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हरियाणा का गौरव: सरस्वती नदी

हरियाणा का गौरव: सरस्वती नदी

by दर्शनलाल जैन
in अगस्त -२०१६, सामाजिक
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अनेक वैज्ञानिक शोधों से यह सिद्ध हो चुका है कि राजस्थान व गुजरात की थार मरूस्थली भूमि के नीचे ऐतिहासिक सरस्वती नदी का पुरातन जलमार्ग विद्यमान है। इसके लिए उत्खनन चल रहा है और नदी के उद्गम स्थल आदिबद्री के समीप स्थित गांव रूलाहेड़ी में सरस्वती की जलधारा प्रस्फुटित हुई है। हरियाणा सरकार ने इस कार्य के लिए सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड का गठन किया है।

हरियाणा प्राचीन काल से ही ॠषि-मुनियों व देवताओं की भूमि रहा है। ऐसा माना जाता है कि यह वह भूमि है जहां हरि अर्थात भगवान का आगमन सर्वप्रथम हुआ था। हरियाणा शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है- हरि + आयन। जिसका शाब्दिक अर्थ है भगवान का निवास। यह वह क्षेत्र है जहां आर्यों का पहला स्तोत्र गाया गया था और सर्वाधिक प्राचीन पांडुलिपियां लिखी गई थीं। हरियाणा का प्राचीन इतिहास बहुत गौरवपूर्ण रहा है और यह वैदिक काल से प्रारंभ होता है। यह क्षेत्र पौराणिक भरत वंश की जन्मभूमि माना जाता है, जिसके नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा।

हरियाणा व सरस्वती का सम्बंध

वर्तमान में प्राप्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्राचीन वैदिक काल से ही हरियाणा का एक गौरवशाली इतिहास रहा है, जो वर्तमान से हट कर हरियाणा की एक अलग पहचान रही है। इसे यह गौरवमयी पहचान दिलाने में प्रमुख भूमिका रही है पुण्य सलिला नदी सरस्वती की! इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि प्राचीन काल मेंं सभी सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारों पर ही हुआ था। इनमें से विश्व की सबसे प्राचीन कही जाने वाली हड़प्पा व सिंधु नदी सभ्यताएं प्रमुख हैं। हड़प्पाकालीन नगरीय क्षेत्र, जहां आज हरियाणा है, का प्रागैतिहासिक काल काफी समृद्ध था और इसकी समृद्धि मेंं एक विशाल नदी, जो कि सरस्वती नदी ही थी, का ही मूलभूत योगदान था। वैसे तो वैदिक काल से ही इन सभ्यताओं की जन्मस्थली रही सरस्वती नदी भारत देश के सामाजिक जीवन की दिशा व दशा की वाहिनी रही है, परंतु सरस्वती नदी का हरियाणा से विशेष सम्बंध रहा है व हरियाणा के विकास मेंं सरस्वती नदी का विशेष योगदान रहा है। यह नदी वैदिक वाङ्मय की आधार स्थली रही है। एक अंग्रेजी विद्वान हॉपकिन्स के मतानुसार ॠग्वेद का अधिकांश भाग सरस्वती के तटवर्ती प्रदेश (वर्तमान का जिला यमुनानगर) मेंं रचित था व एक अन्य विद्वान मैकडोनाल्ड का मत है कि यजुर्वेद तथा उसके ब्राह्मण ग्रंथ सरस्वती और यमुना के बीच के प्रदेश, जिसे कुरुक्षेत्र भी कहते हैं, में रचे गए थे। ॠगवेद के 60 से अधिक ॠचाओं में इस नदी का वर्णन है। ॠग्वेद के नदी सूक्त (ॠ. 10.75) में भी सरस्वती का उल्लेख है-

इमं में गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोतं सचता परुष्ण्या।
असिकन्या मरुद्वधे वितस्तयार्जिकीये श्रणुह्या सुषोम्या॥

