हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
हरियाणा का जातिगत समन्वय में योगदान

हरियाणा का जातिगत समन्वय में योगदान

by डॉ. विजय कायत
in अगस्त -२०१६
1

बीसवीं सदी में आधुनिक शिक्षा, सरकारी नौकरियों के कारण हरियाणा में जातिगत दूरियां और कम हुई हैं। इनके अतिरिक्त आर्य समाज, सनातन धर्म सभा एवम् पिछले कई दशकों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आदि सामाजिक संस्थाओं के प्रयासों से जातिवाद बहुत कम हुआ है और समन्वयता बढ़ी है।

‘हरियाणा’ शब्द का उल्लेख मध्यकालीन लेखक मिन्हाज-उस-सिराज (तबकात-ए-नासिरी) ने भी किया है। स्वतंत्रता के बाद हरियाणा क्षेत्र पंजाब प्रांत का हिस्सा बना रहा और पंजाब पुनर्गठन विधेयक 1966 के अंतर्गत 1 नवम्बर 1966 को एक नए राज्य के रूप में सामने आया।

पूर्व मध्यकाल, विशेषकर 10वीं सदी के बाद, हरियाणा क्षेत्र में इकहरा समाज दिखाई देता है; यद्यपि यह अनुप्रस्थीय स्तर पर अनेक सामाजिक जातियों में बंटा हुआ था, पर ऊर्ध्वार्धरीय रूप से एक था। महमूद गजनवी के आक्रमण के बाद इस्लाम के प्रभाव से समाज ऊर्ध्वार्धरीय रूप से दो भागों (हिन्दू एवं मुस्लिम) में बंटने लगा था। यह प्रक्रिया लगभग सारे मध्यकाल में चलती रही और 18वीं सदी के छठें दशक में इस स्थिति में परिवर्तन हुआ। दरअसल पानीपत के तीसरे युद्ध के उपरांत पैदा हुई परिस्थितियों के कारण सिक्खों ने उत्तरी हरियाणा के बड़े भाग पर अधिकार कर लिया और यहीं बस गए। जिससे हरियाणा का समाज उस समय ऊर्ध्वार्धरीय रूप से तीन भागों (हिन्दू, मुस्लिम एवं सिख) में बंट गया। इस संरचना में लगभग 70 प्रतिशत हिन्दू, 28 प्रतिशत मुसलमान एवं 2-3 प्रतिशत सिख व अन्य थे।
———————————
तालिका1: हरियाणा क्षेत्र में मध्य/आधुनिक काल में हिन्दू जातियां
सामाजिक स्तर जातियां
उच्च स्तर ब्राह्मण, व्यास, त्यागी, बनिया
मध्यम स्तर राजपूत, जाट, अहीर, गुज्जर, सैनी, रोड़, कम्बोज, रांघड़, ठेठर, बढ़ई, विश्नोई, सुनार, तेली, मनियार आदि लगभग 83 जातियां हैं।
निम्न स्तर बाल्मिकि, चमार, जुलाहा, धानक, बावरिया, कहार, लोहार, मिरासी (डूम), नाई, रामदासिया, सांसी, खटीक, बाजीगर, बंजारा, सपेला, आदि लगभग 42 जातियां हैं।
——————————–
तत्कालीन हरियाणा क्षेत्र में ब्राह्मण लगभग प्रत्येक ग्राम में रहते थे और ये ‘पुरोहिताई’ का कार्य करते थे। ये पांच उपजातियों (गौड़, सारस्वत, खंडेलवाल, धीमा एवं चौरासिए) में विभाजित थे। शादी ब्याह अपनी-अपनी उपजाति में ही करते थे। सामान्यत: समाज में इन्हें ऊपर का दर्जा प्राप्त होने के कारण ‘दादा’ सम्मानित शब्द से संबोधित किया जाता था। ब्राह्मण, कृषक और निम्न जातियों को छोड़ कर शेष सब जातियों के हाथ से पक्की रसोई खा लेते थे। परन्तु कच्ची रसोई केवल अपने सजातीय बंधु-बांधवों के हाथ से ही खाते थे। स्वतंत्रता प्राप्त करने व हरियाणा पृथक राज्य बनने के बाद ब्राह्मण समुदाय ने शासन सत्ता, उच्च शिक्षा, सरकारी नौकरियों आदि क्षेत्रों में पर्याप्त प्रगति की है।

