि ये सारी चीजें भारत में बनतीं तो करोड़ों लोगों को रोजगार मिलता।

नरेंद्र मोदी केवल ‘मेक इन इंडिया’ की योजना बना कर ही संतुष्ट नहीं हो गए वरन उन्होंने उस पर तेजी से अमल भी शुरू कर दिया है। इसके तहत उन्होंने फैक्ट्री मालिकों को इंस्पेक्टर राज से निजात दिलाने का रोडमैप रखा। सोलह तरह के फार्म को एक फार्म में बदला गया। मतलब फैक्ट्री मालिकों और उद्यमियों के लिए काम करना आसान बनाने के लिए जो हुआ है यदि उस पर सचमुच अमल हुआ तो गजब होगा। इससे ‘मेक इन इंडिया’ की कोशिश को बहुत बल मिलेगा। दुनिया में भारत की सर्वाधिक बदनामी यदि किसी बात पर है तो वह यह है कि भारत में काम करना आसान नहीं है। इंस्पेक्टर राज और बाबुओं-अफसरों की परेशानियों और भ्रष्टाचार से दर-दर ठोकरें खानी पड़ती हैं।

दरअसल बाकी दुनिया कृषि युग से औद्योगिक युग में और फिर सर्विस युग में पहुंची। लेकिन हमारे मामले में बीच की मैन्यूफैक्चरिंग की कड़ी कमजोर है। हमारे देश में सकल घरेलू उत्पाद में कृषि और और औद्योगिक क्षेत्र की तुलना में सर्विस क्षेत्र का योगदान कहीं ज्यादा है। जिस मैन्यूऱैक्चरिंग क्षेत्र का विकास पहले होना चाहिए वह काफी पिछड़ा हुआ है। जबकि सर्विस क्षेत्र बहुत तेजी से पनपा। देश के अर्थशास्त्रियों का मानना है यदि देश की बेरोजगारी की समस्या को हल करना है तो मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का फलना फूलना जरूरी है। हमारे देश के उद्योगपति देश में उद्योग लगाने को लेकर उत्सुक नहीं हैं, न ही वे हमारे देश के बाजार में ही चीन का मुकाबला करने को तैयार हैं। इसके अलावा औद्योगिक क्षेत्र में हमारी ताकत उच्च तकनीक और उच्च कौशल वाला उत्पादन है। हमारी सरकार अक्सर समवेत विकास की बात करती है लेकिन जब तक उसमें बड़े पैमाने पर श्रम उन्मुख औद्योगिक क्रांति नहीं जुड़ती विकास को समवेत विकास नहीं कहा जा सकता। लेकिन यदि उद्योगपति भारत में उद्योग नहीं लगाना चाहते तो उसकी एक वजह यह है यहां उद्योग लगाने के लिए उपयुक्त माहौल, बुनियादी ढांचा और संसाधन नहीं है। लेकिन अब मोदी सरकार इस मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत बनाने की जी-तोड़ कोशिश कर रही है। ताकि करोड़ों लोगों को रोजगार देने का सपना पूरा हो सके जो हमारी अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी जरूरत है। देश की अर्थव्यवस्था करीब 2 खरब डॉलर की है। इसमें मैन्युफैक्चरिंग का योगदान महज 15 प्रतिशत है। केंद्र सरकार एक दशक के अंदर इसे 25 प्रतिशत के स्तर पर ले जाना चाहती है। ऐसा करके 10 करोड़ लोगों के लिए नौकरियां पैदा की जा सकती हैं। लेकिन यह काम आसान नहीं है।

