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वैभवशाली हरियाणा

वैभवशाली हरियाणा

by सुभाष आहूजा
in अगस्त -२०१६, सामाजिक
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हमारी संस्कृति में एकात्मभाव और सर्वकल्याण की भावना व्याप्त होने के कारण आसुरी शक्तियां हमेशा से अंत में पराजित हुई हैं। हरियाणा प्रदेश भी उस आपदा से निकल कर राष्ट्र के विकास में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए फिर से तैयार दिखाई देता है।

भारतीय गणराज्य में हरियाणा की स्थापना यद्यपि 1 नवम्बर 1966 को हुई किन्तु एक विशिष्ट ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक इकाई के रूप में हरियाणा का अस्तित्व प्राचीन काल से मान्य रहा है। यह राज्य आदिकाल से ही भारतीय संस्कृति और सभ्यता की धुरी रहा है। हरियाणा के विषय में वैदिक साहित्य में अनेक उल्लेख मिलते हैं। इस प्रदेश में की गई खुदाइयों से यह ज्ञात होता है कि सिंधु घाटी सभ्यता और मोहनजोदड़ो संस्कृति का विकास यही पर हुआ था। महाभारत काल से शताब्दियों पूर्व आर्यवंशी कुरुओं ने यही पर कृषि युग का प्रारंभ किया। सरस्वती नदी का उद्गम स्थल आदि-बद्री इसी क्षेत्र में होने के कारण यह क्षेत्र सब से उपजाऊ माना जाता है। महाभारत का विश्व प्रसिद्ध युद्ध और श्रीमद् भगवद गीता का प्राकट्य जिस भूमि पर हुआ वह कुरुक्षेत्र यहीं पर है। राजा हर्षवर्धन की राजधानी और हेमचन्द्र विक्रमादित्य (हेमू) का कार्यक्षेत्र भी इसी प्रदेश में रहा।
स्वतंत्र पंचायती शासन व्यवस्था ने इस प्रदेश में गहराई से जड़ें जमाईं, जिसे हर्ष काल से लेकर मुगल काल में महत्व दिया जाता रहा और यहां विभिन्न गोत्रों की खापों की परंपरा विकसित हुई और सभी शासकों द्वारा सर्व खाप पंचायतों के प्रमुखों को वजीर की पदवी दी जाती थी। ये खाप समाज में समरसता और सौहार्द कायम करने में और समय-समय पर आरूढ़ हुई कुरीतियों को दूर करने में मुख्य भूमिका अदा करती थीं। यह क्षेत्र दिल्ली के निकट होने के कारण और प्रदेश के अधिक खुशहाल और समृद्ध होने के कारण यहां के निवासियों को विदेशियों के हमलों की मार भी अधिक झेलनी पड़ी। मध्य युग में उत्तर पश्चिम से आक्रांताओं का तांता-सा बंध गया। विगत 2000 वर्षों में सर्वाधिक विदेशी आक्रमण यही पर हुए। हर्षवर्धन के काल में हुणों ने हमला किया और बुरी तरह परास्त हुए और सैंकड़ों वर्षों तक लगातार एक के बाद एक विदेशियों के हमले हुए। लेकिन इस प्रदेश ने कभी भी मन से हार नहीं मानी और लगातार संघर्ष करते रहे।

हर मिट्टी का अपना स्वभाव होता है। हरियाणा की मिट्टी परिश्रमी स्वभाव की है। यहां के समाज का, शरीर को बलिष्ठ और ताकतवर रखने का, शासक के विरुद्ध लड़ते रहने का और गुलामी स्वीकार ना करने का स्वभाव बन गया। ऐसी वीरता और साहस की मिसाल अन्य किसी प्रदेश में नहीं मिलेगी। तरावड़ी और पानीपत में मुगलों से भयंकर युद्ध हुआ। अंग्रेजी शासन में भी विद्रोह की चिंगारी सुलगती रही और हज़ारों लोगों को स्थान-स्थान पर पेड़ों पर फांसी पर लटका दिया गया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भी इस प्रदेश की मुख्य भूमिका रही। अम्बाला जेल, लिबासपुर (सोनीपत) महम चौबीसी (रोहतक) इसके गवाह हैं। महाराजा सूरजमल, राव तुलाराम, लाला लाजपतराय एवं चौधरी छोटूराम का कर्मक्षेत्र भी हरियाणा रहा। जिन्होंने देश की आज़ादी और समाज सुधारक के रूप में मुख्य भूमिका निभाई।