ब्राह्मणों के बाद समाज में बनियों का स्थान रहा है, इन्हें यह स्थान इनकी आर्थिक सम्पन्नता के कारण प्राप्त था। ये लोग लगभग प्रत्येक नगर व ग्राम में बसते थे और व्यापार, दुकानदारी एवं हाट-बाजार एवम् आर्थिक लेन-देन लगभग इन्हीं के हाथों में रहता आया है। ये तीन उपजातियों (अग्रवाल, ओसवाल और माहेश्वरी) में बंटे हुए थे। इन तीनों उपजातियों में रोटी-बेटी का व्यवहार नहीं था। इन्होंने मुस्लिम शासन सत्ता का प्रभाव नहीं माना और ये मुस्लिम धर्म में दाखिल नहीं हुए। हरियाणा पृथक राज्य बनने के बाद उद्योगों, बैंकिग क्षेत्र, राजनीतिक क्षेत्र में इन्होंने अपनी हिस्सेदारी न केवल सुनिश्चित रखी बल्कि उन्नति की है।

मध्यम श्रेणी में आने वाली कृषक अहीर जाति के लोग हरियाणा के दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र मुख्यत: रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़, नारनौल, नाहड़, कौसली के इलाकों में पर्याप्त संख्या मिलती है। ये जाति गुज्जर, जाट, राजपूत, रोड़ आदि के साथ बिना किसी झिझक के कच्चा-पक्का खाना खा सकते थे और हुक्का भी पी सकते थे। अत: इन सब जातियों का सामाजिक स्तर एक जैसा प्रतीत होता है। परन्तु इनमें आपस में विवाह आदि का सम्बंध नहीं हो सकता था।

जाट जाति के लोग लगभग समस्त हरियाणा में बिखरे हुए थे, पर मध्य भाग में इनकी संख्या सर्वाधिक थी। इसमें आधुनिक रोहतक, झज्जर, सोनीपत, भिवानी, जीन्द, हिसार, कैथल जिलों में अधिक विस्तारित हैं। कृषक जाति होने के साथ-साथ ये काफी ऊंचे दर्जे के गोत्रवादी रहे हैं। सजातीयता की भावना के साथ-साथ इनमें क्षेत्रीयता की भावना प्रबल रही है। इन्होंने अपने-अपने गोत्र क्षेत्र के अनुरूप पंचायत व खाप-पंचायतों का गठन किया। सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में इन खाप पंचायतों का प्रभाव आज भी विद्यमान है। 20वीं सदी में ही सर छोटूराम व उनकी यूनियनिस्ट पार्टी द्वारा राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में किसानों की उन्नति में सफल अभियान चलाया गया। हरियाणा अलग राज्य बनने के बाद जाटों ने शासन सत्ता में अभूतपूर्व प्रगति की व उच्च शिक्षा व सरकारी सेवाओं में भी पर्याप्त भागीदारी सुनिश्चित की है।

राजपूत भी हरियाणा के कई क्षेत्रों में बसते थे लेकिन कृषि कार्यों में ये जाट, अहीर जैसे दक्ष नहीं थे। पूर्व मध्यकाल में राजसत्ता इनके हाथ में थी परन्तु बाद में राजसत्ता न रहने के कारण और कृषि कार्य अपनाने के कारण सामाजिक ढांचे में इनका उच्च स्तर नहीं बना रहा। कुछ सामंत परिवारों और ठिकानेदारों को छोड़ कर सामान्य रूप से राजपूतों की आर्थिक दशा अब पहले की भांति अच्छी नहीं थी।

