मा.व्यंकटेश आबदेव सर हिंदुत्वनिष्ठ समर्पित कार्यकर्ता थे। रायगड़ जिले के जंजीरा-मुरुड़ इलाके में विश्व हिंदू परिषद के कार्य को जन-जन तक पहुंचाने में उनका बड़ा योगदान था। उनमें गजब की संगठन क्षमता थी। वे इस दुनिया से विदा हो गए, लेकिन उनका कार्य सदा बोलता रहेगा।
सोमवार दिनांक 27 मई 2019 की रात 10 बजकर 25 मिनट पर विश्व हिंदू परिषद के अग्रणी कार्यकर्ता, केन्द्रीय मंत्री श्री व्यंकटेश नारायण आबदेव सर का दु:खद निधन हो गया। यह खबर सोशल मीडिया के माध्यम से पूरे देश में फैल गई। हिंदुत्वनिष्ठ समर्पित कार्यकर्ता श्री व्यंकटेश आबदेव सर ने संघरूपी विचारधारा का स्वीकार कर विश्व हिंदू परिषद के माध्यम से हिंदू जागरण एवं हिंदू समाज की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर अपने देवदुर्लभ जीवन को सार्थकता प्रदान की।
पिता श्री नारायण राव आबदेव एवं माता श्रीमती शालिनी देवी के सुपुत्र श्री व्यंकटेश आबदेव का जन्म नागपुर के पास ब्रम्हपुरी कस्बे में 29 नवम्बर 1952 को हुआ। परिवार में तीन भाई एवं पांच बहने हैं। एम. काम. तक की पढ़ाई उन्होंने ब्रम्हपुरी में रहकर ही पूरी की। श्री व्यंकटेश जी को बालासाहब के नाम से जाना जाता था। बचपन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक थे। ब्रम्हपुरी की संघ शाखा के वे नियमित स्वयंसेवक थे।
महाविद्यालय में पढ़ाई के दौरान वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्य में सक्रिय थे। विदर्भ की ब्रम्हपुरी जैसी छोटी जगह से निकल कर दिल्ली में केंद्रिय स्तर तक पहुंचने वाले वे एकमात्र कार्यकर्ता थे। भूमिगत रहकर आपातकाल में भी वे जोरशोर से कार्य को गति देते रहे।
जंजीरा-मुरूड़ में परिवार समेत आगमन
सन 1975 में रायगड़ (महाराष्ट्र) जिले के मुरुड़-जंजीरा में श्री आबदेव सर का परिवार समेत आगमन हुआ। वहां उन्होंने सर एस.ए.जूनियर महाविद्यालय में प्राध्यापक की नौकरी स्वीकार की। पारिवारिक जीवन में उनके साथ उनके चार भाई, पांच बहने, पत्नी श्रीमती मृदुला, सुपुत्र अभिनव व कन्या अपूर्वा (दोनों विवाहित) तथा बहु डॉ.श्रीमती योगिता थे। उन्होंने अपने भाई बहनों के विवाह भी संपन्न कराए।
विश्व हिंदू परिषद के कार्य का प्रारंभ
सन 1984 के लगभग जंजीरा-मुरूड़ में उन्होंने विश्व हिंदू परिषद का काम प्रारंभ किया। वहां वे विहिप के अध्यक्ष बने। सन 1988 में वे रायगड़ जिले के मंत्री बने। सन 1990 में रायगड़ के विभाग मंत्री की जिम्मेदारी स्वीकार की। सन 1988 में आलंदी में संपन्न विशाल हिन्दू सम्मेलन की प्रतिकृति के रूप में जंजीरा मुरूड़ में विराट हिंदू संम्मेलन संपन्न कराया। आबदेव सर के समर्थ नेतृत्व का यह प्रमाण था। वहां के पुलिस विभाग ने भी लिखा कि मुरुड़ के इतिहास में नवाबशाही के कालखंड के पश्चात पहली बार इतनी बड़ी संख्या में समाज का एकत्रिकरण हुआ।
जंजीरा-मुरुड़ के समुद्र किनारे पर “हिंदू बोर्डिग” नामक भवन को कोर्ट के माध्यम से आबदेव सर ने हासिल किया। आज वहां हिंदुओं की विभिन्न गतिविधियां संचालित होती हैं। सन 1994 में उन्होंने जंजीरा-मुरूड़ में ‘जय श्रीराम’ नामक क्रेडिट सोसायटी की स्थापना की। वे उसके अध्यक्ष बने। रायगड़ जिले में शेतकरी- कामगार पार्टी का अच्छा कार्य होने के बावजूद उन्होंने वहां विश्व हिंदू परिषद का मजबूत संगठनात्मकढांचा तैयार किया। साथ ही जिला एवं विभाग के मंत्री के रुप में काम को विलक्षण गति से विस्तारित किया। सन 1995 में वे बृहन्महाराष्ट्र प्रांत के प्रांत मंत्री बने एवं 2002 में केंद्रीय मंत्री एवं विशेष संपर्क आयाम मंत्री बने। 2002 में महाविद्यालय से निवृत्ति के बाद वे विश्व हिंदू परिषद के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बने। इस दौरान उन्होंने विभिन्न विषयों को लेकर भारत भर में आयोजित विभिन्न बैठकों में हिस्सा लिया एवं दौरे किए।
