आंतरिक सुरक्षा में सकारात्मक परिवर्तन

सुरक्षा या आंतरिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से विचार करें तो यह कहना ही पड़ेगा कि मोदी सरकार के कार्यकाल में पिछले दो वर्षों में आश्‍वस्त करने वाले सकारात्मक परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं| यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी तथा देश के अन्य क्षेत्रों में माओवादी हिंसा तथा अन्य हिंसक गतिविधियों में कमी आई है| इसका अर्थ यह भी नहीं की खतरा टल गया है, इसके लिए आने वाले दो तीन वर्षों में चुस्ती से इसका बंदोबस्त करने की जरूरत है|

सुरक्षा के क्षेत्र में क्या अंतर आया है?

पिछले दो वर्षों में आंतरिक हिंसा में मरने वालों की संख्या में ५०% की कमी आई है| २०१४ के पहले दो से ढाई हजार तक नागरिक और सुरक्षा कर्मचारी अलग-अलग कारणों से मारे जाते रहे हैं| परंतु पिछले दो वर्षों में यह संख्या घट कर १००० से कम हो गई| इसका मतलब है कि हिंसा में कमी तो आई है|

 आंतरिक सुरक्षा के पांच पहलू 

 १. कश्मीर में छद्म युद्ध का बदलता स्वरूप

 २. नक्सलवाद, माओवाद या वामपंथी आतंकवाद

 ३. पूर्वोत्तर में चल रही विद्रोही गतिविधियां

 ४. भारत के अन्य क्षेत्रों में फैला आतंकवाद

 ५. भारत में हो रही बांग्लादेशी घुसपैठ

इन प्रत्येक बिन्दु पर हम अलग-अलग विचार करेंगे|

  कश्मीर घाटी की हिंसक घटनाएं

पिछले दिनों में कश्मीर में छद्म युद्ध का स्वरूप बदला है| कश्मीर तथा कश्मीर घाटी में भी हिंसा में कमी आई है| हिंसाचार में मरने वालों की संख्या पचास प्रतिशत घटी है| पाकिस्तान से होने वाली घुसपैठ को सीमा पर ही रोक लेने में हम सफल रहे हैं| अब आतंकवाद अफवाह फैलाने, पत्थरबाजी या बंद के आव्हान के रूप में रह गया है| परम्परागत आतंकवाद को बहुत हद तक रोकने में हम सफल रहे हैं, तो इन्टरनेट के माध्यम से फैलने वाले आतंकवाद का हमें आने वाले तीन वर्षों में सामना करना पड़ेगा|

 सूफीमत का प्रसार करो

कश्मीर का युवा आज नशीले पदार्थों का आदि होता जा रहा है| अफीम, गांजा, चरस आसानी से उपलब्ध है| २०१५ के आंकड़ों के अनुसार दो लाख से अधिक युवा नशीले पदार्थों की गिरफ्त में हैं| कश्मीर में प्रवेश करने वाले आतंकवादियों को भी नशीले पदार्थ दिए जाते हैं और उनसे आत्मघाती हमले करवाए जाते हैं| उधर कश्मीर में सूफीमत कमजोर पड़ रहा है| अनेक संस्थाओं को अरब और खाड़ी देशों से धन प्राप्त हो रहा है| कश्मीर की मस्जिदों में स्थानीय मौलवियों के स्थान पर बाहर से आए मौलवी काम कर रहे हैं| भारत सरकार द्वारा इसे रोका जाना चाहिए|

 नक्सलवाद/माओवाद या वामपंथी आतंकवाद

पिछले दो वर्षों में नक्सलवाद या माओवादी हिंसा बहुत हद तक कम हुई है| माओग्रस्त दण्डकारण्य का क्षेत्रफल भी कम हो रहा है| यह पुलिस और अर्धसैनिक बलों द्वारा गुप्तचर सूचनाओं के आधार पर की गई कार्रवाई का परिणाम है| बहुत से माओवादी मारे गए हैं या जंगल में घुस गए| बहुत से गिरफ्तार कर लिए गए हैं| २००५ से २०१६ की कालावधि में ७००० से अधिक माओवादी मारे गए| मोदी सरकार आने के बाद हिंसा में पचास प्रतिशत की कमी आई है|