गुज्जर अधिकांशत: पशुपालन का कार्य करते थे ‘आईन-ए-अकबरी’ में केवल दो सरकारों दिल्ली एवं हिसार में इन्हें कृषक बताया गया है। यहां गुज्जरों के चार प्रसिद्ध वंश (रावल, चौकर, चमैन एवं कल्सन) थे। एक अन्य कृशक जाति रोड़ अधिकतर उत्तरी हरियाणा में कुरुक्षेत्र एवं करनाल क्षेत्र में आबाद थे। संभवत: उत्तर मुगल काल में ये लोग उत्तर प्रदेश से आकर यहां बसे थे क्योंकि ‘आईन-ए-अकबरी’ में इनका जिक्र नहीं हुआ था।

सिरसा और हिसार क्षेत्रों में बिश्नोई भी एक प्रमुख जाति है। मध्यम वर्ग में आने वाली इस जाति के लोगों ने स्वतंत्रता के पश्चात् राजनीतिक क्षेत्र व सरकारी सेवाओं में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराई है। सन् 1947 में देश विभाजन के उपरांत पाकिस्तान से आए पंजाबी समुदाय के लोग हरियाणा के लगभग सभी जिलों में बसे हैं। मूल रूप से दुकानदारी, छोटे व्यापार का कार्य करने वाला यह समुदाय आर्थिक क्षेत्र में स्वावलम्बी बनकर उभरा है। अब तक इन्होंने सरकारी नौकरियों में भी अपनी अच्छी उपस्थिति दर्ज कराई है व राजनीतिक क्षेत्र में निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर हैं। सैनी जाति के लोग भी मूलत: कृषक ही हैं। इनकी उपज में बगीचों की फसलें, सब्जी-फल आदि अधिक होते थे। ये अधिकांशत: उत्तरी हरियाणा (अम्बाला, कुरुक्षेत्र और यमुनानगर जिलों) में बसते हैं।

शिल्पी वर्ग में बढ़ई, लुहार, सुनार आदि सब जगह बसते थे। इसके बाद निम्न जातियों में चमार, धानक, बाल्मिकि, सांसी, खटीक, बाजीगर, सपेले, डूम आदि आते हैं, जो कि शिल्पी जातियों की तरह हर जगह रहते आए हैं। मध्यकाल में छुआछूत का अत्यधिक प्रचार था और इनके साथ निम्न स्तर का व्यवहार होता था। ये सभी जातियां एक-दूसरे से अलग होते हुए भी आर्थिक एवं सांस्कृतिक सूत्रों में एक दूसरे से बंधी हुई थीं। हरियाणा एक पृथक राज्य बनने के बाद से और आरक्षण व्यवस्था लागू होने के कारण चमार, बाल्मीकि, धानक, खटीक आदि ने राजनीतिक क्षेत्र के अतिरिक्त शिक्षा व सरकारी सेवाओं में निरंतर अपनी भागदारी सुनिश्चित की है और ये जातियां प्रगति कर रही हैं।