प्रतापगड़ किले पर अफजलखान की कबर को महत्व देने का कार्य कुछ समाज विघातक तत्वों द्वारा किया जा रहा था, उसे रोकने हेतु सन 2004 में आबदेव सर के नेतृत्व में सफल आंदोलन किया गया। विश्व हिंदू परिषद की स्थापना के सुवर्ण महोत्सव का कार्यक्रम सन 2014 में सांदिपनी आश्रम पवई मुंबई में पूज्य संतों एवं रा. स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनजी भागवत की उपस्थिति में शानदार तरीके से आयोजित किया।
स्व. अशोकजी सिंघल पर उनकी अविचल श्रद्धा थी। अशोक जी के मुंबई प्रवास के दौरान उनके अनेक कार्यक्रम आबदेव सर द्वारा आयोजित किए गए। महाराष्ट्र एवं अन्य प्रांतों में विशेष संपर्क अभियान के माध्यम से विविध राजनीतिक पदाधिकारियों, सभी दलों के विधायकों व सांसदों से श्री आबदेव सर का सम्पर्क था। उन्होंने अपने संगठन कौशल्य से विहिप के लिए विविध क्षेत्रों में कई लोगों को जोड़ा। भारतवर्ष के शीर्षस्थ धर्माचार्यों से उनका सम्पर्क था। मुंबई में विशेष सम्पर्क अभियान एवं मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ करना निश्चित किया। सतीश सिन्नरकर को साथ लेकर विश्व हिंदू सम्पर्क नाम से एक मासिक पत्रिका का हिन्दी एवं अंग्रेजी में अत्यंत आकर्षक एवं प्रभावी रूप से प्रकाशन प्रारंभ किया।
आबदेव सर ने रामजन्मभूमि आंदोलन में राम जानकी रथयात्रा के माध्यम से सम्पूर्ण हिंदू समाज का जागरण किया। सामाजिक कार्य के लिए जो भी किया जा सकता था, वह किया गया। रायगड़ की मोरोबा नामक मुस्लिम बस्ती में एक कसाईखाना था। आबदेव सर के नेतृत्व में विराट जन आंदोलन खड़ा कर कलेक्टर को मजबूर किया गया कि वह यह कसाईखाना बंद कराए। यह आंदोलन भी सफल रहा। करवीर पीठ के पू. शंकराचार्य विद्याशंकर भारती एवं श्री अशोकजी सिंघल के अमृत महोत्सव के कार्यक्रम रायगड़ में संपन्न हुए।
परिवार में आनंद के क्षण एवं महत्वपूर्ण घटनाएं
2 जून 2010 में पुणे के काकडे पैलेस में उनके पुत्र चि.अभिनव एवंं सौ.डॉ.योगिता का शुभ विवाह संपन्न हुआ। यह एक प्रकार से विहिप का कार्यकर्ता सम्मेलन ही था। विहिप के सभी केंद्रीय पदाधिकारी एवं आबदेव सर के सम्पर्क में आने वाले कार्यकर्ता विवाह समारोह में उपस्थित थे। श्री आबदेव सर के प्रेम एवं सम्पर्क के कारण श्रद्धेय सिंघलजी एवं मा. प्रवीण भाई ने जंजीरा-मुरुड़ में आबदेव सर के यहां निवासी प्रवास किया। मुरुड़ के सभी कार्यकर्ताओं के लिए यह दिवाली जैसे आनंद का प्रतीक था। संघ परिवार एवं विहिप के कई पदाधिकारी उनके यहां हमेशा आते-जाते रहते थे। आबदेव सर का परिवार भी उतने ही आनंद एवं मनोयोग से आंगतुकों का स्वागत करता था।
1998 से शारीरिक स्वास्थ हेतु अखंड जीवन संघर्ष
1998 में श्री आबदेव सर की ओपन हार्ट सर्जरी हुई। 2008 में एंजियोप्लास्टी भी हुई थी। 2014 में दोनों आंखों की सर्जरी भी हुई। 17 नवंबर 2015 को अशोकजी सिंघल का निधन हुआ। उसके चार दिन बाद ही 21 नवंबर 2015 की शाम को आबदेव सर को तीव्र हार्ट अटैक आया। तब वे दिल्ली स्थित विहिप कार्यालय में ही थे। उन्हें तत्काल ‘एम्स’ में भर्ती कराया गया। वहां के इलाज के दौरान ही वे लकवा, अंधत्व ऐसी विविध बीमारियों से ग्रस्त हो गए थे। तब उनका परिवार भी कार्यालय में रूका था। सभी केंद्रीय अधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं ने आबदेव सर की एवं उनके परिवार की बहुत देखभाल की।
20 मार्च 2016 से वे पुणे स्थित अपने पुत्र अभिनव के घर पर निवास एवं आगे के उपचार हेतु आए। पत्नी, पुत्र, पुत्रवधु, कन्या, पुत्रवधु के मातापिता इत्यादि ने मिलकर उनकी भरपूर सेवा की। सभी केंद्रीय अधिकारी उनका हालचाल जानने हेतु निरंतर पुणे आया-जाया करते थे। उनके स्वास्थ्य सुधार हेतु कुछ अनुष्ठान एवं धार्मिक कार्यक्रम भी पुणे स्थित निवास पर किए गए। उन्हें पूर्ववत स्वस्थ कराने के लिए प्रयत्नों की पराकाष्ठा की गई। परंतु ईश्वर की इच्छा कुछ और ही थी।
मेरा आबदेव सर तथा उनके परिवार के साथ सन 1985 से अखंड स्नेह संबंध एवं सम्पर्क रहा। सन 1988 से मैं भी विहिप का पूर्णकालिन कार्यकर्ता बना। हमने रायगड़ जिले का अविरत प्रवास किया एवं सही अर्थों में कार्य का आनंद लूटा। सुख-दु:ख की अनेक घटनाओं के हम दोनों साक्षी रहे हैं।