यह बात किसी से छुपी नहीं कि भारत में उद्योग लगाना बहुत मुश्किल काम है। कई उद्योग तो किसी न किसी बाधा के कारण कई सालों से शुरू ही नहीं हो पा रहे। कभी जमीन नहीं मिल पाती, कहीं पर्यावरण की क्लीयरेंस अटक जाती है। यूपीए के कार्यकाल में जो पॉलिसी पैरालिसिस रहा है उसकी वजह कानूनों का जाल है जो पूरी प्रक्रिया को सुस्त कर देता है। लिहाजा मोदी सरकार की ओर से चे तमाम उपाय किए जा रहे हैं जिससे विकास की प्रक्रिया बाधित ना हो। इसीलिए सिंगल विंडो सिस्टम बनाए जाने की बात हो रही है तो वहीं एक्जीक्यूशन लेवल पर सरकार की भागीदारी बढ़ाने की भी बात हो रही है। इसी कोशिश में प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग ग्रुप को यह काम दिया गया है कि, वि न केवल योजनाओं को क्लीयरेंस दिलाए, बल्कि ये भी देखे कि निर्धारित वक्त में इंडस्ट्री ने काम शुरू किया है या नहीं।

इन दिनों जमीन अधिग्रहण उद्योगों के विकास के लिए सब से बड़ी समस्या बना हुआ है। भूमि अधिग्रहण कानून को बदले बगैर तो मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को बढ़ावा देने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन विपक्ष के अडियल रवैये के कारण सरकार को भूमि अधिग्रहम कानून छोड़ना पड़ा।

देश में औद्योगिक विकास के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा इंस्पैक्टर राज है जिससे उद्योगति बेहद परेशान रहते हैं। नई सरकार ‘इंस्पेक्टर राज’ को खत्म करने की तैयारी कर रही है। केंद्रीय श्रम मंत्रालय 1 सितंबर से उदार निरीक्षण योजना शुरू करने जा रही है, वहीं 2 अक्टूबर को इसके लिए एकीकृत वेब पोर्टल शुरू किया जाएगा। इस कदम का मकसद निरीक्षकों (इंस्पेक्टर) के विवेकाधीन अधिकार को खत्म करना है। यह कदम देश में कारोबार करने को आसान बनाएगा। इसके जरिये निरीक्षकों के हस्तक्षेप को भी कम से कम किया जाएगा।

आर्थिक नीतियों की सफलता के लिए सिर्फ केवल आर्थिक विकास दर का बढ़ना काफी नहीं वरन लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार भी मिलना है। आज के मशीनीकरण के दौर में यह आसान काम नहीं है। इसके लिए जरूरी है कि श्रम कानूनों में सुधार किया जाए। ये कानून काफी पुराने पड़ चुके हैं। इनमें लंबे समय से कोई बदलाव नहीं किया गया। वैसे ज्यादातर सरकारें श्रम कानून में सुधार के पक्ष में रही हैं। लेकिन ट्रेड यूनियनों के विरोध के कारण इस दिशा में कोई कदम नहीं उठ पाया। यदि हमने व्यापक श्रम सुधार नहीं किए तो बेरोजगारी गंभीर समस्या बन जाएगी। करीब 20 करोड़ लोगों की उम्र काम करने लायक हो जाएगी उन्हें रोजगार दे पाना कठिन होगा।

हमारे श्रम कानून इस कदर जटिल हैं कि ज्यादातर कंपनियां विस्तार करने से गुरेज करती हैं। एक रिपोर्ट में विश्व बैंक ने कहा है कि श्रम बाजार के मामले में भारत दुनिया के सबसे कठोर देशों में शुमार है। हालांकि कानून के प्रावधान कर्मचारियों के फायदे के लिए हैं, लेकिन अक्सर उनका उल्टा असर होता है। इन कानूनों से बचने के लिए कंपनियां छोटी रहना पसंद करती हैं।’ सुधार के एजेंडे में सबसे प्रमुख कर्मचारियों को नौकरी पर रखने और बर्खास्त करने के नियमों में ढील देना है। यह सबसे संवेदनशील मसला है। इस मसले पर संबंधित पक्षों में सहमति बनाने की कोशिश हो रही है ।

आज भारत में मैन्यूफैक्चरिंग के फलने फूलने के रास्ते में सबसे बड़ी रूकावट यह है कि हमारे देश के सारे बाजार तरह-तरह के चीनी सामान से पटे पड़े हैं। और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सस्ता सुंदर होने के साथ साथ आकर्षक और नवीनतापूर्ण भी होता है चीनी सामान। हर तरह का उपभोक्ता सामान हाजिर है। चीन हमारे बाजारों पर कब्जा कर हमें हमारे घर में घुस कर चुनौती दे रहा है। लेकिन हम शतुर्मुर्ग की तरह समस्या को नजरंदाज कर रहे हैं। हम चीन के बाजार में घुस कर अपना सामान बेचने की महत्वाकांक्षा पालना तो दूर रहा हम अपने ही देश के बाजार में चीन के मुकाबले अपना माल नहीं बेच पा रहे।