सरस्वती नदी की मह्त्ता का अंदाजा महज इस बात से लगाया जा सकता है कि इस नदी का वर्णन वेदों व उपनिषदों में बार-बार किया गया है व इसको गंगा से भी बड़ी नदी बताया गया है। वेदों में इसकी स्तुति अम्बित्तमें, देवित्तमें व नदित्तमें (सर्वोत्तम मां, सर्वोत्तम देवी व सर्वोत्तम नदी) के रूप में की गई है।

सरस्वती का उद्गम स्थल व मार्ग

वेदों और पुराणों में सरस्वती नदी का वर्णन करते हुए इसको कहीं धारा तो कहीं वाचा अथार्त वाणी तथा विद्या की देवी के रूप में भी वंदनीय माना गया है। इस नदी का उद्गम स्थल हिमालय के हिमनद शिखरों से हुआ माना जाता है व इसके धरातल पर प्रकट होने के स्थान होने का गौरव हरियाणा के यमुनानगर जिले में बिलासपुर के पास स्थित आदिबद्री को प्राप्त है। इस स्थान का वर्णन श्रीमद् भागवत में भी मिलता है। वैदिक काल में सरस्वती नदी बाता घाटी के साथ-साथ दक्षिण पश्चिमी मार्ग से बहती हुई आदिबद्री पर मैदान में प्रविष्ट होती हुई तथा हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में लगभग 1600 किलोमीटर तक चलती हुई अंत में अरब सागर में जाकर विलीन हो जाती थी। परंतु कालांतर में भूगर्भीय हलचलों के कारण इस नदी का अस्तित्व लुप्त होने के कारण विस्मृत प्राय हो गया था ।

सरस्वती नदी की लुप्त हुई गरिमा को वापिस लाने के लिए व भारतीय संस्कृति में सरस्वती नदी के महत्व को देखते हुए, इस नदी को पुन: प्रवाहित करने की दिशा में कार्य श्रद्धेय बाबा साहेब आपटे और मा. मोरोपंत पिंगले जी के मार्गदर्शन में पद्मश्री डॉ. वी.एस.वाकणकर (उज्जैन) ने आरंभ किया था। तब उन्होंने वर्ष 1985 में सरस्वती नदी के किनारे-किनारे एक मास लम्बी सर्वेक्षण यात्रा समर्पित शोधकर्ताओं के एक दल के साथ आरंभ की थी। दुर्भाग्य से डॉ. वाकणकर के 1997 में असमय निधन से प्रगति में व्यवधान पड़ गया।

तत्पश्चात् इस क्षेत्र में नदी को धरातल पर लाने के पुन: प्रयास 1999 में ‘सरस्वती नदी शोध संस्थान (हरियाणा)’ द्वारा प्रारम्भ किए गए। बहुत सी प्रतिष्ठित विभूतियों जैसे बाबू महावीर प्रसाद (हरियाणा के तत्कालीन राज्यपाल), श्री सूरजभान (तत्कालीन उपाध्यक्ष, लोकसभा), डॉ. जगमोहन जी, संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री, भारत सरकार, जल संसाधनों के मंत्री डॉ. सी.पी. ठाकुर, भारत सरकार के गृहराज्य मंत्री श्री आई.डी.स्वामी को संस्थान द्वारा आदिबद्री और अन्य स्थानों पर ले जाया गया। कांची कामकोटी पीठ के आदीजगद्गुरू शंकराचार्य पूज्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती जी महाराज भी आदीबद्री में पधारे व सरस्वती सरोवर में स्नान किया। संस्थान द्वारा कई विचार गोष्ठियों का आयोजन किया गया, जिनमें प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा इस विषय पर कई शोध प्रपत्र प्रस्तुत किए गए। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रसार माध्यमों द्वारा, जिनमें द़ृश्य और श्रव्य दोनों सम्मिलित है, विस्तृत प्रचार किया गया। ऐसी ही एक प्रदर्शनी का आयोजन 19 अप्रैल, 2003 को किया गया था, जिसे देखने के लिए तत्कालीन महामहीम राष्ट्रपति डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भी उपस्थित हए थे व वहां लगे सरस्वती के चित्रों को देख कर उन्होंने काफी प्रसन्नता व्यक्त की थी। इस दिशा में सरस्वती नदी शोध संस्थान के द्वारा किए गए कार्यों की काफी सराहना भी की। उन्होंने दर्शक पुस्तिका में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा था ऊशश्रळसहींशव ीें ीशश ींहश हरीव ुेीज्ञ ळप ीशरश्रळूळपस ींहश ीशरश्रळीूं षीेा शळिल ळपषेीारींळेप.