मुस्लिम जातियां- यद्यपि सैद्धांतिक रूप से इस्लाम में जातियां नहीं होती तथापि हरियाणा में मुसलमान जातियों में बंटे रहे हैं। इसका कारण यह था कि यहां के अधिकतर मुस्लिम यहीं के रहने वाले हिन्दू थे। मध्यकाल में उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया था, किन्तु रीति-रिवाज नहीं छोड़े।
———————–
तलिका 2 : मुस्लिम जातियों के विभाग
श्रेणी भाग जातियां
प्रथम अशरफ सैय्यद, शेख, मुगल, पठान, बिलौच, रांघड़ आदि
द्वितीय अजलफ गुज्जर, मेव, कसाई (कसाब), औड़-कुंजड़े, कहार, मेहत्तर, कुम्हार, नाई, लोहार, जुलाहा आदि
—————-
हरियाणा की मुस्लिम जातियां धार्मिक-सामाजिक द़ृष्टिकोण से दो भागों में विभाजित रही हैं।
अशरफ वर्ग में उच्च स्तर की जातियां थीं। इनमें सैय्यद (जैदी वंश) को हिन्दू ब्राह्मणों की तरह सम्मान से देखा जाता था। इसके बाद शेख दो प्रकार (विदेशी एवं देशी) में विभाजित थे। पहली (विदेशी) किस्म के शेखों में कुरैशी, अनसारी, मुहाजरीन अधिक थे। बाद की किस्म (देशी) के शेखों में कैथल के आसपास के मंठार राजपूत आदि थे। शेख यहां काफी बड़ी संख्या में कृषक थे। मुगल और पठान बाहर से आने वाली अन्य जातियों थी, ऐसे ही बिलौच। इन सबका मुख्य धंधा खेती-बाड़ी करना, घोड़े आदि पालना और सैन्य सेवा था। स्वतंत्रता के बाद अधिकतर उच्च वर्ग में आने वाले सम्पन्न मुस्लिम पाकिस्तान स्थानांतरित हो गए थे। परन्तु कुछ मध्यम श्रेणी के लोग यही बसे रहे।

अजलफ वर्ग में निम्न वर्ग की जातियां आति थीं। इनमें मेव सबसे प्रमुख थे। ये आधुनिक मेवात, पलवल, गुड़गांव, फरीदाबाद जिलों में बसे हैं। ये ज्यादातर आर्थिक कारणों से सल्तनत युग में इस्लाम धर्म में प्रवेश कर गए थे, लेकिन जन्म, शादी, त्यौहार एवं अन्य अवसरों पर हिन्दू रीति-रिवाजों को अपनाए हुए थे। मेव जैसे ही मुसलमान गुज्जर थे। उनका मुख्य धंधा पशुपालन था। ये पशुओं के दूध व घी का व्यापार करते थे। कम उपजाऊ इलाके में रहने के कारण इनकी आर्थिक स्थिति दयनीय थी। मुसलमान गुज्जरों से मिलते जुलते रांघड़ धर्म परिवर्तन से पूर्व के राजपूत थे, जिन्होंने सल्तनत काल में इस्लाम धर्म ग्रहण किया था। ये लोग रोहतक, हिसार और करनाल जिलों में रहने वाले लंबे, शरीर से बलिष्ठ, स्वभाव से निडर और सैन्य गुण सम्पन्न थे। इनका मुख्य धंधा कृषि था। इसके अलावा मूला जाट भी कृषक जाति थी, जिन्होंने मध्यकाल में हिन्दू धर्म छोड़ कर कर मुस्लिम धर्म अपना लिया था। ये वर्तमान में मेवात व उसके आस-पास के क्षेत्र में बसते हैं।

आर्थिक द़ृष्टिकोण से मुस्लिम तीन वर्गों में बंटे थे। इनमें उच्च वर्ग (शासक, सामंत, जमींदार), मध्य वर्ग (छोटे व्यापारी, बड़े कृषक (जमींदार नहीं), बड़े या मध्यम दर्जे के राज्य कर्मचारी, मुल्ला, काजी, हकीम, वैद्य) और निम्न वर्ग (छोटे कृषक, मजदूर, शिल्पी) आदि शामिल थे।