यूं तो भारतीय बाजारों में सर्वव्यापी चीनी सामान के मुद्दे को यह कह कर टाला जा सकता है कि वैश्वीकरण का जमाना है, सभी देश एक दूसरे के घरेलू बाजारों में माल बेच रहे हैं। तो फिर चीन के माल को लेकर यह रोनागाना किस लिए। अब सारी दुनिया एक बाजार है जिसमें जो माल उपभोक्ताओं को उनके पैसे का मूल्य देगा वह बिकेगा। वही बाजार पर छा जाएगा। आखिर चीनियों ने भारतीय माल को भारतीय बाजारों में बेचने पर कोई पाबंदी तो नहीं लगाई है। लेकिन भारत में ऐसा सस्ता, सुंदर और आकर्षक माल बन कहां रहा है जो चीन के माल से होड़ ले सके।

यही हमारी त्रासदी है। एक तरफ हमारे देश में करोड़ों बेरोजगार हैं, मगर हम उनकी क्षमताओं का उपयोग कर आम जरूरतों का उपभोग का सामान भी नहीं बना पा रहे हैं। जबकि इसमें कोई जोखिम भी नहीं है। क्योंकि बाजार तो है ही तभी तो चीन अपना माल धडल्ले से बेच रहा है लेकिन हम बस टुकुर-टुकुर ताक रहे हैं। कुछ जानकार लोगों का कहना है कि चीनी माल के बढ़ते चलन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी नुक्सान पहुंचाया है। चीन की आक्रामक व्यापार नीति के कारण चीनी माल के भारतीय बाजार पर छा गया। होना यह चाहिए था कि भारतीय व्यापारी ऐसे माल से बाजार को पाट देते कि जो चीनी माल की टक्कर ले सके। लेकिन हमारे देश के उद्योगपतियों ने पलायनवादी नीति अपनाई। नतीजतन हजारों लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योग बंद हो गए। हमारी राजनीति में या आर्थिक जगत में यह कभी मुद्दा ही नहीं बन पाया कि भारत जैसा भावी आर्थिक महाशक्ति बनने के हसीन सपने देखने वाला देश अपने ही देश में चीन के सामानों का मुकाबला क्यों नहीं कर पा रहा। चीन के साथ सीमा विवाद पर दहाड़ने वाले राजनीतिक नेताओं का ध्यान इस मुद्दे पर कभी जाता ही नहीं। मोदी ने अपने लाल किले के भाषण में बहुत अप्रत्यक्ष ढंग से उसका जिक्र किया।

इस बारे में जानेमाने अर्थशास्त्री अरविंद पनगारिया कहना है कि भारत श्रमोन्मुख मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में मार खा रहा है। हमारे उद्योग जगत के कर्णधार अपने ढर्रे को बदलना नहीं चाहते। वे सिर्फ वही करते रहना चाहते हैं जो वे करते रहे हैं यानी उच्च पूंजीवाले उद्योगों जैसे कि आटोमोबाइल, आटो पार्टस्, मोटर साइकल, इंजीनियरिं गुडस, केमिकल्स या कुशल श्रम उन्मुख सामान जैसे कि साफ्टवेयर, टेली कम्युनिकेशन, फार्मास्यूटिकल आदि। लेकिन देश में जो विशाल अकुशल श्रमशक्ति है उसका उपयोग करने वाले उद्योगों को चलाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। यही कारण है कि भारत चीन के साथ गणेश या लक्ष्मी की मूर्ति बनाने या राखी बनाने के मामले में भी प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहा।