सरस्वती नदी शोध संस्थान द्वारा नदी के पुनरूद्धार के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु पुरातत्वविदों, भूवैज्ञानिकों, सुदूर संवेदन एवं भूजल विशेषज्ञों आदि से सम्पर्क किया गया। इन वैज्ञानिकों द्वारा प्रदत्त भूस्थित प्रतिमानों, पुराजल धाराओं के उपग्रहीय चित्रों, भूगर्भीय सर्वेक्षणों और भूमिगत जल सर्वेक्षणों ने इस नदी के मार्ग की पहचान कर इस नदी की प्राचीनता को पर्याप्त मात्रा में सिद्ध कर दिया है। सरस्वती नदी के प्रवाह तथा किस प्रकार विभ्रमण हुआ और साथ ही साथ नए स्थान ग्रहण करती रही, के प्रमाण बहुत से शोधपत्रों, भारतीय सर्वेक्षण विभाग के मानचित्रों, राजस्व प्रपत्रों, पुरातात्विक उपलब्धियों तथा उपग्रह से प्राप्त नवीनतम प्रतिमानों में स्पष्टत: देखे जा सकते हैं।

धार्मिक आस्था के केंद्र

आदिबद्री एक ओर जहां हिंदुओं के लिए धार्मिक आस्था का केंद्र है, वहीं दूसरी ओर इस स्थान को पुरातात्विक द़ृष्टि से भी बौद्ध धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। आदि बद्री में भगवान विष्णु का एक प्राचीन आदिबद्री मंदिर, एक भगवान शिव का केदारनाथ मंदिर, सरस्वती नदी उद्गम स्थल व सरस्वती जलाशय और माता मंत्रादेवी का पहाड़ी पर स्थित मंदिर है। हरियाणा में सरस्वती के चिह्नित किए मार्ग में अनेक ऐतिहसिक, धार्मिक स्थल व ॠषियों व मुनियों के आश्रम स्थित हैं। जिला यमुनानगर के बिलासपुर में महर्षि वेदव्यास ने वेदों की रचना की थी व धार्मिक महत्व के अन्य स्थान जैसे की अजातशत्रु आश्रम, व्यास मंदिर, व्यास कुंड, कपालमोचन जलाशय स्थित है। इसके अतिरिक्त जिला यमुनानगर में सरस्वती घाट (सरस्वती नगर पुराना नाम मुस्तफाबाद) व बलराम मंदिर (रादौर) जिला कुरूक्षेत्र में राजा करण का टीला, भौरशाम, पिहोवा जिला कैथल में कपिल मुनि मंदिर सरोवर व च्यवन गिरी कुण्ड (कलायत) आदि प्रमुख हैं। सरस्वती नदी के किनारे पर बने इन घाटों पर हिंदू समाज के लोग अंतिम क्रियाक्रम व पिण्डदान जैसे धार्मिक कार्य सदियों से करते आए हैं। इन धार्मिक आस्था केन्द्रों को दर्शनीय बनाकर पर्यटन की द़ृष्टि से विकसित करने की आवश्यकता है।