1947 में भारत पाकिस्तान के विभाजन के समय लाखों लोग विस्थापित हो कर इस प्रदेश में आए तो यहां के लोगों ने उन्हें स्थापित करने में हर प्रकार का सहयोग दिया और आज पूर्वी पंजाब से आए लोग हर क्षेत्र में अग्रणी दिखाई देते हैं। हरियाणा में आर्य समाज का भी अधिक प्रभाव होने के कारण यज्ञ, गाय और वेदों के प्रति श्रद्धा का भाव सर्वत्र दिखाई देता है। प्राचीन गुरुकुल परंपरा को आर्य समाज ने स्थान-स्थान पर फिर से स्थापित किया है। जिसको अत्यधिक सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। ऐतिहासिक, व्यावसायिक और औद्योगिक दृष्टि से फरीदाबाद, गुरुग्राम, पंचकूला, रोहतक, हिसार , कुरुक्षेत्र अम्बाला, करनाल और पानीपत यहां के प्रसिद्ध शहर माने जाते हैं।

यहां की मातृभाषा हिंदी है। परन्तु उसमें हरियाणवी भाषा का पुट ग्रामीण, और कहीं-कहीं शहरी क्षेत्र में मिलता है। हिंदी फिल्मों में भी हरियाणवी भाषा का पुट अधिक प्रचलित हो रहा है। लोक कलाओं एवं लोक गीतों में भी यह प्रदेश अत्यंत समृद्ध है। हरियाणवी रागिनी और हरियाणवी नृत्य विश्वविख्यात हैं। वर्तमान में हरियाणा की जनसंख्या 2.50 करोड़ से अधिक है। जो कि देश की जनसंख्या का 2.9 % है जबकि देश की सेना में हरियाणा का योगदान 10% से अधिक है। इसके अतिरिक्त कृषि, खेलों, उद्योग में हरियाणा का सर्वोच्च स्थान है।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं में सब से अधिक मैडल जीतने वालों में हरियाणा के खिलाड़ी सब से आगे रहते हैं। हरियाणा के जातीय समीकरण में 25 % से अधिक जनसंख्या जाटों की है जो पूरे देश की मार्शल कौम मानी जाती है। इनकी सहभागिता कृषि, सेना, और खेलों में सर्वाधिक है और शारीरिक रूप से भी हृष्ट-पुष्ट और साहसी होने के कारण समाज में इनका दबदबा है।

पिछले दिनों हरियाणा को विश्व पटल पर जातीय संघर्ष के नाम पर बदनाम करने की एक बहुत बड़ी साजिश रची गई। काफी समय से जाटों को आरक्षण देने के नाम पर यहां आंदोलन चल रहा है। लेकिन इसके पीछे का हेतु आरक्षण ना होकर, कुछ और ही है। आज़ादी के बाद देश में लगभग 60 वर्षों तक कांग्रेस का शासन रहा है और जाति और सम्प्रदाय के आधार पर समाज को बांट कर वोट बैंक की राजनीति चला कर कांग्रेस इस देश पर शासन करती रही है। इस सब का प्रभाव हरियाणा में भी दिखाई देता है। 1966 में हरियाणा बनने के बाद 50 वर्षों में से लगभग 33 वर्षों तक हरियाणा का मुख्य मंत्री जाट समुदाय से ही रहा है और पिछले 20 वर्षों तक लगातार यहां जाट मुख्यमंत्री रहा और उन सब मुख्यमंत्रियों ने सभी सरकारी संस्थानों में प्रमुखता से एक ही समुदाय को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी और वर्तमान में शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, पुलिस, सिविल सर्विस एवं अन्य कई महकमों में अधिकतर एक ही समुदायों के लोग मिलेंगे। इसीलिए आरक्षण मुद्दा नहीं है।

यह भी सही है कि आज भी ग्रामों में बेरोजगारी सब से अधिक है और उसके कारण समुदाय विशेष में एक असंतोष पनप रहा है। पहली बार सभी जाति बिरादरियों से ऊपर उठ कर यहां के पूरे समाज ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में भेजा है और लगभग 20 वर्षों के पश्चात किसी गैर जाट के मुख्यमंत्री बनने से एक ही समुदाय की चौधर छिनने का दुष्प्रचार विपक्षी पार्टियों द्वारा और खासकर कांग्रेस द्वारा किया गया। उस समुदाय को उकसाया जाता रहा कि अब उन्हें उतनी सरकारी नौकरियां नहीं मिल पाएंगी।