सिक्ख उत्तरी हरियाणा के अम्बाला, कुरुक्षेत्र, कैथल, यमुनानगर और जीन्द क्षेत्र में बसते थे। ये हिन्दुओं से किसी तरह भिन्न नहीं थे। इसी तरह जैन भी हिन्दू बणियों में सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से घुले-मिले रहते थे।
इसाइयों की संख्या नाम मात्र थी और वे अन्यों से बहुत ज्यादा सामाजिक दूरी रखते थे। उनका हुक्का एवं पानी अर्थात् सामाजिक-सांस्कृतिक मेल-मिलाप भी अलग था। 19वीं एवम् 20वीं सदियों में जीवन जटिल होता गया। अब सामाजिक परिवर्तन का प्रभाव भी दिखाई देता है। अब सामाजिक दूरी- जो छूने से, पानी पीने के संदर्भ में और मंदिर प्रवेश- इन तीनों कारणों से उत्पन्न हुई थी, अब एक-दूसरी जाति के मध्य निरंतर कम होती गई। अब पहले की तरह कोई किसी के छूने से मलिन नहीं होता। अब निम्न जाति के व्यक्ति के छू जाने से पहले की तरह न नहाने की आवश्यकता है और न प्रायश्चित करने की। वर्तमान में दलित व ब्राह्मण परस्पर हाथ मिलाते देखे जा सकते हैं। जाट, अहीर, कुम्हार, मनियार आदि एक दूसरे से गले मिलते हैं। अनुसूचित-वंचित वर्ग से सम्बंधित विद्यार्थी उच्च व मध्यम जाति के विद्यार्थियों के साथ उसी बेंच पर बैठ कर शिक्षा प्राप्त करते हैं। यद्यपि गावों में अब भी जाति अनुसार, कुंए, धर्मशालाएं व शमशान हैं। परन्तु सरकारी नलकों पर सब जातियों की महिलाएं एक साथ पानी भरती दिखती हैं। मंदिर के द्वार, जो कुछ समय पूर्व निम्न जातियों के लिए प्राय: बंद होते थे, अब खुल गए हैं।

बीसवीं सदी में आधुनिक शिक्षा, सरकारी नौकरियों के कारण जातिगत दूरियां और कम हुई हैं। इनके अतिरिक्त आर्य समाज, सनातन धर्म सभा एवम् पिछले कई दशकों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आदि सामाजिक संस्थाओं के प्रयासों से जातिवाद बहुत कम हुआ है और समन्वयता बढ़ी है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान विदेशी शासन के विरुद्ध पनपी सामाजिक एकता की भावना और जातिवाद के विरुद्ध चलाए गए आंदोलन से भी समाज में जन जागृति आई, फलस्वरूप विभिन्न जातियां परस्पर नजदीक आईं। यद्यपि समाज में सामाजिक विषमता अभी तक पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है और कभी कभार ग्रामीण एवम् कस्बाई क्षेत्रों में अनुसूचित-वंचित जातियों के प्रति जुल्म, अत्याचार की घटनाएं भी देखने को मिलती हैं। ऐसी घटनाओं में हरसोला, गोहाना, मिर्चपुर और भगाना आदि अनेक घटनाएं देखी जा सकती हैं।

फिर भी व्यापक एवम् समग्र द़ृष्टि से देखने पर निष्कर्ष स्वरूप यह कहा जा सकता है कि वर्तमान हरियाणा में पिछली शताब्दी से सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया में गति आई है। यहां के जनमानस में सामाजिक सद्भाव और समरसता की भावना ने जोर पकड़ा है। शिक्षा, तकनीकी विकास और उन्नत जीवन शैली के परिणाम स्वरूप शहरी क्षेत्रों में सामाजिक विषमताएं तेजी से कम हो रही हैं। परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में परिवर्तन की यह गति अपेक्षाकृत धीमी है। इस दिशा में और अधिक प्रबल तरीके से कार्य करने की आवष्यकता है। इस प्रकार हजारों वर्षों से भारतीय समाज में फैली सामाजिक विषमता व पिछड़ेपन को समाप्त करने और समता, बंधुत्व और भाईचारे पर आधारित समाज को स्थापित करने में हरियाणा का सराहनीय योगदान रहा है।

डॉ. विजय कायत

Next Post
हरियाणा में खाप पंचायतों की भूमिका

हरियाणा में खाप पंचायतों की भूमिका

Comments 1

  1. Lucky khatik says:
    2 years ago

    खटीक निम्न जाति नही हे।।।
    खटीक मध्यम वर्ग की जाति हे l।।
    अहीर खटीक गुर्जर जाट आदि।।
    मुस्लिम धर्म में खटीक को कसाब या कुरेशी कहते हे।। हिंदू में उनको खटीक कहते हे।।।।

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0