अतीत से झांकता इतिहास

इस नदी के कारण पवित्र हुए हरियाणा क्षेत्र को हड़प्पाकालीन समय में विशेष स्थान प्राप्त था। वर्तमान में हुई पुरातात्विक महत्व की खोजों में प्राप्त अवशेषों ने हरियाणा क्षेत्र की प्राचीनता को पर्याप्त मात्रा में सिद्ध कर दिया है। अभी तक हुई खोजों में हड़प्पाकालीन चिह्नित किए गए लगभग 1400 स्थानों में से अधिकतर स्थान भारत में ही पाए गए हैं। जिनमें से लगभग सभी मुख्य स्थान, जहां अतीत के अवशेष सबसे ज्यादा प्राप्त हुए हैं, हरियाणा में ही हैं। पुरातात्विक द़ृष्टि से इन स्थानों में आदिबद्री (जिला यमुनानगर), जोगनाखेरा (जिला कुरूक्षेत्र), बालु (जिला कैथल), बनावाली, भिरडाना, कुणाल (जिला फतेहाबाद), फरमाना (जिला रोहतक), राखीघड़ी, सिसवाल (जिला हिसार) व मिटाथल (जिला भिवानी) शामिल हैं। इन सब में सबसे प्रमुख हिसार का राखीघड़ी अब तक का खोजा गया सब से बड़ा हड़प्पन सरस्वती नदी घाटी स्थल है। यहां 350 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले हुए 9 टीलों का पता लगा है व पुरातात्विक महत्व के अनेक अवशेष प्राप्त हुए हैं। इन टीलों को लगभग 6000 ई.पू. से 4000 ई.पू. का बताया गया है। इसके अतिरिक्त फतेहाबाद के कुणाल, बनावाली व भिरडाना में भी हड़प्पाकालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार भिरडाना को सबसे प्राचीन (7570-6200 ई.पू.) सरस्वती नदी घाटी स्थल माना गया है। पुरातात्विक महत्व के ये स्थल हमारे गौरवशाली अतीत का आईना है व इनको पर्यटन की द़ृष्टि से विकसित किया जा सकता है।

जल का अकूत भंडार

सरस्वती का अर्थ है- जल को धारण करने वाली। ऐसा माना जाता था कि प्राचीन काल की यह नदी अपने मार्ग में कई छोटे-बड़े जलाशयों को भरती हुई समुद्र में जा गिरती थी। कुरूक्षेत्र का ब्रह्मसरोवर संभवत: ऐसा ही एक जलाशय है। परंतु उग्र वेग से बहने वाली इस नदी का विलुप्त हो जाना किसी अश्चर्य से कम नहीं था। ऐसे में कई वर्षों से सरस्वती के पुरातन जल का पता लगाने हेतु प्रयास किए जा रहे थे। वर्तमान में अनेक वैज्ञानिक शोधों से यह सिद्ध हो चुका है कि राजस्थान व गुजरात की थार मरूस्थल भूमि के नीचे सरस्वती नदी का पुरातन जलमार्ग विद्यमान है। हरियाणा का खारे पानी वाला क्षेत्र कलायत के च्यवन गिरी कुंड व कपिल मुनी मंदिर सरोवर व कुरूक्षेत्र के भौर-सैंयदा में अचानक स्वच्छ जल की धारा का प्राप्त होना किसी चमत्कार से कम नहीं था। उपग्रहीय चित्रों व भूजल स्थित प्रतिमानों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि प्राचीन सरस्वती का पुरातन जलमार्ग अभी भी विद्यमान है। शायद इस प्रकार प्राप्त होने वाला जल सरस्वती का ही है। इस विषय में अनेक शोधकर्ताओं द्वारा व सरकारी संस्थानों, जैसे कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान, तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड, केन्द्रीय भूमिगत जल प्राधिकरण, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भारतीय भू सर्वेक्षण के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अनुसंधानों में इस बात की पुष्टि की गई है कि इन पुरातन जलमार्गों में जल का अकूत भंडार हो सकता है, जिसको यदि धरातल पर लाया जा सके तो उस क्षेत्र की पानी की समस्या को दूर किया जा सकता है।