लेकिन यदि भारतीय उद्योगपति श्रमोन्मुख उद्योगों में दिलचस्पी नहीं ले रहे तो इसके बीज इतिहास में है। भारत सरकार का झुकाव बड़े उद्योगों की स्थापना की तरफ था। लेकिन सरकार खुद जो उद्योग नहीं लगाना चाहती थी उसका लाइसेंस वह प्रायवेट सेक्टर को दे देती थी मगर उसके लिए जरूरी था कि आप सरकार के नेताओं के नजदीक हो। लेकिन इस सबका नतीजा यह हुआ कि सरकारी और प्रायवेट सेक्टर दोनों में बड़ी पूंजीवाले उद्योगों का लगना जारी रहा और श्रमप्रधान उद्योगों की उपेक्षा हुई। प्रायवेट सेक्टर में 10 या उससे कम मजदूरों वाले उद्योगों की संख्या में बहुत धीमी रफ्चार से इजाफा हुआ।
भारत के मौजूदा विकास की सबसे बड़ी खामी ही यही है कि विकास उच्च दर हासिल करने के बावजूद श्रम उन्मुख औद्योगिक क्रांति यहां नहीं आई। यदि ऐसा होता तो इसका लाभ उन लोगों को मिलता जो ग्रामीण क्षेत्र में अब भी गरीबी के दलदल में फंसे हुए हैं। दरअसल भारतीय संदर्भ में समवेत विकास तभी हो सकता है जब श्रमोन्मुख उत्पादन के जरिये टिकाऊ तीव्र विकास हासिल किया जाए और लोगों को उत्पादक रोजगार दिलाया जाए।

यदि हम हमारे घरेलू बाजार में और विश्व बाजार में चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करना चाहते हैं तो हमें चीन की इस क्षेत्र में सफलता का राज समझना पड़ेगा। राज यह है कि चीन ने श्रम प्रधान उद्योगों को बड़े पैमाने पर स्थापित किया। इसका लाभ यह हुआ ये उद्योग अनुसंधान के जरिये अपने उत्पादों की गुणवत्ता को बढ़ा सके, नए-नए और खूबसूरत डिजाइन ला सके और आक्रामक मार्केटिंग रणनीति अपना कर अपने उत्पादों को दुनियाभर में बेच सके। चीन से मुकाबला करने के लिए हमारी सरकार को ऐसा माहौल पैदा करना पड़ेगा जिसमें हमारे उद्योगपतियों और विदेशी निवेशकर्त्ताओं को श्रम उन्मुख उत्पादों के लिए बड़े स्तर की फर्में स्थापित करना आकर्षक लगे।

इस मामले में भारत और चीन के बीच क्या फर्क है? इसे जानने के लिए इन आंकड़ों पर गौर कीजिए। हाल ही में हुए एक अध्ययन के मुताबिक 85 प्रतिशत भारतीय परिधान उद्योग मजदूर छोटी इकाइयों में काम करते हैं जिनमें सात या कम मजदूर काम करते हैं। जबकि चीन में केवल .6 प्रतिशत मजदूर इस तरह की इकाइयों में काम करते हैं। दूसरी तरफ 57 प्रिशत चीनी मजदूर बड़ी इकाइयों में काम करते हैं जिसमें 200 से ज्यादा लोग काम करते हैं। जबकि भारत में केवल 5 प्रतिशत लोग इस तरह की कंपनियों में काम करते हैं। उल्लेखनीय है कि चीन में मध्यम दर्जे की कंपनियों की संख्या अच्छी खासी है लेकिन भारत में इस तरह की इकाइयां नहीं ही हैं। इस तरह चीन श्रम प्रधान इकाइयों को बड़े पैमाने पर स्थापित किए हुए हैं और वहां बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है और दुनिया भर में उसकी मार्केटिंग होती है। कुछ ऐसा ही हमें अपने देश में भी करना होगा तभी हम चीन को पटखनी दे पाएंगे।

इस तरह मोदी सरकार ‘मेक इन इंडिया’ के जरिये देश को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने की दिशा में कोशिशें कर रही है। यह काम आसान नहीं है; लेकिन यदि वह इसमें कामयाब होती है तो इससे करोड़ों लोगों को रोजगार मिलेगा और यह देश में अच्छे दिनों की आहट होगी।

सतीश पेडणेकर

Next Post
उद्योग का दार्शनिक पक्ष

उद्योग का दार्शनिक पक्ष

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0