इसका प्रभाव समुदाय के एक बड़े वर्ग पर दिखाई भी देता है। लेकिन इसको जातीय रंग देकर समाज को तोड़ने और जातीय संघर्ष पैदा करने की पूरी साजिश रचने का काम कांग्रेस और तथाकथित कम्युनिष्ट तत्वों ने खुल कर के किया। उसके बावजूद भी वे पूरी तरह सफल नहीं हो पाए। हां, प्रदेश के कुछ हिस्सों में उसका प्रभाव अवश्य दिखाई दिया। जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान रोहतक और आसपास के अन्य 9-10 स्थानों पर आगजनी और लूटपाट की घटनाएं हुईं। जो पूरी तरह से प्रायोजित थीं और जांच में सही सिद्ध पाई गई। प्रदेश के 15% क्षेत्र को छोड़ कर शेष क्षेत्र में पूरी तरह शांति बनी रही।

प्रदेश के लगभग 6800 ग्रामों में से एक भी ग्राम में किसी भी तरह का जातीय संघर्ष नहीं हुआ। जो यह सिद्ध करता है कि हरियाणा वासी और खासकर जाट समुदाय आपसी भाईचारे में विश्वास रखता है। यहां का जाट समुदाय आर्य समाज से प्रभावित होने के कारण और इस समुदाय से अधिकतर जवान सेना में होने के कारण उनमें देशभक्ति की भावना प्रबल है। लेकिन कुछ लोग क्षणिक आवेश और देश विरोधी तत्वों के उकसावे में आ कर या अपने राजनीतिक हित साधने के लिए कुछ न कुछ समाचार देते रहते हैं। जिसे यहां का मीडिया बढ़ा चढ़ा कर प्रकाशित करता रहता है और देश विदेश में यही संदेश जाता है कि हरियाणा तो जातीय संघर्ष में जल रहा है। लेकिन वस्तुस्थिति इससे भिन्न है।

इस सब घटनाक्रम में संघ की भूमिका काफी सकारात्मक और रचनात्मक रही। संघ के कार्यकर्ताओं ने स्थान-स्थान पर सभी जाति-बिरादरियों के प्रमुख लोगों से मिल कर उनको एहसास कराया कि हिन्दू समाज में फूट डाल कर जिस प्रकार विदेशियों ने देश पर आधिपत्य जमा लिया और देश को हज़ार वर्ष तक लूटते रहे हम फिर से उसका शिकार ना बने और इससे देश और प्रदेश के विकास को धक्का लगेगा और इसका लाभ देश विरोधी तत्वों को ही मिलने वाला है। इस अभियान में समाज के सभी जाति बिरादरियों के अनेकों जागरूक लोगों ने भी काफी साकारात्मक भूमिका निभाई।

इसके अतिरिक्त ग्राम-ग्राम में, शहर की हर बस्ती में, सामाजिक समरसता मंच के माध्यम से हज़ारों की संख्या में राष्ट्र एकता यज्ञों का आयोजन किया गया। सभी नगरों में सद्भावना सभाएं और गोष्ठियों आयोजित की गईं और 3 अप्रैल को रोहतक में एक विशाल सद्भावना सम्मलेन का आयोजन किया गया। जिसमें लगभग 3500 ग्रामों से सभी जाति बिरादरियों के एक लाख से अधिक महिला पुरुषों के अतिरिक्त हरियाणा के 200 से अधिक संतगण और 150 से अधिक सभी क्षेत्रों के ख्यातिप्राप्त लोग शामिल हुए। प्रमुख संतों में बाबा रामदेव, जैन मुनि तरुण सागर जी, गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानन्द जी एवं महामंडलेशवर स्वामी अवधेशानंद जी उपस्थित रहे। इसमें 37 खापों के प्रधान भी आए और सब ने यह संकल्प लिया कि किसी भी कीमत पर प्रदेश का भाईचारा ख़त्म नहीं होने देंगे। इस सद्भावना सम्मलेन ने समाज में आपसी वैमनस्य के कारण हुए घावों पर मरहम का काम किया और इससे प्रदेश को विकास की पटरी पर फिर से लाने और फिर से भाईचारा बनाने में मदद मिली।

समाज को जोड़ने और तोड़ने वाली शक्तियां हर युग में रही हैं। और ऐसे आघातों से निकल कर समाज फिर से खड़ा होकर समृद्धि के पथ पर निरंतर आगे बढ़ा है। ऐसे अवसरों पर सात्विक शक्तियों की सक्रियता से समाज में फिर से सौहार्द का वातावरण बना है। हमारी संस्कृति में एकात्मभाव और सर्वकल्याण की भावना व्याप्त होने के कारण आसुरी शक्तियां हमेशा से अंत में पराजित हुई हैं। हरियाणा प्रदेश भी उस आपदा से निकल कर राष्ट्र के विकास में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए फिर से तैयार दिखाई देता है।
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