वर्तमान स्वरूप

अपनी वर्तमान स्थिति में यह नदी सिरमौर की पहाड़ियों में शिवालिक (हिमालय) के मैदानी क्षेत्र में धरती पर दिखाई पड़ती है और आदिबद्री, बिलासपुर, मुस्तफाबाद, भगवानपुरा, पिपली, कुरूक्षेत्र, पिहोवा, कैथल, कलायत, टोहाना, फतेहाबाद, सिरसा, भटनेर और कच्छ के रण एवं नल सरोवर (सौराष्ट्र) से बहती हुई खम्बात की खाड़ी में मिल जाती है। अपने मार्ग में अपने कुछ क्षेत्रों में यह नदी सूख गई है, जिसको पुनजीर्वित तथा फिर से पूर्व रूप में लाने के प्रयास हो रहे हैं। इस दिशा में गुजरात, राजस्थान व हरियाणा सरकार द्वारा कार्य किए जा रहे हैं।

अब सरस्वती नदी के अस्तित्व को सरकारी रूप में मान्यता प्राप्त हो गई है और केन्द्र सरकार द्वारा प्रसिद्ध हिमनद विशेषज्ञ पद्म विभूषण डॉ. के.एस. वाल्डिया की अध्यक्षता में नदी के अध्ययन से सम्बंधित विभिन्न विशेषज्ञों की एक केन्द्रीय सलाहकार समिति का गठन किया गया है। इन विशेषज्ञों में चेन्नई के डॉ.एस.कल्याणरमण, हिमाचल के डॉ.वी.एम.के. पुरी तथा सरस्वती नदी शोध संस्थान के अध्यक्ष सम्मिलित हैं।

लोगों के विश्वास व पूर्व में प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर द्वारा हरियाणा में सरस्वती नदी को पुन: प्रवाहित करने के कार्य में विशेष रूचि ली गई व सुदूर संवेदन मानचित्रों व वर्तमान राजस्व रिकार्ड के मुताबिक सरस्वती नदी के मार्ग की पहचान कर इस ऐतिहासिक नदी के उत्खनन का कार्य नदी के उद्गम स्थल आदिबद्री के समीप स्थित गांव रूलाहेड़ी में दिनांक 21-04-2015 को शुरू किया गया। इस कार्य में पहली सफलता तब प्राप्त हुई जब दिनांक 05-05-2015 को मुगलवाली गांव में सरस्वती नदी की जलधारा प्रस्फुटित हो गई। वर्तमान में हरियाणा सरकार द्वारा सरस्वती नदी के पुन: प्रवाहित करने के कार्य में तेज़ी लाने के लिए सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड का गठन किया गया है व जिसके लिए आवश्यक राशि भी आबंटित की गई है। इस दिशा में सरस्वती नदी के उत्खनन का कार्य काफी तेज़ी से चल रहा है।

बाढ़ व सूखे से मुक्ति

जहां इस जल की जांच से पता लगा है कि सरस्वती नदी का जल गंगा के समान ही पवित्र व स्वच्छ है, वहीं दूसरी ओर अगर हरियाणा सरकार की योजना कामयाब होती है तो सोम नदी का वर्षा का जल, जो कि बरसात के दिनों में उस क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति लाकर भयंकर तबाही पैदा करता है, इस सरस्वती नदी के खुदाई किए जा रहे जलमार्ग में मोड़ कर उस क्षेत्र की बाढ़ की समस्या को दूर किया जा सकता है। साथ-साथ इस जल का उपयोग क्षेत्रवासियों के लिए पीने व सिंचाई के उपयोग में लाया जा सकता है।

इस प्रकार सरस्वती के धार्मिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक व बहुआयामी उपयोग को देखते हुए इसे हरियाणा का गौरव कहना उचित ही है।

दर्शनलाल जैन

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