मोदी सरकार की आक्रामक माओ विरोधी नीति

मोदी सरकार के सत्ता हासिल करने के बाद गृह मंत्रालय ने इस विषय पर मिटिंग व कान्फरेंसेज लेकर माओवादियों को भटका देने का प्रयास किया है| १० राज्यों के ४०० से अधिक थानों को शक्तिशाली बनाया गया है, जो माओवादी हमलों से खुद की रक्षा करने में स्वयं समर्थ हैं| सुरक्षा कर्मियों के बीच सूचना का आदान-प्रदान किए जाने हेतु २२०० से अधिक मोबाइल टावर इन क्षेत्रों में लगाए गए हैं| सबसे अधिक हिंसाग्रस्त ३४ जिलों में ३००० किलोमीटर से अधिक सड़कें बनाई गई हैं| ये आंकड़ें जनवरी २०१६ तक के हैं| ५४२२ किलोमीटर की सड़कें अगले दो वर्षों में बनाने की योजना है| इन सड़कों से स्थानीय जनता को आवागमन का लाभ मिलेगा ही, साथ-साथ सुरक्षा बलों को अपना कार्य बेहतर ढंग से करने का अवसर भी मिलेगा|

      बिहार, उडीसा सरकारें माओवादियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं करती

आज आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड और उड़ीसा सबसे अधिक नक्सल प्रभावित राज्य हैं| इसमें बिहार में नितिश कुमार तथा उड़ीसा में वीजू पटनायक की सरकार है, जो माओवादियों के विरुद्ध बड़ी कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं हैं| इन राज्यों में माओवाद के विरुद्ध अभियान को गति देने की जरूरत है| एक अनुमान के अनुसार दो लाख से अधिक अर्ध सैनिक तथा पुलिस बल इन क्षेत्रों में लगा हुआ है| परन्तु उनकी मुहीम अलग-अलग होती है| यदि एक साथ मिलकर योजना बनाकर आपरेशन शुरू करें तो माओवादियों को बड़ा झटका दिया जा सकता है|

  गुप्तचर सूचनाएं प्राप्त करने के लिए आदिवासियों की आवश्यकता

आज सी.आर.पी.एफ. में गुप्त सूचनाएं प्राप्त करने के लिए ३५० से अधिक कर्मचारी एवं जवानों को नियुक्त किया गया है| यह संख्या बहुत कम है| गुप्त सूचनाएं प्राप्त किए जाने के लिए स्थानीय आदिवाविसों की जरूरत है| शहर से या अन्य स्थानों से आए सीआरपीएफ के जवानों के लिए स्थानीय लोगों के बीच काम करना कठिन है| टेक्नीकल इंटेलिजेंस याने टेलिफोन टैपिंग, मोबाइल कम्यूनिकेशन से प्राप्त जानकारी पर्याप्त नहीं है| इस पर बहुत ध्यान देने की जरूरत है| माओवादियों का गुप्तचर तंत्र पुलिस और अर्धसैनिक बलों के गुप्तचर तंत्र से बहुत उन्नत है| इसलिए इस क्षेत्र में सुधार जरूरी है| उसके बिना माओवाद कम नहीं हो सकता|

 पूर्वाचल का विद्रोहः

 भारतीय सेना का फिर एक बार म्यांमार में प्रवेश

भारतीय सैनिकों द्वारा पिछले वर्ष म्यांमार मे घुस कर विद्रोहियों पर की गई कार्रवाई की बहुत चर्चा रही| ३० मई २०१६ को प्रकाशित समाचार के अनुसार भारतीय सैनिकों ने फिर एक बार म्यांमार में प्रवेश कर नगा तथा मणिपुरी विद्रोहियों के प्रशिक्षण शिविरों पर हमला किया| इसमें असम रायफल की टुकड़ियों ने हिस्सा लिया था| इस हमले में आठ विद्रोही मारे गए तथा १८ को गिरफ्तार कर लिया गया| २२ मई २०१६ को मणिपुर में नगा तथा मणिपुरी विद्रोहियों ने हमला किया था, जिसमेें कई भारतीय जवान शहीद हो गए| इस हमले के जवाब में भारतीय सेना ने यह कार्रवाई की थी| इस हमले के विषय में न तो भारत सरकार न ही सेना ने कोई अधिकृत विज्ञप्ति जारी की| मीडिया के कुछ लोगों ने ही इस बात की जानकारी दी| एसा क्यों किया गया? ऐसी कार्रवाइयों क ा समाचार फैलने से विद्रोही सजग हो जाते हैं और अपने निवास एवं प्रशिक्षण केन्द्रों के स्थानों को बदल देते हैं, इसीलिए इस बार यह समाचार प्रसारित नहीं किया गया| यह भी सच है कि म्यामांर सरकार के साथ अच्छे संबंधों के कारण ही यह हमला किया जा सका|

  पूर्वोत्तर के १३ विद्रोही संगठन

गृह मंत्रालय ने जिन ३९ आतंकवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाया है उनमें १३ संगठन पूर्वोंत्तर के हैं| इसके अलावा ३० अन्य संगठन भी दहशत फैलाते रहते हैं| असम व मणिपुर के २३ विद्राही संगठनों ने भारत सरकार के साथ युद्धबंदी का समझौता किया है| फिर भी उनका अस्तित्व व उनकी हिंसा फैलाने की क्षमता अब भी बाकी है| ३ अगस्त २०१५ को भारत सरकार तथा इस क्षेत्र के सबसे बड़े आतंकवादी गुट एनएससीएम (आईएम) के बीच एक संधि हो जाने के कारण इस क्षेत्र में शांति स्थापित होने में सहयोग मिलेगा ऐसी अपेक्षा थी, परंतु उसका कोई बड़ा परिणाम दिखाई नहीं दे रहा है| एनएससीएम (आईएम) शांत हो गया है| परंतु उनके विरोधी गुट एनएससीएम(के) की हिंसक कार्रवाइयां शुरू हो गई हैं| इस गुट ने मणिपुर तथा नगालैण्ड के अलग-अलग गुटों को साथ में लेकर यूनाईटेड नेशनल लिहारेरान फ्रंट ऑफ वेस्टर्न साउथ ईस्ट इंडिया के नाम से नया समूह तैयार कर लिया है|

 हिंसाचार कम हो रहा है

इस क्षेत्र में शस्त्रों के साथ-साथ अफीम, गांजा, चरस की उपलब्धता बड़ी सहज है| नगालैंड के अनेक भागों में वसूली का काम चलते रहने के कारण धन की कमी नहीं है| गरीबी के कारण बंदूक का भय दिखा कर नए विद्रोहियों की भरती करना भी आसान है| एक तरफ विद्रोहियों के पक्ष में ऐसा अनुकूल वातावरण है तो दूसरी ओर हमारे पास प्रभावी गुप्तचर व्यवस्था भी नहीं है| पिछले २५ साल का इतिहास देखे तो प्रति वर्ष १००० से १५०० तक की संख्या में सामान्य नागरिक, सैनिक, या आतंकवादी मारे जाते थे| परंतु पिछले २ वर्ष में हिंसा की घटनाओं में कमी आई है| मरने वालों की संख्या में ६० से ८० प्रतिशत की कमी आई है| मरने वालों की संख्या २५ आतंकवादी, नौ सैनिक अधिकारी, तथा ३५ सामान्य नागरीक है|

 भारत के अन्य भागों में फैला आतंकवाद

पिछले दो वर्षों में कश्मीर, पूर्वोत्तर और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को छोड़ कर बाकी भारत में भी आतंकवादी घटनाओं में कमी आई है| पिछले कालखण्ड में प्रति वर्ष भारत के किसी न किसी भाग में एकाध आतंकवादी हमला हो जाता था| इसीस इस आतंकवादी संगठन का सभी देशों को खतरा महसूस हो रहा है| इस संगठन ने दक्षिण एशिया में पैर पसारने की योजना बनाने के बावजूद इसीस को भारत में प्रवेश करने या हमला करने में कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई| अल कायदा तालिबानी जैसे आतंकवादी संगठनों को भी भारत में प्रवेश करना था| परन्तु उनके लिए यह सम्भव नहीं हो सका| यह हमारी सुरक्षा जवानों की बड़ी सफलता है| इसी के साथ इसीस में शामिल होने को इच्छुक लोगों का या इसीस की विचारधारा को मानने वालों का भी मत परिवर्तन करने में हमें सफलता प्राप्त हुई है| अपनी गुप्तचर संस्थाएं सक्षम हो जाने के कारण ही ऐसी घटनाओं के होने के पहले ही उसे रोक दिया जाना संभव है| मतलब यह कि यहां के इसीस, अलकायदा,तालिबान और लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों को कमजोर करने में हम सफल हुए हैं|

परंतु अभी भी ये गुट इंटरनेट के माध्यम से भारत के विरुद्ध विषैला प्रचार करने का प्रयास कर रहे हैं| आने वाले तीन वर्षों में भारत विरोधी प्रचार करने वाले सोशल मीडिया ग्रुपों पर कार्रवाई करनी चाहिए| ऐसा हुआ भी है| इससे हिंसाचार में मी अवश्य कमी आएगी|

 सुरक्षा दलों की देखरेख में संभावित अपराधी

अभी एनआइए/ गुप्तचर संस्था इसका विश्‍लेषण करने में लगी है| इन तरुणों को अपनी ओर खींचने के लिए इसीस ने फेसबुक, ट्वीटर, ईमेल जैसी सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग किया है| यू ट्यूब पर भड़काने वाले वीडियोज डाले गए हैं| सायबर अपराध के क्षेत्र में भारत द्वारा उठाए गए प्रभावी कदम इसीस के मार्ग में बाधा बन रहे हैं| भारत की गुप्तचर संस्था ने इसीस के सम्पर्क में आने वाले १५० भारतीयों का भंड़ाफ़ोड किया| इन सबको सुरक्षा दलों की देखरेख में रखा गया है|

 मजदूरों पर कड़ी नजर रखना जरूरी-

बडी संख्या में होने वाला धर्मांतरण और मध्य पूर्व देशों में बड़ी संख्या में काम करने वाले युवा मजदूरों पर इसीस की नज़र है| विदेश विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन में  बताया गया कि इराक में ऐसे मजदूरों की  संख्या १८००० है| यदि इनमें से कुछ धर्मांध होकर भारत में आते हैं तो वे देश के लिए खतरा बन सकते हैं| इसीस का खतरा टालने के लिए ऐसे मजदूरों पर कड़ी नजर रखनी होगी|

आज भारत में पांच से छह करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठिए आ चुके हैं| असम की ३५ प्रतिशत तथा बंगाल की २९ प्रतिशत संख्या इन बांग्लादेशी घुसपैठियों की है| गृह मंत्रालय के द्वारा दिए गए आश्‍वासन के अनुसार आने वाले एक वर्ष में नई टेक्नालाजी से सीमा पर दीवार बना कर उसे सील कर दिया जाएगा| जो बांग्लादेशी भारत में घुस चुके हैं, उनकी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन की सहायता से पहचान करने में सफलता प्राप्त हो रही है| आने वाले तीन वर्षों में सारे घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें बांग्लादेश वापस भेज दिया जाएगा, ऐसी अपेक्षा है| पिछले दो वर्षों में भारत और बांग्लादेश के सम्बंध बेहतर हुए हैं| दोनों देशों के बीच लिखित भू-सीमा रेषा संधि मोदी के नेतृत्व और कूटनीतिक दृष्टि के कारण अब पूरी हो गई है| इस संधि से अब भारत की सीमा सीधी हो गई है| जिसमें घुसखोरी रोकने में काफी सहयोग मिलेगा| इंदिरा गांधी और मुजिबुर्रहमान के बीच १९६१ में हुई संधि के अनुसार १९६१ के पहले आए बांग्लादेशियों को भारत की नागरिकता दे दी जाएगी| परन्तु उसके बाद भारत आए बांग्लादेशियों को गैरकानूनी घुसपैठिए मान कर बांग्लादेश वापस भेज दिया जाएगा| उसके लिए २०१५ से  एनआरसी के जरिए ऐसी जानकारी प्राप्त करना शुरू कर दिया गया है| अभी अभी लिए गए निर्णय के अनुसार २०१६ समाप्त होने के पूर्व सभी बांग्लादेशियों की पहचान कर लेना बंधनकारक है| एनआरसी के अनुसार असम में यह काम शुरू कर दिया गया है| उसके लिए सरकार ने एक समिति भी बनाई है| एनआरसी में नाम न होने पर ऐसे लोगों को गैरकानूनी घुसपैठिया मान कर देश के बाहर भेज दिया जाएगा|

परन्तु इसमें दो बदलाव किए गए हैं| जो हिंदू पाकिस्तान या बांग्लादेश से अत्याचार के कारण भारत भाग कर आए हैं उन्हें गैरकानूनी घुसपैठी नहीं माना जाएगा| उन्हें भारत में ही बसाया जाएगा| दूसरा १९६१ के बाद आए बांग्लादेशी नागरिकों का मतदान का अधिकार वापस ले लिया जाएगा| असम तथा पूर्वोत्तर में भारत में होने वाले बांग्लादेशी आक्रमण स्वतंत्रता के पहले से चले आ रहे हैं| परंतु असम में कांग्रेस तथा पश्‍चिम बंगाल में ममता बॅनर्जी तथा वामपंथियों ने वोट की राजनीति के खातिर घुसपैठियों को आने में मदद ही की|

  भारत-बांग्लादेश सीमा युद्ध स्तर पर बंद की जाएगी-

असम से लगी बांग्लादेश की सीमा को पूरी तरह सील करने के निर्देश असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनेवाल ने १५ जून को सीमा सुरक्षा बल को दिए हैं| साढ़े चार हजार किलोमीटर लम्बी सीमा को सुरक्षा दलों द्वारा कभी भी बंद नहीं किया जा सका है| आधुनिक टेक्नीक का प्रयोग कर नदी वाले स्थान की सीमा को भी सील किया जा सकेगा| बीएसएफ को उन्होंने सुरक्षा हेतु लेजर दीवार जैसी कुछ तकनीकी योजना का सुझाव दिया |

पिछले दो वर्षों में हिंसा की घटनाओं को रोकने में सफलता जरुर प्राप्त हुई है, फिर यह न भूलें कि अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है| उसके लिए लगातार प्रयास करते रहना तथा सजग रहना होगा| आने वाले तीन वर्षों में इन प्रयासों को तेज गति प्राप्त हो यही अपेक्षा है|

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